मध्य प्रदेश सरकार बरगी जलाशय की ही तर्ज पर ही सरदार सरोवर जलाशय में भी मछली पकड़ने का ठेका बाहरी ठेकेदारों को देने का मन बना चुकी है। इसकी एक बानगी गत दिनों राज्य सरकार द्वारा जारी की गई निविदा से जाहिर हुई, जिसमें सभी बाहरी व्यक्तियों व संस्थाओं के नाम हैं। और इनसे कहा गया है कि वे आगामी 13 जनवरी, 2020 तक जनवरी तक निविदा भरकर व 10 लाख की निविदा शुल्क भुगतान करते हुए इस प्रक्रिया में शामिल हों। सरदार सरोवर बांध से विस्थापित मछुआरों का कहना है कि वह मछली पर रायल्टी तो वह सरकार को दे सकते हैं, लेकिन निविदा भरना और शुल्क देना उनसे कभी नहीं होगा और न ही यह उनके लिए जरूरी लगता है। यह निविदा राज्य सरकार की सूचना नीति और नियमों के खिलाफ है और वर्तमान मध्य प्रदेश सरकार ने चुनाव के दौरान तथा चुने जाने के बाद जो आश्वासन दिया था, उसका भी उल्लंघन है।

सरकार के इस कदम पर नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर से प्रभावित मछुआरों ने प्रदर्शन करते हुए यह घोषित किया कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दी गई ठेके की निविदा सूचना रद्द होनी चाहिए। इस मांग को लेकर बहुत ही आक्रोशित विस्थापित मछुआरे जिनकी की 31 समितियां सहकारी सिध्दांत पर पंजीकृत हो चुकी है और उन समितियों का एक संघ मध्य प्रदेश राज्य की मत्स्य व्यवसाय नीति के अनुसार प्रस्तावित है। मछुआरों का यह कहना था कि उन्होंने 10 साल तक लड़कर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में भी तथा मैदानी लड़त के द्वारा अपना समिति का हक लिया है। उनका कहना है कि वही परम्परागत और विस्थापित मछुआरे हैं। 2007 में मध्य प्रदेश शासन ने विस्थापित मछुआरों को और जलाशय के स्तर की यूनियन को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया जिसका वृतांत उपलब्ध है, और 2008 में लाई गई मध्य प्रदेश शासन की मत्स्य व्यवसाय नीति यही कहती है कि मछुआरों को ही प्राथमिकता देनी चाहिए ना की बाहरी ठेकेदार या बाहरी मछुआरों को।
जैसे कि निविदा सूचना जाहिर हो चुकी है सभी बाहरी व्यक्ति और संस्थाओं को आमंत्रित किया है कि वह 13 जनवरी तक टेंडर भरकर और 10 लाख की टेंडर फी भी भुगतान करते हुए इस प्रक्रिया में शामिल हो जाए। मछुआरों का कहना है कि मछली पर रायल्टी तो वह सरकार को दे सकते हैं, लेकिन टेंडर का भरना और फी देना तथा जलाशय बड़ी रकम अदा करके ले लेना ये उनसे कभी नहीं हो सकता है। यह निविदा सूचना नीति और नियमों के खिलाफ है और मध्य प्रदेश शासन ने चुनाव के दौरान तथा चुनके आने के बाद जो जो आश्वासन दिये हैं उन आश्वासनों का भी इसमें उल्लंघन हो रहा है।
गुरुवार को करीब 20 मछुआरा सहकारी समितियों के 100-150 मछुआरा प्रतिनिधि और नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्त्ता राजा मंडलोई, रोहित ठाकुर, जितेन्द्र मछुआरा, और मेधा पाटकर आदि ने संचालक मत्स्य व्यवसाय विभाग, बड़वानी के ऑफिस में पहुँचकर वहाँ अपना डेरा डाला। दिल्ली से आयी वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ती शबनम हासमी भी उनके साथ रहीं। पिछोड़ी गाँव की श्यामा मछुआरा ने कहा कि किसानों को पुनर्वास में जो जमीन दी जा रही है वह अगर उनके लिए सोना है तो नदी हमारी खेती है और चांदी भी है। उन्होंने यह भी कहा कि बेरोजगार करने का यह कदम धोखाधड़ी का है और हम इसे नामंजूर करते हैं। मोहिपुरा के अशोक मछुआरे ने कहा कि आज भी वह टिन शेड में पड़े हुए हैं तो वहाँ उनके लिए कोई रोजगार नहीं है। मोहिपुरा में उनकी समिति आज निष्क्रिय हो चुकी है ऐसी स्थिति में अब पानी भरने के बाद जलाशय में मत्स्याखेट का अधिकार उनको मिलना यही बेहद जरूरी है नहीं तो उनका पुनर्वास नहीं हो पायेगा। धरमपूरी के विक्रम, चिखल्दा के मंशाराम और नानी काकी तथा पिपलूद, सेमल्दा, बिजासन, दतवाडा, गांगली, राजघाट आदि गांवों के मछुआरों के प्रतिनिधियों ने अधिकारियों के सामने अपना आक्रोश जताया और कहा कि तत्काल भोपाल के सम्बंधित अधिकारी और मंत्री को खबर करते हुए निविदा सूचना रद्द करवाई जाए।
