जगह जहां हम खड़े थे वह बस स्टॉप कहलाती थी। ऐसा बस की प्रतीक्षा करने वाले या जो जानते थे यहां बस आकर रुकती है वे कहते थे। वहां बस स्टॉप के नाम पर एक खम्बा था जो किसी वाहन के तेज गति से आकर टकरा जाने के कारण अपने मूल आकार से परिवर्तित होकर कोई अन्य आकार ले चुका था। वह खम्बा जो कभी लोगों को बस स्टॉप होने का आभास कराता था लेकिन अब टेढ़ा हो गया था उसके सबसे ऊपर वाले भाग पर एक प्लास्टिक की थैली लटकी थी। वह थैली हवा चलने के कारण कभी कभी फड़फड़ाने लगती। उसके इस तरह से आवाज करने से बस स्टॉप पर खड़े लोग उसे देखने लगते। लोग अपने महत्वपूर्ण कार्यों को छोड़कर उसे देखने लगते। कोई व्हाट्सएप पर आये नफरती वीडियो छोड़ उसे देखने लगता तो कोई नाक खुजाने वाले महत्वपूर्ण कार्य को छोड़कर।
एक लड़का भी था बस स्टॉप पर जो सामने खड़ी बोलेरो पर लिखे सूक्ति वाक्य को पढ़कर मुस्कुराये जा रहा था। वह ऐसी वैसी मुस्कान नहीं थी। दंगे कराकर आनंद लेते हुए नेता जब मुस्कुराता है तो वह अलग मुस्कान होती है, किसान लहलहाते खेत देखकर मुस्कुराता है तो अलग मुस्कान होती है, बच्चा जब नादानी में कुछ नुकसान कर देता है तो माँ जो मुस्कुराती है वह अलग मुस्कान होती है। पर वह लड़का जो मुस्कुरा रहा था वह बिलकुल अलग मुस्कान थी क्योंकि उसमें व्यंग्य था, खीझ थी, गुस्सा था। मुस्कुराने के बाद उसके मुख पर चिंता की लकीरें दिखने लगीं।
मैं उस लड़के के करीब पहुंचा। उसने मुझे हाय कहा। मैंने जवाब में बस मुस्कुराहट दिखाई। मैं उसे नहीं जानता था। वह मुझे नहीं जानता था। मेरी निगाह बोलेरो पर लिखे सूक्ति वाक्य पर गई। किसी की भी निगाह उस सूक्ति वाक्य पर जा सकती थी। वह लिखा ही इस अंदाज में गया था कि ज्यादा से ज्यादा लोग देख लें। वह लाल रंग से लिखा था। त्रिशूल के ऊपर लिखा था- गर्व से कहो हम हिन्दू हैं।
मेरी निगाह अब उस लड़के पर थी जो फ्रेश सा नहाया धोया लग रहा था पर चेहरे पर निराशा सी दिख रही थी। वह जीन्स पहने था और ऊपर फंकी स्टाइल टीशर्ट। बाल खड़े थे जो सामने से रंग दिए गए थे। वह रंगे बालों में सुंदर लग रहा था। बालों को न भी रंगा होता तब भी वह उतना ही सुंदर लगता। वह मुझे 20 साल का लग रहा था। शायद वह 21 का हो। मुझे नहीं पता। यह उसे पता होगा।
मैंने बात करने के उद्देश्य से कहा- आपके बाल बहुत अच्छे लग रहे हैं।
उसने जवाब में मुस्कुरा दिया। हम थोड़ी देर खड़े रहे। पीछे थैली हवा चलने के कारण फड़फ़ड़ाती रही। लोग महत्वपूर्ण कार्य छोड़ उसे देखते रहे। पर उसने थैली नहीं देखी। मैंने भी नहीं देखी। कई मिनट गुजरे तो मैने फिर बात करने के उद्देश्य से कहा- कहीं दूर जा रहे हो?
उसनें कहा- नहीं।
मैं अब फिर चार मिनट मौन नहीं खड़ा रहना चाहता था। मैं फिर पूछ बैठा- उदास हो ?
उसने फिर कहा- नहीं।
वह बोलेरो पर लिखे हुए वाक्य की तरह फिर देखने लगा।
मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा- ये पढ़कर तुम्हें कैसा लग रहा है ?
वह बोला- अब इन चीजों की आदत हो गई है।
मैंने फिर पूछा- क्या नाम है तुम्हारा ?
वह बोला- सूरज।
मैंने कहा- नाम तो वह है जो अधिकतर हिन्दुओं के होते हैं पर मैं यह नहीं कह सकता कि तुम हिन्दू परिवार से हो कि किसी और समुदाय से।
उसनें कहा- हां। मैं हिन्दू परिवार में पैदा हुआ हूँ। पर नाम और कपड़े से मैं भी किसी को नहीं पहचानता।
यह कहते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान थी। अब हम थोड़ा खुल चुके थे। मैंने उसके फिर कहा- हिन्दू होने पर तुम्हें गर्व नहीं है ?
