पहले सीबीआई, अब आरबीआई डिप्टी गवर्नर की चेतावनी को क्या समझे...?
आलोक वर्मा ने साफ तौर पर बोल ही दिया कि सरकार हस्तक्षेप करती थी. अब, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य कह रहे है कि बाज़ार सरकार को प्रभावित कर सकता है लेकिन वह केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता को कम नहीं कर सकता और अगर आरबीआई के कामकाज में बहुत अधिक दख़ल दी गई तो इसका असर बाज़ार और देश के आर्थिक हालात पर पड़ेगा.
तो क्या सरकर आरबीआई की स्वायत्तता को कमजोर कर रही थी? जाहिर है, कर रही होगी तभी तो आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ऐसा बोलने को मजबूर हुए. वैसे भी, मोदी जी ने नोटबंदी से पहले आरबीआई गवर्नर की सलाह ली थी या नहीं और ली भी थी तो क्या सलाह मिली थी, इसकी कोई पुख्ता जानकारी अब तक देश के सामने नहीं है. वर्ना, संसदीय समिति के समक्ष आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल की बोलती बंद नहीं हुई होती.
तो सीबीआई, आरबीआई से तो आवाज आ गई. वहां बैठे अधिकारियों ने तो जता दिया कि ये सरकार भी संवैधानिक संस्थाओँ की स्वायत्ता को कोई महत्व नहीं देती. सुप्रीम कोर्ट का प्रकरण तो सबके सामने आ ही चुका है, कैग को वित्त मंत्री अरूण जेटली धमकीनुमा सलाह दे ही चुके है कि कैग को अपनी सोच बदलने की जरूरत है. चुनाव आयोग के एबात ही क्या की जाए. हो सकता है, चुनाव आते-आते इन संस्थानों से भी आवजें आनी शुरू हो जाए!
तो क्या अब भी मैं ये न मानू कि संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग और उसे गुजरात मॉडल के तर्ज पर ढालने की कोशिश मौजूदा भाजपा सरकार नहीं कर रही है? आप मत मानिए. मैं खुली आंखों से इतना कुछ देखने के बाद तो यही मानूंगा कि मोदी-शाह जोडी देश को भी उस गुजरात की तर्ज पर ढालने की कोशिश कर रहे थे, जहां सिर्फ दंगे के आरोप में दर्जन भर से अधिक आईएएस/आईपीएस अधिकारी जेल गए या अरोपित हुए, लेकिन अपने आकाओं पर आंच तक न आने दी.
लेकिन, जनाब ये भारत है, भारत. गुजरात, जिसका एक बहुत ही छोटा हिस्सा है. 100 विधायकों को आपने हैंडल किया होगा. आपने उन डीएम/एसपी को आपने हैंडल किया होगा जो प्रमोशन पाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व की गणेश परिक्रमा करना अपना धर्म समझते है. उन्हीं में से कुछ लोगों को गुजरात से अपने साथ दिल्ली ला कर आपने सोचा होगा कि जैसे गुजरात को चलाया, वैसे ही देश चला लेंगे. लेकिन, जनाब, ये वो देश है, जहां कोस-कोस पर वाणी, चार कोस पर पानी बदल जाता है.
यहां कब कोई टी एन शेषण अपनी गुफा से निकल आए, पता नहीं चलता. यहां अधिकारियों की खामोशी उनकी कमजोरी नहीं, रणनीति का हिसा होता है. आने दो मौका, करारा जवाब देंगे. यही सोच कर 4 साल से अधिकारी खामोश थे. तय मानिए, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जएगा, आपके खिलाफ आवाजें बढती जाएंगी. उन आवाजों की संख्य भी बढेगी और तीव्रता भी. अभी तो आलोक वर्मा रिटायर होने के बाद क्या-क्या खुलासे करेंगेा, इसकी कल्पना भी नहीं की होंगी आपने.
मैं समझता हूं कि आप ये समझ रहे है कि 4 साल पहले की स्थिति कितनी तेजी से आपके हाथ से फिसलती जा रही है. वर्ना, जिस नीतीश कुमार को आपने लालू यादव का साथ छोडने पर मजबूर कर दिया था, आज चुनाव से 6 महीने पहले ही आपसे ये घोषणा करवा लेता है कि भाजपा-जदयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लडेंगी. अभी तो कुशवाहा, राम बिलास, मायावती को मनाना बाकी है. यूपी में राजभर शायद इस्तीफा देने जा रहे है. देखते है, आगे क्या होता है?
लेकिन, एक बात अब साफ है. पिछले साढे चार साल में आपने इस देश को कम से कम 20 साल पीछे धकेल दिया है. आर्थिक तौर पर भी, सामाजिक तौर पर भी. संवैधानिक संस्थाओं को जो नुकसान आपने पहुंचाया है, वह दीर्घकालिक प्रभाव डालता रहेगा. सीबीआई की साख को वापस पटरी पर लौटने में जाने कितने साल लगेंगे. अब तो मैं नौकरी, बेरोजगारी, कमाई, पढाई, दवाई की बात भी नहीं करता न ही आपसे अपेक्षा करता हूं. उस मोर्चे पर तो आप कुछ कर ही नहीं सकते है, इतना आपने साबित कर दिया है.
आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष कहते है कि हम अगले 50 साल सत्ता में रहेंगे. आपके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार फरमाते है कि देश को अगले 10 साल तक कडे निर्णय लेने वाली सरकार (यानी मोदी जी) चाहिए.
"सत्ता में बने रहने की चाहत तो ठीक है. लेकिन, वह चाहत जब उन्माद में बदल जाए तो नुकसान सिर्फ देश को होता है. जो हो रहा है."
