आजादी पर महाराष्ट्र सरकार का दोहरापन

Written by sabrang india | Published on: October 23, 2020
अधिकांश अनुभवी राजनेताओं को पता है कि जनसंपर्क का खेल कैसे खेलना है; उनके करियर इस पर निर्भर करते हैं। लेकिन जब उद्धव ठाकरे की बात आती है, तो यह बताना कठिन होता है कि वह क्या चाहते हैं या वह कहां खड़े हैं। ठाकरे की बातों में विरोधाभास नजर आता है।

 

उदाहरण के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर उनका रुख। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सहयोगी शिवसेना ने लोकसभा में सीएए को वोट दिया था, लेकिन राज्यसभा में इसके लिए वोट करने से परहेज किया था। महाराष्ट्र राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा द्वारा सीट-बंटवारे के प्रस्ताव से पार्टी नाराज थी और इस प्रकार शिवसेना ने राज्य में बहुमत की सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया।

29 दिसंबर को सीएए कानून बनने के तुरंत बाद ठाकरे ने अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ नवी से एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया, पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने नवी मुंबई के नेरुल में 'अवैध आप्रवासियों' के लिए राज्य के पहले डिटेंशन सेंटर के निर्माण का निर्णय लिया। ठाकरे ने यह भी कहा कि विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) राज्य में लागू नहीं होंगे।

फरवरी में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) पर उन्होंने अपने पक्ष में बदलाव किया। ठाकरे ने कोंकण क्षेत्र के सिंहदुर्ग जिले के दौरे के दौरान कहा,  'सीएए और एनआरसी अलग-अलग मुद्दे हैं। एनपीआर अलग है। अगर सीएए लागू हो जाता है तो किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है। एनआरसी राज्य में लागू नहीं होगा। एनपीआर एक जनगणना की तरह है और मैं फॉर्म में दिए गए कॉलम से गुजरूंगा। मुझे नहीं लगता कि इसके साथ कोई समस्या होनी चाहिए।'

इस विषय पर उद्धव ठाकरे की फ्लिप-फ्लॉप चिंताजनक है। ठाकरे, जिन्होंने पहले कहा था कि सीएए भारत के एक 'अदृश्य विभाजन' को जन्म दे सकता है, बाद में शिवसेना के मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत को दिए एक वीडियो साक्षात्कार में कहा- 'सीएए नागरिकता नहीं लेता है, यह पड़ोसी देशों से प्रभावित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देता है। कानून को गलत समझा गया है। लेकिन एनआरसी समस्याग्रस्त है क्योंकि यह हिंदुओं सहित सभी धर्मों के लोगों को प्रभावित कर सकता है।' यह क्लासिक सांप्रदायिक राजनीति है ... एक राजनीति जो बताती है कि अगर यह बहुसंख्यक समुदाय को प्रभावित करती है तो कुछ समस्या है।

ठाकरे ने एल्गार परिषद के मामले को राष्ट्रीय जांच प्राधिकरण (एनआईए) को सौंप दिया था। तब एनसीपी प्रमुख शरद यादव इसके विरोध में आ गए थे। ठाकरे के यह कहने के बाद कि उन्हें एनआईए के साथ कोई आपत्ति नहीं है, एल्गार परिषद मामले में जांच को लेकर राज्य के गृह मंत्री और राकांपा सदस्य अनिल देशमुख ने कहा था कि ऐसा करने में ठाकरे ने राकांपा को 'ओवररूल' कर दिया। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी इस मामले में नाखुशी जताई थी। तब उन्होंने कोल्हापुर में एक संवाददाता सम्मेलन में मीडियाकर्मियों से कहा था, 'कानून और व्यवस्था बनाए रखना एक राज्य का विषय है। राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण करना अनुचित है और इस कदम के लिए महाराष्ट्र का समर्थन अधिक अनुचित है।'

ठाकरे ने यह भी कहा था कि उनके राज्य में कोई डिटेंशन कैंप नहीं बनाया जाएगा। फिर ठाकरे ने तब इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, 'डिटेंशन कैम्पों के बारे में कई गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं। यह विदेशी नागरिकों के लिए एक प्रणाली है जो ड्रग्स या अन्य [अपराधों] से संबंधित मामलों के लिए अपनी सजा काट चुके हैं।

इन विदेशी नागरिकों को डिटेंशन कैम्पों में उस समय तक रखा जाता है जब तक वे निर्वासन के लिए अपनी डॉक्यूमेंटेशन प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेते हैं। इसलिए, इसके बारे में (डिटेंशन कैंप) डरने की जरूरत नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि डिटेंशन कैंप का निर्माण नहीं किया जाएगा, बस लोगों को उनसे डरना नहीं चाहिए।'

5 जनवरी, 2020 को नकाबपोश गुंडों के एक समूह ने छात्रों और शिक्षकों में डर फैलाने के लिए जेएनयू परिसर में प्रवेश किया था, लोहे की छड़ों से संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और परिसर में कई लोगों को बेरहमी से घायल किया गया था। इसके बाद अपने निवास मातोश्री में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ठाकरे ने कहा, 'जब मैंने टीवी पर जेएनयू हमले की खबर देखी, तो इसने मुझे 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों की याद दिला दी।' 'देश में छात्र असुरक्षा महसूस करते हैं' कहते हुए ठाकरे ने कहा था, 'मैं महाराष्ट्र में जेएनयू जैसा कुछ नहीं होने दूंगा।'

ऐसा क्यों है कि जब छात्रों और कार्यकर्ताओं ने हुतात्मा चौक और आजाद मैदान में धरना प्रदर्शन कर जेएनयू हिंसा का विरोध किया, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गईं? उन्हें बांड पर हस्ताक्षर करने और अत्यधिक ज़मानत देने के लिए क्यों कहा गया? सबसे चौंकाने वाला मामला कॉलेज की छात्रा और सांस्कृतिक कार्यकर्ता सुवर्णा साल्वे का था, जो समता केन्द्र मनु का हिस्सा हैं, जिसे 50 लाख रुपये में एक बांड पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था!

एक साथ तीन पुलिस स्टेशन; MRA मार्ग, कोलाबा और तारदिओ, ने धारा 107 (शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा) और 110 (आदतन अपराधियों से अच्छे व्यवहार के लिए सुरक्षा) के तहत नोटिस जारी किए हैं। बांड की शर्तों के अनुसार, अगर ये लोग कानून और व्यवस्था को खतरे में डालने वाले किसी भी कार्य में शामिल होते हैं, तो इनकी न केवल ज़मानत राशि को जब्त किया जाएगा, बल्कि शहर से बाहर निर्वासन के लिए कहा जाएगा। 

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