बस्तर पुलिस ने दावा किया कि बीते 15 सितम्बर को गुमियापाल गाँव में मुठभेड़ के दौरान दो माओवादी मारने का दावा किया था. सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक जाँचदल ने गाँव का दौरा किया और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के आधार पर पुलिस के दावे को ख़ारिज किया. तथ्य ये भी सामने आया कि मारे गए दोनों ग्रामीण बैलाडीला पहाड़ी पर अडानी के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध प्रदर्शन में सक्रिय रूप से शामिल थे. फ़र्ज़ी मुठभेड़ का ख़ुलासा करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी और बेला भाटिया समेत दो आदिवासी सरपंचों पर पुलिस ने शांति भंग करने के आरोप में FIR दर्ज की है.
बस्तर में बैलाडीला की एक पहाड़ी (डिपॉज़िट 13) को लौह अयस्क खुदाई के लिए अडानी को दे दिए जाने का आदिवासियों ने विरोध किया था. बीते हफ़्ते 24 घंटों के अंदर तीन अलग अलग जगहों पर पुलिस द्वारा 6 माओवादियों को मारने की ख़बर आई. मृतकों के परिजनों और ग्रामीणों ने उनके नक्सली होने से इनकार किया. सोनी सोरी, बेला भाटिया, लिंगाराम कोडोपी ने एक जाँचदल के रूप में समन्धित गाँव गुमियापाल का दौरा किया. जांच में ये बात सामने आई कि गाँव के जिन दो आदिवासी युवकों को 5-5 लाख का ईनामी नक्सली बताकर मारा गया वे नक्सली नहीं साधारण ग्रामीण थे और बैलाडीला पहाड़ी को खुदाई के लिए अडानी को दिए जाने का विरोध कर रहे थे. ग्रामीणों ने ये भी कहा कि यहां कोई मुठभेड़ नहीं हुई, जिस समय इन दोनों युवकों को मारा गया उस समय वे अपने दोस्तों के साथ भोजन कर रहे थे.
इस मुठभेड़ का विरोध करते हुए ग्रामीणों ने किरंदुल पुलिस थाने के सामने रैली निकाली और धरना प्रदर्शन किया. रैली में मांग की गई कि आदिवासी युवकों की हत्या का सिलसिला बन्द हो, फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले की जांच की जाए और चौबीस घंटे से अधिक समय से पुलिस हिरासत में रखे गए एक अन्य युवक को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाए. इस धरना प्रदर्शन में बेला भाटिया और सोनी सोरी भी मौजूद थे.
मुठभेड़ में शामिल पुलिस कर्मियों पर मामला दर्ज करने की जगह पुलिस ने बेला भाटिया, सोनी सोरी और दो आदिवासी सरपंचों के को ही आरोपी बनाकर धारा 188 के उल्लंघन का मामला दर्ज कर लिया. साथ ही 9 अन्य लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 307, तथा 25, 27 आर्म्स एक्ट में मामला दर्ज किया गया है.
ज्ञात हो कि एक बार बेला भाटिया के पक्ष में राहुल गांधी ने ट्वीट किया था और भाजपा सरकार के कार्यकाल में विपक्ष में रही प्रदेश काँग्रेस, सोरी के पक्ष में अनेकों बार बयान दे चुकी है. प्रदेश काँग्रेस ने सत्ता में आने पर ये बात कही थी कि नई सरकार जेलों में बंद निर्दोष आदिवासियों को रिहा करेगी. मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर भाजपा सरकार के समय दर्ज किए गए फ़र्ज़ी मामलों की जांच करेगी.
फ़र्ज़ी मामलों की जांच तो दूर अपितु नए मामले ही दर्ज हो रहे हैं. निर्दोष आदिवासी अब भी मारे जा रहे हैं.
सत्ता पर सवाल खड़े करना, उसके ख़िलाफ़ कुछ भी कहना इन दिनों देश का सबसे गंभीर अपराध है. छत्तीसगढ़ के बस्तर में अघोषित रूप से सैन्य सत्ता काम करती है (अघोषित आपातकाल की तरह). जिसे जी चाहा पकड़कर जेल में डाल दिया, जिसे जी चाहा गोलियों से उड़ा दिया और कारण में बस इतना कह दिया के ये माओवादी था. सबूत, जाँच, कानूनी प्रक्रिया, मानव अधिकार, संविधान, लोकतंत्र वगैरह की बातें यहां आते-आते ग़ायब सी हो जाती हैं. एनकाउंटर करने वाली पुलिस यहां की शांतिदूत है और बंदूकों का विरोध करने वाले बलवाई.
