आज के द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर दो कॉलम में एक ठीक-ठाक लंबी खबर है, भाजपा अल्पसंख्यक सेल के उपाध्यक्ष का घर फूंक दिया। मैंने शीर्षक से समझा कि यह बंगाल की खबर होगी। और उसपर ध्यान नहीं दिया। फिर हिन्दुस्तान की साइट पर एक शीर्षक नजर आया, दिल्ली हिंसा में दंगाइयों ने जलाया मुस्लिम बीजेपी और उनके रिश्तेदारों का घर। यह खबर ना हिन्दुस्तान में और ना दिल्ली के किसी अन्य हिन्दी अखबार में पहले पन्ने पर है। इतनी बड़ी तो नहीं ही कि अखबार पलटते हुए दिख जाए। तब मैंने चेक किया और पता चला कि दोनों एक ही घटनाएं हैं।
दिल्ली की खबर कोलकाता के अंग्रेजी अखबार में पहले पन्ने पर है लेकिन दिल्ली में हिन्दी अखबारों के पहले पहने से ऐसे गायब है जैसे गधे के सिर से सींग। इस खबर को किसी खास अखबार ने ब्रेक नहीं किया है कि वहीं एक्सक्लूसिव हो। यह एजेंसी की खबर है यानी सभी अखबारों को समय पर मिली होगी, कंपोज की हुई, शीर्षक के साथ। फिर भी किसी ने (जो अखबार मैं देखता हूं) इसे पहले पन्ने पर नहीं छापा। यही है संपादकीय स्वतंत्रता और इसी को आजकल के संपादकों का विवेक कहा जाएगा। हिन्दुस्तान की खबर पढ़िए और तय कीजिए कि क्या यह पहले पन्ने पर नहीं होनी चाहिए। और अगर पहले पन्ने पर नहीं है तो देखिए आपके अखबार में कहां हैं।
“दिल्ली में सीएए के विरोध और समर्थन को लेकर उत्तरपूर्वी दिल्ली में झड़पों (अखबारों की नजर में यह झड़प ही है, दंगा नहीं) के बाद हाल में हुई हिंसा के दौरान दंगाइयों ने बीजेपी के एक नेता और उनके रिश्तेदारों के घरों को भी निशाना बनाया। बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे के जिला उपाध्याक्ष अख्तर रज़ा और उनके तीन रिश्तेदारों के भागीरथ विहार स्थित घर को बीती 25 फरवरी को जला दिया गया। खबर अब आई है पर वह भी सहमी, शर्माती, लजाती, सकुचाती। संभव है खबर पहले छपी हो इसलिए आज इसे महत्व नहीं दिया गया हो। पर ऐसा होता तो एजेंसी यह खबर दोबारा नहीं करती। फिर भी यह खबर ना मुझे पहले दिखी ना आज।
खबर के मुताबिक, रज़ा ने एजेंसी को बताया कि मंगलवार शाम चार-पांच बजे से ही भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। करीब सात-आठ बजे भीड़ ने धार्मिक उन्मादी नारे लगाए और हमले करने शुरू कर दिए। भीड़ ने मेरा और रिश्तेदारों के तीन घर जला दिये। उन्होंने कहा, “मैने पुलिस को कॉल की थी लेकिन पुलिस ने कहा कि भीड़ तो सभी जगह इकट्ठा हो रही है। पुलिस ने हमसे कहा कि आप डरो नहीं कुछ नहीं होगा।” रजा ने कहा, “दंगाई ज्यादातर बाहर के थे, लेकिन कुछ कॉलोनी के भी थे। इसी गली में मुस्लिमों के 19 घर हैं और दंगाइयों ने एक भी घर को नहीं छोड़ा।” उन्होंने कहा कि हम किसी तरह से जान बचा कर भागे हैं। परिवार में 12-13 लोग हैं। जब हम कार में जान बचा के भाग रहे थे तो गाड़ी पर पथराव भी किया गया।
बीजेपी नेता ने कहा, "मैने कई परिचित पुलिस अधिकारियों से भी कई बार बात की। अफसरों ने कहा अख्तर जी पुलिस बल कम है और दंगाई बहुत ज्यादा हैं। पुलिस बल का आना संभव नहीं है।” बीजेपी की ओर से संपर्क करने के सवाल पर रज़ा ने कहा, पार्टी की तरफ से कोई संपर्क नहीं किया गया है। साथ ही उन्होंने कहा “मैंने पार्टी के जिस भी नेता से बात की तो वहां से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। कहा कि एफआईआर होनी चाहिए। इंसाफ मिलना चाहिए, लेकिन उनकी ओर से कोई फोन नहीं आया न कोई राहत आई।” उन्होंने कहा, बीजेपी से ताल्लुक है और शायद भविष्य में भी रहे। रज़ा ने कहा, अब हालांकि गुजारिश यही है कि हमें न्याय मिले।
