जब मीडिया कुँए में ही भाँग मिला दे तो पूरे गाँव का नशेड़ी होना तो तय है

Written by Girish Malviya | Published on: July 4, 2020
कल सुबह फिर भारत का मीडिया मूर्खता के चरम पर था जब वह बता रहा था कि भारत मे कोरोना का टीका भारत Covaxin 15 अगस्त को लॉन्च कर दिया जाएगा, मैं भारतीय पत्रकारो में विवेक खोजने की कोशिश करता हूँ और प्रायः निराश ही होता हूँ। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि जनता में 15 अगस्त तक भारतीय टीके के लॉन्च करने की बात कर के वह जनता को भ्रमित कर रहे हैं तब भी वह पूरी बेशर्मी से ऐसा लगातार करते हैं।



यह सच है कि ऊपरी स्तर पर बैठे पत्रकार बिके हुए हैं उन्होंने अपना जमीर तक बेच दिया है लेकिन क्या वह आखिर में इतनी सी बाइलाइन नही लिख सकते कि कोई भी टीका बनने में मिनिमम डेढ़ साल का वक्त लगता है ?

जब जुलाई में इस टीके के पहले ट्रायल की बात आप खुद बता रहे है तो अगस्त में इसे कैसे लॉन्च करने की बात की जा सकती है ? खैर वे करे जो उनको करना है मेरा काम आपको सच्चाई बताना है और सच्चाई यही है कि कोरोना का टीका अगस्त में आने वाला नही है किसी ​वैक्सीन के विकास में मिनिमम 5 साल या एक दशक से ज़्यादा भी समय लग जाता है, वैज्ञानिक किसी भी वैक्सीन को लेकर कठोर परीक्षणों के पैरोकार होते हैं।

पहले बहुत कम लोगों पर वैक्सीन टेस्ट होती है, फिर कुछ सौ लोगों पर दूसरे चरण का टेस्ट होता है और फिर कुछ हज़ारों पर टेस्ट कर इसके नतीजों को स्टडी किया जाता है। यह लंबी प्रक्रिया है। इसके बाद सकारात्मक परिणाम आने पर ही वैक्सीन के उत्पादन को हरी झंडी दी जाती है। अभी तक किसी रोग की वेक्सीन में लगने वाले मिनिमम समय का रिकॉर्ड 5 साल का है।

वैक्सीन के लिए हर काम को शॉर्टकट तरीके से भी करे तो तो 18 महीनों में कोविड 19 के लिए वैक्सीन मार्केट में ले आना संभव नहीं है क्योकि शोध और उसके बाद ट्रायल के बाद अगर तमाम मंज़ूरियां मिल जाए हर काम शॉर्टकट तरीके से हो भी जाए तो भी हमे यह जानना होगा कि फैक्ट्रियों में वैक्सीन का उत्पादन एक लंबा काम है क्योंकि क्योंकि किसी भी फैक्ट्री को एक नई वैक्सीन के लिए पहले पूरा नया सेटअप तैयार करना होता है।

तयशुदा मानकों के हिसाब से लाखों करोड़ों डोज़ का उत्पादन और फिर उसकी चेकिंग की प्रक्रिया कम समय नहीं लेती। बड़े बड़े देश कोरोना वेक्सीन के सफल होने से पहले ही फेक्ट्रियो में उसका उत्पादन सुनिश्चित करवा रहे है भारत बायोटेक की Covaxin की तो अभी सिर्फ फ़ोटो ही व्हाट्सएप पर आई है।

दुनिया भर में इस वायरस के लिए वैक्सीन बनाने के लिए 44 प्रोजेक्ट चल रहे हैं. भारत बायोटेक का प्रोजेक्ट उन्ही में से एक है सबसे आगे इस वक्त ब्रिटिश स्वीडिश फर्म एस्ट्राजेनेका ओर अमेरिकी मोडर्ना चल रही है मोडर्ना तो अपनी वेक्सीन का पहला ह्यूमन ट्रायल तो मार्च में ही कर चुकी है तब भी अमेरिका इसके लॉन्च की तारीख बताने में सक्षम नही है राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह जरूर कहा कि 2020 के अंत तक वैक्सीन हमारे पास होगा लेकिन मोदी जी ने 15 अगस्त को वेक्सीन लॉन्च की बात कर के पूरे विश्व मे मूर्खतापूर्ण ढंग से फेकने का नया कीर्तिमान रचा है।

एक ओर महत्वपूर्ण बात है कि भारत बायोटेक की वैक्सीन Covaxin को लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन की प्रक्रिया पर बनाया जा रहा है इस प्रक्रिया में मूल वायरस के कमजोर संस्करण का उपयोग किया जाता है। अभी जिन वैक्सीन पर विश्व मे तेज़ी से काम जारी है, उनमें से ज़्यादातर एमआरएनए जैसी तकनीक पर बन रही हैं।

भारत बायोटेक ने स्वंय बताया है कि कोरोना की वैक्सीन विकसित करने के लिए नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) पुणे में अलग किए गए वायरस स्ट्रेन का इस्तेमाल किया गया है लेकिन वैक्सीन निर्माण की सबसे शर्त यह है कि ट्रायल के किसी भी प्रतिभागी को आप रोग के लिए संवेदनशील नहीं बना सकते।

यह भारत मे जो यह ट्रायल ओर परिणामो की सफलता को लेकर बेजा दबाव डाला जा रहा है। इस जल्दबाज़ी की वजह से कहीं ऐसा न हो कि वायरस और भड़क उठे या महामारी और खतरनाक हो जाए! एचआईवी दवाओं और डेंगू के टीके के साथ पहले ऐसा हो चुका है क्योंकि टीके से प्रेरित प्रक्रिया इतनी तेज़ हुई थी कि रोग और भयानक हो गया था। भारत को ऐसी मूर्खताओं से बचना चाहिए लेकिन जब मीडिया कुँए में ही भाँग मिला दे तो पूरे गाँव का नशेड़ी होना तो तय है।

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