Up in Arms: इन बड़े विरोध प्रदर्शनों का गवाह बना साल 2019

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 1, 2020
साल 2019 बीत गया है, हम 2020 में प्रवेश कर गए हैं। ऐसे में बीते साल पर नजर डालना आवश्यक है क्योंकि इस साल में देशभर में कई बड़े प्रदर्शन हुए जिनमें सत्ता के खिलाफ नाराजगी देखी गई।



भारत, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने इस वर्ष कई यादगार विरोध प्रदर्शन देखे हैं। सिर्फ सर्दियों में ही नहीं, पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों ने 2019 की शुरुआत से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रीढ़ को हिलाकर रख दिया। वनवासियों से लेकर छात्रों, व शहरी मध्यम वर्ग तक सभी ने विश्वासघात महसूस किया है। प्रमुख मामलों में सरकार और उसकी निष्क्रियता या मनमानी के कारण लोगों का गुस्सा नजर आया।

कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक, असम से लेकर कर्नाटक तक और दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल तक पूरे देश में विभिन्न मुद्दों को लेकर आंदोलन छिड़े। हम आपके लिए साल 2019 में हुए बड़े प्रदर्शन औऱ उसके कारणों को आपके सामने रख रहे हैं। 

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) विरोध प्रदर्शन



सरकार, जब उसने सीएए को लागू करने के अपने फैसले की घोषणा की, तो सपनों में भी नहीं सोचा होगा कि इससे देश में ऐसी हलचल होगी। असम से शुरू होकर, आंदोलन दिल्ली और फिर पूरे राष्ट्र में फैल गया। धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाले इस अधिनियम का छात्रों ने भी मुखर रुप से विरोध किया। भाजपा शासित राज्यों में इस अधिनियम का विरोध करने वाले छात्रों व नागरिकों के खिलाफ पुलिस बल का विरोध किय़ा गया जबकि कुछ राज्यों में विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्वक रहा। 

छात्रों का फीस बढ़ोत्तरी के खिलाफ संघर्ष



2019 छात्रों के लिए कठिन साल रहा है। उन्होंने न केवल सीएए के विरोध में प्रदर्शनों की अगुवाई की, बल्कि वे गुणवत्तापूर्ण व सस्ती शिक्षा के लिए भी सड़कों पर उतरे। कई विश्वविद्यालयों में फीस वृद्धि की घोषणा की गई थी, लेकिन प्रतिरोध सबसे अधिक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के छात्रों ने दिखाया, जिन्होंने पुलिस और राज्य सरकार का डटकर सामना किया। धीरे-धीरे शैक्षिक संस्थानों के निजीकरण किय़े जाने के खिलाफ भी छात्रों का गुस्सा नजर आया जिसमें छात्रों की मंशा वंचितों को शिक्षा से दूर करने की नजर आती है।

अपने अधिकारों के लिए खड़े हुए शिक्षक



2019 में, विभिन्न शिक्षक संगठनों ने भी अपने अधिकार के लिए सरकार के खिलाफ संघर्ष किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के एड-हॉक शिक्षकों ने स्थायी नौकरी पाने के लिए संघर्ष किया। कर्नाटक में 40,000 से अधिक शिक्षकों ने अपने बकाए के लिए लड़ाई लड़ी, क्योंकि उन्हें महीनों से वेतन का भुगतान नहीं किया गया था। प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक भी एकजुट होकर सरकार के विरोध में खड़े हो गए, जब उन्हें पता चला कि सरकार मनमाने ढंग से उनका ओहदा छीनने की कोशिश में है। नौकरी, वेतन और सम्मान के लिए, देश भर के शिक्षक अपने हक के लिए एक साथ आ गए।

जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई



ओडिशा से लेकर छत्तीसगढ़ तक महाराष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश तक, हजारों आदिवासियों और वनवासियों ने प्राकृतिक संसाधनों को अपने अधिकारक्षेत्र से खत्म किए जाने के विरोध में राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त करने की अपील की। जनजातीय समुदायों का समर्थन करने वाले सक्रिय समूह लोगों को उनके लोगों के अधिकारों के उल्लंघन और वन अधिकार अधिनियम के कमजोर पड़ने के विरोध में एक साथ लाए। वनवासियों ने बहुत लंबे समय तक अपने निवास स्थान से अवैध निकासी का सामना किया, जिसका वे सम्मान और संरक्षण करते हैं। इस वर्ष, अवैध खनन, पेड़ की कटाई और बेदखली के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान करते हुए अपने जल, जंगल और ज़मीन की रक्षा के लिए एकजुट हुए।

