हंसी खतरे में है ... हमारे भोजन, प्रार्थना और त्यौहारों में घृणा के बीज घुस गए हैं : थिएटर करने वालों की साझी अपील
द टेलीग्राफ ने आज इस अपील के अंश को शीर्षक बनाया है। इसके साथ प्रधानमंत्री की फोटो है जिसमें वे हंस रहे हैं और इसके ऊपर लिखा है, हंसी खतरे में? हा हा हा, नहीं जब हमारे पास ऐसे डरने वाले ईसी हैं। नीचे कैप्शन में लिखा है कि पीटीआई की यह फोटो 23 मार्च की नई दिल्ली की है। एक खबर ब्यूरो की है जिसका शीर्षक है, कलकाता और साल्ट लेक के शीर्ष पुलिस अधिकारी बदले गए। इसके मुताबिक चुनाव आयोग ने बंगाल के चार आईपीएस अधिकारियों को हटा दिया। इनमें कलकत्ता और बिधाननगर के पुलिस आयुक्त शामिल हैं। चुनाव आयोग ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि इन अधिकारियों को चुनाव से संबद्ध किसी काम में न लगाया जाए। इसके साथ एक और खबर नई दिल्ली डेटलाइन से अखबार के विशेष संवाददाता की है। शीर्षक है, चुनाव आयोग की चेतावनी के बाद योगी कांप रहे होंगे।
इस खबर में कहा गया है, केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने जब कहा कि भारतीय सेना को मोदी जी की सेना कहने वाला कोई भी व्यक्ति देशद्रोही है तो सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने जानना चाहा था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अब देशद्रोह का मामला चलेगा कि नहीं। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को जवाब में आदित्यनाथ को चेतावनी दी है। आयोग ने कहा है, आयोग श्री योगी के स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है। इसलिए, श्री योगी आदित्यनाथ को सलाह दी जाती है कि सेना से संबंधित मामलों का उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए न करें और भविष्य में सतर्क रहें।"
अखबार ने लिखा है कि संयुक्त बयान लेखकों, वैज्ञानिकों द्वारा जारी अपील के बाद आया है पर अलग है क्योंकि उसमें किसी पार्टी का नाम नहीं लिया गया था। हालांकि यह बिल्कुल स्पष्ट था कि किसकी बात हो रही है। लगभग ऐसी ही अपील फिल्म निर्माताओं की थी जिसमें भाजपा का जिक्र था। पर इसका समर्थन करने वाले ज्यादातर लोग थिएटर में काम करने वाले हैं और इसलिए नाम से ज्यादा पहचाने जाते हैं और इसलिए सार्वजनिक रूप से एक स्पष्ट स्टैंड लेकर वे ज्यादा जोखिम उठा रहे हैं।
शिक्षाविदों और टीकाकरों की तुलना में उनलोगों के लिए यह ज्यादा बड़ी बात है जो दर्शकों पर निर्भर करते हैं और जनता के बीच परफॉर्म करते हैं खासकर एक ऐसे देश में जहां राजनीतिक बहस और चर्चा को बर्बरता तथा शारीरिक हमलों से निपटाया जाता है। थिएटर करने वालों की अपील का समर्थन करने वाले 700 से ज्यादा नामों में कुछ इस प्रकार हैं - नसीरूद्दीन शाह, अमोल पालेलकर, गिरीश कर्नाड, कोंकणा सेन शर्मा, उषा गांगुली, संजना कपूर, मार्कंड देशपांडे, रत्ना पाठक शाह, लिलेट दुबे, सीमा बिश्वास, मीता वशिष्ट, अनुराग कश्यप, सुमन मुखोपाध्याय, शांता गोखले, महेश दतानी, अरुणधति नाग, कीर्ति जैन, अभिषेक मजूमदार, एमके रैना, यशपाल शर्मा, लवलीन मिश्रा, कविता लंकेश, जयंत कृपलानी, डॉली ठाकोर, अस्ताद देबू, अर्शिया सत्तार, चंदन रॉय सन्याल और मानव कौल।
