बहुत वक्त के बाद आज फिर रामचन्द्र जी का जम्बूद्वीप घूमने का मन हुआ। उन्होंने अपने मन का हाल भक्त हनुमान को कह सुनाया। राम बोले-हनुमान, सुना है धरती पर रामराज्य उतरा है। मन तो कर रहा है थोड़ा वहां घूम आएं।
हनुमान तो जैसे तैयार बैठे थे, कहा- प्रभु, जैसी आपकी इच्छा, आपकी आज्ञा हो तो हम अब ही जम्बूद्वीप की ओर हो आएं।
इन दोनों की बात सुन रहे लक्ष्मण ने भी जाने की इच्छा जताई। राम ने कहा- भ्राता, बिना तुम्हारे हम कैसे आगे बढ़ेंगे।
हनुमान दोनों को कंधे पर बिठाकर पृथ्वी लोक की तरफ उड़ पड़े। तमाम जंगलों को पार करते हुए वो उड़े जा रहे थे। राम ने नीचे दृष्टि घुमाई तो देखा कि इन वनों में उतनी सघनता नहीं है जितनी कि पहले हुआ करती थी। उन्होंने उत्सुकतावश हनुमान से पूछा- हनुमान, इन जंगलों को हो क्या गया है। न तो पेड़ो में उतनी मोटाई दिख रही है और न ही जंगल में घनापन बचा है। जहां हमेशा हरियाली नजर आती थी सब सूखा नजर आ रहा है। न तो पंक्षी दिखाई दे रहे हैं और न ही कोई जानवर। जो दिख रहे हैं सब कुपोषित नजर आ रहे हैं।
हनुमान ने कहा- प्रभु, मानव बड़ा विचित्र हो चला है। अपने उपयोग के लिए उसने जंगलों की भरपूर कटाई की। न तो नए जंगलों को पनपने दिया गया न ही अंधाधूंध कटाई को रोका गया।
राम ने चिंता प्रकट करते हुए कहा- फिर यहाँ रह रहे लोगों का जीवन प्रभावित नहीं हुआ ?
हनुमान बोले- प्रभु, आपकी चिंता जायज है। यहाँ के लोगों का जीवन बहुत ही प्रभावित हुआ है। इन जंगली क्षेत्रों में रह रहे लोग ज्यादातर मुख्य समाज से कटे हुए होते हैं। सरकार इनकी जमीन कार्पोरेट जगत को सौंप देती है। बड़ी-बड़ी कंपनियां यहां पर अपनी फैक्ट्रियां लगाती हैं। इन जंगलों की अपार संपदा का वे दोहन करती हैं।
राम ने फिर से पूछा- क्या यहां रह रहे लोग अपनी जमीनें सरकार को ऐसे ही दे देते हैं ?
हनुमान बोले- प्रभु, बड़ा विचित्र खेल है यह। अब आप ही बताइए, कोई आकर यदि आपसे कहे कि आप अयोध्या छोड़कर कहीं और चले जाइये तो आप क्या करेंगे ?
राम बोले- हनुमान, अयोध्या मेरी मातृ भूमि है। हम वहीं पैदा हुए बड़े हुए। अब भला कोई अपनी मातृभूमि छोड़कर और कहीं क्यों चला जायेगा ?
हनुमान गंभीर होते हुए कहने लगे- वही तो भगवन, ये लोग भी अपनी जमीनें छोड़कर नहीं जाते पर सत्ता की शक्ति और सेना के आगे ये मजबूर हो जाते हैं।
राम के मुख पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थीं। वे थोड़ा सोच में पड़ गए। लक्ष्मण बैठे उन दोनों की बातें अबतक सुन रहे थे। उनके मन मे भी कई तरह के सवाल गूंज रहे थे पर वे सही वक्त की प्रतीक्षा कर रहे थे। राम को शांत देख लक्ष्मण ने कहना शुरू किया- पर ये सरकार तो जनता की हितैषी होती है फिर ये इन गरीब आदिवासियों की जमीन कारपोरेट के हाथ सौंपती क्यों है ?
हनुमान ने कहा- सब वोट का खेल है भ्राता।
लक्ष्मण जटा खुजाते हुए कहने लगे- कुछ समझ नहीं आया कि ये वोटों का खेल क्या होता है?