गौरतलब है कि उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में अब तक 42 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 200 से अधिक लोग घायल हैं। हिंसा के सिलसिले में दिल्ली पुलिस ने अब तक 254 एफआईआर दर्ज की है और 903 लोगों को गिरफ्तार किया है या हिरासत में लिया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि शस्त्र अधिनियम के तहत 41 मामले दर्ज किए गए हैं। पुलिस के अनुसार, पिछले चार दिनों में उन्हें दंगे को लेकर कोई फोन नहीं आया है और दंगा-प्रभावित इलाकों में स्थिति नियंत्रण में है।
द टेलीग्राफ ने 28 फरवरी अंक में चिल्लिंग कोइंसीडेंस शीर्षक से एक लीड खबर छापी थी। इसमें बताया गया था कि 26 फरवरी 2020 यानी बुधवार को दिल्ली में जो हुआ वही 28 फरवरी 2002 को गुजरात में हुआ था। तब एक पूर्व सांसद और अब एक सांसद ने पुलिस वालों से सहायता मांगी और यह मांग अनसुनी रह गई। बुधवार की रात पड़ोसी हिन्दुओं ने दिल्ली में त्रासदी टाल दी। यह खबर शिरोमणि अकाली दल के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के पुत्र नरेश गुजराल के एक पत्र पर आधारित है जो उन्होंने दिल्ली पुलिस के उस समय के आयुक्त अमूल्य पटनायक को लिखा था। इसकी प्रति उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवरनर अनिल बैजल को भी भेजी है।
पत्र के मुताबिक राज्यसभा सदस्य श्री गुजराल के कोई मुसलिम परिचित अपने परिवार के 15 लोगों के साथ संकट में थे और उनसे सहायता मांग रहे थे। पत्र में श्री गुजराल ने लिखा है कि उन्होंने 100 नंबर पर कॉल करके आवश्यक जानकारी दी और संबंधित व्यक्ति का फोन नंबर दिया। अपना परिचय बताया और यह भी कि स्थिति गंभीर है। उन्हें शिकायत दर्ज होने की सूचना मिली रेफ्रेंस नंबर भी दिया गया। पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इन लोगों को दिल्ली पुलिस से कोई सहायता नहीं मिली। ... उन्होंने पुलिस आयुक्त से इस मामले में कार्रवाई करने के लिए कहा था। पर दिल्ली के हिन्दी अखबारों में इसकी चर्चा भी कम ही हुई।
दिल्ली की खबर कोलकाता के अंग्रेजी अखबार में पहले पन्ने पर है लेकिन दिल्ली में हिन्दी अखबारों के पहले पहने से ऐसे गायब है जैसे गधे के सिर से सींग। इस खबर को किसी खास अखबार ने ब्रेक नहीं किया है कि वहीं एक्सक्लूसिव हो। यह एजेंसी की खबर है यानी सभी अखबारों को समय पर मिली होगी, कंपोज की हुई, शीर्षक के साथ। फिर भी किसी ने (जो अखबार मैं देखता हूं) इसे पहले पन्ने पर नहीं छापा। यही है संपादकीय स्वतंत्रता और इसी को आजकल के संपादकों का विवेक कहा जाएगा। हिन्दुस्तान की खबर पढ़िए और तय कीजिए कि क्या यह पहले पन्ने पर नहीं होनी चाहिए। और अगर पहले पन्ने पर नहीं है तो देखिए आपके अखबार में कहां हैं।
“दिल्ली में सीएए के विरोध और समर्थन को लेकर उत्तरपूर्वी दिल्ली में झड़पों (अखबारों की नजर में यह झड़प ही है, दंगा नहीं) के बाद हाल में हुई हिंसा के दौरान दंगाइयों ने बीजेपी के एक नेता और उनके रिश्तेदारों के घरों को भी निशाना बनाया। बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे के जिला उपाध्याक्ष अख्तर रज़ा और उनके तीन रिश्तेदारों के भागीरथ विहार स्थित घर को बीती 25 फरवरी को जला दिया गया। खबर अब आई है पर वह भी सहमी, शर्माती, लजाती, सकुचाती। संभव है खबर पहले छपी हो इसलिए आज इसे महत्व नहीं दिया गया हो। पर ऐसा होता तो एजेंसी यह खबर दोबारा नहीं करती। फिर भी यह खबर ना मुझे पहले दिखी ना आज।
