सूचना आयुक्त श्रीरामलु ने 4 नवंबर को जो आदेश दिया है वह मोदी सरकार के मुँह पर पड़ा एक करारा तमाचा है जो बड़े विलफुल डिफाल्टर के नाम छुपाने की घृणित कोशिशें कर रही है. रविवार शाम आयी एक खबर ने सभी का ध्यान खींच लिया खबर थी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, 50 करोड़ रुपये से अधिक के विलफुल लोन डिफॉल्टर्स के नामों की घोषणा से RBI के इनकार से नाराज CIC ने RBI गवर्नर उर्जित पटेल से पूछा है कि तत्कालीन सूचना आयुक्त शैलेश गांधी के फैसले के बाद आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने की वजह से आप पर क्यों ना अधिकतम पेनल्टी लगाई जाए?
इस खबर से ऐसा लगा कि इस आदेश से उर्जित पटेल को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है जबकि, वास्तविकता यह है कि पूरी मोदी सरकार की कारपोरेट हितैषी नीतियों को बेनकाब किया गया है.
क्योंकि इसके साथ ही CIC प्रमुख श्रीरामलु ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), वित्त मंत्रालय और RBI से कहा है कि पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के द्वारा बैड लोन पर लिखे गए लेटर को सार्वजनिक किया जाए.
दरअसल कुछ दिनों पहले ही PMO ने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा एनपीए की सौंपी गयी सूची की जानकारी मांगने वाले एक आरटीआई आवेदन को ‘घुमंतू पूछताछ’ करार दिया था.
आवेदनकर्ता ने मात्र राजन द्वारा सौंपी गयी सूची, पीएमओ द्वारा इस सूची पर उठाये गये कदम और उस प्राधिकरण की जानकारी मांगी थी जिसे यह भेजे गये थे, PMO से यह पूछा गया कि एनपीए के बड़े घोटालेबाज़ों की सूची मिलने के बाद उन्होंने क्या कार्रवाई की?
लेकिन PMO ने यह भी बताने से मना कर दिया कि राजन ने यह सूची कब दी थी. प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि आवेदन के तहत पूछे गये सवाल आरटीआई अधिनियम के तहत परिभाषित ‘सूचना’ के दायरे में नहीं आते हैं. पीएमओ का मानना है कि ये सवाल एक तरीके की राय और स्पष्टीकरण है.
इस फैसले पर सवाल उठाते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने कहा थाकि पीएमओ का ये जवाब क़ानूनन नहीं है. उन्होंने कहा, ‘सूचना जिस भी रूप में मौजूद है उसी रूप में दी जानी चाहिए. ये जानकारी सूचना के दायरे में आती है कि रघुराम राजन द्वारा भेजी गई लिस्ट पर पीएमओ ने क्या कार्रवाई की. अगर जानकारी नहीं दी जाती है तो ये आरटीआई एक्ट का उल्लंघन है.’
लेकिन यकीन मानिए श्रीरामलु ने जो कहा वह कुछ भी नही है उसके बनिस्बत जो उन्होंने इस मामले की पिछली बार सुनवाई करते हुए कहा था............... उस वक्त सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्यलु ने कहा था कि 'छोटा-मोटा कर्ज लेने वाले किसानों तथा अन्य को बदनाम किया जाता है जबकि 50 करोड़ रुपए से अधिक कर्ज लेकर उसे सही समय पर नहीं लौटाने वालों को काफी अवसर दिए जाते हैं. साथ ही उनकी साख को बनाए रखने के लिए उनके नाम छिपाए जाते हैं'.
'1998 से 2018 के बीच 30 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की क्योंकि वे कर्ज नहीं लौटा पाने के कारण शर्मिंदगी झेल नहीं सके. आचार्युलु ने कहा, उन्होंने अपने खेतों पर जीवन बिताया और वहीं अपनी जान दे दी. लेकिन उन्होंने अपनी मातृभूमि नहीं छोड़ी. वहीं, दूसरी तरफ सात हजार धनवान, पढ़े-लिखे, शिक्षित उद्योगपति विलफुल डिफाल्टर बन देश को हजारों करोड़ रुपये का चूना लगाकर बच निकले.
