लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान “मोदी-लहर” के दावे भले ही किए जा रहे हों पर यूपी में पीएम मोदी के खिलाफ कई आवाजें उठ रही है। संतों के बाद अब पंचायत प्रतिनिधियों ने मोदी सरकार का विरोध किया है। सरकार द्वारा न्याय पंचायतों को खत्म करने पर पंचायत प्रतिनिधि महासंघ ने आपत्ति जताई है। साथ ही केंद्र सरकार व राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए लोगों से बीजेपी को वोट न करने की अपील की है।
पंचायत प्रतिनिधि महासंघ केंद्र व राज्य सरकार की नीतियों से काफी परेशान है। उनका आरोप है कि न्याय पंचायतों के गठन का मुद्दा बनाकर सत्ता पर पहुंची प्रदेश सरकार ने न्याय पंचायतों को खत्म करने का प्रस्ताव अपने कार्यकाल के सौवें दिन ही रख दिया। कार्यकाल के सौवें दिन ही कैबिनेट बैठक में प्रदेश सरकार ने यह प्रस्ताव रख उन्हें धोखा दिया है।
महासंघ के अध्यक्ष डॉक्टर चतुरानन ओझा ने इस मुद्दे पर मीडिया से बातचीत की। डॉ. ओझा ने कहा कि न्याय पंचायत की परंपरा सालों से चली आ रही है, इसे खत्म करना भारतीय संस्कृति की आत्मा की हत्या के समान है। सालों से सरकारें भले ही इसके गठन को लेकर आनाकानी करती है पर कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि इसे खत्म करने की बात करे। परंतु बीजेपी ने न सिर्फ इसे खत्म करने की बात कही है बल्कि इसके संवैधानिक विधान को भी चुनौती दी है।
डॉ ओझा ने समाज में न्याय पंचायत की जरूरत का जिक्र भी किया। डॉ ओझा ने कहा कि इस व्यवस्था में जनता मिलकर अपने मंच व सरपंच के माध्यम से बिना कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटे, बिना वकीलों के फीस भरे न्याय प्राप्त कर सकती है। यह संस्थान सामाजिक ढ़ाचे को और मजबूत करता है। लेकिन बीजेपी ने इस सहज न्याय व्यवस्था की संवैधानिक रूप से हत्या कर दी, इसे खत्म कर दिया है। ऐसे में लोगों को, पंचायत प्रतिनिधियों को बीजेपी सरकार के विरोध में मतदान कर इसे सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहिए।
पंचायत प्रतिनिधि महासंघ केंद्र व राज्य सरकार की नीतियों से काफी परेशान है। उनका आरोप है कि न्याय पंचायतों के गठन का मुद्दा बनाकर सत्ता पर पहुंची प्रदेश सरकार ने न्याय पंचायतों को खत्म करने का प्रस्ताव अपने कार्यकाल के सौवें दिन ही रख दिया। कार्यकाल के सौवें दिन ही कैबिनेट बैठक में प्रदेश सरकार ने यह प्रस्ताव रख उन्हें धोखा दिया है।
महासंघ के अध्यक्ष डॉक्टर चतुरानन ओझा ने इस मुद्दे पर मीडिया से बातचीत की। डॉ. ओझा ने कहा कि न्याय पंचायत की परंपरा सालों से चली आ रही है, इसे खत्म करना भारतीय संस्कृति की आत्मा की हत्या के समान है। सालों से सरकारें भले ही इसके गठन को लेकर आनाकानी करती है पर कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि इसे खत्म करने की बात करे। परंतु बीजेपी ने न सिर्फ इसे खत्म करने की बात कही है बल्कि इसके संवैधानिक विधान को भी चुनौती दी है।
डॉ ओझा ने समाज में न्याय पंचायत की जरूरत का जिक्र भी किया। डॉ ओझा ने कहा कि इस व्यवस्था में जनता मिलकर अपने मंच व सरपंच के माध्यम से बिना कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटे, बिना वकीलों के फीस भरे न्याय प्राप्त कर सकती है। यह संस्थान सामाजिक ढ़ाचे को और मजबूत करता है। लेकिन बीजेपी ने इस सहज न्याय व्यवस्था की संवैधानिक रूप से हत्या कर दी, इसे खत्म कर दिया है। ऐसे में लोगों को, पंचायत प्रतिनिधियों को बीजेपी सरकार के विरोध में मतदान कर इसे सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहिए।