स्वास्थ्य के बाद बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन भारत में कृषि क्षेत्र में सक्रिय है और अब आप देखेंगे कि वह भारत के कृषि क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे है। बिल गेट्स नवम्बर मध्य में भारत मे ही थे आप जानते हैं कि वो यहां मुख्य रूप से किसलिए आए थे ?
दरअसल कृषि सांख्यिकी पर नई दिल्ली में होने वाली ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में बिल गेट्स मुख्य वक्ता थे, यह कांफ्रेंस यूएन के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ), यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, वर्ल्ड बैंक, मिलिंडा एंड गेट्स फाउंडेशन और अन्य एजेंसियों के साथ पार्टनरशिप में भारत के कृषि मंत्रालय ने आयोजित की थी।
अब यदि आप अपने मन में नवम्बर 19 के बाद से 8 महीनों में चल रहे कृषि क्षेत्र में चल रहे सरकारी बदलाव से इस बैठक के ऐजेंडे को सही तरह से जोड़ लेंगे तो समझ मे आ जाएगा कि भारत का किसान बिल गेट्स और अमेरिका मल्टीनेशनल कंपनियों की गुलामी करने के कितना नजदीक आ चुका है।
इस कांफ्रेंस की थीम थी 'सतत विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए कृषि में बदलाव की सांख्यिकी'। बिल गेट्स का उदबोधन कृषि उत्पादन के लिए नए डिजिटल उपकरणों के उपयोग ओर कृषि के सर्वोत्तम आंकड़ों की आवश्यकता के आसपास ही केंद्रित था। शायद आपने रिलायंस जियो के टीवी पर आने वाले एड ध्यान से देखे होंगे उसमे 'जियो किसान' का भी जिक्र है।
आश्चर्यजनक रूप से इस कोरोना काल मे मोदी सरकार ने कृषि से जुड़े तीन अध्यादेश जारी किए जिसे किसानों के हित में बताया जा रहा है लेकिन यदि आप इसे गहराई से देखेंगे तो आप पाएंगे कि इन अध्यादेशों के जरिए कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जा रहा है अब कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा। दरअसल आत्मनिर्भर भारत अभियान के चलते कम्पनियों के आत्मनिर्भर होने की राह भी खोल दी गयी है। अब संविदा करार की मार्फत कम्पनियाँ खुद खेती कर सकेंगी।
आमतौर पर अनुबंध खेती का मतलब है कि बुआई के समय ही बिक्री का सौदा हो जाता है ताकि किसान को भाव की चिंता न रहे। सरकार द्वारा पारित वर्तमान कानून में अनुबन्ध की परिभाषा को बिक्री तक सीमित न करके, उसमें सभी किस्म के कृषि कार्यों को शामिल किया गया है। अध्यादेश के अनुसार कम्पनी किसान को, किसान द्वारा की गयी सेवाओं के लिए भुगतान करेगी यानी किसान अपनी उपज की बिक्री न करके अपनी ज़मीन (या अपने श्रम) का भुगतान पायेगा।
ज्यादा जानकारी के लिये आप गूगल कर देख सकते है यह अध्यादेश भारतीय कृषि की तस्वीर बदलने की ताकत रखते हैं लेकिन कोरोना काल मे इन सब बातों पर चर्चा ही कहा हुई कोरोना में तो हमारा बुद्धिजीवी वर्ग बस वैज्ञानिक चेतना विकसित करने का काम कर रहा है इन सब बातों के बारे में उसे सोचने की फुर्सत नही है, खैर छोड़िए।
अब आप यह जानिए कि इस सबकी शुरुआत कहा से हुई है? 2006 में, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और रॉकफेलर फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से अफ्रीका में हरित क्रांति (AGRA) के लिए गठबंधन शुरू किया। इस पूरे प्रोग्राम को वह अफ्रीका में बहुत अच्छी तरह से टेस्ट कर चुके हैं। अफ्रीका के बीज और कृषि बाजारों का निजीकरण वह काफी हद तक कर चुके है।
इनका विरोध भी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है अफ्रीका में सामाजिक कार्यकर्ता अफ्रीका के किसानो को समझा रहे हैं कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स की यह एड' दरअसल 'एड' नहीं है - यह उपनिवेशवाद का दूसरा रूप है," सामाजिक कार्यकर्ता वहाँ यह समझा रहे हैं कि "हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बीज और अन्य कृषि संसाधनों का नियंत्रण छोटे किसानों के हाथों में रहे, जो अफ्रीका में आबादी के अधिकांश हिस्से को खिलाने के बजाय बड़े कृषि व्यवसाय को खाद्य प्रणाली के और भी अधिक पहलुओं पर हावी होने की अनुमति देते हैं।
भारत के कृषि क्षेत्र में लागू किये जाने वाला प्रोग्राम जिसका लुभावना वर्णन मोदी सरकार करती है वह अफ्रीका में कई सालो से जारी है। कल भी जिस एक लाख करोड़ रुपये के एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड को मोदी जी ने लागू किया है उसको यदि आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि यह सारा पैसा तो कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस, कलेक्शन सेंटर और प्रोसेसिंग यूनिट, परख केंद्र, ग्रेडिंग, पैकेजिंग यूनिट, ई-प्लेटफॉर्म जैसी इकाइयों की स्थापना में लगाने की बात की जा रही है।
मल्टीनेशनल खाद्य कम्पनियों की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह सारी सुविधाएं बहुत जरूरी है और जरूरी है मंडी प्रणाली को हटाना जो इस सरकार ने तीन अध्यादेश जारी करके उनका रास्ता साफ कर दिया है। यह अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है लेकिन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई बात नही करता।
