पीएम केयर्स में 10,000 करोड़ रुपए के आस-पास (या ज्यादा भी) आए हैं - कहां से, कितने, किसलिए, कैसे इसपर कोई खबर देखी? पर राजीव गांधी फाउंडेशन को कुछ लाख रुपए सालों पहले मिले थे - यह बड़ा खुलासा है। छह साल से तो भाजपा की ही सरकार है। क्या यह संभव है कि सरकार की जानकारी में न हो? और अगर न हो तो इस खुलासे का कोई मतलब है? और हो तब भी? यह तथ्य है कि जुलाई 2019 की एक खबर के अनुसार, सरकार ने पांच साल में विदेशी चंदा पाने वाली 14,800 गैर सरकारी संस्थाओं को बंद करा दिया है? ऐसे में क्या खबर सिर्फ यह है कि राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसे मिले?
जनसत्ता की एक खबर के अनुसार, उस समय के केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने एक लिखित सवाल के जवाब में संसद में बताया था कि इन एनजीओ के पंजीकरण रद्द करने का कारण यह कि इन सबों ने विदेशी चंदा नियमन अधिनियम (एफसीआरए) का उल्लंघन किया था। उन्होंने आगे कहा कि विभिन्न स्वंय सेवी संस्थाओं द्वारा साल 2017-2018 में 16,894.37 करोड़ रुपए विदेश से चंदा के तौर पर आया था।
वहीं, साल 2016-17 में 15,343.15 करोड़ और साल 2015-16 में 17,803.21 करोड़ रुपए चंदे की राशि रही थी। अब इसमें राजीव गांधी फाउंडेशन के एक करोड़ रुपए से कम की राशि का क्या मतलब? और अगर कुछ गलत था तो बंद क्यों नहीं हुआ या हो गया तो बताया क्यों नहीं गया?
विदेशी चंदे के मामले में जांच एजेंसी (सरकार) को शक था कि ये संगठन दूसरे देशों से पैसा लेकर राष्ट्र (सरकार) विरोधी गतिविधियों में उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। विदेशी चंदा विनियामक अधिनियम (एफसीआरए) 2010 की धारा 14 के अनुसार, यदि कोई एनजीओ नियमों के तहत विदेशी चंदे की जानकारी छिपाता है तो उसकी मान्यता रद्द हो सकती है।
फरवरी 2019 की एक खबर के अनुसार पिछले तीन साल में करीब पांच हजार एनजीओ के एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिए गए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार देश में अपने लोगों पर अपना ही बनाया नियम लागू नहीं करा पाई और यह नियम भी उसी का है। बदले में विदेश से पैसे आने बंद हो गए लोगों के रोजगार (और सेवा भी) बंद हो गई। भ्रष्ट व्यवस्था अपने नियम नहीं लागू करा पाई।
निश्चित रूप से इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा होगा लेकिन वह अलग मुद्दा है। मुख्य मुद्दा यह है कि विदेशी चंदा लेने वाले सरकार का विरोध कर सकते हैं कि नहीं। देशभक्ति की भावना से भले यह विदेशी ताकतों की राष्ट्रविरोधी हरकत लगे पर सरकार का विरोध अगर जायज है तो उसमें पैसा किसी का भी हो, बेमतलब है। कम से कम तब तक जब तक विरोधी देश का नागरिक है।
वैसे भी, सरकारी नौकरी करने वाला या देश में कारोबार करने वाला सरकार का विरोध करेगा तो उसे सरकार परेशान कर सकती है। लालू यादव को जेल भेजनै का श्रेय सरकार लेती ही है और दिया ही जाता है। पर विदेशी चंदा पाने वाला व्यक्ति या संगठन विरोध करे तो सरकार उसे (शायद) रोक नहीं पाएगी। इसलिए, लोकतंत्र के लिए विदेशी चंदा जरूरी है। भारत जैसे गरीब देश के लिए भी यह चंदा काम का है।
विदेशी चंदा जब बैंक खातों में ही आना है तो उसे रिटर्न फाइल करने और सूचना देने जैसे नियमों की आड़ में बंद कराने से बेहतर होता है कि नियम लागू कराए जाते और उन्हें व्यावहारिक बनाया जाता। पर सरकार ने इन सारी बातों की चिन्ता किए बगैर एनजीओ बंद करा दिए और पीएम केयर्स के जरिए खुद सेवा करने का काम शुरू कर दिया जो निश्चित रूप से सीमित है और उसके बारे में सूचनाएं भी नहीं हैं।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि बंद, हड़ताल, रास्ता रोको आंदोलन करने वाले संगठनों (जिनका राजनीति से कोई संबंध न हो) को विदेशी चंदा लेने से प्रतिबंधित संगठनों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। ऐसे संगठनों को राजनैतिक प्रकृति का संगठन नहीं माना जा सकता।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और दीपक गुप्ता की पीठ ने यह फैसला देते हुए विदेशी चंदा प्रबंधन कानून, फेमा के रूल 3 (वी) की परिभाषा को हल्का कर दिया और इंडियन सोशन एक्शन फोरम (इनसाफ) को विदेशी चंदा लेने के योग्य घोषित कर दिया। लेकिन जो एनजीओ बंद हो गए उन्हें फिर से शुरू करना आसान नहीं है।
वैसे भी, सेवा करने वाले पर देश विरोधी होने का ठप्पा लग जाए और ठप्पा लगाने वाला खुद वही काम करे या करने की इच्छा रखे तो आप समझ सकते हैं कि सेवा करने वाला कितना हतोत्साहित होगा। हालांकि, सरकार और सरकार समर्थक मीडिया के लिए यह सब कोई मुद्दा नहीं है उनकी राजनीति चल रही है और चलती रहनी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
जनसत्ता की एक खबर के अनुसार, उस समय के केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने एक लिखित सवाल के जवाब में संसद में बताया था कि इन एनजीओ के पंजीकरण रद्द करने का कारण यह कि इन सबों ने विदेशी चंदा नियमन अधिनियम (एफसीआरए) का उल्लंघन किया था। उन्होंने आगे कहा कि विभिन्न स्वंय सेवी संस्थाओं द्वारा साल 2017-2018 में 16,894.37 करोड़ रुपए विदेश से चंदा के तौर पर आया था।
वहीं, साल 2016-17 में 15,343.15 करोड़ और साल 2015-16 में 17,803.21 करोड़ रुपए चंदे की राशि रही थी। अब इसमें राजीव गांधी फाउंडेशन के एक करोड़ रुपए से कम की राशि का क्या मतलब? और अगर कुछ गलत था तो बंद क्यों नहीं हुआ या हो गया तो बताया क्यों नहीं गया?
