हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी करने वाले पहले दलित सूरज येंग्दे ने कहा कि देश की आजादी के सत्तर साल बाद भी देश की नीति निर्धारण में दलित को जगह नहीं मिल रही है. इस देश में दलित सिर्फ वोट बैंक बनकर रह गए हैं.

येंग्दे शुक्रवार को विशाखापट्टनम में आयोजित इंडिया टुडे कनक्लेव में 'The Rage Within: Where is Ambedkar's Ethos?' विषय पर शिरकत करने पहुंचे थे. इस दौरान कांग्रेस नेता पल्लम राजू और बीजेपी नेता कृष्ण सागर राव भी वहां पर मौजूद थे.
येंग्दे ने कहा कि देश की आजादी के 70 साल गुजर चुके हैं, लेकिन अब भी नीति निर्धारण में दलित को जगह नहीं मिल रही है. इसकी शुरुआत आजादी के समय से ही हो गई थी. स्वतंत्रता के बाद बनी पहली कैबिनेट में भी दलित को जगह नहीं मिली थी. राजनेता दलितों के साथ इंसानों की तरह बर्ताव नहीं करते हैं. इसके चलते आज तक दलित इस देश में सिर्फ वोट बैंक बनकर रह गए हैं. देश की नीति निर्धारण में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है.
इस दौरान पल्लम राजू ने कहा कि कई जगह अब भी दलितों पर अत्याचार होता है. हालांकि पहले की अपेक्षा वर्तमान में दलितों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. आज दलित इतने पीछे नहीं है, जितने वो पहले थे. हालांकि सूरज येंग्दे का कहना है कि बीते दशकों में राजनीतिक पार्टियों ने दलित एलीट तैयार किया है, जो उनके हित की बात करता है. वहीं, ज्यादातर दलित अब भी उत्पीड़न के शिकार हैं.

येंग्दे शुक्रवार को विशाखापट्टनम में आयोजित इंडिया टुडे कनक्लेव में 'The Rage Within: Where is Ambedkar's Ethos?' विषय पर शिरकत करने पहुंचे थे. इस दौरान कांग्रेस नेता पल्लम राजू और बीजेपी नेता कृष्ण सागर राव भी वहां पर मौजूद थे.
येंग्दे ने कहा कि देश की आजादी के 70 साल गुजर चुके हैं, लेकिन अब भी नीति निर्धारण में दलित को जगह नहीं मिल रही है. इसकी शुरुआत आजादी के समय से ही हो गई थी. स्वतंत्रता के बाद बनी पहली कैबिनेट में भी दलित को जगह नहीं मिली थी. राजनेता दलितों के साथ इंसानों की तरह बर्ताव नहीं करते हैं. इसके चलते आज तक दलित इस देश में सिर्फ वोट बैंक बनकर रह गए हैं. देश की नीति निर्धारण में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है.
इस दौरान पल्लम राजू ने कहा कि कई जगह अब भी दलितों पर अत्याचार होता है. हालांकि पहले की अपेक्षा वर्तमान में दलितों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. आज दलित इतने पीछे नहीं है, जितने वो पहले थे. हालांकि सूरज येंग्दे का कहना है कि बीते दशकों में राजनीतिक पार्टियों ने दलित एलीट तैयार किया है, जो उनके हित की बात करता है. वहीं, ज्यादातर दलित अब भी उत्पीड़न के शिकार हैं.