शबनम हासमी ने कहा- हम देख रहे हैं कि मछुआरों का हक उन्हें नीति अनुसार मिलना चाहिए और उनके पास आजीविका का दूसरा कोई साधन न होते हुए उन्हें मत्स्य व्यवसाय ही आजीविका के रूप में देकर पुनर्वास करना न्यायपूर्ण होगा। मध्य प्रदेश की सरकार ने इसके खिलाफ लाई हुई निविदा सूचना तत्काल रद्द होना जरुरी है। मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार अंतरराज्य परियोजना होते हुए भी मध्य प्रदेश सरकार को हक दिया गया है कि जलाशय में मत्स्य व्यवसाय के बारे में वही निर्णय करे। और जबकि मध्य प्रदेश की नीति कहती है कि विस्थापित मछुआरों को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए तब अन्य जलाशयों में जैसा की हो रहा है वैसा ठेकेदारों के द्वारा शोषण हमें नामंजूर है। उन्होंने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ जो चर्चा भोपाल में हो चुकी है उसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के गोपाल रेड्डी ने भी आश्वासित किया था कि मछुआरों को ही हक दिया जाएगा यही बात आयुक्त नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने भी कही थी।
नर्मदा घाटी विकास मंत्री सुरेन्द्र सिंह बघेल ने भी यही बात क्षेत्र में कई बार दोहराई थी इसके बावजूद मछुआरों के विरोधी निर्णय लेना वादा खिलाफी है और अगर निविदा सूचना तत्काल रद्द नहीं की गई तो उसके खिलाफ हमें लड़ना पड़ेगा। महेंद्र पानखेड़े ने मछुआरों का दर्द और आक्रोश समझते हुए कहा कि वह यह आवेदन भोपाल के उच्च अधिकारियों तक तत्काल पहुँचाने का कार्य करेंगे और वह भी समझते हैं जानते हैं कि मछुआरों को जो मेहनतकश हैं जिन्हें पीढ़ियों से मछली मारने का अनुभव है उन्हें ही जलाशय देने से मत्स्याखेट का उत्पादन अधिक से अधिक होगा।

सरकार के इस कदम पर नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर से प्रभावित मछुआरों ने प्रदर्शन करते हुए यह घोषित किया कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दी गई ठेके की निविदा सूचना रद्द होनी चाहिए। इस मांग को लेकर बहुत ही आक्रोशित विस्थापित मछुआरे जिनकी की 31 समितियां सहकारी सिध्दांत पर पंजीकृत हो चुकी है और उन समितियों का एक संघ मध्य प्रदेश राज्य की मत्स्य व्यवसाय नीति के अनुसार प्रस्तावित है। मछुआरों का यह कहना था कि उन्होंने 10 साल तक लड़कर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में भी तथा मैदानी लड़त के द्वारा अपना समिति का हक लिया है। उनका कहना है कि वही परम्परागत और विस्थापित मछुआरे हैं। 2007 में मध्य प्रदेश शासन ने विस्थापित मछुआरों को और जलाशय के स्तर की यूनियन को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया जिसका वृतांत उपलब्ध है, और 2008 में लाई गई मध्य प्रदेश शासन की मत्स्य व्यवसाय नीति यही कहती है कि मछुआरों को ही प्राथमिकता देनी चाहिए ना की बाहरी ठेकेदार या बाहरी मछुआरों को।