अपील इस प्रकार है। मैंने https://www.artistuniteindia.com/ से हिन्दी अनुवाद लिया है आप चाहें तो अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं में भी पढ़ सकते हैं।
ब्रितानी राज के ज़माने से, हिंदुस्तान के रंग-कर्मियों ने अपने काम से देश की विविधता का जश्न मनाया है। हमने आज़ादी की लड़ाई के लिए नाटक किए; अपनी कला के ज़रिए समाज की बुराइयों को ललकारा; समाज में बराबरी और भाईचारे के हामी रहे; पुरुष-प्रधानता, ब्राह्मणवाद और जाति-भेदभाव के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ी। मज़हबी सम्प्रदायवाद, अंध-देशभक्ति, तंग-नज़री और अंध-विश्वासों के ख़िलाफ़ खड़े होने की, हिन्दुस्तान के रंग-कर्मियों की लम्बी और गर्वपूर्ण परम्परा रही है। हम लोगों ने हाशियों पर खड़े हो कर, हाशियों की बात की है। गाने और नाच के शक्ल में, हलके- फुल्के और करुणामय रंगों में, दमदार कहानियों के ज़रिये, हमने पिछले एक सौ पचास साल से सेक्युलर, जनतंत्रीय, साझे और इंसाफ़-पसंद हिन्दुस्तान की छबि रची है।
आज हिन्दुस्तान की वही छबि ख़तरे में है। आज, गीत, नाच, हंसना-हँसाना खतरे में है। आज हमारा प्यारा संविधान ख़तरे में है। उन संस्थानों का गला घोंटा जा रहा है जिनका काम तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और असहमति को मान्यता देना है। सवाल उठाने, झूठ को उजागर करने, और सच बोलने को 'देश-विरोधी' क़रार दिया जाता है। नफ़रत के बीज हमारे खान-पान, इबादत और त्योहारों में शामिल हो गए हैं।
जिन अलग अलग रूपों में नफ़रत हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ख़ौफ़नाक तरीक़े से दाख़िल हो गयी है, उसको रोकना है। आने वाले चुनाव आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास के सबसे अहम् चुनाव हैं। जनतंत्र का मतलब है सबसे कमज़ोर और हाशिये पर बसे इंसान को समर्थ बनाना। बिना सवाल उठाए, बिना वाद-विवाद किए, बिना ज़िंदा विपक्ष के जनतंत्र कामयाब नहीं हो सकता। आज की सरकार जानबूझ कर इन सब को ख़त्म कर रही है।
जो भाजपा पांच साल पहले विकास का वादा करके सत्ता में आयी, उसने हिंदुत्व के ग़ुंडों को नफ़रत और हिंसा की सियासत करने की खुली छूट दे दी। वो शख़्स जिसे पांच साल पहले देश के मसीहा की संज्ञा दी गई, उसने अपनी नीतियों से करोणों लोगों की जीविका का नाश कर दिया। उसने काला धन वापस लाने का वादा किया मगर उसके बजाय बदमाश देश को लूट कर भाग गए। देश की सम्पति में कई गुना इज़ाफ़ा हुआ मगर ग़रीब तबक़ा और भी ग़रीब हो गया।
हम हिन्दुस्तान के रंगकर्मी देश के लोगों से अपील करते हैं कि वे देश के संविधान, और हमारे साझा और सेक्युलर माहौल की हिफाज़त करें। हम अपने नागरिक साथियों से अपील करते हैं कि वे प्रेम और सदभावना, बराबरी और सामाजिक न्याय के लिए, और अन्धकार और असभ्यता की ताक़तों को हरा पाने के लिए, अपना वोट डालें।
हमारी अपील है कि कट्टरपन, नफ़रत और निठुराई को वोट की ताक़त से हराएँ। भाजपा और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ वोट डालें। सबसे कमज़ोर को समर्थ बनाने के लिए, आज़ादी को बचाने के लिए, पर्यावरण को बचाने के लिए, वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए वोट डालें। सेक्युलर, जनतंत्रीय और भाईचारे वाले हिन्दुस्तान के लिए वोट डालें। सपने देखने की आज़ादी के लिए वोट डालें। सोच समझ कर वोट डालें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