आलोक वर्मा ने साफ तौर पर बोल ही दिया कि सरकार हस्तक्षेप करती थी. अब, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य कह रहे है कि बाज़ार सरकार को प्रभावित कर सकता है लेकिन वह केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता को कम नहीं कर सकता और अगर आरबीआई के कामकाज में बहुत अधिक दख़ल दी गई तो इसका असर बाज़ार और देश के आर्थिक हालात पर पड़ेगा.
तो क्या सरकर आरबीआई की स्वायत्तता को कमजोर कर रही थी? जाहिर है, कर रही होगी तभी तो आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ऐसा बोलने को मजबूर हुए. वैसे भी, मोदी जी ने नोटबंदी से पहले आरबीआई गवर्नर की सलाह ली थी या नहीं और ली भी थी तो क्या सलाह मिली थी, इसकी कोई पुख्ता जानकारी अब तक देश के सामने नहीं है. वर्ना, संसदीय समिति के समक्ष आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल की बोलती बंद नहीं हुई होती.
तो सीबीआई, आरबीआई से तो आवाज आ गई. वहां बैठे अधिकारियों ने तो जता दिया कि ये सरकार भी संवैधानिक संस्थाओँ की स्वायत्ता को कोई महत्व नहीं देती. सुप्रीम कोर्ट का प्रकरण तो सबके सामने आ ही चुका है, कैग को वित्त मंत्री अरूण जेटली धमकीनुमा सलाह दे ही चुके है कि कैग को अपनी सोच बदलने की जरूरत है. चुनाव आयोग के एबात ही क्या की जाए. हो सकता है, चुनाव आते-आते इन संस्थानों से भी आवजें आनी शुरू हो जाए!
तो क्या अब भी मैं ये न मानू कि संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग और उसे गुजरात मॉडल के तर्ज पर ढालने की कोशिश मौजूदा भाजपा सरकार नहीं कर रही है? आप मत मानिए. मैं खुली आंखों से इतना कुछ देखने के बाद तो यही मानूंगा कि मोदी-शाह जोडी देश को भी उस गुजरात की तर्ज पर ढालने की कोशिश कर रहे थे, जहां सिर्फ दंगे के आरोप में दर्जन भर से अधिक आईएएस/आईपीएस अधिकारी जेल गए या अरोपित हुए, लेकिन अपने आकाओं पर आंच तक न आने दी.
लेकिन, जनाब ये भारत है, भारत. गुजरात, जिसका एक बहुत ही छोटा हिस्सा है. 100 विधायकों को आपने हैंडल किया होगा. आपने उन डीएम/एसपी को आपने हैंडल किया होगा जो प्रमोशन पाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व की गणेश परिक्रमा करना अपना धर्म समझते है. उन्हीं में से कुछ लोगों को गुजरात से अपने साथ दिल्ली ला कर आपने सोचा होगा कि जैसे गुजरात को चलाया, वैसे ही देश चला लेंगे. लेकिन, जनाब, ये वो देश है, जहां कोस-कोस पर वाणी, चार कोस पर पानी बदल जाता है.
यहां कब कोई टी एन शेषण अपनी गुफा से निकल आए, पता नहीं चलता. यहां अधिकारियों की खामोशी उनकी कमजोरी नहीं, रणनीति का हिसा होता है. आने दो मौका, करारा जवाब देंगे. यही सोच कर 4 साल से अधिकारी खामोश थे. तय मानिए, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जएगा, आपके खिलाफ आवाजें बढती जाएंगी. उन आवाजों की संख्य भी बढेगी और तीव्रता भी. अभी तो आलोक वर्मा रिटायर होने के बाद क्या-क्या खुलासे करेंगेा, इसकी कल्पना भी नहीं की होंगी आपने.
मैं समझता हूं कि आप ये समझ रहे है कि 4 साल पहले की स्थिति कितनी तेजी से आपके हाथ से फिसलती जा रही है. वर्ना, जिस नीतीश कुमार को आपने लालू यादव का साथ छोडने पर मजबूर कर दिया था, आज चुनाव से 6 महीने पहले ही आपसे ये घोषणा करवा लेता है कि भाजपा-जदयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लडेंगी. अभी तो कुशवाहा, राम बिलास, मायावती को मनाना बाकी है. यूपी में राजभर शायद इस्तीफा देने जा रहे है. देखते है, आगे क्या होता है?
लेकिन, एक बात अब साफ है. पिछले साढे चार साल में आपने इस देश को कम से कम 20 साल पीछे धकेल दिया है. आर्थिक तौर पर भी, सामाजिक तौर पर भी. संवैधानिक संस्थाओं को जो नुकसान आपने पहुंचाया है, वह दीर्घकालिक प्रभाव डालता रहेगा. सीबीआई की साख को वापस पटरी पर लौटने में जाने कितने साल लगेंगे. अब तो मैं नौकरी, बेरोजगारी, कमाई, पढाई, दवाई की बात भी नहीं करता न ही आपसे अपेक्षा करता हूं. उस मोर्चे पर तो आप कुछ कर ही नहीं सकते है, इतना आपने साबित कर दिया है.
आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष कहते है कि हम अगले 50 साल सत्ता में रहेंगे. आपके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार फरमाते है कि देश को अगले 10 साल तक कडे निर्णय लेने वाली सरकार (यानी मोदी जी) चाहिए.
"सत्ता में बने रहने की चाहत तो ठीक है. लेकिन, वह चाहत जब उन्माद में बदल जाए तो नुकसान सिर्फ देश को होता है. जो हो रहा है."