प्रिविलेज अपना-अपना: किसी का पर्स कुछ घण्टे में मिल जाता है, किसी का बच्चा 'नजीब' सालों बाद भी न मिलता

Written by Mithun Kumar | Published on: October 15, 2019
साधो, न्यू इंडिया में एक बात आम हो चली है, किसी के ऊपर भी मुकदमा ठोक देना। इसके लिए कोई पुख्ता सबूत या कॉमन सेंस की जरूरत नहीं है। और इससे भी ज्यादा ये बात कॉमन हो गयी है कि जो सरकार के सानिध्य में हैं उनके खिलाफ कितने भी सबूत हों, FIR लिखने में पुलिस के हाथ पैर फूलते नजर आते हैं। 



साधो, पिछले दिनों खबर मिली थी कि मॉब लिंचिंग की खबरों से त्रस्त होकर कुछ सज्जनों ने प्रधानमंत्री को खत लिखकर चिंता जाहिर की थी। यह अच्छी बात है। अच्छे नागरिक का कर्तव्य है कि वह समाज में हो रही गैर कानूनी और हिंसक घटनाओं के बारे में सरकार को अवगत कराए जिन्हें सरकार या प्रशासन न देख पा रहा हो। साधो, पत्र प्रधानमंत्री को लिखा गया था। वो व्यस्त होते हैं। उन्हें दिन में हजारों काम होते हैं, मसलन विदेश दौरे, स्वच्छता अभियान पर भाषण, प्रोत्साहन के लिए बीच पर थैली लेकर खुद उतर जाना, मन की बात बताना, चुनाव प्रचार इत्यादि। इन सब व्यस्तताओं के चलते उनका ध्यान मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं पर कैसे जाएगा ? साधो, प्रधानमंत्री जी ट्विटर पर शिखर धवन को फॉलो करते हैं। शिखर धवन के अंगूठे में चोट आई तो उन्हें पता चल गया और उन्होंने तुरंत चिंता जताकर जल्दी ठीक हो जाने का ट्वीट कर दिया। पर साधो, मॉब लिंचिंग की जानकारी उन्हें कहीं से न मिल पाती होगी, ऐसा मुझे लगता है। तो इसी चक्कर में कुछ सज्जनों ने उन्हें पत्र लिख दिया था। पर मामला उलटा हो गया। साधो, बिहार के एक वकील साहब थे जिन्हें लगा कि ये लोग पत्र लिखकर देश और प्रधानमंत्री की छवि खराब कर रहे हैं और यही सोचकर उन्होंने FIR दर्ज करा दिया। हालांकि अब यह मामला निरस्त कर दिया गया है।

साधो, अब मैं उस वकील के तर्क और बुद्धि से थोड़ी देर सोचता हूँ। चलो मान लिया कि मैं एक गांव में रहता हूँ और मुझे कुछ महीनों से कोटेदार ने राशन नहीं दिया है। मेरे घर में भुखमरी है और मैं यह देख पा रहा हूँ कि कोटेदार हर महीनें राशन ब्लैक में बेच देता है। मैं ग्राम प्रधान और सेक्रेटरी से इस बात की लिखित शिकायत करूँ तो मुझपर गांव का कोई व्यक्ति यह कहते हुए मुकदमा कर सकता है कि मैं गांव और कोटेदार की छवि धूमिल कर रहा हूँ। कोई बच्चा प्राइमरी स्कूल में घटिया खाना मिलने की शिकायत करे तो वह शिक्षक की छवि धूमिल कर रहा है, कोई टूटी सड़कों नालियों को लेकर सांसद ,विधायक को पत्र लिखे तो वह क्षेत्र और जनप्रतिनिधियों की छवि धूमिल कर रहा है। साधो, यह सुनने में कितना हास्यास्पद लगता है। पर यह हो जाये तो कोई अतिसंयोक्ति नहीं होगी।

साधो, पिछले कुछ सालों से लोगों के दिमाग पर इस तरह से काम किया गया है कि लोग इस तरह की खबरों को भी सही ठहराने लगते हैं। लोगों की बुद्धि को इस तरह से हाइजैक कर लिया गया है कि सही और गलत में फर्क करना भूल गए हैं। पिछले महीने स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ FIR दर्ज करवाने के लिये एक लड़की का संघर्ष चल रहा था। लोग बड़े आनंद के साथ लड़की को बदचलन और अवसरवादी न जाने क्या क्या बताते फिर रहे थे। यह महज इसलिये था कि चिन्मयानंद पार्टी विशेष से जुड़ा हुआ है। और अपराधियों को डिफेंड करने वाले अपनी बुद्धि पार्टी विशेष के पास रख आए हैं। इन्हें सही गलत का फर्क नजर नहीं आ रहा। 

साधो, उन्नाव का सेंगर तो याद ही होगा। उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने तक पीड़िता को न जाने कितने सदमें झेलने पड़े। जान से मारने की धमकी से लेकर रोड एक्सीडेंट तक वह झेलती रही। उसके पिता ने पुलिस कस्टडी में दम तोड़ा। देश भर में आंदोलन हुए । इतनी मशक्कतों के बाद सेंगर पर कार्यवाही शुरू हुई और कितने दिनों के बाद उसे पार्टी विशेष ने पार्टी से निकाला था। अब खबर ये है कि उसपर से हत्या के प्रयास का आरोप हटा लिया गया है। 

साधो, पिछले कुछ सालों से लोकतांत्रिक मूल्यों को इस तरह से खत्म किया गया है कि आम आदमी ही नहीं चर्चित हस्तियां भी सत्ता का दमन झेल रही हैं जो गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। सोनी सोरी, सुधा भारद्वाज के संघर्ष को देखता हूँ। यह दमन के खिलाफ और दृढ़ता से खड़े होने के लिए प्रेरणा देते हैं। क्योंकि साधो, यहां सबका नसीब प्रधानमंत्री के भतीजी की तरह नहीं है कि गायब पर्स 24 घण्टे में मिल जाएगा। इस देश में नजीबों की संख्या ज्यादा है, जिनके गायब होने के बाद सालों तक पता न चलता। 

 

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