मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों की बदइंतजामी इस कदर बदनाम हो चुकी है कि मां-बाप अपने बच्चों को किसी भी कीमत में सरकारी स्कूलों में पढ़ाने को तैयार नही है।
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प्रदेश में कई स्कूल ऐसे हैं जो बच्चों के अभाव में तकरीबन बंद से पड़े हैं जबकि उन्हीं के आसपास के निजी स्कूलों में बच्चों की भीड़ लगी रहती है।
राजधानी भोपाल के पास मंडीदीप में ही 9 ऐसे स्कूल हैं जिनमें शिक्षक 18 हैं और बच्चे केवल 62। शिक्षकों के वेतन, स्टेशनरी, बिजली समेत हर महीने करीब 18 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं, लेकिन अभिभावक इन स्कूलों पर यकीन करने को तैयार नहीं हो रहे हैं।
अभिभावक आर्थिक रूप से सक्षम न होते हुए भी किसी न किसी तरह से अपने बच्चों को निजी स्कूलों में ही भेज रहे हैं और इन स्कूलों में दस-दस बच्चे तक नहीं हैं, जबकि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत 35 बच्चों पर एक शिक्षक होने की बात कही गई है, लेकिन यहां उलटा ही हो रहा है।
दरअसल, सरकार सरकारी स्कूलों की बदहाली दूर करने के दावे ही करती रही और स्कूलों में किसी तरह का सुधार नहीं हुआ। स्कूलों की बदहाली दशकों की उपेक्षा का नतीजा है, लेकिन पहले निजी स्कूल कम होने के कारण सरकारी स्कूलों में बच्चे आते रहते थे, और अब जब निजी स्कूलों का विकल्प मौजूद है तो सरकारी स्कूलों में कोई पढ़ने को तैयार नहीं है।
पूरे हालात को इस तरह से बयान किया जा सकता है कि जब स्कूलों में बच्चे थे तो शिक्षक नहीं थे, और अब शिक्षक हैं तो बच्चे उनसे पढ़ने को तैयार नहीं है।
नईदुनिया की खबर के मुताबक मंडीदीप के प्राथमिक विद्यालय खोहा में 2 अध्यापक हैं तो उनसे पढ़ने के लिए आने वाले बच्चे भी केवल 2 ही हैं। पूरे जिले में करीब 65 स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की संख्या 2 से 9 के बीच है।
हालात ये है कि बच्चों को आकर्षित करने के लिए मिडडे मील, किताबें, गणवेश, साइकिल, बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक लाने पर लैपटॉप देने जैसी योजनाएं भी नाकाफी साबित हो रही हैं।
खबर के मुताबिक मंडीदीप ब्लॉक के 296 प्राथमिक और 108 माध्यमिक विद्यालयों में से पिछले साल 1250 बच्चे सरकारी स्कूल छोड़कर निजी स्कूलों में चले गए।
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प्रदेश में कई स्कूल ऐसे हैं जो बच्चों के अभाव में तकरीबन बंद से पड़े हैं जबकि उन्हीं के आसपास के निजी स्कूलों में बच्चों की भीड़ लगी रहती है।
राजधानी भोपाल के पास मंडीदीप में ही 9 ऐसे स्कूल हैं जिनमें शिक्षक 18 हैं और बच्चे केवल 62। शिक्षकों के वेतन, स्टेशनरी, बिजली समेत हर महीने करीब 18 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं, लेकिन अभिभावक इन स्कूलों पर यकीन करने को तैयार नहीं हो रहे हैं।
अभिभावक आर्थिक रूप से सक्षम न होते हुए भी किसी न किसी तरह से अपने बच्चों को निजी स्कूलों में ही भेज रहे हैं और इन स्कूलों में दस-दस बच्चे तक नहीं हैं, जबकि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत 35 बच्चों पर एक शिक्षक होने की बात कही गई है, लेकिन यहां उलटा ही हो रहा है।
दरअसल, सरकार सरकारी स्कूलों की बदहाली दूर करने के दावे ही करती रही और स्कूलों में किसी तरह का सुधार नहीं हुआ। स्कूलों की बदहाली दशकों की उपेक्षा का नतीजा है, लेकिन पहले निजी स्कूल कम होने के कारण सरकारी स्कूलों में बच्चे आते रहते थे, और अब जब निजी स्कूलों का विकल्प मौजूद है तो सरकारी स्कूलों में कोई पढ़ने को तैयार नहीं है।
पूरे हालात को इस तरह से बयान किया जा सकता है कि जब स्कूलों में बच्चे थे तो शिक्षक नहीं थे, और अब शिक्षक हैं तो बच्चे उनसे पढ़ने को तैयार नहीं है।
नईदुनिया की खबर के मुताबक मंडीदीप के प्राथमिक विद्यालय खोहा में 2 अध्यापक हैं तो उनसे पढ़ने के लिए आने वाले बच्चे भी केवल 2 ही हैं। पूरे जिले में करीब 65 स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की संख्या 2 से 9 के बीच है।
हालात ये है कि बच्चों को आकर्षित करने के लिए मिडडे मील, किताबें, गणवेश, साइकिल, बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक लाने पर लैपटॉप देने जैसी योजनाएं भी नाकाफी साबित हो रही हैं।
खबर के मुताबिक मंडीदीप ब्लॉक के 296 प्राथमिक और 108 माध्यमिक विद्यालयों में से पिछले साल 1250 बच्चे सरकारी स्कूल छोड़कर निजी स्कूलों में चले गए।