रोहित
तुम जी सकते थे।
अपमान के कड़वे घूंट
पी सकते थे।
टेक सकते थे घुटने
झुका सकते थे सिर
बन सकते थे समझौतावादी
मगर तुमने खुद को सुना
और दूसरा रास्ता चुना
रोहित
तुम्हारे कमरे में पाया गया था
'खतरनाक सामान '
तस्वीर बाबा साहब
और सावित्री बाई फुले की ।
तुमने किये थे कुछ देशविरोधी कृत्य
जैसे कि -
फाँसी की सजा की मुख़ालफ़त।
तुमने दंगों की हकीकत बतानी चाही थी।
तुमने 'मुजफ्फरनगर अभी बाक़ी है'
जैसी फिल्म दिखानी चाही थी ।
तुम्हें सिर्फ रिसर्च करना था
तुम्हें सोचने की कौन बोला ?
तुमने चुपचाप रहना था
तुम्हें बोलने की कौन बोला ?
...............
रोहित
तुमने सोच भी कैसे लिया ?
कि प्रचण्ड बहुमत वाले
इस चक्रवर्ती राज में
तुम जो चाहोगे वो बोलोगे
और उनके विरुद्ध मुंह खोलोगे ।
उनकी मर्जी के खिलाफ
कुछ भी मनचाहा खा लोगे ?
नहीं करना था ,
पर तुमने किया ये सब
बन गए थे तुम एक कांटा
एक ना एक दिन
निकालना ही था तुमको ।
..............
रोहित
मंत्री बण्डारु और वीसी अपा राव
कह रहे है कि
उन्होंने नहीं मारा तुमको ?
सही बात है ,
वे अब नहीं मारते
किसी को ।
उनके पूर्वज मारते थे ,
एकलव्यों से अंगूठा कटवा लेते थे
और शम्बुकों का काट देते थे गला ।
पर अब वे ऐसा नहीं करते ।
बस बना लेते है फंदे
गले के नाप के ।
फिर कोशिस करते है
कि वो फंदे
तुम्हारे गले के काम आ जाये ।
अब वे मारते नहीं
करते है मरने को मजबूर ।
तुम्हारे साथ भी तो
यही किया इन्होंने ।
......................
रोहित
तुम लेखक बनना चाहते थे,
पर लेख बन गए ।
तुमने मर कर भी वही किया
जो तुम ज़िंदा रह कर
कर सकते थे ।
तुमने इस समाज ,
राष्ट्र और धर्म के
दोगलेपन और अन्यायकारी
चरित्र को किया है उजागर ।
तुम आज प्रतिरोध की
सबसे प्रमुख आवाज़ बन गए हो ।
.......
रोहित
तुम्हारी मौत
आत्महत्या
नहीं हैं ।
तुम आत्महंता नहीं
आत्मबलिदानी हो
हमारी नज़र में ।
तुमने लिया
क्रूर व्यवस्था के विरुद्ध
सबसे कठोर निर्णय ।
.......................
रोहित
तुम्हारा आखिरी खत
जिसे सुसाइड नोट कहा जा रहा है ।
पढ़ा है मैने भी ।
तुमने खोल कर रख दिया
अपना भीतर ।
तुमने उघाड़ दिया
हम सबका बाहर ।
हाँ रोहित
तुमने सही कहा
हमारी भावनाएं दोयम ,
प्रेम बनावटी
और मान्यताएं झूठी हो गई है।
आदमी अब सिर्फ
एक आंकड़ा,एक वोट
और वस्तु भर रह गया है ।
यह सच है मेरे दोस्त।
तुमने ठीक ही लिखा ।
तुम ठीक ही लड़े ।
तुमने सब ठीक ही किया ।
काश ,तुम और जी पाते !
लड़ पाते ,
बिना थके ।
तुम्हारी बेहद जरूरत थी
इस भयानक दौर को ।
तुम्हारी तरह आज़ाद ख्याल
निडर ,बेमिसाल
इंसान चाहिए था हमको ।
..........
रोहित
अब चिंता
सिर्फ इतनी सी है कि
तुम्हारी मौत
व्यर्थ नहीं जाये।
यह जंग कहीं
हम हार नहीं जाये ।
कोई और एकलव्य
अपना अंगूठा नहीं खो दे।
किसी मर्यादा
पुरषोत्तम के हाथ
हम अपना शम्बूक नहीं खो दें।
तुम तो चले गए सितारों के पार
पर हमें लड़नी होगी
एक लम्बी लड़ाई।
हमें उम्मीद है
कि एक न एक दिन
हम उन सितारों को
धरा पर उतार लाएंगे दोस्त
तुम्हारे खातिर।
ताकि भविष्य में
कोई और रोहित वेमुला
इस तरह नहीं जाये चला
हाथों से हमारे।
जिस तरह तुम
मरते वक्त थे
बिलकुल खाली।
अभी वैसे ही मैं
बिलकुल शून्य हो कर
सोच रहा हूँ।
पर मरने के लिए नहीं ,
जीने के लिए...
एक आखिरी और निर्णायक जंग
लड़ने और जीतने के लिए....