खबर के मुताबिक, रज़ा ने एजेंसी को बताया कि मंगलवार शाम चार-पांच बजे से ही भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। करीब सात-आठ बजे भीड़ ने धार्मिक उन्मादी नारे लगाए और हमले करने शुरू कर दिए। भीड़ ने मेरा और रिश्तेदारों के तीन घर जला दिये। उन्होंने कहा, “मैने पुलिस को कॉल की थी लेकिन पुलिस ने कहा कि भीड़ तो सभी जगह इकट्ठा हो रही है। पुलिस ने हमसे कहा कि आप डरो नहीं कुछ नहीं होगा।” रजा ने कहा, “दंगाई ज्यादातर बाहर के थे, लेकिन कुछ कॉलोनी के भी थे। इसी गली में मुस्लिमों के 19 घर हैं और दंगाइयों ने एक भी घर को नहीं छोड़ा।” उन्होंने कहा कि हम किसी तरह से जान बचा कर भागे हैं। परिवार में 12-13 लोग हैं। जब हम कार में जान बचा के भाग रहे थे तो गाड़ी पर पथराव भी किया गया।
बीजेपी नेता ने कहा, "मैने कई परिचित पुलिस अधिकारियों से भी कई बार बात की। अफसरों ने कहा अख्तर जी पुलिस बल कम है और दंगाई बहुत ज्यादा हैं। पुलिस बल का आना संभव नहीं है।” बीजेपी की ओर से संपर्क करने के सवाल पर रज़ा ने कहा, पार्टी की तरफ से कोई संपर्क नहीं किया गया है। साथ ही उन्होंने कहा “मैंने पार्टी के जिस भी नेता से बात की तो वहां से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। कहा कि एफआईआर होनी चाहिए। इंसाफ मिलना चाहिए, लेकिन उनकी ओर से कोई फोन नहीं आया न कोई राहत आई।” उन्होंने कहा, बीजेपी से ताल्लुक है और शायद भविष्य में भी रहे। रज़ा ने कहा, अब हालांकि गुजारिश यही है कि हमें न्याय मिले।
गौरतलब है कि उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में अब तक 42 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 200 से अधिक लोग घायल हैं। हिंसा के सिलसिले में दिल्ली पुलिस ने अब तक 254 एफआईआर दर्ज की है और 903 लोगों को गिरफ्तार किया है या हिरासत में लिया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि शस्त्र अधिनियम के तहत 41 मामले दर्ज किए गए हैं। पुलिस के अनुसार, पिछले चार दिनों में उन्हें दंगे को लेकर कोई फोन नहीं आया है और दंगा-प्रभावित इलाकों में स्थिति नियंत्रण में है।
द टेलीग्राफ ने 28 फरवरी अंक में चिल्लिंग कोइंसीडेंस शीर्षक से एक लीड खबर छापी थी। इसमें बताया गया था कि 26 फरवरी 2020 यानी बुधवार को दिल्ली में जो हुआ वही 28 फरवरी 2002 को गुजरात में हुआ था। तब एक पूर्व सांसद और अब एक सांसद ने पुलिस वालों से सहायता मांगी और यह मांग अनसुनी रह गई। बुधवार की रात पड़ोसी हिन्दुओं ने दिल्ली में त्रासदी टाल दी। यह खबर शिरोमणि अकाली दल के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के पुत्र नरेश गुजराल के एक पत्र पर आधारित है जो उन्होंने दिल्ली पुलिस के उस समय के आयुक्त अमूल्य पटनायक को लिखा था। इसकी प्रति उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवरनर अनिल बैजल को भी भेजी है।
पत्र के मुताबिक राज्यसभा सदस्य श्री गुजराल के कोई मुसलिम परिचित अपने परिवार के 15 लोगों के साथ संकट में थे और उनसे सहायता मांग रहे थे। पत्र में श्री गुजराल ने लिखा है कि उन्होंने 100 नंबर पर कॉल करके आवश्यक जानकारी दी और संबंधित व्यक्ति का फोन नंबर दिया। अपना परिचय बताया और यह भी कि स्थिति गंभीर है। उन्हें शिकायत दर्ज होने की सूचना मिली रेफ्रेंस नंबर भी दिया गया। पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इन लोगों को दिल्ली पुलिस से कोई सहायता नहीं मिली। ... उन्होंने पुलिस आयुक्त से इस मामले में कार्रवाई करने के लिए कहा था। पर दिल्ली के हिन्दी अखबारों में इसकी चर्चा भी कम ही हुई।