मैं बिहार आन्दोलन के समय से बिहार मे आना-जाना कर रहा हूँ! उस समय लालूप्रसाद यादव पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थी संसद के अध्यक्ष थे इस कारण उनको तबसे मैं लगातार देख रहा हूँ। 1977 में वो सक्रिय राजनीति में आने के बाद लोक सभा सदस्य फिर विधान सभा और भागलपुर दंगे के बाद 1990 से लगातार पन्द्रह साल मुख्यमंत्री के रूप में देखा है।
भागलपुर दंगे के बाद से मेरा महिने में एक सप्ताह भागलपुर जाने का सिलसिला जारी था और उसी समय मंदिर-मस्जिद और मंडल आयोग के विवाद परवान पर चल रहे थे हालाकि भागलपुर दंगा 1989 के अक्तूबर में रामशिला पुजा जुलुस की देन है उस समय कॉग्रेस के सत्यनारायण सिन्हा मुख्यमंत्री थे और केंद्र में राजीव गाँधी प्रधानमंत्री। दंगे में पुलिस-प्रशासन की भूमिका बहुत ही भयंकर रही है और इसीको देखकर भागलपुर के एसपी चौबेजी का तबादला राजीव गाँधी ने कर दिया था, लेकिन भागलपुर की पुलिस के सिपाहियों ने राजीव गाँधी के प्लेन के रनवे पर जमा होकर उन्हें एसपी का तबादला रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया और उसके कुछ दिन बाद हुए चुनाव में जो कॉग्रेस बिहार से बाहर हूई तो दोबारा आज 30 साल बाद भी उसे अपने अस्तित्व के लिए जमीन तलाश करने की कोशिश करने पड रही है! और वह भी लालूप्रसाद यादव की मदद से !
उसके बाद से लगातार लालूप्रसाद यादव 2005 तक पन्द्रह साल मुख्यमंत्री रहे हैं! उसके कारण मेरे हिसाब से बिहार,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा यह अंग्रेजी का काऊबेल्ट सैकडों सालों से कई ऐतिहासिक कारणों से सामंतवाद की चपेट में रहा है। इसलिए भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में दलित, पिछडी जातियाँ और महिला अत्याचार तथा घोर साम्प्रदायिकता के कारण इन सब समुदाय के खिलाफ तथाकथित ऊँची जाति के लोगों का व्यवहार सदियों से गैरबराबरी और अन्यायपूर्ण रहा है। इसीलिए उत्तर प्रदेश में जन्मे डॉ राम मनोहर लोहिया ने अगड़ों-पिछडी जातियाँ के लिये कुछ सामाजिक बदलाव के लिए सौ में पावे पिछड़ा साठ जैसे नारे दिए। वे डॉ बाबा साहब आम्बेडकर और रामास्वामी पेरियार के बाद तीसरे राजनेता रहे जिन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय तक दलित, पिछडी और महिला जाति की राजनीति को उभारने की कोशिश की जिसकी बदौलत लालूप्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग राजनीति में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए।
आज लालूप्रसाद यादव जी के 73 वें जन्मदिन के बहाने मैं उनपर मेरा 30 साल से अधिक समय का आंकलन करने की कोशिश कर रहा हूँ! सबसे पहले मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी का सदस्य नहीं हूँ और आगे भी बनने की संभावना नहीं है। लेकिन एक सामाजिक कार्यकर्ता के नाते और 40 साल से अधिक समय से बिहार में लगातार मेरा सरोकार है और उसकी वजह हैं मेरे आदर्श लोगों में से एक आदरणीय एसएम जोशी, जो 70 के दशक में लोक सभा चुनाव पुणे से जीतने के बावजूद वे अपने कार्य क्षेत्र के रुप में बिहार में ज्यादतर समय दिया करते थे। उसमें भी बिहार के सबसे पिछड़े सहरसा, पूर्णिया जैसे जिलों मे! इस कारण मेरे भीतर बिहार घर करके बैठा था और मन ही मन मैंने संकल्प लिया था कि अगर आगे चलकर कुछ काम करूंगा तो बिहार में ही!
