JNU में मूर्ति अनावरण से लेकर सेना के साथ घटनाएं तक सत्ता का चुनावी मोहरा

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: November 13, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 नवंबर को जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में 2 साल से बन कर तैयार बहुप्रतीक्षित विवेकानंद की मूर्ति के अनावरण में वर्चुअल तरीके से शामिल हुए. यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वामपंथ की नर्सरी कही जाने वाली JNU के किसी भी कार्यक्रम में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल दिखे. विवेकानंद की आदमकद मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये किया. गौर करने वाली बात यह है कि देश में अगर सेना या जनता के साथ कोई दुर्घटना घटती है तो उसे चुनावी मसाले में भून कर तलने का काम सत्ताधारी बीजेपी बखूबी कर लेती है। हालांकि देश के अन्दर, सेना, पुलिस, महिला, अल्पसंख्यक, आदिवासी या किसी भी जनता के साथ कोई घटना होती है तो इसकी जिम्मेदारी सीधे सरकार की होती है. इस बात को ही JNU के स्टूडेंट मुखरता से वर्षों से उठाते आए हैं जिसका इनाम उन्हें झूठे देशद्रोही के तमगे के साथ दिया गया. खैर, मूर्ति अनावरण भी महज एक घटना नहीं हो सकती इसके पीछे भी हाल ही में आने वाले बंगाल चुनाव की पृष्ठभूमि छिपी है. बंगाल चुनाव को रणनीति के तहत साधने के काम की शुरुआत जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में विवेकानंद के मूर्ति अनावरण से मानी जा सकती है जिसमें इनके कई चुनावी सन्देश छुपे हैं. 



विवादों के घेरे में रह चुकी है विवेकानंद की यह मूर्ति 
पिछले 5 सालों से JNU की राजनीति ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियाँ बटोरी हैं चाहे वो तथाकथित नारे लगाने को लेकर हो, फीस बढ़ने को लेकर हुए प्रदर्शन को लेकर हो, रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या से खफा स्टूडेंट का दिल्ली की सड़कों पर उतरना हो, नजीब के गायब हो जाने, राम-रहीम, चिन्मयानन्द के बचाव में खड़े नेताओं की बखिया उधेड़ने, बलात्कार की घटना पर सवालों की बौछार करके सरकार की नींद हराम कर देने वाले नारे और प्रदर्शन हो या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन ABVP द्वारा हिंसा हो. स्वामी विवेकानंद की मूर्ति पर भी विवाद हो चुके हैं. तीन साल पहले इस मूर्ति का निर्माण कार्य शुरू हुआ जो 2018 में पूरा हुआ और तब से ही इस मूर्ति  को ढक कर रख दिया गया ताकि सही समय पर इसका सही उपयोग हो सके. JNU में छात्रों के द्वारा प्रशासन से मूर्ति निर्माण पर पर खर्च किए जा रहे फंड्स पर सवाल जरुर किए जाते रहे हैं लेकिन इन पर आरोप मूर्ति को क्षतिग्रस्त करने व् विवेकानंद के बारे में अपशब्द लिखने को लेकर लगाया गया है जिसे स्टूडेंट द्वारा यह कह कर ख़ारिज किया गया कि इस तरह के कामों को सिर्फ ABVP द्वारा की अंजाम दिया जा सकता है. 

बीजेपी के लिए स्वामी विवेकानंद अहम् क्यूँ हैं?
बीजेपी के लिए स्वामी विवेकानंद की अहमियत समझने के लिए संघ को समझना होगा जो स्वामी विवेकनद से अपना जुडाव बता कर उन्हें वैचारिक प्रेरणा के रूप में देखता है और उन्हें मार्गदर्शक बताता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में स्थापित विचारकों की कमी और मार्गदर्शक की किल्लत ने वर्षों तक देश में इन्हें स्थापित विचार साबित नहीं होने दिया तब सावरकर को मानने वाले इन अनुयायियों को स्वामी विवेकानंद की शरण लेनी पड़ी. 

वर्षों तक वामपंथ शासित राज्य पश्चिम बंगाल में चुनावी फतह करने की शुरुआत के तौर पर इस मूर्ति अनावरण को देखा जा सकता है. जहाँ एक तीर से दो निशाना साधा जा सकता है. JNU के वामपंथ को भी कमजोर किया जा सकता है और इसे आधार बना कर बंगाल को भेदने की शुरुआत भी की जा सकती है. चुनावी खेल में साम दाम दंड भेद की राजनीति की शरण लेने वाले बीजेपी से ऐसे कार्यों की उम्मीद सहजता से की जा सकती है. पुलवामा हमले से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक तक इस सरकार में कोई भी घटना चुनावी समय में संभव है. बदले हुए सरकार की बदली हुई नीतियों और उसे लागू करवाने के बर्बर तरीके के साथ नया और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो रहा है जिसका गवाह भारत की तमाम जनता है. 

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