उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सपा-बसपा-रालोद गठबंधन में शामिल नहीं करने का बहुत बड़ा खामियाजा इन दलों ने उठाया है। कांग्रेस ने एक दर्जन से अधिक सीटों पर गठबंधन की हार में भूमिका निभाई है। कांग्रेस भी गठबंधन में शामिल होती तो ये चारों पार्टियां मिलकर 32 सीटें जीत सकती थीं। सूबे में कई सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा 20 हजार से कम वोटों से जीती है। मछलीशहर में जीत का आंकड़ा सबसे कम रहा है। यहां बीजेपी प्रत्याशी को बीएसपी प्रत्याशी से सिर्फ 181 वोटों से जीत मिली है।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी तमाम कयासों और गठबंधन के चक्रव्यूह के बाद भी 62 सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि राजनीतिक पंडित 40 से ऊपर नहीं दे रहे थे। इन 61 सीटों में तकरीबन 16 ऐसी सीटें हैं जो 50 हज़ार से काम की हार जीत वाली रहीं। जबकि 2 ऐसी हैं जो 50 हज़ार से ज़्यादा लेकिन 60 हज़ार कम की हार जीत वाली रहीं। कहने का मतलब ये कि यहां कांटे की लड़ाई रही इस लड़ाई में भाजपा का पलड़ा ज़्यादा भारी रहा और नतीजों में बीजेपी 62, अपना दल 2, बसपा 10, सपा को 5 सीटें मिलीं।
10 हज़ार से काम की हार जीत वाली सीट देखते हैं तो 3 ऐसी सीट हैं जो 10 हज़ार से काम हार जीत वाली हैं। इनमे मेरठ में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल बसपा के याकूब कुरैशी को 4729 मतों से पराजित किया तो मुजफ्फरनगर से भाजपा के संजय संजीव बालियान ने रालोद के चौधरी अजीत सिंह से 6526 मतों से शिकस्त दी। इसी तरह श्रावस्ती में बीएसपी के राम शिरोमणि में भाजपा के ददन मिश्र को 6768 मतों से हराया।
सुल्तानपुर में मेनका गांधी ने 44.85% वोट पाकर बसपा के सोनू सिंह को 1.34% वोटों के अंतर से हराया। जबकि कांग्रेस के संजय सिंह को 4.16% वोट मिले जो भाजपा के जीत के अंतर से ज्यादा हैं।
इसी तरह धौरहरा में कांग्रेस के जितिन प्रसाद को 1.61 लाख वोट मिले। वे तीसरे स्थान पर रहे लेकिन उनके वोटों ने बसपा के अरशद सिद्दीकी की 1.5 लाख वोटों से हार तय कर दी। यहां से भाजपा की रेखा वर्मा 5.09 लाख वोट पाकर जीतीं।
यही कहानी बदायूं, बलिया, बांदा, बाराबंकी, बस्ती, भदोही, चंदौली, संत कबीरनगर, प्रतापगढ, मेरठ और कौशांबी जैसी सीटें हैं जहां भाजपा की जीत का अंतर कांग्रेस उम्मीदवारों को मिले वोट से कम था।
फ़िरोज़ाबाद में शिवपाल सिंह ने चचेरे भाई राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय की हार सुनिश्चित कर दी। अक्षय को भाजपा के हाथों करीब तीस हजार वोटों से शिकस्त मिली जबकि शिवपाल ने 91 हजार वोट हथियाए।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी तमाम कयासों और गठबंधन के चक्रव्यूह के बाद भी 62 सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि राजनीतिक पंडित 40 से ऊपर नहीं दे रहे थे। इन 61 सीटों में तकरीबन 16 ऐसी सीटें हैं जो 50 हज़ार से काम की हार जीत वाली रहीं। जबकि 2 ऐसी हैं जो 50 हज़ार से ज़्यादा लेकिन 60 हज़ार कम की हार जीत वाली रहीं। कहने का मतलब ये कि यहां कांटे की लड़ाई रही इस लड़ाई में भाजपा का पलड़ा ज़्यादा भारी रहा और नतीजों में बीजेपी 62, अपना दल 2, बसपा 10, सपा को 5 सीटें मिलीं।
10 हज़ार से काम की हार जीत वाली सीट देखते हैं तो 3 ऐसी सीट हैं जो 10 हज़ार से काम हार जीत वाली हैं। इनमे मेरठ में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल बसपा के याकूब कुरैशी को 4729 मतों से पराजित किया तो मुजफ्फरनगर से भाजपा के संजय संजीव बालियान ने रालोद के चौधरी अजीत सिंह से 6526 मतों से शिकस्त दी। इसी तरह श्रावस्ती में बीएसपी के राम शिरोमणि में भाजपा के ददन मिश्र को 6768 मतों से हराया।
सुल्तानपुर में मेनका गांधी ने 44.85% वोट पाकर बसपा के सोनू सिंह को 1.34% वोटों के अंतर से हराया। जबकि कांग्रेस के संजय सिंह को 4.16% वोट मिले जो भाजपा के जीत के अंतर से ज्यादा हैं।
इसी तरह धौरहरा में कांग्रेस के जितिन प्रसाद को 1.61 लाख वोट मिले। वे तीसरे स्थान पर रहे लेकिन उनके वोटों ने बसपा के अरशद सिद्दीकी की 1.5 लाख वोटों से हार तय कर दी। यहां से भाजपा की रेखा वर्मा 5.09 लाख वोट पाकर जीतीं।
यही कहानी बदायूं, बलिया, बांदा, बाराबंकी, बस्ती, भदोही, चंदौली, संत कबीरनगर, प्रतापगढ, मेरठ और कौशांबी जैसी सीटें हैं जहां भाजपा की जीत का अंतर कांग्रेस उम्मीदवारों को मिले वोट से कम था।
फ़िरोज़ाबाद में शिवपाल सिंह ने चचेरे भाई राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय की हार सुनिश्चित कर दी। अक्षय को भाजपा के हाथों करीब तीस हजार वोटों से शिकस्त मिली जबकि शिवपाल ने 91 हजार वोट हथियाए।