लालूप्रसाद यादव 90 के बाद मुख्यमंत्री बने और मेरी भागलपुर दंगे के कारण उनसे एक बार ही बंगाल प्रदेश जनता पार्टी के अध्यक्ष प्रो दिलीप चक्रवर्ती जी के कारण मुलाकात हुई थी और मैंने दंगे में भाग लेने वाले लोगों पर कारवाई करने की बात पर उन्होंने तपाक से जवाब में कहा था कि मैं दंगे में भाग लेने वाले लोगों पर बिल्कुल कार्रवाई नहीं करूँगा क्योंकिं सबके सब पिछडी जाति के लोग हैं! और भारतीय दंड संहिता के अनुसार वे ही फांसी की सजा पायेंगे! लेकिन मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि जबतक मैं मुख्यमंत्री हूँ तबतक अगर कोई दंगा हो तो मुझे आप जिम्मेदार मानते हुए मुझे जवाब तलब कर सकते हो! हालांकि इस वार्तालाप से मैं बिलकुल भी संतुष्ट नहीं था! हाँ निकलते हुए मैंने उनसे कहा कि अब जो हो गया सो हो गया पर आपसे मेरी प्रार्थना है कि भारत के प्रशासन के सबसे काबिल पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भागलपुर में दीजियेगा जिस कारण दंगे के बाद का काम बगैर किसी भेदभाव से हो सकता है तो उन्होँने उस बात को स्वीकार कर शंकर प्रसाद को विभागीय आयुक्त और अतिरिक्त पुलिस उपमहानिदेशक अजित दत्ता को भेजा था और दोनों ने बहुत अच्छा काम किया है !
मुम्बई से एक टीम मेरे कारण भागलपुर दंगे का डॉक्युमेंटेशन करने के लिए आई हूई थी तो हम लोग दंगाग्रस्त लोगों से लेकर पुलिस-प्रशासन के जिम्मेदार लोगों से बात कर रहे थे। एक दिन भागलपुर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजित दत्ता से इंटरव्यु कर रहे थे तो अन्त में उन्होंने हमारे कैमरा और रेकॉर्ड बंद करने के लिए कहा! हम उनकी बात मानकर बैठ गए तब वे बोले की आप सामाजिक कार्यकर्ता पुलिस-प्रशासन को लेकर काफी नुख्ताचीनी करते हैं और कीजीये भी, मैं भला कौन होता हूं आपको मना करने वाला! लेकिन एक बात गौर कीजीये, हमें इस नौकरी में अब तक पाँच मुख्यमंत्री देखने को मिले हैं और लालू प्रसाद यादव पहले मुख्यमंत्री देखे जिन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद पूरे बिहार के आईएएस और आईपीएस कैडर की बैठक में शुरुआत में ही कहा कि मैं लालू प्रसाद यादव आज से बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हूआ हूँ और मेरे अपने कार्यकाल के दौरान अगर बिहार में कहीं भी दंगा हुआ तो मैं सबसे पहले वहां के कलेक्टर और एसपी के कपडे उतारकर मुंह पर कालिख पोत कर गधे पर बैठा कर उसका जुलुस निकालूँगा बाद में देखूँगा कि दंगा कौन किया! और यह बात बिल्कुल सही है लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में सिर्फ सीतामढी में दुर्गा देवी की पूजा के समय छोटा सा दंगा हुआ तो लालू प्रसाद यादव एक सप्ताह के लिये खुद सीतामढी में कैम्प करके बैठ कर सख्त कार्रवाई की थी!
दत्ता साहब ने कहा कि खैरनार साहब यह होता है एक मुख्यमंत्री का जज्बा जो मैं अपने पूरी सर्विस में पहली बार देख रहा था और फिर तो हम पुलिस वाले कितने खतरनाक होते हैं यह आप भी जानते हैं फिर हम पटना से यह पाठ पढ़ने के बाद हमारे अपने जिले में उनसे ज्यादा तेजतर्रार भाषा में हमारे मातहत लोगों को कसते हैं! फिर वह संघ परिवार से आया हो या कोई और हो! जब उसे मालूम है कि पटना में बैठे हुए मुख्यमंत्री दंगे की राजनीति के सख्त खिलाफ हैं तो वह अपनी वर्दी दाव पर नहीं लगायेगा! और मेरे लिए भी अजित दत्ताजी की बात एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बात लगी जो मेरे लिए नई थी! तेरह साल बाद हुए गुजरात के दंगे को देखकर अजित दत्त जी ने बहुत महत्व की बात की। उस तरफ हमारा ध्यान कभी भी नहीं जा सकता था वह खींचा मेरे लिए तो उस दिन की उनकी मुलाकात जिंदगी भर का सबक सिखाकर गई है!