मुंबई के फेफड़े को बचाने के लिए आरे प्रोटेस्ट



इसी वर्ष, मुंबईकर अपने सबसे बेशकीमती, शहर के फेफड़े कहे जाने वाले आरे कॉलोनी के पेड़ों को बचाने के लिए एकजुट हुए। मेट्रो रेल परियोजना के लिए एक कार शेड के निर्माण के लिए भारी विरोध के बीच, भाजपा सरकार ने यहां रात में 2,700 से अधिक पेड़ काट दिए थे। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  सेव आरे’ मुद्दे से संबंधित सभी याचिकाओं का निपटारा करने के कुछ ही घंटों बाद यह फैसला किया गया। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गईं, जिन्हें पुलिस थानों और अदालतों में ले जाया गया। इस बीच, आरे के आदिवासियों ने खेद जताते हुए प्रकृति व उन पेड़ों से माफी मांगी, जो वे नहीं बचा सके।

मछुआरों का आंदोलन



वर्ष 2019 की शुरुआत में, भारत के मछुआरे लोग भारत सरकार द्वारा जारी किए गए नए तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना का विरोध करने के लिए एक साथ आए, जो तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए प्रावधानों को काफी कमजोर करने वाला था। बाद में वे फिर से राष्ट्रीय समुद्री मत्स्य पालन (विनियमन और प्रबंधन) विधेयक के खिलाफ जुट हुए जो कथित रूप से कॉर्पोरेट संस्थाओं का समर्थन करते हुए हजारों पारंपरिक मछुआरों को प्रभावित करता था।

महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के लिए आंदोलन



सुल्तानपुर से लेकर उन्नाव, हैदराबाद तक, वर्ष 2019 भारत की महिलाओं के लिए अच्छा वर्ष नहीं था। कुछ बलात्कार के आरोपियों ने महिलाओं - युवा लड़कियों से लेकर हाशिए के समुदायों की महिलाओं को क्रूरता से मार डाला। बलात्कार के कम से कम दो मामले ऐसे सामने आए जिनमें जमानत पर छूटे बलात्कार के अभियुक्तों द्वारा पीड़िता को जला दिया गया। सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए, भारत में महिलाओं ने पुलिस और न्यायपालिका की अक्षमता के खिलाफ अपनी नाराजगी जताई। उन्होंने असंवेदनशील मीडिया कवरेज और यौन उत्पीड़न के मामलों के अनावश्यक सांप्रदायिकरण पर भी अपनी नाराजगी जताई।

असंगठित क्षेत्र का आंदोलन



2019 में, लाल झंडे का एक सैलाब देश के विभिन्न शहरों में दिखाई दिया, जिसमें विभिन्न श्रमिक अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एक साथ आए थे। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से लेकर मिड-डे मील वर्करों और विभिन्न क्षेत्रों जैसे ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक, परिधान, फार्मास्यूटिकल्स और अन्य क्षेत्रों में देश के 20 से अधिक राज्यों में दयनीय वेतन और काम करने की स्थिति, दमनकारी श्रम कानूनों और जनता के निजीकरण के प्रयासों के खिलाफ रैली निकाली गई। 

कश्मीर का सविनय अवज्ञा आंदोलन



अनुच्छेद 370 हटाए जाने के मद्देनजर, कश्मीर के लोगों ने उत्पीड़न की ताकतों के खिलाफ एक नया सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। कश्मीर अंधेरे में डूब गया था और उनके बुनियादी मानवाधिकारों को भी खत्म किया गया, लेकिन वापस लड़ने के बजाय, उन्होंने अहिंसक विरोध के साथ जवाब देने का विकल्प चुना। कश्मीरियों ने सेना को धता बताने और अपना विरोध दर्ज कराने के लिए अपनी दुकानें और प्रतिष्ठान बंद करने का विकल्प चुना।

PMC प्रोटेस्ट



सितंबर 2019 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी (PMC) बैंक पर "वित्तीय अनियमितताओं, बैंक के आंतरिक नियंत्रण की विफलता और प्रणालियों की विफलता" और इसके निष्कासन के गलत / अंडर-रिपोर्टिंग के तहत प्रतिबंध लगाए थे। व्यापक प्रतिबंधों के कारण बैंक के ग्राहक परेशान थे। बैंक प्रबंधन की गलती के कारण भावनात्मक और वित्तीय तनाव के कारण 5 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी। आज, नए साल के पहले दिन भी जमाकर्ताओं की समस्याएं हल नहीं हुई हैं और उनकी मेहनत की कमाई अभी भी बैंक में बंद है और उनकी समस्याओं का कोई अंत नहीं है।

वर्ष 2019 में भारत में जो विरोध प्रदर्शन हुए हैं, वे बताते हैं कि यह केवल एक समुदाय नहीं है जो सरकार के फैसलों और नीतियों से प्रभावित हुआ है। सभी क्षेत्रों के लोगों को एकतरफा फैसलों का खामियाजा भुगतना पड़ा है और अब उसी के खिलाफ असंतोष बढ़ गया है। हालांकि जारी विरोध प्रदर्शन देश के नागरिकों की आशंकाओं को दूर करने में सरकार की अक्षमता दिखाते हैं, लेकिन लोगों की लड़ाई लोकतंत्र की प्रकृति को बनाए रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जिसके अधिकांश विरोधों को खारिज किया जा रहा है।

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