वह बोला- इसमें कैसा गर्व ? इवन मैं मुस्लिम, जैन, बुद्धिस्ट परिवार में जन्मा होता तब भी गर्व किस बात का !
वह लड़का मुझे इंटरेस्टिंग लगते जा रहा था। मैंने कहा- पिछली बार कब किसी चीज पर गर्व हुआ था ?
वह बोला- अब गर्व किसी चीज पर नहीं होता। स्कूलों में देश पर, माँ बाप पर, प्रदेश पर और अन्य चीजों पर गर्व करना सिखाया गया था और मैं करता था पर अब गर्व जैसा कुछ नहीं है।
मैंने उससे उत्सुकतावश फिर पूछा - तुम्हें अपने देश पर भी गर्व नहीं है ?
वह जरा तेज से मुस्कुराया। उसके चमकीले, साफ सुथरे दांत दिख गए थे। वह अब तक के उसके साथ बिताये पल में सबसे प्यारा लग रहा था। उसनें बाल पर संवारने वाले अंदाज में हाथ फेरा। मेरी तरफ देखकर कहने लगा- मुझे अपने देश से प्यार है। मैं यहां पैदा हुआ हूँ। मेरे इमोशंस इससे जुड़े हैं। मैं इससे प्यार करता हूँ। मैं किसी और देश की धरती पर जन्मा होता और इतना वक्त गुजारा होता तो उससे भी मुझे प्यार ही होता, गर्व नहीं।
मैं उसे बस सुन रहा था। वह कहे जा रहा था। थोड़ी देर हम दोनों चुप रहे। वह मेरी तरफ देखते हुए कहने लगा- तुम्हें अपने देश पर गर्व है?
मैंने कहा- सेम मेरा भी है। मैं प्रेम करता हूँ इस देश से। मैं अपने घर से भी प्रेम करता हूँ, जहां मैं रहता हूं। माँ बाप से भी प्रेम करता हूँ। गर्व नहीं।
उसनें चुटकी लेने के अंदाज में पूछा- गर्व किस बात पर करते हैं आप ?
मैंने भी उसकी अंदाज में कहा- मैं अपने चप्पल पर गर्व करता हूँ। बड़ी मेहनत से यह कलर और साइज ढूंढ पाया हूँ।
वह बड़ी जोर से हंसा और हंसते जा रहा था। अगल बगल के लोग हमारी तरफ देखने लगे थे। बस भी हॉर्न बजाती आ रही थी जिसमे बाहर तक लोग मधुमक्खी के छत्ते की तरह लटके थे। कितनों के लिए यह भी गर्व वाली बात होती है कि लटकर यात्रा करते हैं। यह बात बड़े गर्व से बताते भी हैं।
हम सब लटक लिए थे बस पर। वह बस स्टॉप कहलाने वाली जगह खाली थी। प्लास्टिक की थैली अब भी फड़फड़ा रही थी पर कोई देख न रहा था।
एक लड़का भी था बस स्टॉप पर जो सामने खड़ी बोलेरो पर लिखे सूक्ति वाक्य को पढ़कर मुस्कुराये जा रहा था। वह ऐसी वैसी मुस्कान नहीं थी। दंगे कराकर आनंद लेते हुए नेता जब मुस्कुराता है तो वह अलग मुस्कान होती है, किसान लहलहाते खेत देखकर मुस्कुराता है तो अलग मुस्कान होती है, बच्चा जब नादानी में कुछ नुकसान कर देता है तो माँ जो मुस्कुराती है वह अलग मुस्कान होती है। पर वह लड़का जो मुस्कुरा रहा था वह बिलकुल अलग मुस्कान थी क्योंकि उसमें व्यंग्य था, खीझ थी, गुस्सा था। मुस्कुराने के बाद उसके मुख पर चिंता की लकीरें दिखने लगीं।
मैं उस लड़के के करीब पहुंचा। उसने मुझे हाय कहा। मैंने जवाब में बस मुस्कुराहट दिखाई। मैं उसे नहीं जानता था। वह मुझे नहीं जानता था। मेरी निगाह बोलेरो पर लिखे सूक्ति वाक्य पर गई। किसी की भी निगाह उस सूक्ति वाक्य पर जा सकती थी। वह लिखा ही इस अंदाज में गया था कि ज्यादा से ज्यादा लोग देख लें। वह लाल रंग से लिखा था। त्रिशूल के ऊपर लिखा था- गर्व से कहो हम हिन्दू हैं।
मेरी निगाह अब उस लड़के पर थी जो फ्रेश सा नहाया धोया लग रहा था पर चेहरे पर निराशा सी दिख रही थी। वह जीन्स पहने था और ऊपर फंकी स्टाइल टीशर्ट। बाल खड़े थे जो सामने से रंग दिए गए थे। वह रंगे बालों में सुंदर लग रहा था। बालों को न भी रंगा होता तब भी वह उतना ही सुंदर लगता। वह मुझे 20 साल का लग रहा था। शायद वह 21 का हो। मुझे नहीं पता। यह उसे पता होगा।
मैंने बात करने के उद्देश्य से कहा- आपके बाल बहुत अच्छे लग रहे हैं।
उसने जवाब में मुस्कुरा दिया। हम थोड़ी देर खड़े रहे। पीछे थैली हवा चलने के कारण फड़फ़ड़ाती रही। लोग महत्वपूर्ण कार्य छोड़ उसे देखते रहे। पर उसने थैली नहीं देखी। मैंने भी नहीं देखी। कई मिनट गुजरे तो मैने फिर बात करने के उद्देश्य से कहा- कहीं दूर जा रहे हो?