दरअसल, विलफुल डिफाल्टर वह शख्स हैं जो बैंक से पैसा लेकर जानबूझ कर कर्ज नहीं चुकाता है. ऐसे लोग कई बार जिस काम के लिए बैंक से पैसा लेते हैं उस काम में नहीं लगाते हैं. कई बार ऐसे लोग फंड का डायवर्जन करते हैं और गलते तरीके से इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा कई बार ऐसे लोग जिस प्रॉपर्टी के बदले लोन लेते हैं उसे चुपचाप बेच देते हैं, जिससे बैंक कार्रवाई नहीं कर पाता है ओर सारा कर्ज NPA में बदल जाता है.
बड़े लोन डिफॉल्टर्स के नामों का खुलासा नहीं, CIC ने RBI गवर्नर को भेजा नोटिस
CIC ने कहा- जानबूझकर कर्ज न लौटाने वालों का ब्योरा हो सार्वजनिक
वर्ष 2018 तक बैंकों का कुल एनपीए 10 लाख 35 हजार 528 करोड़ रुपये था और बैंकों में पिछले चार वर्षो में 3 लाख 57 हजार 341 करोड़ की ऋण माफी कारोबारियों को दी है. जबकि 2008-09 से 2013-14 के छह वर्षो में 1 लाख 22 हजार 753 करोड़ के ऋण माफ किए गए थे अकेले एसबीआइ ने ही पिछले वर्ष 40 हजार 196 करोड़ रुपये की ऋण माफी कारोबारियों को दी है.
बैंकों द्वारा लाखों करोड़ की कर्ज माफी देने के बाद भी वित्त मंत्रालय द्वारा इसकी कोई भी जांच नहीं करवाई गई जबकि कानून के मुताबिक 50 करोड़ से उपर के एनपीए खाते की जांच होनी अनिवार्य थी. लेकिन बैंकों ने सरकार के इस कानून को दरकिनार कर अपने स्तर पर ही एनपीए खातों की सेटलमेंट आरंभ कर दी है. बहुत से खातों को मात्र 25 से 30 प्रतिशत लेकर ही छोड़ दिया गया जबकि वहां से 60 से 70 प्रतिशत की वसूली भी हो सकती थी.
सच्चाई तो यह है कि मोदीजी का PMO और वित्त मंत्रालय दरअसल एनपीए घोटालेबाज़ों की जानकारी छुपाने में जी जान से लगा हुआ है जिसमे अधिकतर उनके मित्र अडानी अम्बानी जैसे गुजराती उद्योगपति हैं और मोदी जी जनता के सामने 'न खाउंगा न खाने दूंगा' के जुमले उछालते पाए जाते हैं.
इस खबर से ऐसा लगा कि इस आदेश से उर्जित पटेल को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है जबकि, वास्तविकता यह है कि पूरी मोदी सरकार की कारपोरेट हितैषी नीतियों को बेनकाब किया गया है.
क्योंकि इसके साथ ही CIC प्रमुख श्रीरामलु ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), वित्त मंत्रालय और RBI से कहा है कि पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के द्वारा बैड लोन पर लिखे गए लेटर को सार्वजनिक किया जाए.
दरअसल कुछ दिनों पहले ही PMO ने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा एनपीए की सौंपी गयी सूची की जानकारी मांगने वाले एक आरटीआई आवेदन को ‘घुमंतू पूछताछ’ करार दिया था.
आवेदनकर्ता ने मात्र राजन द्वारा सौंपी गयी सूची, पीएमओ द्वारा इस सूची पर उठाये गये कदम और उस प्राधिकरण की जानकारी मांगी थी जिसे यह भेजे गये थे, PMO से यह पूछा गया कि एनपीए के बड़े घोटालेबाज़ों की सूची मिलने के बाद उन्होंने क्या कार्रवाई की?
लेकिन PMO ने यह भी बताने से मना कर दिया कि राजन ने यह सूची कब दी थी. प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि आवेदन के तहत पूछे गये सवाल आरटीआई अधिनियम के तहत परिभाषित ‘सूचना’ के दायरे में नहीं आते हैं. पीएमओ का मानना है कि ये सवाल एक तरीके की राय और स्पष्टीकरण है.
