क्या गुर्जरों और राजपूतों को फिर भरमा पाएंगी वसुंधरा राजे

चुनाव नजदीक आते ही राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने फिर जातिगत समीकरणों को साधने की शुरुआत कर दी है। इसके लिए उन्होंने पद्मावत फिल्म के प्रदर्शन के विरोध में हिंसा करने पर राजपूतों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने और साथ ही, गुर्जरों को आरक्षण का लॉलीपॉप थमाने की कोशिश की है।

vasundhara raje

हालांकि, इन दोनों फैसलों का बड़ा उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 7 जुलाई की रैली को असफल बनाने से रोकना भी है क्योंकि गुर्जरों और राजपूतों, दोनों ने ऐलान किया था कि वे प्रधानमंत्री की रैली में विरोध-प्रदर्शन करेंगे।

वसुंधरा राजे के अब तक के कार्यकाल में राजपूत और गुर्जर दोनों समुदाय उनसे बेहद नाराज रहे हैं, और वसुंधरा ने भी दोनों की खास परवाह नहीं की। गुर्जरों को तो वसुंधरा ने जो आरक्षण का वादा बहुत पहले किया था, उसे ही कभी ढंग से पूरा नहीं किया।

वास्तव में दोनों समुदायों को नाराज करके वसुंधरा ने आरएसएस का एजेंडा पूरा किया है। आरक्षण के खिलाफ जनमानस तैयार करने के लिए वसुंधरा ने गुर्जरों को आरक्षण का वादा किया और वादा पूरा न होने पर गुर्जरों ने कई जगह तोड़फोड़ और रेल रोको आंदोलन किया। इससे गुर्जर समुदाय बाकी समुदायों से अलग-थलग हो गया और आरएसएस यही चाहता था।

गुर्जरों की आरक्षण की मांग से बाकी समुदायों में भी आरक्षण के विरोध की भावना बलवती हुई और इससे भी आरएसएस का एजेंडा पूरा हुआ। जिस तरह से हरियाणा में जाटों को आंदोलन के लिए मजबूर करके, बाकी किसान जातियों से उन्हें अलग-थलग किया गया, उसी तरह की रणनीति राजस्थान में गुर्जरों के साथ अपनाई गई।

अब चुनाव देख, वसुंधरा राजे ने अति पिछड़े गुर्जरों को 1 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया है, लेकिन लगता नहीं कि गुर्जर इतने में मान जाएंगे क्योंकि यही वसुंधरा गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का वादा करती रही हैं। वैसे इस एक प्रतिशत आरक्षण में गुर्जरों के साथ 4 अन्य जातियां भी शामिल हैं।

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, गुर्जर आरक्षण आंदोलन समिति का कहना है कि सरकार से बातचीत में 16 बिंदु तय हुए थे, लेकिन उन पर कोई प्रगति नहीं हुई। फिलहाल गुर्जरों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध न करने का फैसला किया है, लेकिन भाजपा से उनकी नाराजगी बनी हुई है और विधानसभा चुनावों तक खत्म होती नहीं दिखती।

इसी तरह से राजपूतों पर दर्ज मुकदमे वापस करके वसुंधरा राजे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में आने वाली बाधा दूर करने की कोशिश की है। हालांकि राजपूत समुदाय आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर से भी नाराज है।

अब वसुंधरा की दिक्कत ये भी है कि चुनावों के समय वह गुर्जरों और राजपूतों को खुश करने पर ज्यादा जोर देती हैं तो बाकी समुदाय उनसे नाराज हो सकते हैं। खुद पार्टी के अंदर भी वसुंधरा का समर्थन अब नहीं बचा है और वो राष्ट्रीय नेतृत्व की कमजोरी के कारण ही अपने को बचाए हैं।

पिछले चुनावों में वसुंधरा ऐन चुनाव के मौकों पर कई जातियों को भरमाने में सफल हो जाती रही हैं, लेकिन इस बार उनकी हार पक्की दिख रही है, इसलिए वो जातियां कांग्रेस से भी दूरी खत्म करना चाहती हैं, और केवल आश्वासनों के नाम पर भाजपा को समर्थन करने की भूल नहीं करना चाहती हैं। अब देखना है, वसुंधरा किस हद तक कामयाब हो पाती हैं।
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टीकाकार हैं)
 

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