उसनें कहा- नहीं।
मैं अब फिर चार मिनट मौन नहीं खड़ा रहना चाहता था। मैं फिर पूछ बैठा- उदास हो ?
उसने फिर कहा- नहीं।
वह बोलेरो पर लिखे हुए वाक्य की तरह फिर देखने लगा।
मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा- ये पढ़कर तुम्हें कैसा लग रहा है ?
वह बोला- अब इन चीजों की आदत हो गई है।
मैंने फिर पूछा- क्या नाम है तुम्हारा ?
वह बोला- सूरज।
मैंने कहा- नाम तो वह है जो अधिकतर हिन्दुओं के होते हैं पर मैं यह नहीं कह सकता कि तुम हिन्दू परिवार से हो कि किसी और समुदाय से।
उसनें कहा- हां। मैं हिन्दू परिवार में पैदा हुआ हूँ। पर नाम और कपड़े से मैं भी किसी को नहीं पहचानता।
यह कहते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान थी। अब हम थोड़ा खुल चुके थे। मैंने उसके फिर कहा- हिन्दू होने पर तुम्हें गर्व नहीं है ?
वह बोला- इसमें कैसा गर्व ? इवन मैं मुस्लिम, जैन, बुद्धिस्ट परिवार में जन्मा होता तब भी गर्व किस बात का !
वह लड़का मुझे इंटरेस्टिंग लगते जा रहा था। मैंने कहा- पिछली बार कब किसी चीज पर गर्व हुआ था ?
वह बोला- अब गर्व किसी चीज पर नहीं होता। स्कूलों में देश पर, माँ बाप पर, प्रदेश पर और अन्य चीजों पर गर्व करना सिखाया गया था और मैं करता था पर अब गर्व जैसा कुछ नहीं है।
मैंने उससे उत्सुकतावश फिर पूछा - तुम्हें अपने देश पर भी गर्व नहीं है ?
वह जरा तेज से मुस्कुराया। उसके चमकीले, साफ सुथरे दांत दिख गए थे। वह अब तक के उसके साथ बिताये पल में सबसे प्यारा लग रहा था। उसनें बाल पर संवारने वाले अंदाज में हाथ फेरा। मेरी तरफ देखकर कहने लगा- मुझे अपने देश से प्यार है। मैं यहां पैदा हुआ हूँ। मेरे इमोशंस इससे जुड़े हैं। मैं इससे प्यार करता हूँ। मैं किसी और देश की धरती पर जन्मा होता और इतना वक्त गुजारा होता तो उससे भी मुझे प्यार ही होता, गर्व नहीं।
मैं उसे बस सुन रहा था। वह कहे जा रहा था। थोड़ी देर हम दोनों चुप रहे। वह मेरी तरफ देखते हुए कहने लगा- तुम्हें अपने देश पर गर्व है?
मैंने कहा- सेम मेरा भी है। मैं प्रेम करता हूँ इस देश से। मैं अपने घर से भी प्रेम करता हूँ, जहां मैं रहता हूं। माँ बाप से भी प्रेम करता हूँ। गर्व नहीं।
उसनें चुटकी लेने के अंदाज में पूछा- गर्व किस बात पर करते हैं आप ?
मैंने भी उसकी अंदाज में कहा- मैं अपने चप्पल पर गर्व करता हूँ। बड़ी मेहनत से यह कलर और साइज ढूंढ पाया हूँ।
वह बड़ी जोर से हंसा और हंसते जा रहा था। अगल बगल के लोग हमारी तरफ देखने लगे थे। बस भी हॉर्न बजाती आ रही थी जिसमे बाहर तक लोग मधुमक्खी के छत्ते की तरह लटके थे। कितनों के लिए यह भी गर्व वाली बात होती है कि लटकर यात्रा करते हैं। यह बात बड़े गर्व से बताते भी हैं।
हम सब लटक लिए थे बस पर। वह बस स्टॉप कहलाने वाली जगह खाली थी। प्लास्टिक की थैली अब भी फड़फड़ा रही थी पर कोई देख न रहा था।