हनुमान बोले- भ्राता लक्ष्मण, ये पोलिटिकल पार्टियां चुनाव में बहुत खर्च करती हैं। जनता को लुभाने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियां होती हैं, बड़े बड़े प्रोजेक्टर लगते हैं, ऊंचे-ऊंचे मंच से नेता लोग भाषण देते हैं। जो पार्टी चुनाव में जितना ज्यादा तामझाम करती है जम्बूद्वीप की जनता को लगता है कि ये उतनी ही अच्छी पार्टी है। और ऐसा करने वाली पार्टी जीत भी जाती है। अब इन सब चीजों को करने के लिए तो अकूत धन की आवश्यकता पड़ेगी न भ्राता!
लक्ष्मण ने हां में सिर हिला दिया और जिज्ञासावश पूछा- फिर ये खर्च आता कहाँ से है हनुमान ? क्या इन पार्टियों में शामिल लोग राजा महाराजा होते हैं ?
हनुमान ने मुस्कुराते हुए कहा- यही तो खेल है भ्राता, ये बड़ी बड़ी कंपनियां, कारपोरेट जगत इन पार्टियों को पैसे देती हैं। बदले में सरकार बनने के बाद इन जंगलों की अकूत संपदा की मांग करती हैं जो सरकार को मजबूरन देना पड़ता है।
"यदि कोई अपना घर अपनी जमीन छोड़कर हटना न चाहे तो ?" राम ने गंभीर होते हुए पूछा।
हनुमान बोले- फिर ये सरकार की जिम्मेदारी होती है। सरकार पुलिस फोर्स या मिलिट्री फोर्स भेजकर इन जमीनों को खाली करवा लेती है। यदि कोई नहीं जाता छोड़कर तो उसे इतनी यातनाएं दी जाती हैं कि वह मजबूर हो जाता है। कभी कभी घरों को आग लगा दिया जाता है। न जाने कितने तरह का शोषण इन जंगलों को खाली कराने के लिए किया जाता था।
लक्ष्मण गुस्साते हुए कहने लगे- तो क्या यहां के लोगों में इतनी शक्ति नहीं है कि वे सरकार से भिड़ जाएं। अपनी मान-मर्यादा के लिए, अपनी मातृभूमि के लिए हथियार तो उठाया जा सकता है ?
हनुमान ने कहा- शांत हो जाइये वीर, मजबूत सरकार के आगे इन सब की क्या बिसात ! कभी बगावत के सुर उठते भी हैं तो सरकार इन्हें नक्सली कहकर जेल में ठूस देती है।
राम ने चिंता जाहिर करते हुए कहा- खत्म होते पेड़ों, जंगलों से तो सिर्फ जंगल मे रहने वाले लोग ही नहीं पृथ्वी के अन्य लोग और जीव भी तो प्रभावित होंगे !
हनुमान ने राम की चिंता का हाँ में सिर हिला के समर्थन किया।
राम बोले- फिर क्या यहां के पढ़े लिखे लोग , भू वैज्ञानिक ये सब जंगल खत्म होने से मानव जीवन के नष्ट हो जाने की बात सरकार को नहीं बताते ?