यह बात बिल्कुल सही है कि लालू प्रसाद यादव जी की अन्य खबरें जिसमें उनके खान पान से लेकर पहनावा भी और सबसे हैरानी की बात उनके बाल बच्चे भी मीडिया की खबरों में रहते रहे। हालांकि उनके पहले के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा जी के भी काफी बच्चे थे! लेकिन मैंने देखा की किसी भी अगड़ी जाति के नेता का इतना चरित्र हनन नहीं हूआ होगा जितना लालू प्रसाद यादव जी को लेकर मुख्य मीडिया चलाते रहता है। एक तरह से वह भारत के सबसे ज्यादा चर्चित राजनेता रहे हैं और उनके बारे में इतना बढ़ा चढाकर लिखा बोला जाता है कि उसका कोई हिसाब नहीं है! और मेरे हिसाब से यह हमारे सवर्ण मानसिकता के कारण भी किसी दलित, पिछडी जाति से आने वाले सभी के साथ कम आधिक प्रमाण में यह हुआ है! हमारा मीडिया भी अभिजनों के कब्जे में होने की वजह से भी अधिक मात्रा में आलोचना के शिकार हो जाते हैं !
मैंने शुरुआत में ही लिखा है कि मेरी बिहार में आवाजाही जेपी की बदौलत शुरु हुई और वह भी 70 के दशक के बिहार में। जहां भी कहीं जाता था तो बिहार के पिछड़ा वर्ग के लोग झुक-झुक बोलते और हुजूर, मायबाप, सरकार, सर जैसे सम्बोधन के अलावा कभी भी बात करते हुए नहीं देखा। रिक्शा वाला कभी भी बैठने के पहले मोल भाव करते हुए नहीं देखा। रिक्शा पर चढ कर जहां कहीं जाना हो चले जाईये और आपके हाथ में जो भी रूपया, पैसा आप उसे दे दें, मैंने कभी भी हुज्जत करते हुए नहीं देखा था! उल्टा हुजूर मायबाप बोलकर झुककर सलाम करते हुए ही देखा है! लेकिन 90 के बाद वह मोल भाव करने लगा और आपने नहीं सुना तो वह अभी आपको जवाबतलब करने लगा है! यह बदल साधरण बदल नहीं है, यह आत्मविश्वास आने के लिये सैकडों साल लग जाते हैं! बाबा साहब आम्बेडकर ने आज से 100 वर्ष पूर्व दलितों के आत्मविश्वास को लेकर कितनी-कितनी कोशिश की है और बिहार में कौन आम्बेडकर, फुले हूआ? लेकिन लालू प्रसाद यादव, कर्पूरी ठाकुर के बाद दूसरे पिछडी जाति के नेता हैं जिनके कारण आज बिहार के पिछड़ा वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार कितना हूआ वह दीगर बात है लेकिन उसके भीतर आत्म सम्मान की भावना का निर्माण हूआ है यह बात अकादमिक जगत में शायद आज से 50 साल बाद एम्पोवेर्मेंट ऑफ सबल्टन जैसे टायटल से समाज विज्ञान के क्षेत्र के विद्वजनों को माननी पड़ेगी। लेकिन हमारे अपने ही कुछ सथियों के जातिगत चरित्र के कारण यह बात स्वीकार करने में बहुत कठिनाई होती है। हमारे कुछ मित्रों को तो लालू प्रसाद बोलने में भी बहुत दिक्कत होती है। कोई ललुवा तो कोई लल्लू तक कहते हुए मैंने खुद देखा है! और भ्रष्टाचार के बारे में उनके केस को जितना तोड़ मरोड़कर पेश किया जाता है उतना अन्य भ्रष्ट नेताओं की चर्चा नहीं होती। उनके आंकड़े देखकर आँखें चौंधिया जाती हैं! उसी चारा घोटाले के मामले में सबसे पहले और सबसे अधिक जिम्मेदार जगन्नाथ मिश्रा आराम से बाहर निकल आते हैं, बीजेपी के नेता बन जाते हैं और अन्य नेताओं की बात ही कुछ और है! लेकिन एक लालू प्रसाद यादव हैं जिनकी असली गलती आज की तरीख में भारतीय राजनीति में शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो गुरू गोलवलकर की दोनो चर्चित किताब वुइ और बंच ऑफ थॉट में कितना भयानक लिखा है इसे लाखों लोगों की सभा में बताए। यह बताने का काम करने वाले एक मात्र नेता लालूप्रसाद यादव ही हैं! बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए निकले हुए लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोक कर उन्हें जेल भेजने वाले भी तो लालूप्रसाद यादव ही हैं!