विदेशी चंदे के मामले में जांच एजेंसी (सरकार) को शक था कि ये संगठन दूसरे देशों से पैसा लेकर राष्ट्र (सरकार) विरोधी गतिविधियों में उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। विदेशी चंदा विनियामक अधिनियम (एफसीआरए) 2010 की धारा 14 के अनुसार, यदि कोई एनजीओ नियमों के तहत विदेशी चंदे की जानकारी छिपाता है तो उसकी मान्यता रद्द हो सकती है।
फरवरी 2019 की एक खबर के अनुसार पिछले तीन साल में करीब पांच हजार एनजीओ के एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिए गए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार देश में अपने लोगों पर अपना ही बनाया नियम लागू नहीं करा पाई और यह नियम भी उसी का है। बदले में विदेश से पैसे आने बंद हो गए लोगों के रोजगार (और सेवा भी) बंद हो गई। भ्रष्ट व्यवस्था अपने नियम नहीं लागू करा पाई।
निश्चित रूप से इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा होगा लेकिन वह अलग मुद्दा है। मुख्य मुद्दा यह है कि विदेशी चंदा लेने वाले सरकार का विरोध कर सकते हैं कि नहीं। देशभक्ति की भावना से भले यह विदेशी ताकतों की राष्ट्रविरोधी हरकत लगे पर सरकार का विरोध अगर जायज है तो उसमें पैसा किसी का भी हो, बेमतलब है। कम से कम तब तक जब तक विरोधी देश का नागरिक है।
वैसे भी, सरकारी नौकरी करने वाला या देश में कारोबार करने वाला सरकार का विरोध करेगा तो उसे सरकार परेशान कर सकती है। लालू यादव को जेल भेजनै का श्रेय सरकार लेती ही है और दिया ही जाता है। पर विदेशी चंदा पाने वाला व्यक्ति या संगठन विरोध करे तो सरकार उसे (शायद) रोक नहीं पाएगी। इसलिए, लोकतंत्र के लिए विदेशी चंदा जरूरी है। भारत जैसे गरीब देश के लिए भी यह चंदा काम का है।
विदेशी चंदा जब बैंक खातों में ही आना है तो उसे रिटर्न फाइल करने और सूचना देने जैसे नियमों की आड़ में बंद कराने से बेहतर होता है कि नियम लागू कराए जाते और उन्हें व्यावहारिक बनाया जाता। पर सरकार ने इन सारी बातों की चिन्ता किए बगैर एनजीओ बंद करा दिए और पीएम केयर्स के जरिए खुद सेवा करने का काम शुरू कर दिया जो निश्चित रूप से सीमित है और उसके बारे में सूचनाएं भी नहीं हैं।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि बंद, हड़ताल, रास्ता रोको आंदोलन करने वाले संगठनों (जिनका राजनीति से कोई संबंध न हो) को विदेशी चंदा लेने से प्रतिबंधित संगठनों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। ऐसे संगठनों को राजनैतिक प्रकृति का संगठन नहीं माना जा सकता।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और दीपक गुप्ता की पीठ ने यह फैसला देते हुए विदेशी चंदा प्रबंधन कानून, फेमा के रूल 3 (वी) की परिभाषा को हल्का कर दिया और इंडियन सोशन एक्शन फोरम (इनसाफ) को विदेशी चंदा लेने के योग्य घोषित कर दिया। लेकिन जो एनजीओ बंद हो गए उन्हें फिर से शुरू करना आसान नहीं है।
वैसे भी, सेवा करने वाले पर देश विरोधी होने का ठप्पा लग जाए और ठप्पा लगाने वाला खुद वही काम करे या करने की इच्छा रखे तो आप समझ सकते हैं कि सेवा करने वाला कितना हतोत्साहित होगा। हालांकि, सरकार और सरकार समर्थक मीडिया के लिए यह सब कोई मुद्दा नहीं है उनकी राजनीति चल रही है और चलती रहनी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)