सोशल मीडिया पर जब भी हरेन पांड्या, जज बीएम लोया और अब गोपीनाथ मुंडे की हत्या, संदिग्ध मृत्यु और दुर्घटना की बात की जाती है तो एक वर्ग इसके बचाव में उतर आता है और येनकेनप्रकारेण इन हत्याओं पर संदेह करने वालों को ही कटघरे में खड़ा करने लगता है। हरेन पांड्या गुजरात के गृह मंत्री रहे हैं, और तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके मतभेद थे, और अचानक एक दिन वे कार में मृत पाए जाते हैं। क्या आप को यह एक सामान्य हत्या लगती है ? आप को लग सकती है पर मेरा पेशा, मेरी ट्रेनिंग और मेरा सेवागत अनुभव इसे मानने को तैयार नहीं होता है। हरेन पांड्या की हत्या पर उनकी पत्नी से सीधे आरोप पुलिस पर लगाये थे। हत्या का शूटर गुजरात पुलिस के एक कुख्यात अधिकारी के बेहद नज़दीक है और वह अधिकारी सत्ता का कृपापात्र है। पर हैरानी की बात है कि इस घटना की भी जांच ढंग से जांच एजंसियों द्वारा नहीं की गयी।
जज बीएम लोया की मृत्यु भी बेहद संदिग्ध परिस्थितियों में हुईं । वे जिस मुक़दमे की सुनवायी कर रहे थे, उसमें शक सीधे अमित शाह पर जा रहा है। खोजी पत्रकारिता करने वाला पत्र कारवां ने 27 अंकों में इस हत्या की कई परतें उढ़ेड़ कर सामने रख दिया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट, साथी जजों के बयान जिस गेस्ट हाउस में जज लोया रुके थे उसमें रुके अन्य महानुभावों की उपस्थिति कहानी का सस्पेंस और बढ़ा देते हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच कराने से मना करके जज लोया की मृत्यु को सामान्य मान लिया। यह तो वैसे ही है जैसे कि थाने में पहुंची किसी संदिग्ध मृत्यु की इत्तला पर दरोगा जी कोई कार्यवाही न करके यह पर्चा काट दें कि मृत्यु सामान्य है और जांच की ज़रूरत भी नहीं है। बिना किसी जांच के ही किसी संदिग्ध मृत्यु को सामान्य मान लेने की यह अनोखी घटना है। अब यह मामला फिर बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवायी के लिये लंबित है। देखिए क्या होता है।
अब चर्चा में गोपीनाथ मुंडे की दिल्ली मे हुयी कार दुर्घटना में हुयी मृत्यु है। ईवीएम की हैकिंग का दावा करने वाले सैयद शुजा ने यह आरोप लगाया है कि गोपीनाथ मुंडे की हत्या की गयी है क्योंकि उन्हें ईवीएम के हैकिंग की जानकारी थी। हो सकता है यह आरोप मिथ्या हो और सनसनी फैलाने के उद्देश्य से किया गया हो, पर गोपीनाथ मुंडे एक केंद्रीय मंत्री थे और महाराष्ट्र के कद्दावर नेता थे। यह भी संभव था, वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी होते अगर जीवित रहते तो। अगर इस दुर्घटना पर सवाल उठ रहे हैं तो सरकार को इसकी गहन तफ्तीश करानी चाहिये। इस घटना की सीबीआई जांच की मांग पर केंद्रीय मंत्री, नितिन गडकरी ने कहा है कि यह निर्णय प्रधानमंत्री को लेना है कि सीबीआई की जांच हो या न हो । नितिन गडकरी का यह बयान समझिये। सियासत की अपनी जुबां होती है, जो कहे इनकार तो इकरार समझना !