भारत की राजनीति में कितने नेता हैं जो बिलकुल साफ सुथरी राजनीति कर रहे हैं? नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी तो कई मामलों में चर्चित रही है लेकिन वे आज सत्ता में हैं!
मेरे हिसाब से लालूप्रसाद यादव की एक मात्र बात जो वर्तमान समय की सरकार को नागवार लगती है, वह है उनका सेकुलर होना और आरएसएस का विरोध। अन्यथा, इसी देश में किसी हत्यारोपी को देश की कानून व्यवस्था संभालने का जिम्मा सौंप दिया गया तो किसी को दर्जनभर क्रिमिनल केस के बावजूद भारत के सबसे बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री और खतरनाक करतूत करने वाले को संसद सदस्य बना दिया गया।!
हमारे मराठी भाषा में एक शब्द है कानफाट्या! लालूप्रसाद यादव को 30 सालों से भी ज्यादा समय से भारतीय राजनीति के सबसे बड़े कानफाट्या हमारे महान मीडिया ने बनाया है और अब मीडिया पर बहुत कुछ लिखा बोला जा रहा है इसलिए मैं उसपर ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा!
लालूप्रसाद यादव जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें और उम्मीद है कि बहुत जल्दी से वे स्वाथ्य लाभ लेकर देश की वर्तमान हालत के लिए जिम्मेदार लोगों को बेनकाब करने के लिए मुक्त होकर सक्रिय योगदान देंगे!
डॉ. सुरेश खैरनार 12 जून 2020, नागपुर
भागलपुर दंगे के बाद से मेरा महिने में एक सप्ताह भागलपुर जाने का सिलसिला जारी था और उसी समय मंदिर-मस्जिद और मंडल आयोग के विवाद परवान पर चल रहे थे हालाकि भागलपुर दंगा 1989 के अक्तूबर में रामशिला पुजा जुलुस की देन है उस समय कॉग्रेस के सत्यनारायण सिन्हा मुख्यमंत्री थे और केंद्र में राजीव गाँधी प्रधानमंत्री। दंगे में पुलिस-प्रशासन की भूमिका बहुत ही भयंकर रही है और इसीको देखकर भागलपुर के एसपी चौबेजी का तबादला राजीव गाँधी ने कर दिया था, लेकिन भागलपुर की पुलिस के सिपाहियों ने राजीव गाँधी के प्लेन के रनवे पर जमा होकर उन्हें एसपी का तबादला रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया और उसके कुछ दिन बाद हुए चुनाव में जो कॉग्रेस बिहार से बाहर हूई तो दोबारा आज 30 साल बाद भी उसे अपने अस्तित्व के लिए जमीन तलाश करने की कोशिश करने पड रही है! और वह भी लालूप्रसाद यादव की मदद से !