द टेलीग्राफ ने आज इस अपील के अंश को शीर्षक बनाया है। इसके साथ प्रधानमंत्री की फोटो है जिसमें वे हंस रहे हैं और इसके ऊपर लिखा है, हंसी खतरे में? हा हा हा, नहीं जब हमारे पास ऐसे डरने वाले ईसी हैं। नीचे कैप्शन में लिखा है कि पीटीआई की यह फोटो 23 मार्च की नई दिल्ली की है। एक खबर ब्यूरो की है जिसका शीर्षक है, कलकाता और साल्ट लेक के शीर्ष पुलिस अधिकारी बदले गए। इसके मुताबिक चुनाव आयोग ने बंगाल के चार आईपीएस अधिकारियों को हटा दिया। इनमें कलकत्ता और बिधाननगर के पुलिस आयुक्त शामिल हैं। चुनाव आयोग ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि इन अधिकारियों को चुनाव से संबद्ध किसी काम में न लगाया जाए। इसके साथ एक और खबर नई दिल्ली डेटलाइन से अखबार के विशेष संवाददाता की है। शीर्षक है, चुनाव आयोग की चेतावनी के बाद योगी कांप रहे होंगे।
इस खबर में कहा गया है, केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने जब कहा कि भारतीय सेना को मोदी जी की सेना कहने वाला कोई भी व्यक्ति देशद्रोही है तो सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने जानना चाहा था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अब देशद्रोह का मामला चलेगा कि नहीं। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को जवाब में आदित्यनाथ को चेतावनी दी है। आयोग ने कहा है, आयोग श्री योगी के स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है। इसलिए, श्री योगी आदित्यनाथ को सलाह दी जाती है कि सेना से संबंधित मामलों का उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए न करें और भविष्य में सतर्क रहें।"
अखबार ने लिखा है कि संयुक्त बयान लेखकों, वैज्ञानिकों द्वारा जारी अपील के बाद आया है पर अलग है क्योंकि उसमें किसी पार्टी का नाम नहीं लिया गया था। हालांकि यह बिल्कुल स्पष्ट था कि किसकी बात हो रही है। लगभग ऐसी ही अपील फिल्म निर्माताओं की थी जिसमें भाजपा का जिक्र था। पर इसका समर्थन करने वाले ज्यादातर लोग थिएटर में काम करने वाले हैं और इसलिए नाम से ज्यादा पहचाने जाते हैं और इसलिए सार्वजनिक रूप से एक स्पष्ट स्टैंड लेकर वे ज्यादा जोखिम उठा रहे हैं।
शिक्षाविदों और टीकाकरों की तुलना में उनलोगों के लिए यह ज्यादा बड़ी बात है जो दर्शकों पर निर्भर करते हैं और जनता के बीच परफॉर्म करते हैं खासकर एक ऐसे देश में जहां राजनीतिक बहस और चर्चा को बर्बरता तथा शारीरिक हमलों से निपटाया जाता है। थिएटर करने वालों की अपील का समर्थन करने वाले 700 से ज्यादा नामों में कुछ इस प्रकार हैं - नसीरूद्दीन शाह, अमोल पालेलकर, गिरीश कर्नाड, कोंकणा सेन शर्मा, उषा गांगुली, संजना कपूर, मार्कंड देशपांडे, रत्ना पाठक शाह, लिलेट दुबे, सीमा बिश्वास, मीता वशिष्ट, अनुराग कश्यप, सुमन मुखोपाध्याय, शांता गोखले, महेश दतानी, अरुणधति नाग, कीर्ति जैन, अभिषेक मजूमदार, एमके रैना, यशपाल शर्मा, लवलीन मिश्रा, कविता लंकेश, जयंत कृपलानी, डॉली ठाकोर, अस्ताद देबू, अर्शिया सत्तार, चंदन रॉय सन्याल और मानव कौल।
अपील इस प्रकार है। मैंने https://www.artistuniteindia.com/ से हिन्दी अनुवाद लिया है आप चाहें तो अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं में भी पढ़ सकते हैं।