इस फैसले पर सवाल उठाते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने कहा थाकि पीएमओ का ये जवाब क़ानूनन नहीं है. उन्होंने कहा, ‘सूचना जिस भी रूप में मौजूद है उसी रूप में दी जानी चाहिए. ये जानकारी सूचना के दायरे में आती है कि रघुराम राजन द्वारा भेजी गई लिस्ट पर पीएमओ ने क्या कार्रवाई की. अगर जानकारी नहीं दी जाती है तो ये आरटीआई एक्ट का उल्लंघन है.’
लेकिन यकीन मानिए श्रीरामलु ने जो कहा वह कुछ भी नही है उसके बनिस्बत जो उन्होंने इस मामले की पिछली बार सुनवाई करते हुए कहा था............... उस वक्त सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्यलु ने कहा था कि 'छोटा-मोटा कर्ज लेने वाले किसानों तथा अन्य को बदनाम किया जाता है जबकि 50 करोड़ रुपए से अधिक कर्ज लेकर उसे सही समय पर नहीं लौटाने वालों को काफी अवसर दिए जाते हैं. साथ ही उनकी साख को बनाए रखने के लिए उनके नाम छिपाए जाते हैं'.
'1998 से 2018 के बीच 30 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की क्योंकि वे कर्ज नहीं लौटा पाने के कारण शर्मिंदगी झेल नहीं सके. आचार्युलु ने कहा, उन्होंने अपने खेतों पर जीवन बिताया और वहीं अपनी जान दे दी. लेकिन उन्होंने अपनी मातृभूमि नहीं छोड़ी. वहीं, दूसरी तरफ सात हजार धनवान, पढ़े-लिखे, शिक्षित उद्योगपति विलफुल डिफाल्टर बन देश को हजारों करोड़ रुपये का चूना लगाकर बच निकले.
दरअसल, विलफुल डिफाल्टर वह शख्स हैं जो बैंक से पैसा लेकर जानबूझ कर कर्ज नहीं चुकाता है. ऐसे लोग कई बार जिस काम के लिए बैंक से पैसा लेते हैं उस काम में नहीं लगाते हैं. कई बार ऐसे लोग फंड का डायवर्जन करते हैं और गलते तरीके से इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा कई बार ऐसे लोग जिस प्रॉपर्टी के बदले लोन लेते हैं उसे चुपचाप बेच देते हैं, जिससे बैंक कार्रवाई नहीं कर पाता है ओर सारा कर्ज NPA में बदल जाता है.
बड़े लोन डिफॉल्टर्स के नामों का खुलासा नहीं, CIC ने RBI गवर्नर को भेजा नोटिस
CIC ने कहा- जानबूझकर कर्ज न लौटाने वालों का ब्योरा हो सार्वजनिक
वर्ष 2018 तक बैंकों का कुल एनपीए 10 लाख 35 हजार 528 करोड़ रुपये था और बैंकों में पिछले चार वर्षो में 3 लाख 57 हजार 341 करोड़ की ऋण माफी कारोबारियों को दी है. जबकि 2008-09 से 2013-14 के छह वर्षो में 1 लाख 22 हजार 753 करोड़ के ऋण माफ किए गए थे अकेले एसबीआइ ने ही पिछले वर्ष 40 हजार 196 करोड़ रुपये की ऋण माफी कारोबारियों को दी है.
बैंकों द्वारा लाखों करोड़ की कर्ज माफी देने के बाद भी वित्त मंत्रालय द्वारा इसकी कोई भी जांच नहीं करवाई गई जबकि कानून के मुताबिक 50 करोड़ से उपर के एनपीए खाते की जांच होनी अनिवार्य थी. लेकिन बैंकों ने सरकार के इस कानून को दरकिनार कर अपने स्तर पर ही एनपीए खातों की सेटलमेंट आरंभ कर दी है. बहुत से खातों को मात्र 25 से 30 प्रतिशत लेकर ही छोड़ दिया गया जबकि वहां से 60 से 70 प्रतिशत की वसूली भी हो सकती थी.
सच्चाई तो यह है कि मोदीजी का PMO और वित्त मंत्रालय दरअसल एनपीए घोटालेबाज़ों की जानकारी छुपाने में जी जान से लगा हुआ है जिसमे अधिकतर उनके मित्र अडानी अम्बानी जैसे गुजराती उद्योगपति हैं और मोदी जी जनता के सामने 'न खाउंगा न खाने दूंगा' के जुमले उछालते पाए जाते हैं.