उसके बाद से लगातार लालूप्रसाद यादव 2005 तक पन्द्रह साल मुख्यमंत्री रहे हैं! उसके कारण मेरे हिसाब से बिहार,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा यह अंग्रेजी का काऊबेल्ट सैकडों सालों से कई ऐतिहासिक कारणों से सामंतवाद की चपेट में रहा है। इसलिए भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में दलित, पिछडी जातियाँ और महिला अत्याचार तथा घोर साम्प्रदायिकता के कारण इन सब समुदाय के खिलाफ तथाकथित ऊँची जाति के लोगों का व्यवहार सदियों से गैरबराबरी और अन्यायपूर्ण रहा है। इसीलिए उत्तर प्रदेश में जन्मे डॉ राम मनोहर लोहिया ने अगड़ों-पिछडी जातियाँ के लिये कुछ सामाजिक बदलाव के लिए सौ में पावे पिछड़ा साठ जैसे नारे दिए। वे डॉ बाबा साहब आम्बेडकर और रामास्वामी पेरियार के बाद तीसरे राजनेता रहे जिन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय तक दलित, पिछडी और महिला जाति की राजनीति को उभारने की कोशिश की जिसकी बदौलत लालूप्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग राजनीति में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए।
आज लालूप्रसाद यादव जी के 73 वें जन्मदिन के बहाने मैं उनपर मेरा 30 साल से अधिक समय का आंकलन करने की कोशिश कर रहा हूँ! सबसे पहले मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी का सदस्य नहीं हूँ और आगे भी बनने की संभावना नहीं है। लेकिन एक सामाजिक कार्यकर्ता के नाते और 40 साल से अधिक समय से बिहार में लगातार मेरा सरोकार है और उसकी वजह हैं मेरे आदर्श लोगों में से एक आदरणीय एसएम जोशी, जो 70 के दशक में लोक सभा चुनाव पुणे से जीतने के बावजूद वे अपने कार्य क्षेत्र के रुप में बिहार में ज्यादतर समय दिया करते थे। उसमें भी बिहार के सबसे पिछड़े सहरसा, पूर्णिया जैसे जिलों मे! इस कारण मेरे भीतर बिहार घर करके बैठा था और मन ही मन मैंने संकल्प लिया था कि अगर आगे चलकर कुछ काम करूंगा तो बिहार में ही!
लालूप्रसाद यादव 90 के बाद मुख्यमंत्री बने और मेरी भागलपुर दंगे के कारण उनसे एक बार ही बंगाल प्रदेश जनता पार्टी के अध्यक्ष प्रो दिलीप चक्रवर्ती जी के कारण मुलाकात हुई थी और मैंने दंगे में भाग लेने वाले लोगों पर कारवाई करने की बात पर उन्होंने तपाक से जवाब में कहा था कि मैं दंगे में भाग लेने वाले लोगों पर बिल्कुल कार्रवाई नहीं करूँगा क्योंकिं सबके सब पिछडी जाति के लोग हैं! और भारतीय दंड संहिता के अनुसार वे ही फांसी की सजा पायेंगे! लेकिन मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि जबतक मैं मुख्यमंत्री हूँ तबतक अगर कोई दंगा हो तो मुझे आप जिम्मेदार मानते हुए मुझे जवाब तलब कर सकते हो! हालांकि इस वार्तालाप से मैं बिलकुल भी संतुष्ट नहीं था! हाँ निकलते हुए मैंने उनसे कहा कि अब जो हो गया सो हो गया पर आपसे मेरी प्रार्थना है कि भारत के प्रशासन के सबसे काबिल पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भागलपुर में दीजियेगा जिस कारण दंगे के बाद का काम बगैर किसी भेदभाव से हो सकता है तो उन्होँने उस बात को स्वीकार कर शंकर प्रसाद को विभागीय आयुक्त और अतिरिक्त पुलिस उपमहानिदेशक अजित दत्ता को भेजा था और दोनों ने बहुत अच्छा काम किया है !
