2019 भारत की अर्थव्यवस्था में तबाही के साल के रूप में याद रखा जाएगा. 2014 में कहा जाता था कि भारत 2019 तक तो विश्वगुरु बन जाएगा विश्वगुरू तो बहुत दूर की बात है. कैसे भी कर के भारत की अर्थव्यवस्था इस बर्बादी के दौर से ठीक ठाक निकल जाए तो इसी बात का शुक्र मना लीजिएगा.
IL & FS के डूबने पर कम से कम अब तो लोगों का ध्यान जा रहा है. कल शाम को कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की है. IL & FS का धराशायी हो जाना इस दौर का एक सिग्नेफिकेन्ट बिंदु है. यह मेल्टिंग पॉइंट जैसा हैं. जैसे हाथी के पाँव में सबके पाँव आ जाते हैं. ऐसे ही उसके दीवालिया हो जाने पर उससे जुड़ी निजी कंपनियों को कर्ज नही चुकाने के एक बहाना मिल जाएगा, ओर फिर जो सिलसिला शुरू होगा वो रुकने वाला नही है.
कल एक बेहद महत्वपूर्ण खबर आयी लेकिन उसे हेडलाइन बनाने की हिम्मत किसी भी मीडिया ग्रुप की नही हुई वह खबर नही थी वह देश की इस बिगड़ती हुई अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा संकेत था कल की खबर हैं कि ,'चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में कैड बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.4 प्रतिशत पर पहुंच गया हैं'.
जब किसी देश की वस्तु और सेवाओं का आयात मूल्य उसके वस्तु और सेवाओं के निर्यात मूल्य से ज्यादा हो जाता है तो उसे चालू खाते में घाटा (CAD) कहते हैं. इसकी गणना सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के फीसदी में की जाती है.
2016-17 में यह मात्र 0.6 प्रतिशत था 2017-18 में बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.9 प्रतिशत हो गया.
चालू वित्त वर्ष में इसके 2.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था लेकिन सिर्फ 5 महीने में यह घाटा जीडीपी का 2.4 प्रतिशत हो जाना यह बताता है कि स्थिति तेजी से बद से बदतर की ओर जा रही है.
मोदी सरकार ने इसीलिए स्थिति की गंभीरता को समझते हुए जेट ईंधन, एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर सहित कुल 19 वस्तुओं पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी हैं लेकिन यह बहुत देरी से उठाया गया क़दम है.
तीन ओर ऐसे तथ्य है को इस बढ़ते हुए चालू खाते के घाटे की समस्या को गहरा कर रहे हैं.
( 1 ) देश का राजकोषीय घाटा सिर्फ 5 महीने में ही 5.91 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो कि पूरे वर्ष की अवधि का 94.7 फीसद हैं.
( 2 ) इसी अवधि में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 11.3 अरब डॉलर घटा है, जबकि पिछले साल विदेशी मुद्रा भंडार 11.4 अरब डॉलर बढ़ा था. विदेशी संस्थागत निवेशकों ने करीब आठ अरब डॉलर की राशि निकाली है.
( 3 ) साल 2018 की शुरुआत से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में 13 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है. सिर्फ जून से सितंबर के दौरान ही रुपये में 7 फीसदी की भारी गिरावट आ चुकी हैं.
इन तीनो तथ्यों को बढ़ते बेतहाशा बढ़ते हुए चालू खाते के घाटे साथ मे रखकर देखिए आपको देश के बिगड़ते हुए आर्थिक स्वास्थ्य की स्वयं ही चिंता होने लगेगी.
IL & FS के डूबने पर कम से कम अब तो लोगों का ध्यान जा रहा है. कल शाम को कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की है. IL & FS का धराशायी हो जाना इस दौर का एक सिग्नेफिकेन्ट बिंदु है. यह मेल्टिंग पॉइंट जैसा हैं. जैसे हाथी के पाँव में सबके पाँव आ जाते हैं. ऐसे ही उसके दीवालिया हो जाने पर उससे जुड़ी निजी कंपनियों को कर्ज नही चुकाने के एक बहाना मिल जाएगा, ओर फिर जो सिलसिला शुरू होगा वो रुकने वाला नही है.
कल एक बेहद महत्वपूर्ण खबर आयी लेकिन उसे हेडलाइन बनाने की हिम्मत किसी भी मीडिया ग्रुप की नही हुई वह खबर नही थी वह देश की इस बिगड़ती हुई अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा संकेत था कल की खबर हैं कि ,'चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में कैड बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.4 प्रतिशत पर पहुंच गया हैं'.
जब किसी देश की वस्तु और सेवाओं का आयात मूल्य उसके वस्तु और सेवाओं के निर्यात मूल्य से ज्यादा हो जाता है तो उसे चालू खाते में घाटा (CAD) कहते हैं. इसकी गणना सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के फीसदी में की जाती है.
2016-17 में यह मात्र 0.6 प्रतिशत था 2017-18 में बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.9 प्रतिशत हो गया.
चालू वित्त वर्ष में इसके 2.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था लेकिन सिर्फ 5 महीने में यह घाटा जीडीपी का 2.4 प्रतिशत हो जाना यह बताता है कि स्थिति तेजी से बद से बदतर की ओर जा रही है.
मोदी सरकार ने इसीलिए स्थिति की गंभीरता को समझते हुए जेट ईंधन, एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर सहित कुल 19 वस्तुओं पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी हैं लेकिन यह बहुत देरी से उठाया गया क़दम है.
तीन ओर ऐसे तथ्य है को इस बढ़ते हुए चालू खाते के घाटे की समस्या को गहरा कर रहे हैं.
( 1 ) देश का राजकोषीय घाटा सिर्फ 5 महीने में ही 5.91 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो कि पूरे वर्ष की अवधि का 94.7 फीसद हैं.
( 2 ) इसी अवधि में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 11.3 अरब डॉलर घटा है, जबकि पिछले साल विदेशी मुद्रा भंडार 11.4 अरब डॉलर बढ़ा था. विदेशी संस्थागत निवेशकों ने करीब आठ अरब डॉलर की राशि निकाली है.
( 3 ) साल 2018 की शुरुआत से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में 13 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है. सिर्फ जून से सितंबर के दौरान ही रुपये में 7 फीसदी की भारी गिरावट आ चुकी हैं.
इन तीनो तथ्यों को बढ़ते बेतहाशा बढ़ते हुए चालू खाते के घाटे साथ मे रखकर देखिए आपको देश के बिगड़ते हुए आर्थिक स्वास्थ्य की स्वयं ही चिंता होने लगेगी.