मैं अक्सर इन हत्याओं, पुलिस मुठभेड़ों और अपराध की घटनाओं पर लिखता रहता हूँ। कुछ तो इसका कारण पुलिस सेवा की पृष्ठभूमि और कुछ ऐसी घटनाओं में मेरी रुचि का होना भी है। पर जब इन घटनाओं की चर्चा पर सरकार, या भाजपा, या प्रधानमंत्री के समर्थन में टिप्पणियां आती हैं तो यह संदेह स्वाभाविक रूप से उठता है कि आखिर इन हत्याओं के राज़ को फाश न होने देने के पीछे सत्ता के समर्थक तत्व क्यों आतुर है ? वे खुद इन हत्याओं की जांच की मांग के साथ क्यों नहीं खड़े होते हैं ?.हरेन पांड्या और गोपीनाथ मुंडे तो भाजपा के ही कद्दावर नेता थे। क्या सत्ता प्रतिष्ठान जानबूझकर इन अपराधों में संदेह का पर्दा उठने देने के विपरीत है ? यह तीनों हत्याएं महत्वपूर्ण लोगों की हैं और तीनों में जिन अभियुक्तों की तरफ शक की सुई जा रही हैं वे बेहद असरदार और मज़बूत लोग है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन पर उठे सन्देहों का निवारण जांच के बाद करे न कि हवा मे बात करे।
(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं।)
जज बीएम लोया की मृत्यु भी बेहद संदिग्ध परिस्थितियों में हुईं । वे जिस मुक़दमे की सुनवायी कर रहे थे, उसमें शक सीधे अमित शाह पर जा रहा है। खोजी पत्रकारिता करने वाला पत्र कारवां ने 27 अंकों में इस हत्या की कई परतें उढ़ेड़ कर सामने रख दिया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट, साथी जजों के बयान जिस गेस्ट हाउस में जज लोया रुके थे उसमें रुके अन्य महानुभावों की उपस्थिति कहानी का सस्पेंस और बढ़ा देते हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच कराने से मना करके जज लोया की मृत्यु को सामान्य मान लिया। यह तो वैसे ही है जैसे कि थाने में पहुंची किसी संदिग्ध मृत्यु की इत्तला पर दरोगा जी कोई कार्यवाही न करके यह पर्चा काट दें कि मृत्यु सामान्य है और जांच की ज़रूरत भी नहीं है। बिना किसी जांच के ही किसी संदिग्ध मृत्यु को सामान्य मान लेने की यह अनोखी घटना है। अब यह मामला फिर बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवायी के लिये लंबित है। देखिए क्या होता है।
अब चर्चा में गोपीनाथ मुंडे की दिल्ली मे हुयी कार दुर्घटना में हुयी मृत्यु है। ईवीएम की हैकिंग का दावा करने वाले सैयद शुजा ने यह आरोप लगाया है कि गोपीनाथ मुंडे की हत्या की गयी है क्योंकि उन्हें ईवीएम के हैकिंग की जानकारी थी। हो सकता है यह आरोप मिथ्या हो और सनसनी फैलाने के उद्देश्य से किया गया हो, पर गोपीनाथ मुंडे एक केंद्रीय मंत्री थे और महाराष्ट्र के कद्दावर नेता थे। यह भी संभव था, वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी होते अगर जीवित रहते तो। अगर इस दुर्घटना पर सवाल उठ रहे हैं तो सरकार को इसकी गहन तफ्तीश करानी चाहिये। इस घटना की सीबीआई जांच की मांग पर केंद्रीय मंत्री, नितिन गडकरी ने कहा है कि यह निर्णय प्रधानमंत्री को लेना है कि सीबीआई की जांच हो या न हो । नितिन गडकरी का यह बयान समझिये। सियासत की अपनी जुबां होती है, जो कहे इनकार तो इकरार समझना !
मैं अक्सर इन हत्याओं, पुलिस मुठभेड़ों और अपराध की घटनाओं पर लिखता रहता हूँ। कुछ तो इसका कारण पुलिस सेवा की पृष्ठभूमि और कुछ ऐसी घटनाओं में मेरी रुचि का होना भी है। पर जब इन घटनाओं की चर्चा पर सरकार, या भाजपा, या प्रधानमंत्री के समर्थन में टिप्पणियां आती हैं तो यह संदेह स्वाभाविक रूप से उठता है कि आखिर इन हत्याओं के राज़ को फाश न होने देने के पीछे सत्ता के समर्थक तत्व क्यों आतुर है ? वे खुद इन हत्याओं की जांच की मांग के साथ क्यों नहीं खड़े होते हैं ?.हरेन पांड्या और गोपीनाथ मुंडे तो भाजपा के ही कद्दावर नेता थे। क्या सत्ता प्रतिष्ठान जानबूझकर इन अपराधों में संदेह का पर्दा उठने देने के विपरीत है ? यह तीनों हत्याएं महत्वपूर्ण लोगों की हैं और तीनों में जिन अभियुक्तों की तरफ शक की सुई जा रही हैं वे बेहद असरदार और मज़बूत लोग है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन पर उठे सन्देहों का निवारण जांच के बाद करे न कि हवा मे बात करे।
(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं।)