मुम्बई से एक टीम मेरे कारण भागलपुर दंगे का डॉक्युमेंटेशन करने के लिए आई हूई थी तो हम लोग दंगाग्रस्त लोगों से लेकर पुलिस-प्रशासन के जिम्मेदार लोगों से बात कर रहे थे। एक दिन भागलपुर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजित दत्ता से इंटरव्यु कर रहे थे तो अन्त में उन्होंने हमारे कैमरा और रेकॉर्ड बंद करने के लिए कहा! हम उनकी बात मानकर बैठ गए तब वे बोले की आप सामाजिक कार्यकर्ता पुलिस-प्रशासन को लेकर काफी नुख्ताचीनी करते हैं और कीजीये भी, मैं भला कौन होता हूं आपको मना करने वाला! लेकिन एक बात गौर कीजीये, हमें इस नौकरी में अब तक पाँच मुख्यमंत्री देखने को मिले हैं और लालू प्रसाद यादव पहले मुख्यमंत्री देखे जिन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद पूरे बिहार के आईएएस और आईपीएस कैडर की बैठक में शुरुआत में ही कहा कि मैं लालू प्रसाद यादव आज से बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हूआ हूँ और मेरे अपने कार्यकाल के दौरान अगर बिहार में कहीं भी दंगा हुआ तो मैं सबसे पहले वहां के कलेक्टर और एसपी के कपडे उतारकर मुंह पर कालिख पोत कर गधे पर बैठा कर उसका जुलुस निकालूँगा बाद में देखूँगा कि दंगा कौन किया! और यह बात बिल्कुल सही है लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में सिर्फ सीतामढी में दुर्गा देवी की पूजा के समय छोटा सा दंगा हुआ तो लालू प्रसाद यादव एक सप्ताह के लिये खुद सीतामढी में कैम्प करके बैठ कर सख्त कार्रवाई की थी!
दत्ता साहब ने कहा कि खैरनार साहब यह होता है एक मुख्यमंत्री का जज्बा जो मैं अपने पूरी सर्विस में पहली बार देख रहा था और फिर तो हम पुलिस वाले कितने खतरनाक होते हैं यह आप भी जानते हैं फिर हम पटना से यह पाठ पढ़ने के बाद हमारे अपने जिले में उनसे ज्यादा तेजतर्रार भाषा में हमारे मातहत लोगों को कसते हैं! फिर वह संघ परिवार से आया हो या कोई और हो! जब उसे मालूम है कि पटना में बैठे हुए मुख्यमंत्री दंगे की राजनीति के सख्त खिलाफ हैं तो वह अपनी वर्दी दाव पर नहीं लगायेगा! और मेरे लिए भी अजित दत्ताजी की बात एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बात लगी जो मेरे लिए नई थी! तेरह साल बाद हुए गुजरात के दंगे को देखकर अजित दत्त जी ने बहुत महत्व की बात की। उस तरफ हमारा ध्यान कभी भी नहीं जा सकता था वह खींचा मेरे लिए तो उस दिन की उनकी मुलाकात जिंदगी भर का सबक सिखाकर गई है!
यह बात बिल्कुल सही है कि लालू प्रसाद यादव जी की अन्य खबरें जिसमें उनके खान पान से लेकर पहनावा भी और सबसे हैरानी की बात उनके बाल बच्चे भी मीडिया की खबरों में रहते रहे। हालांकि उनके पहले के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा जी के भी काफी बच्चे थे! लेकिन मैंने देखा की किसी भी अगड़ी जाति के नेता का इतना चरित्र हनन नहीं हूआ होगा जितना लालू प्रसाद यादव जी को लेकर मुख्य मीडिया चलाते रहता है। एक तरह से वह भारत के सबसे ज्यादा चर्चित राजनेता रहे हैं और उनके बारे में इतना बढ़ा चढाकर लिखा बोला जाता है कि उसका कोई हिसाब नहीं है! और मेरे हिसाब से यह हमारे सवर्ण मानसिकता के कारण भी किसी दलित, पिछडी जाति से आने वाले सभी के साथ कम आधिक प्रमाण में यह हुआ है! हमारा मीडिया भी अभिजनों के कब्जे में होने की वजह से भी अधिक मात्रा में आलोचना के शिकार हो जाते हैं !
