हिज्बुल आतंकियों का मददगार DSP गिरफ्तार, अफजल गुरू ने लगाया था गंभीर आरोप

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 13, 2020
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने शनिवार को चेकिंग के दौरान दो हिजबुल आतंकियों के साथ एक डीएसपी (उप पुलिस-अधीक्षक) को गिरफ्तार किया है। ये सभी एक ही कार में सवार थे। डीएसपी दविंदर सिंह को दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले से गिरफ्तार किया गया। दरअसल, पुलिस को दो आतंकियों के कार में सवार होने की जानकारी मिली थी लेकिन उन्हें डीएसपी के साथ होने की कोई जानकारी नहीं थी।



देवेंद्र सिंह की गिरफ्तारी के साथ ही अफजल गुरू का मामला भी एक बार फिर से उठ खड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि दविंदर सिंह नाम के इस ऑफिसर का कनेक्शन साल 2001 में हुए संसद हमले के दोषी आतंकी अफजल गुरू से भी था। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, अफजल ने खुद कोर्ट में दविंदर सिंह का नाम लिया था। 

जम्मू-कश्मीर के डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट दविंदर सिंह की गिरफ़्तारी से अफ़ज़ल गुरु के मामले पर एक बार फिर विचार करने की ज़रूरत सामने आ गई है। राष्ट्रपति पुलिस मेडल से सम्मानित अफ़सर पाक स्थित आतंकवादी गुट हिज़बुल मुजाहिदीन के लोगों के साथ पकड़ा गया। लेकिन ये वही दविंदर सिंह हैं, जिनका नाम अफ़ज़ल गुरु मामले में भी आया था।  

अफ़ज़ल को दिसंबर 2001 में संसद पर हुए हमले में शामिल होने का दोषी पाया गया था और 9 फ़रवरी 2013 को उसे फाँसी की सज़ा दे दी गई थी।

अफ़ज़ल से जुड़े थे तार
दविंदर सिंह पहली बार विवादों के घेरे में तब आए थे, जब संसद हमले के अभियुक्त अफ़ज़ल गुरु ने उनका नाम लिया था। अफ़ज़ल ने 2004 में अपने वकील सुशील कुमार को लिखी चिट्ठी में पहली बार देविंदर सिंह का नाम लिया था। 

मुहम्मद को संसद पर हुए हमले में अभियुक्त बनाया गया था। देविंदर सिंह उस समय जम्मू-कश्मीर के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में थे और हुमहामा में तैनात थे।  

अफ़जल का आरोप
अफ़ज़ल गुरु ने यह आरोप भी लगाया था कि स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप चाहता था कि वह उसके लिए मुखबिरी करे। गुरु इसके लिए तैयार नहीं था। उसने आरोप लगाया था कि एसओजी के एक अफ़सर शैन्टी सिंह ने उसे बुरी तरह यंत्रणा दी, बहुत ही बुरी तरह मारा-पीटा था। 
गुरु पर यह आरोप लगा था कि उसने आतंकवादियों की मदद की थी, उसे दिल्ली में घर ढूंढने और गाड़ी खरीदने में मदद की थी। गुरु ने इस आरोप को स्वीकार कर लिया था।

लेकिन गुरु पर यह आरोप नहीं लगा था कि वह हमले का मास्टरमाइंड था या उसने हमले की योजना बनाई थी या मुख्य साजिशकर्ता था। उस पर संसद में घुस कर हमला करने का आरोप भी नहीं लगाया गया था। 

अफ़ज़ल गुरु के ख़िलाफ़ सबूत के तौर पर उसका लैपटॉप था। उसकी गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने कंप्यूटर की  खंगाला तो उसे संसद का नकली पास मिला था। अफ़ज़ल गुरु का मामला अभी इसलिए उठ रहा है कि उसने दविंदर से पाकिस्तानी नागरिक मुहम्मद की मदद करने को कहा था।

सवाल यह है कि दविंदर सिंह को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया था? क्यों उससे पूछताछ नहीं की गई थी? उससे पूछताछ के आधार पर संसद पर हुए हमले के मामले की तह में जाया जा सकता था। ऐसा करने से अफ़ज़ल के अलावा दूसरे लोगों तक पहुँचा जा सकता था। पर ऐसा नहीं किया गया। सवाल यह भी उठता है कि क्या उस समय के सरकार की नाकामी नहीं है? 

दिलचस्प बात यह है कि जो लोग अफ़ज़ल गुरु के नाम पर एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बन कर उस पूरे समुदाय को ही निशाने पर लेने की राजनीति करते रहते हैं, वे क्यों नहीं मामले की तह में गए? इन सवालों के जवाब तभी ढूंढे जा सकेंगे जब दविंदर सिंह से पूछताछ पूरी हो जाएगी। उनसे मिली जानकारी को अफ़ज़ल गुरु मामले की जानकारियों के साथ मिला कर देखना होगा।
 
 

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