करीब 14 लाख कर्मचारियो के पेंशन फंड ओर प्रोविडेंट फंड के पैसे डूबने की कगार पर है इन कर्मचारियों के रिटायरमेंट फंड्स को मैनेज करने वाले 50 से ज्यादा ट्रस्टों के पैसे IL&FS में फंसे हुए हैं, इनमें सिर्फ सरकारी अर्ध सरकारी ही नही, हिंदुस्तान यूनिलिवर और एशियन पेंट्स जैसी प्राइवेट कंपनियों के पीएफ फंड्स भी शामिल है।
इस बारे में पहले भी खबरे आई थी पर कोई खुल कर कुछ बोल नही रहा था, लेकिन अब यह कन्फर्म हो गया है क्योकि फंड को मैनेज करने वाले ट्रस्टों ने नैशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) में हस्तक्षेप याचिकाएं (इंटरवीनिंग पिटिशंस) दाखिल कर दी हैं।
इन ट्रस्टों ने पीएफ की यह रकम IL&FS में तब लगाई गई थी। जब IL&FS की हालत काफी सही थी और इसको सुरक्षित निवेश के लिए ट्रिपल ए AAA की रेटिंग मिली हुई थी दरअसल, रिटायरमेंट फंड्स की प्रकृति ही ऐसी है कि वह कम जोखिम उठाकर कम ब्याज दर से ही सही, लेकिन निश्चित रिटर्न पर जोर देते हैं।
लेकिन कुछ महीनों पहले पता चला कि IL&FS ग्रुप डूब रहा है रेग्युलेटरी फाइलिंग से पता चलता है कि IL&FS पर 91 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक का कर्ज है। इसका 61% बैंक लोन जबकि 33% से अधिक डिबेंचरों और कमर्शल पेपरों के जरिए लिए गए कर्ज हैं। सूत्र बता रहे हैं कि 'IL&FS ग्रुप का 40% कुल बॉन्ड्स प्रविडंट फंड्स के पास होने का अनुमान है।'
इसलिए रेजोल्यूशन प्रोसेस के तहत IL&FS ने अपनी ग्रुप कंपनियों को तीन वर्गों ग्रीन, ऐंबर और रेड में विभाजित कर दिया है। ग्रुप की कुल 302 कंपनियों में 169 भारतीय कंपनियां हैं। इनमें 22 ग्रीन, 10 ऐंबर और 38 कंपनियां रेड कैटिगरी में आती हैं जबकि शेष 99 भारतीय कंपनियों का वर्गीकरण करने के लिहाज से आकलन किया जा रहा है।
खास बात यह है कि सिर्फ ग्रीन कैटिगरी की कंपनियों को अपने सारे दायित्वों का निर्वहन करना होगा ऐंबर कैटिगरी की कंपनियां सिर्फ सिक्यॉर्ड क्रेडिटर्स के प्रति जिम्मेदार होंगी जबकि रेड कैटिगरी की कंपनियां अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर पाएंगी। ओर अगर सिर्फ सिक्यॉर्ड क्रेडिटर्स को ही पेमेंट मिलना है तो सिर्फ बैंकों को ही उनका बकाया मिल पाएगा जबकि असुरक्षित निवेश करने वालों के हाथ खाली रह जाएंगे ......दरअसल जिन बॉन्ड के तहत यह निवेश किया गया था वह असुरक्षित कर्ज के तहत ही आते हैं इसलिए यह समस्या बहुत गंभीर है किसी बड़े उद्योगपति का कुछ नही बिगड़ेगा बर्बाद सिर्फ आम आदमी ही होगा जिसका इस मामले से कुछ लेना देना नही है।
इस बारे में पहले भी खबरे आई थी पर कोई खुल कर कुछ बोल नही रहा था, लेकिन अब यह कन्फर्म हो गया है क्योकि फंड को मैनेज करने वाले ट्रस्टों ने नैशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) में हस्तक्षेप याचिकाएं (इंटरवीनिंग पिटिशंस) दाखिल कर दी हैं।
इन ट्रस्टों ने पीएफ की यह रकम IL&FS में तब लगाई गई थी। जब IL&FS की हालत काफी सही थी और इसको सुरक्षित निवेश के लिए ट्रिपल ए AAA की रेटिंग मिली हुई थी दरअसल, रिटायरमेंट फंड्स की प्रकृति ही ऐसी है कि वह कम जोखिम उठाकर कम ब्याज दर से ही सही, लेकिन निश्चित रिटर्न पर जोर देते हैं।
लेकिन कुछ महीनों पहले पता चला कि IL&FS ग्रुप डूब रहा है रेग्युलेटरी फाइलिंग से पता चलता है कि IL&FS पर 91 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक का कर्ज है। इसका 61% बैंक लोन जबकि 33% से अधिक डिबेंचरों और कमर्शल पेपरों के जरिए लिए गए कर्ज हैं। सूत्र बता रहे हैं कि 'IL&FS ग्रुप का 40% कुल बॉन्ड्स प्रविडंट फंड्स के पास होने का अनुमान है।'
इसलिए रेजोल्यूशन प्रोसेस के तहत IL&FS ने अपनी ग्रुप कंपनियों को तीन वर्गों ग्रीन, ऐंबर और रेड में विभाजित कर दिया है। ग्रुप की कुल 302 कंपनियों में 169 भारतीय कंपनियां हैं। इनमें 22 ग्रीन, 10 ऐंबर और 38 कंपनियां रेड कैटिगरी में आती हैं जबकि शेष 99 भारतीय कंपनियों का वर्गीकरण करने के लिहाज से आकलन किया जा रहा है।
खास बात यह है कि सिर्फ ग्रीन कैटिगरी की कंपनियों को अपने सारे दायित्वों का निर्वहन करना होगा ऐंबर कैटिगरी की कंपनियां सिर्फ सिक्यॉर्ड क्रेडिटर्स के प्रति जिम्मेदार होंगी जबकि रेड कैटिगरी की कंपनियां अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर पाएंगी। ओर अगर सिर्फ सिक्यॉर्ड क्रेडिटर्स को ही पेमेंट मिलना है तो सिर्फ बैंकों को ही उनका बकाया मिल पाएगा जबकि असुरक्षित निवेश करने वालों के हाथ खाली रह जाएंगे ......दरअसल जिन बॉन्ड के तहत यह निवेश किया गया था वह असुरक्षित कर्ज के तहत ही आते हैं इसलिए यह समस्या बहुत गंभीर है किसी बड़े उद्योगपति का कुछ नही बिगड़ेगा बर्बाद सिर्फ आम आदमी ही होगा जिसका इस मामले से कुछ लेना देना नही है।