अभी बिल गेट्स कृषि में किस हद तक इन्वॉल्व है। उसकी बस एक झलक आपके सामने आयी है अगली कड़ी हम जीएम फसलों पर चर्चा करेंगे जो इनका भारत मे मुख्य उद्देश्य है।
दरअसल कृषि सांख्यिकी पर नई दिल्ली में होने वाली ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में बिल गेट्स मुख्य वक्ता थे, यह कांफ्रेंस यूएन के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ), यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, वर्ल्ड बैंक, मिलिंडा एंड गेट्स फाउंडेशन और अन्य एजेंसियों के साथ पार्टनरशिप में भारत के कृषि मंत्रालय ने आयोजित की थी।
अब यदि आप अपने मन में नवम्बर 19 के बाद से 8 महीनों में चल रहे कृषि क्षेत्र में चल रहे सरकारी बदलाव से इस बैठक के ऐजेंडे को सही तरह से जोड़ लेंगे तो समझ मे आ जाएगा कि भारत का किसान बिल गेट्स और अमेरिका मल्टीनेशनल कंपनियों की गुलामी करने के कितना नजदीक आ चुका है।
इस कांफ्रेंस की थीम थी 'सतत विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए कृषि में बदलाव की सांख्यिकी'। बिल गेट्स का उदबोधन कृषि उत्पादन के लिए नए डिजिटल उपकरणों के उपयोग ओर कृषि के सर्वोत्तम आंकड़ों की आवश्यकता के आसपास ही केंद्रित था। शायद आपने रिलायंस जियो के टीवी पर आने वाले एड ध्यान से देखे होंगे उसमे 'जियो किसान' का भी जिक्र है।
आश्चर्यजनक रूप से इस कोरोना काल मे मोदी सरकार ने कृषि से जुड़े तीन अध्यादेश जारी किए जिसे किसानों के हित में बताया जा रहा है लेकिन यदि आप इसे गहराई से देखेंगे तो आप पाएंगे कि इन अध्यादेशों के जरिए कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जा रहा है अब कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा। दरअसल आत्मनिर्भर भारत अभियान के चलते कम्पनियों के आत्मनिर्भर होने की राह भी खोल दी गयी है। अब संविदा करार की मार्फत कम्पनियाँ खुद खेती कर सकेंगी।
आमतौर पर अनुबंध खेती का मतलब है कि बुआई के समय ही बिक्री का सौदा हो जाता है ताकि किसान को भाव की चिंता न रहे। सरकार द्वारा पारित वर्तमान कानून में अनुबन्ध की परिभाषा को बिक्री तक सीमित न करके, उसमें सभी किस्म के कृषि कार्यों को शामिल किया गया है। अध्यादेश के अनुसार कम्पनी किसान को, किसान द्वारा की गयी सेवाओं के लिए भुगतान करेगी यानी किसान अपनी उपज की बिक्री न करके अपनी ज़मीन (या अपने श्रम) का भुगतान पायेगा।
ज्यादा जानकारी के लिये आप गूगल कर देख सकते है यह अध्यादेश भारतीय कृषि की तस्वीर बदलने की ताकत रखते हैं लेकिन कोरोना काल मे इन सब बातों पर चर्चा ही कहा हुई कोरोना में तो हमारा बुद्धिजीवी वर्ग बस वैज्ञानिक चेतना विकसित करने का काम कर रहा है इन सब बातों के बारे में उसे सोचने की फुर्सत नही है, खैर छोड़िए।
अब आप यह जानिए कि इस सबकी शुरुआत कहा से हुई है? 2006 में, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और रॉकफेलर फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से अफ्रीका में हरित क्रांति (AGRA) के लिए गठबंधन शुरू किया। इस पूरे प्रोग्राम को वह अफ्रीका में बहुत अच्छी तरह से टेस्ट कर चुके हैं। अफ्रीका के बीज और कृषि बाजारों का निजीकरण वह काफी हद तक कर चुके है।
इनका विरोध भी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है अफ्रीका में सामाजिक कार्यकर्ता अफ्रीका के किसानो को समझा रहे हैं कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स की यह एड' दरअसल 'एड' नहीं है - यह उपनिवेशवाद का दूसरा रूप है," सामाजिक कार्यकर्ता वहाँ यह समझा रहे हैं कि "हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बीज और अन्य कृषि संसाधनों का नियंत्रण छोटे किसानों के हाथों में रहे, जो अफ्रीका में आबादी के अधिकांश हिस्से को खिलाने के बजाय बड़े कृषि व्यवसाय को खाद्य प्रणाली के और भी अधिक पहलुओं पर हावी होने की अनुमति देते हैं।
भारत के कृषि क्षेत्र में लागू किये जाने वाला प्रोग्राम जिसका लुभावना वर्णन मोदी सरकार करती है वह अफ्रीका में कई सालो से जारी है। कल भी जिस एक लाख करोड़ रुपये के एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड को मोदी जी ने लागू किया है उसको यदि आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि यह सारा पैसा तो कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस, कलेक्शन सेंटर और प्रोसेसिंग यूनिट, परख केंद्र, ग्रेडिंग, पैकेजिंग यूनिट, ई-प्लेटफॉर्म जैसी इकाइयों की स्थापना में लगाने की बात की जा रही है।
मल्टीनेशनल खाद्य कम्पनियों की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह सारी सुविधाएं बहुत जरूरी है और जरूरी है मंडी प्रणाली को हटाना जो इस सरकार ने तीन अध्यादेश जारी करके उनका रास्ता साफ कर दिया है। यह अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है लेकिन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई बात नही करता।
अभी बिल गेट्स कृषि में किस हद तक इन्वॉल्व है। उसकी बस एक झलक आपके सामने आयी है अगली कड़ी हम जीएम फसलों पर चर्चा करेंगे जो इनका भारत मे मुख्य उद्देश्य है।