ब्रितानी राज के ज़माने से, हिंदुस्तान के रंग-कर्मियों ने अपने काम से देश की विविधता का जश्न मनाया है। हमने आज़ादी की लड़ाई के लिए नाटक किए; अपनी कला के ज़रिए समाज की बुराइयों को ललकारा; समाज में बराबरी और भाईचारे के हामी रहे; पुरुष-प्रधानता, ब्राह्मणवाद और जाति-भेदभाव के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ी। मज़हबी सम्प्रदायवाद, अंध-देशभक्ति, तंग-नज़री और अंध-विश्वासों के ख़िलाफ़ खड़े होने की, हिन्दुस्तान के रंग-कर्मियों की लम्बी और गर्वपूर्ण परम्परा रही है। हम लोगों ने हाशियों पर खड़े हो कर, हाशियों की बात की है। गाने और नाच के शक्ल में, हलके- फुल्के और करुणामय रंगों में, दमदार कहानियों के ज़रिये, हमने पिछले एक सौ पचास साल से सेक्युलर, जनतंत्रीय, साझे और इंसाफ़-पसंद हिन्दुस्तान की छबि रची है।
आज हिन्दुस्तान की वही छबि ख़तरे में है। आज, गीत, नाच, हंसना-हँसाना खतरे में है। आज हमारा प्यारा संविधान ख़तरे में है। उन संस्थानों का गला घोंटा जा रहा है जिनका काम तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और असहमति को मान्यता देना है। सवाल उठाने, झूठ को उजागर करने, और सच बोलने को 'देश-विरोधी' क़रार दिया जाता है। नफ़रत के बीज हमारे खान-पान, इबादत और त्योहारों में शामिल हो गए हैं।
जिन अलग अलग रूपों में नफ़रत हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ख़ौफ़नाक तरीक़े से दाख़िल हो गयी है, उसको रोकना है। आने वाले चुनाव आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास के सबसे अहम् चुनाव हैं। जनतंत्र का मतलब है सबसे कमज़ोर और हाशिये पर बसे इंसान को समर्थ बनाना। बिना सवाल उठाए, बिना वाद-विवाद किए, बिना ज़िंदा विपक्ष के जनतंत्र कामयाब नहीं हो सकता। आज की सरकार जानबूझ कर इन सब को ख़त्म कर रही है।
जो भाजपा पांच साल पहले विकास का वादा करके सत्ता में आयी, उसने हिंदुत्व के ग़ुंडों को नफ़रत और हिंसा की सियासत करने की खुली छूट दे दी। वो शख़्स जिसे पांच साल पहले देश के मसीहा की संज्ञा दी गई, उसने अपनी नीतियों से करोणों लोगों की जीविका का नाश कर दिया। उसने काला धन वापस लाने का वादा किया मगर उसके बजाय बदमाश देश को लूट कर भाग गए। देश की सम्पति में कई गुना इज़ाफ़ा हुआ मगर ग़रीब तबक़ा और भी ग़रीब हो गया।
हम हिन्दुस्तान के रंगकर्मी देश के लोगों से अपील करते हैं कि वे देश के संविधान, और हमारे साझा और सेक्युलर माहौल की हिफाज़त करें। हम अपने नागरिक साथियों से अपील करते हैं कि वे प्रेम और सदभावना, बराबरी और सामाजिक न्याय के लिए, और अन्धकार और असभ्यता की ताक़तों को हरा पाने के लिए, अपना वोट डालें।
हमारी अपील है कि कट्टरपन, नफ़रत और निठुराई को वोट की ताक़त से हराएँ। भाजपा और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ वोट डालें। सबसे कमज़ोर को समर्थ बनाने के लिए, आज़ादी को बचाने के लिए, पर्यावरण को बचाने के लिए, वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए वोट डालें। सेक्युलर, जनतंत्रीय और भाईचारे वाले हिन्दुस्तान के लिए वोट डालें। सपने देखने की आज़ादी के लिए वोट डालें। सोच समझ कर वोट डालें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)