मध्यप्रदेश में हत्या, बलात्कार, अपहरण की ही घटनाएं सबसे ज्यादा नहीं हो रही हैं, बल्कि और भी कई तरह के अमानवीय व्यवहार इस राज्य में हो रहे हैं जिन्हें देखकर कोई भी सभ्य समाज शर्मा जाए।
देश में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 लागू होने के बाद भी मध्यप्रदेश के ग्वालियर और आसपास के इलाकों में जंजीरों से जकड़े बेसहारा मानसिक रोगी मिल जाएंगे जिनसे लोग बंधुआ मजदूरी कराते हैं।
शिवराज सिंह चौहान के विकास की ये एक और तस्वीर है लेकिन वो दावा करते हैं कि मध्यप्रदेश अब बीमारू राज्य नहीं रहा। शायद उनका कहना सही भी है और प्रदेश अब बीमारू नहीं विक्षिप्त प्रदेश बनता जा रहा है।
पिछले कुछ सालों में इस इलाके में मानसिक रोगियों को बंधुआ मजदूर बनाकर काम कराने का चलन खासा बढ़ गया है। लावारिस मानसिक रोगियों को या तो पकड़कर यहां लाया जाता है या इनको कोई बेच जाता है जिसके बाद इन्हें यहां जमींदार परिवार जंजीरों में जकड़ देते हैं और बंधुआ मजदूरी कराते रहते हैं।
ये लोग अपनी मानसिक स्थिति के कारण किसी से न अपना दर्द कह पाते हैं और न ही कोई इनकी सुनता है। बंधुआ मजदूरी के लिए लाए गए मानसिक रोगियों में जवान और शारीरिक श्रम करने वालों की डिमांड ज्यादा है। इनसे जानवरों की तरह काम कराया जाता है, और खाने के लिए बस इतना दिया जाता है कि वो किसी तरह से जिंदा रह सकें। इन लोगों के मरने के बाद भी क्या होता है, किसी को कानो-कान खबर नहीं हो पाती।
ये लोग अपने साथ हो रहे अत्याचार का विरोध करने लायक भी नहीं होते और पिटाई तथा भूख के डर से इनसे जो कहा जाता है, करने पर मजबूर रहते हैं।
नईदुनिया की रिपोर्ट के मुताबिक हाईवे से सटे शीतला रोड स्थित नौगांव और बांस बडेरा, डबरा रोड पर लखनौती, अडपुरा से पहले तुरारी गांव, मुरार क्षेत्र में अलापुर, रमौआ, पिपरौली, पुरासानी और तिलैथा गांव ,बानमौर क्षेत्र में चौकोटी गांव सहित ऐसे दर्जनों गावों में ऐसे ही मानसिक रोगी बंधुआ बने काम करते दिखते हैं।
देश में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 लागू होने के बाद भी मध्यप्रदेश के ग्वालियर और आसपास के इलाकों में जंजीरों से जकड़े बेसहारा मानसिक रोगी मिल जाएंगे जिनसे लोग बंधुआ मजदूरी कराते हैं।
शिवराज सिंह चौहान के विकास की ये एक और तस्वीर है लेकिन वो दावा करते हैं कि मध्यप्रदेश अब बीमारू राज्य नहीं रहा। शायद उनका कहना सही भी है और प्रदेश अब बीमारू नहीं विक्षिप्त प्रदेश बनता जा रहा है।
पिछले कुछ सालों में इस इलाके में मानसिक रोगियों को बंधुआ मजदूर बनाकर काम कराने का चलन खासा बढ़ गया है। लावारिस मानसिक रोगियों को या तो पकड़कर यहां लाया जाता है या इनको कोई बेच जाता है जिसके बाद इन्हें यहां जमींदार परिवार जंजीरों में जकड़ देते हैं और बंधुआ मजदूरी कराते रहते हैं।
ये लोग अपनी मानसिक स्थिति के कारण किसी से न अपना दर्द कह पाते हैं और न ही कोई इनकी सुनता है। बंधुआ मजदूरी के लिए लाए गए मानसिक रोगियों में जवान और शारीरिक श्रम करने वालों की डिमांड ज्यादा है। इनसे जानवरों की तरह काम कराया जाता है, और खाने के लिए बस इतना दिया जाता है कि वो किसी तरह से जिंदा रह सकें। इन लोगों के मरने के बाद भी क्या होता है, किसी को कानो-कान खबर नहीं हो पाती।
ये लोग अपने साथ हो रहे अत्याचार का विरोध करने लायक भी नहीं होते और पिटाई तथा भूख के डर से इनसे जो कहा जाता है, करने पर मजबूर रहते हैं।
नईदुनिया की रिपोर्ट के मुताबिक हाईवे से सटे शीतला रोड स्थित नौगांव और बांस बडेरा, डबरा रोड पर लखनौती, अडपुरा से पहले तुरारी गांव, मुरार क्षेत्र में अलापुर, रमौआ, पिपरौली, पुरासानी और तिलैथा गांव ,बानमौर क्षेत्र में चौकोटी गांव सहित ऐसे दर्जनों गावों में ऐसे ही मानसिक रोगी बंधुआ बने काम करते दिखते हैं।