जैसे कि निविदा सूचना जाहिर हो चुकी है सभी बाहरी व्यक्ति और संस्थाओं को आमंत्रित किया है कि वह 13 जनवरी तक टेंडर भरकर और 10 लाख की टेंडर फी भी भुगतान करते हुए इस प्रक्रिया में शामिल हो जाए। मछुआरों का कहना है कि मछली पर रायल्टी तो वह सरकार को दे सकते हैं, लेकिन टेंडर का भरना और फी देना तथा जलाशय बड़ी रकम अदा करके ले लेना ये उनसे कभी नहीं हो सकता है। यह निविदा सूचना नीति और नियमों के खिलाफ है और मध्य प्रदेश शासन ने चुनाव के दौरान तथा चुनके आने के बाद जो जो आश्वासन दिये हैं उन आश्वासनों का भी इसमें उल्लंघन हो रहा है।
गुरुवार को करीब 20 मछुआरा सहकारी समितियों के 100-150 मछुआरा प्रतिनिधि और नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्त्ता राजा मंडलोई, रोहित ठाकुर, जितेन्द्र मछुआरा, और मेधा पाटकर आदि ने संचालक मत्स्य व्यवसाय विभाग, बड़वानी के ऑफिस में पहुँचकर वहाँ अपना डेरा डाला। दिल्ली से आयी वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ती शबनम हासमी भी उनके साथ रहीं। पिछोड़ी गाँव की श्यामा मछुआरा ने कहा कि किसानों को पुनर्वास में जो जमीन दी जा रही है वह अगर उनके लिए सोना है तो नदी हमारी खेती है और चांदी भी है। उन्होंने यह भी कहा कि बेरोजगार करने का यह कदम धोखाधड़ी का है और हम इसे नामंजूर करते हैं। मोहिपुरा के अशोक मछुआरे ने कहा कि आज भी वह टिन शेड में पड़े हुए हैं तो वहाँ उनके लिए कोई रोजगार नहीं है। मोहिपुरा में उनकी समिति आज निष्क्रिय हो चुकी है ऐसी स्थिति में अब पानी भरने के बाद जलाशय में मत्स्याखेट का अधिकार उनको मिलना यही बेहद जरूरी है नहीं तो उनका पुनर्वास नहीं हो पायेगा। धरमपूरी के विक्रम, चिखल्दा के मंशाराम और नानी काकी तथा पिपलूद, सेमल्दा, बिजासन, दतवाडा, गांगली, राजघाट आदि गांवों के मछुआरों के प्रतिनिधियों ने अधिकारियों के सामने अपना आक्रोश जताया और कहा कि तत्काल भोपाल के सम्बंधित अधिकारी और मंत्री को खबर करते हुए निविदा सूचना रद्द करवाई जाए।
शबनम हासमी ने कहा- हम देख रहे हैं कि मछुआरों का हक उन्हें नीति अनुसार मिलना चाहिए और उनके पास आजीविका का दूसरा कोई साधन न होते हुए उन्हें मत्स्य व्यवसाय ही आजीविका के रूप में देकर पुनर्वास करना न्यायपूर्ण होगा। मध्य प्रदेश की सरकार ने इसके खिलाफ लाई हुई निविदा सूचना तत्काल रद्द होना जरुरी है। मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार अंतरराज्य परियोजना होते हुए भी मध्य प्रदेश सरकार को हक दिया गया है कि जलाशय में मत्स्य व्यवसाय के बारे में वही निर्णय करे। और जबकि मध्य प्रदेश की नीति कहती है कि विस्थापित मछुआरों को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए तब अन्य जलाशयों में जैसा की हो रहा है वैसा ठेकेदारों के द्वारा शोषण हमें नामंजूर है। उन्होंने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ जो चर्चा भोपाल में हो चुकी है उसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के गोपाल रेड्डी ने भी आश्वासित किया था कि मछुआरों को ही हक दिया जाएगा यही बात आयुक्त नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने भी कही थी।
नर्मदा घाटी विकास मंत्री सुरेन्द्र सिंह बघेल ने भी यही बात क्षेत्र में कई बार दोहराई थी इसके बावजूद मछुआरों के विरोधी निर्णय लेना वादा खिलाफी है और अगर निविदा सूचना तत्काल रद्द नहीं की गई तो उसके खिलाफ हमें लड़ना पड़ेगा। महेंद्र पानखेड़े ने मछुआरों का दर्द और आक्रोश समझते हुए कहा कि वह यह आवेदन भोपाल के उच्च अधिकारियों तक तत्काल पहुँचाने का कार्य करेंगे और वह भी समझते हैं जानते हैं कि मछुआरों को जो मेहनतकश हैं जिन्हें पीढ़ियों से मछली मारने का अनुभव है उन्हें ही जलाशय देने से मत्स्याखेट का उत्पादन अधिक से अधिक होगा।