हनुमान बोले- बताते तो हैं प्रभु, और सरकार सक्रिय भी हो जाती है। बहुत सारे पेड़ लगाए जाते हैं। पर ये वही पेड़ होते हैं जो बहुत पानी खींचते हैं और जल्दी से तैयार हो जाते हैं। जिनका उपयोग कारपोरेट जगत खूब करता है।
राम ने अपना माथा पीट लिया। हनुमान से कहने लगे- हनुमान, नीचे नदी नजर आ रही है। चलो कुछ जल ग्रहण कर लिया जाए।
राम की बात सुनकर हनुमान नीचे की तरफ उड़ चले। नदी किनारे उतरकर राम ने नदी की तरफ देखा। फेना से बजबजाते काले मटमैले पानी को देखकर राम कहने लगे- हनुमान, लगता है हम किसी नाले के पास आ गए हैं।
हनुमान ने चिंता भरे स्वर में कहा- प्रभु आये तो हम सही हैं पर ये नदी भी कलयुगी रामराज्य का शिकार हो चली है।
ये सब देखकर सुनकर राम का मन व्यथित हुआ और उन्होंने हनुमान को जहां से आये थे उसी तरफ चलाने का इशारा कर दिया।
हनुमान तो जैसे तैयार बैठे थे, कहा- प्रभु, जैसी आपकी इच्छा, आपकी आज्ञा हो तो हम अब ही जम्बूद्वीप की ओर हो आएं।
इन दोनों की बात सुन रहे लक्ष्मण ने भी जाने की इच्छा जताई। राम ने कहा- भ्राता, बिना तुम्हारे हम कैसे आगे बढ़ेंगे।
हनुमान दोनों को कंधे पर बिठाकर पृथ्वी लोक की तरफ उड़ पड़े। तमाम जंगलों को पार करते हुए वो उड़े जा रहे थे। राम ने नीचे दृष्टि घुमाई तो देखा कि इन वनों में उतनी सघनता नहीं है जितनी कि पहले हुआ करती थी। उन्होंने उत्सुकतावश हनुमान से पूछा- हनुमान, इन जंगलों को हो क्या गया है। न तो पेड़ो में उतनी मोटाई दिख रही है और न ही जंगल में घनापन बचा है। जहां हमेशा हरियाली नजर आती थी सब सूखा नजर आ रहा है। न तो पंक्षी दिखाई दे रहे हैं और न ही कोई जानवर। जो दिख रहे हैं सब कुपोषित नजर आ रहे हैं।
हनुमान ने कहा- प्रभु, मानव बड़ा विचित्र हो चला है। अपने उपयोग के लिए उसने जंगलों की भरपूर कटाई की। न तो नए जंगलों को पनपने दिया गया न ही अंधाधूंध कटाई को रोका गया।
राम ने चिंता प्रकट करते हुए कहा- फिर यहाँ रह रहे लोगों का जीवन प्रभावित नहीं हुआ ?
हनुमान बोले- प्रभु, आपकी चिंता जायज है। यहाँ के लोगों का जीवन बहुत ही प्रभावित हुआ है। इन जंगली क्षेत्रों में रह रहे लोग ज्यादातर मुख्य समाज से कटे हुए होते हैं। सरकार इनकी जमीन कार्पोरेट जगत को सौंप देती है। बड़ी-बड़ी कंपनियां यहां पर अपनी फैक्ट्रियां लगाती हैं। इन जंगलों की अपार संपदा का वे दोहन करती हैं।
राम ने फिर से पूछा- क्या यहां रह रहे लोग अपनी जमीनें सरकार को ऐसे ही दे देते हैं ?
हनुमान बोले- प्रभु, बड़ा विचित्र खेल है यह। अब आप ही बताइए, कोई आकर यदि आपसे कहे कि आप अयोध्या छोड़कर कहीं और चले जाइये तो आप क्या करेंगे ?
राम बोले- हनुमान, अयोध्या मेरी मातृ भूमि है। हम वहीं पैदा हुए बड़े हुए। अब भला कोई अपनी मातृभूमि छोड़कर और कहीं क्यों चला जायेगा ?
हनुमान गंभीर होते हुए कहने लगे- वही तो भगवन, ये लोग भी अपनी जमीनें छोड़कर नहीं जाते पर सत्ता की शक्ति और सेना के आगे ये मजबूर हो जाते हैं।
राम के मुख पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थीं। वे थोड़ा सोच में पड़ गए। लक्ष्मण बैठे उन दोनों की बातें अबतक सुन रहे थे। उनके मन मे भी कई तरह के सवाल गूंज रहे थे पर वे सही वक्त की प्रतीक्षा कर रहे थे। राम को शांत देख लक्ष्मण ने कहना शुरू किया- पर ये सरकार तो जनता की हितैषी होती है फिर ये इन गरीब आदिवासियों की जमीन कारपोरेट के हाथ सौंपती क्यों है ?
हनुमान ने कहा- सब वोट का खेल है भ्राता।
लक्ष्मण जटा खुजाते हुए कहने लगे- कुछ समझ नहीं आया कि ये वोटों का खेल क्या होता है?