बस्तर में बैलाडीला की एक पहाड़ी (डिपॉज़िट 13) को लौह अयस्क खुदाई के लिए अडानी को दे दिए जाने का आदिवासियों ने विरोध किया था. बीते हफ़्ते 24 घंटों के अंदर तीन अलग अलग जगहों पर पुलिस द्वारा 6 माओवादियों को मारने की ख़बर आई. मृतकों के परिजनों और ग्रामीणों ने उनके नक्सली होने से इनकार किया. सोनी सोरी, बेला भाटिया, लिंगाराम कोडोपी ने एक जाँचदल के रूप में समन्धित गाँव गुमियापाल का दौरा किया. जांच में ये बात सामने आई कि गाँव के जिन दो आदिवासी युवकों को 5-5 लाख का ईनामी नक्सली बताकर मारा गया वे नक्सली नहीं साधारण ग्रामीण थे और बैलाडीला पहाड़ी को खुदाई के लिए अडानी को दिए जाने का विरोध कर रहे थे. ग्रामीणों ने ये भी कहा कि यहां कोई मुठभेड़ नहीं हुई, जिस समय इन दोनों युवकों को मारा गया उस समय वे अपने दोस्तों के साथ भोजन कर रहे थे.
इस मुठभेड़ का विरोध करते हुए ग्रामीणों ने किरंदुल पुलिस थाने के सामने रैली निकाली और धरना प्रदर्शन किया. रैली में मांग की गई कि आदिवासी युवकों की हत्या का सिलसिला बन्द हो, फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले की जांच की जाए और चौबीस घंटे से अधिक समय से पुलिस हिरासत में रखे गए एक अन्य युवक को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाए. इस धरना प्रदर्शन में बेला भाटिया और सोनी सोरी भी मौजूद थे.
मुठभेड़ में शामिल पुलिस कर्मियों पर मामला दर्ज करने की जगह पुलिस ने बेला भाटिया, सोनी सोरी और दो आदिवासी सरपंचों के को ही आरोपी बनाकर धारा 188 के उल्लंघन का मामला दर्ज कर लिया. साथ ही 9 अन्य लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 307, तथा 25, 27 आर्म्स एक्ट में मामला दर्ज किया गया है.
ज्ञात हो कि एक बार बेला भाटिया के पक्ष में राहुल गांधी ने ट्वीट किया था और भाजपा सरकार के कार्यकाल में विपक्ष में रही प्रदेश काँग्रेस, सोरी के पक्ष में अनेकों बार बयान दे चुकी है. प्रदेश काँग्रेस ने सत्ता में आने पर ये बात कही थी कि नई सरकार जेलों में बंद निर्दोष आदिवासियों को रिहा करेगी. मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर भाजपा सरकार के समय दर्ज किए गए फ़र्ज़ी मामलों की जांच करेगी.
फ़र्ज़ी मामलों की जांच तो दूर अपितु नए मामले ही दर्ज हो रहे हैं. निर्दोष आदिवासी अब भी मारे जा रहे हैं.
सत्ता पर सवाल खड़े करना, उसके ख़िलाफ़ कुछ भी कहना इन दिनों देश का सबसे गंभीर अपराध है. छत्तीसगढ़ के बस्तर में अघोषित रूप से सैन्य सत्ता काम करती है (अघोषित आपातकाल की तरह). जिसे जी चाहा पकड़कर जेल में डाल दिया, जिसे जी चाहा गोलियों से उड़ा दिया और कारण में बस इतना कह दिया के ये माओवादी था. सबूत, जाँच, कानूनी प्रक्रिया, मानव अधिकार, संविधान, लोकतंत्र वगैरह की बातें यहां आते-आते ग़ायब सी हो जाती हैं. एनकाउंटर करने वाली पुलिस यहां की शांतिदूत है और बंदूकों का विरोध करने वाले बलवाई.