मैंने शुरुआत में ही लिखा है कि मेरी बिहार में आवाजाही जेपी की बदौलत शुरु हुई और वह भी 70 के दशक के बिहार में। जहां भी कहीं जाता था तो बिहार के पिछड़ा वर्ग के लोग झुक-झुक बोलते और हुजूर, मायबाप, सरकार, सर जैसे सम्बोधन के अलावा कभी भी बात करते हुए नहीं देखा। रिक्शा वाला कभी भी बैठने के पहले मोल भाव करते हुए नहीं देखा। रिक्शा पर चढ कर जहां कहीं जाना हो चले जाईये और आपके हाथ में जो भी रूपया, पैसा आप उसे दे दें, मैंने कभी भी हुज्जत करते हुए नहीं देखा था! उल्टा हुजूर मायबाप बोलकर झुककर सलाम करते हुए ही देखा है! लेकिन 90 के बाद वह मोल भाव करने लगा और आपने नहीं सुना तो वह अभी आपको जवाबतलब करने लगा है! यह बदल साधरण बदल नहीं है, यह आत्मविश्वास आने के लिये सैकडों साल लग जाते हैं! बाबा साहब आम्बेडकर ने आज से 100 वर्ष पूर्व दलितों के आत्मविश्वास को लेकर कितनी-कितनी कोशिश की है और बिहार में कौन आम्बेडकर, फुले हूआ? लेकिन लालू प्रसाद यादव, कर्पूरी ठाकुर के बाद दूसरे पिछडी जाति के नेता हैं जिनके कारण आज बिहार के पिछड़ा वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार कितना हूआ वह दीगर बात है लेकिन उसके भीतर आत्म सम्मान की भावना का निर्माण हूआ है यह बात अकादमिक जगत में शायद आज से 50 साल बाद एम्पोवेर्मेंट ऑफ सबल्टन जैसे टायटल से समाज विज्ञान के क्षेत्र के विद्वजनों को माननी पड़ेगी। लेकिन हमारे अपने ही कुछ सथियों के जातिगत चरित्र के कारण यह बात स्वीकार करने में बहुत कठिनाई होती है। हमारे कुछ मित्रों को तो लालू प्रसाद बोलने में भी बहुत दिक्कत होती है। कोई ललुवा तो कोई लल्लू तक कहते हुए मैंने खुद देखा है! और भ्रष्टाचार के बारे में उनके केस को जितना तोड़ मरोड़कर पेश किया जाता है उतना अन्य भ्रष्ट नेताओं की चर्चा नहीं होती। उनके आंकड़े देखकर आँखें चौंधिया जाती हैं! उसी चारा घोटाले के मामले में सबसे पहले और सबसे अधिक जिम्मेदार जगन्नाथ मिश्रा आराम से बाहर निकल आते हैं, बीजेपी के नेता बन जाते हैं और अन्य नेताओं की बात ही कुछ और है! लेकिन एक लालू प्रसाद यादव हैं जिनकी असली गलती आज की तरीख में भारतीय राजनीति में शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो गुरू गोलवलकर की दोनो चर्चित किताब वुइ और बंच ऑफ थॉट में कितना भयानक लिखा है इसे लाखों लोगों की सभा में बताए। यह बताने का काम करने वाले एक मात्र नेता लालूप्रसाद यादव ही हैं! बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए निकले हुए लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोक कर उन्हें जेल भेजने वाले भी तो लालूप्रसाद यादव ही हैं!
भारत की राजनीति में कितने नेता हैं जो बिलकुल साफ सुथरी राजनीति कर रहे हैं? नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी तो कई मामलों में चर्चित रही है लेकिन वे आज सत्ता में हैं!
मेरे हिसाब से लालूप्रसाद यादव की एक मात्र बात जो वर्तमान समय की सरकार को नागवार लगती है, वह है उनका सेकुलर होना और आरएसएस का विरोध। अन्यथा, इसी देश में किसी हत्यारोपी को देश की कानून व्यवस्था संभालने का जिम्मा सौंप दिया गया तो किसी को दर्जनभर क्रिमिनल केस के बावजूद भारत के सबसे बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री और खतरनाक करतूत करने वाले को संसद सदस्य बना दिया गया।!
हमारे मराठी भाषा में एक शब्द है कानफाट्या! लालूप्रसाद यादव को 30 सालों से भी ज्यादा समय से भारतीय राजनीति के सबसे बड़े कानफाट्या हमारे महान मीडिया ने बनाया है और अब मीडिया पर बहुत कुछ लिखा बोला जा रहा है इसलिए मैं उसपर ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा!
लालूप्रसाद यादव जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें और उम्मीद है कि बहुत जल्दी से वे स्वाथ्य लाभ लेकर देश की वर्तमान हालत के लिए जिम्मेदार लोगों को बेनकाब करने के लिए मुक्त होकर सक्रिय योगदान देंगे!
डॉ. सुरेश खैरनार 12 जून 2020, नागपुर