हनुमान बोले- भ्राता लक्ष्मण, ये पोलिटिकल पार्टियां चुनाव में बहुत खर्च करती हैं। जनता को लुभाने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियां होती हैं, बड़े बड़े प्रोजेक्टर लगते हैं, ऊंचे-ऊंचे मंच से नेता लोग भाषण देते हैं। जो पार्टी चुनाव में जितना ज्यादा तामझाम करती है जम्बूद्वीप की जनता को लगता है कि ये उतनी ही अच्छी पार्टी है। और ऐसा करने वाली पार्टी जीत भी जाती है। अब इन सब चीजों को करने के लिए तो अकूत धन की आवश्यकता पड़ेगी न भ्राता!
लक्ष्मण ने हां में सिर हिला दिया और जिज्ञासावश पूछा- फिर ये खर्च आता कहाँ से है हनुमान ? क्या इन पार्टियों में शामिल लोग राजा महाराजा होते हैं ?
हनुमान ने मुस्कुराते हुए कहा- यही तो खेल है भ्राता, ये बड़ी बड़ी कंपनियां, कारपोरेट जगत इन पार्टियों को पैसे देती हैं। बदले में सरकार बनने के बाद इन जंगलों की अकूत संपदा की मांग करती हैं जो सरकार को मजबूरन देना पड़ता है।
"यदि कोई अपना घर अपनी जमीन छोड़कर हटना न चाहे तो ?" राम ने गंभीर होते हुए पूछा।
हनुमान बोले- फिर ये सरकार की जिम्मेदारी होती है। सरकार पुलिस फोर्स या मिलिट्री फोर्स भेजकर इन जमीनों को खाली करवा लेती है। यदि कोई नहीं जाता छोड़कर तो उसे इतनी यातनाएं दी जाती हैं कि वह मजबूर हो जाता है। कभी कभी घरों को आग लगा दिया जाता है। न जाने कितने तरह का शोषण इन जंगलों को खाली कराने के लिए किया जाता था।
लक्ष्मण गुस्साते हुए कहने लगे- तो क्या यहां के लोगों में इतनी शक्ति नहीं है कि वे सरकार से भिड़ जाएं। अपनी मान-मर्यादा के लिए, अपनी मातृभूमि के लिए हथियार तो उठाया जा सकता है ?
हनुमान ने कहा- शांत हो जाइये वीर, मजबूत सरकार के आगे इन सब की क्या बिसात ! कभी बगावत के सुर उठते भी हैं तो सरकार इन्हें नक्सली कहकर जेल में ठूस देती है।
राम ने चिंता जाहिर करते हुए कहा- खत्म होते पेड़ों, जंगलों से तो सिर्फ जंगल मे रहने वाले लोग ही नहीं पृथ्वी के अन्य लोग और जीव भी तो प्रभावित होंगे !
हनुमान ने राम की चिंता का हाँ में सिर हिला के समर्थन किया।
राम बोले- फिर क्या यहां के पढ़े लिखे लोग , भू वैज्ञानिक ये सब जंगल खत्म होने से मानव जीवन के नष्ट हो जाने की बात सरकार को नहीं बताते ?
हनुमान बोले- बताते तो हैं प्रभु, और सरकार सक्रिय भी हो जाती है। बहुत सारे पेड़ लगाए जाते हैं। पर ये वही पेड़ होते हैं जो बहुत पानी खींचते हैं और जल्दी से तैयार हो जाते हैं। जिनका उपयोग कारपोरेट जगत खूब करता है।
राम ने अपना माथा पीट लिया। हनुमान से कहने लगे- हनुमान, नीचे नदी नजर आ रही है। चलो कुछ जल ग्रहण कर लिया जाए।
राम की बात सुनकर हनुमान नीचे की तरफ उड़ चले। नदी किनारे उतरकर राम ने नदी की तरफ देखा। फेना से बजबजाते काले मटमैले पानी को देखकर राम कहने लगे- हनुमान, लगता है हम किसी नाले के पास आ गए हैं।
हनुमान ने चिंता भरे स्वर में कहा- प्रभु आये तो हम सही हैं पर ये नदी भी कलयुगी रामराज्य का शिकार हो चली है।
ये सब देखकर सुनकर राम का मन व्यथित हुआ और उन्होंने हनुमान को जहां से आये थे उसी तरफ चलाने का इशारा कर दिया।