राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में लगातार पांचवीं हार के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सदमे में है। एक दूसरे पर हार की जिम्मेदारी डाली जा रही है और कई पदाधिकारियों पर कार्रवाई करने की तैयारी है।
हार के लिए भाजपा सरकार और वसुंधरा राजे की लोकप्रियता में गिरावट के बजाय अन्य कारणों की खोज की जा रही है, जबकि राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव पिछले कई सालों से राज्य की राजनीति के अनुसार चलते आए हैं। ऐसे भी कहा जा सकता है कि इन छात्र संघ चुनावों में जो जीतता है, उसकी ही सरकार राजस्थान में बनती है।

(Courtesy: The Indian Express)
इस बार एबीवीपी की करारी हार हुई है जिसका मतलब यही है कि इस बार के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता से बाहर होने जा रही है। कांग्रेस के बागी उम्मीदवार ने कांग्रेस तथा एनएसयूआई के कई बड़े नेताओं के सहयोग से जीत हासिल की है, इसलिए इसे कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ने का संकेत माना जा रहा है।
एबीवीपी में हार के बहाने कुछ नेताओं के पर कतरने की साजिश चल रही है। फिलहाल पांच पदाधिकारियों की पहचान की गई है जिन्हें हार का जिम्मेदार माना जा रहा है। हालांकि, अगर एबीवीपी जीत जाती तो इसे नरेंद्र मोदी, अमित शाह और वसुंधरा राजे की लोकप्रियता के प्रतीक के तौर पर प्रचारित करने की तैयारी चल रही थी।
जानकारी मिली है कि एबीवीपी की अहम बैठक में इन पांचों नेताओं पर कार्रवाई पर सहमति बन गई है। इनमें अधिकतर नेता ओबीसी, एससी और एसटी के हैं जिन्हें हार के बहाने सवर्ण नेता हटा देना चाहते हैं।
एबीवीपी जिन नेताओ पर कार्रवाई करने जा रही है उनमें पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष पवन यादव, राजेश मीणा, पूर्व महानगर मंत्री सुनील खटीक, आशीष चोपड़ा और अखिलेश पारीक शामिल हैं। इन लोगों पर संगठन के प्रत्याशियों की मदद न करने और समानांतर पैनल उतारने का गंभीर आरोप लगा दिया गया है जिसके बाद आरएसएस और एबीवीपी की मंजूरी मिलने में कोई शक नहीं रह गया है।
हालांकि ये पांचों छात्रनेता चुनाव के दौरान पूरे समय प्रत्याशियों के साथ दिखाई दे रहे थे, लेकिन एबीवीपी ने इन पर कार्रवाई करने के लिए बुलाई बैठक में इनमें से किसी नेता को नहीं बुलाया।
हार के लिए भाजपा सरकार और वसुंधरा राजे की लोकप्रियता में गिरावट के बजाय अन्य कारणों की खोज की जा रही है, जबकि राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव पिछले कई सालों से राज्य की राजनीति के अनुसार चलते आए हैं। ऐसे भी कहा जा सकता है कि इन छात्र संघ चुनावों में जो जीतता है, उसकी ही सरकार राजस्थान में बनती है।

(Courtesy: The Indian Express)
इस बार एबीवीपी की करारी हार हुई है जिसका मतलब यही है कि इस बार के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता से बाहर होने जा रही है। कांग्रेस के बागी उम्मीदवार ने कांग्रेस तथा एनएसयूआई के कई बड़े नेताओं के सहयोग से जीत हासिल की है, इसलिए इसे कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ने का संकेत माना जा रहा है।
एबीवीपी में हार के बहाने कुछ नेताओं के पर कतरने की साजिश चल रही है। फिलहाल पांच पदाधिकारियों की पहचान की गई है जिन्हें हार का जिम्मेदार माना जा रहा है। हालांकि, अगर एबीवीपी जीत जाती तो इसे नरेंद्र मोदी, अमित शाह और वसुंधरा राजे की लोकप्रियता के प्रतीक के तौर पर प्रचारित करने की तैयारी चल रही थी।
जानकारी मिली है कि एबीवीपी की अहम बैठक में इन पांचों नेताओं पर कार्रवाई पर सहमति बन गई है। इनमें अधिकतर नेता ओबीसी, एससी और एसटी के हैं जिन्हें हार के बहाने सवर्ण नेता हटा देना चाहते हैं।
एबीवीपी जिन नेताओ पर कार्रवाई करने जा रही है उनमें पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष पवन यादव, राजेश मीणा, पूर्व महानगर मंत्री सुनील खटीक, आशीष चोपड़ा और अखिलेश पारीक शामिल हैं। इन लोगों पर संगठन के प्रत्याशियों की मदद न करने और समानांतर पैनल उतारने का गंभीर आरोप लगा दिया गया है जिसके बाद आरएसएस और एबीवीपी की मंजूरी मिलने में कोई शक नहीं रह गया है।
हालांकि ये पांचों छात्रनेता चुनाव के दौरान पूरे समय प्रत्याशियों के साथ दिखाई दे रहे थे, लेकिन एबीवीपी ने इन पर कार्रवाई करने के लिए बुलाई बैठक में इनमें से किसी नेता को नहीं बुलाया।