कहते हुए तुमको ।
एक क्रन्तिकारी जय भीम।
(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार एवम् सामाजिक कार्यकर्ता हैं। संपर्क -bhanwarmeghwanshi@gmail.com )
तुम जी सकते थे।
अपमान के कड़वे घूंट
पी सकते थे।
टेक सकते थे घुटने
झुका सकते थे सिर
बन सकते थे समझौतावादी
मगर तुमने खुद को सुना
और दूसरा रास्ता चुना
रोहित
तुम्हारे कमरे में पाया गया था
'खतरनाक सामान '
तस्वीर बाबा साहब
और सावित्री बाई फुले की ।
तुमने किये थे कुछ देशविरोधी कृत्य
जैसे कि -
फाँसी की सजा की मुख़ालफ़त।
तुमने दंगों की हकीकत बतानी चाही थी।
तुमने 'मुजफ्फरनगर अभी बाक़ी है'
जैसी फिल्म दिखानी चाही थी ।
तुम्हें सिर्फ रिसर्च करना था
तुम्हें सोचने की कौन बोला ?
तुमने चुपचाप रहना था
तुम्हें बोलने की कौन बोला ?
...............
रोहित
तुमने सोच भी कैसे लिया ?
कि प्रचण्ड बहुमत वाले
इस चक्रवर्ती राज में
तुम जो चाहोगे वो बोलोगे
और उनके विरुद्ध मुंह खोलोगे ।
उनकी मर्जी के खिलाफ
कुछ भी मनचाहा खा लोगे ?
नहीं करना था ,
पर तुमने किया ये सब
बन गए थे तुम एक कांटा
एक ना एक दिन
निकालना ही था तुमको ।
..............
रोहित
मंत्री बण्डारु और वीसी अपा राव
कह रहे है कि
उन्होंने नहीं मारा तुमको ?
सही बात है ,
वे अब नहीं मारते
किसी को ।
उनके पूर्वज मारते थे ,
एकलव्यों से अंगूठा कटवा लेते थे
और शम्बुकों का काट देते थे गला ।
पर अब वे ऐसा नहीं करते ।
बस बना लेते है फंदे
गले के नाप के ।
फिर कोशिस करते है
कि वो फंदे
तुम्हारे गले के काम आ जाये ।
अब वे मारते नहीं
करते है मरने को मजबूर ।
तुम्हारे साथ भी तो
यही किया इन्होंने ।
......................
रोहित
तुम लेखक बनना चाहते थे,
पर लेख बन गए ।
तुमने मर कर भी वही किया
जो तुम ज़िंदा रह कर
कर सकते थे ।
तुमने इस समाज ,
राष्ट्र और धर्म के
दोगलेपन और अन्यायकारी
चरित्र को किया है उजागर ।
तुम आज प्रतिरोध की
सबसे प्रमुख आवाज़ बन गए हो ।
.......
रोहित
तुम्हारी मौत
आत्महत्या
नहीं हैं ।
तुम आत्महंता नहीं
आत्मबलिदानी हो
हमारी नज़र में ।
तुमने लिया
क्रूर व्यवस्था के विरुद्ध
सबसे कठोर निर्णय ।
.......................
रोहित
तुम्हारा आखिरी खत
जिसे सुसाइड नोट कहा जा रहा है ।
पढ़ा है मैने भी ।
तुमने खोल कर रख दिया
अपना भीतर ।
तुमने उघाड़ दिया
हम सबका बाहर ।
हाँ रोहित
तुमने सही कहा
हमारी भावनाएं दोयम ,
प्रेम बनावटी
और मान्यताएं झूठी हो गई है।
आदमी अब सिर्फ
एक आंकड़ा,एक वोट
और वस्तु भर रह गया है ।
यह सच है मेरे दोस्त।
तुमने ठीक ही लिखा ।
तुम ठीक ही लड़े ।
तुमने सब ठीक ही किया ।
काश ,तुम और जी पाते !
लड़ पाते ,
बिना थके ।
तुम्हारी बेहद जरूरत थी
इस भयानक दौर को ।
तुम्हारी तरह आज़ाद ख्याल
निडर ,बेमिसाल
इंसान चाहिए था हमको ।
..........
रोहित
अब चिंता
सिर्फ इतनी सी है कि
तुम्हारी मौत
व्यर्थ नहीं जाये।
यह जंग कहीं
हम हार नहीं जाये ।
कोई और एकलव्य
अपना अंगूठा नहीं खो दे।
किसी मर्यादा
पुरषोत्तम के हाथ
हम अपना शम्बूक नहीं खो दें।
तुम तो चले गए सितारों के पार
पर हमें लड़नी होगी
एक लम्बी लड़ाई।
हमें उम्मीद है
कि एक न एक दिन
हम उन सितारों को
धरा पर उतार लाएंगे दोस्त
तुम्हारे खातिर।
ताकि भविष्य में
कोई और रोहित वेमुला
इस तरह नहीं जाये चला
हाथों से हमारे।
जिस तरह तुम
मरते वक्त थे
बिलकुल खाली।
अभी वैसे ही मैं
बिलकुल शून्य हो कर
सोच रहा हूँ।
पर मरने के लिए नहीं ,
जीने के लिए...
एक आखिरी और निर्णायक जंग
लड़ने और जीतने के लिए....
कहते हुए तुमको ।
एक क्रन्तिकारी जय भीम।
(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार एवम् सामाजिक कार्यकर्ता हैं। संपर्क -bhanwarmeghwanshi@gmail.com )