जयपुर की सड़कों पर फरसाधारियों की भीड़ ने खो नागोरियान थाने के थानेदार इन्द्रराज मरोडिया को पकड़ा और लगभग घसीटते हुये एक तरफ ले गए ।
मीडिया रिपोर्ट्स पर भरोसा करें तो पता चलता है कि थानेदार के साथ परशुराम के उग्र वंशजों ने मार पीट भी की ,बस संहार नहीं किया ,ज़िंदा छोड़ दिया ,वरना भीड़ के हाथों मारे जाते , मोब लिंचिंग जैसा भयानक दृश्य था ।
बताया जाता है कि जातीय जुलूस में सरेआम धारदार फरसा ( कुल्हाड़ा) लहरा रहे लोगों को टोकना थानेदार को भारी पड़ गया ,विप्रजन कुपित हो गये ,चाणक्य पुत्रों ने ऐसा रौद्ररूप दिखाया कि धरती कांप उठी ,पुलिस महकमा थर थर कांपने लगा और माफी की गुहार लगाने लगा ।
संयोग देखिये कि थानेदार मरोडिया दलित ,उनका बॉस सागर दलित और पुलिस उपायुक्त कुंवर राष्ट्रदीप भी दलित । अब भला इस राज में इन दलितों की क्या औकात कि वे अपना फर्ज ईमानदारी से निभा लें ,इसलिए फ़र्ज़ निभाने का सार्वजनिक इनाम मिला ।
दलित वर्ग से आने वाले एक ईमानदार थानेदार को पहले तो अराजक तत्वों की हिंसा का शिकार होना पड़ा और बाद में बिना कसूर के हाथ जोड़कर माफी मांगनी पड़ी ,वरना परशुराम जी के फरसाधारी वंशज उनका दुनिया से नाम मिटा देते ।
आहत थानेदार जी छुट्टी पर चले गये है, लोग उनके समर्थन में पोस्ट पर पोस्ट लिख कर सोशल मीडिया को भर दिए है ,कुछ अति उत्साही लोग तो कुंवर राष्ट्रदीप को ठाकुर समझ कर उनके निलंबन की मांग तक कर रहे है ।
वसुंधरा सरकार में दलितों की क्या हालत हो गई है, कानून के रखवाले ही ठुक रहे है ,मार खा कर उपद्रवियों से माफी और मांगनी पड़ रही है ,कहाँ बचा मान , सम्मान और स्वाभिमान !
पेशवाई आतंक लौट आया है ! अब किसी की खैर नहीं !
सरेआम हथियार लहराने वालों और ईमानदारी से ड्यूटी निभा रहे अनुसूचित जाति वर्ग के सदस्य थानेदार इन्द्रराज पर हमला करने वाले समाजकंटकों के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं होगी । यह लिख कर रख लीजिए ,किसी भी उपद्रवी का बाल भी बांका नहीं होगा ।
उनके पास फरसा है ,इन दलित आदिवासी अधिकारीयों के पास क्या है ? ईमानदारी ,फ़र्ज़ ,कानून ,लोकतंत्र और संविधान ? ये तो कहने के लिए बड़े बड़े शब्द है ,देश तो मनु महाराज की स्मृति से चल रहा है ..!
अब क्या लिखूं मेरे समुदाय के जाबांज बहादुरों के लिए ,सारे पदों पर काबिज़ है , फिर भी अपना सम्मान नही बचा पाए ,जब खुद की रक्षा नहीं कर पाए , घसीटे गये , पीटे गये , बुरी तरह अपमानित हुये और उल्टे उपद्रवियों से हाथ जोड़ पर , पांव पकड़ कर माफी मांगने लगे ..लानत है तुम पर ..शर्म आ गई यह सब देखकर ..सर्विस रिवॉल्वर क्या घर छोड़ गये थे ? क्यों सहन की हिंसा ? क्यों मांगी माफी ?
ऐसा लगता है कि राजस्थान अब दलित ,आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लिये पूरी तरह से असुरक्षित प्रदेश बन गया है , यहां पर सवर्णों की अराजक होती जा रही भीड़ कभी भी उनके प्राण हर सकती है ।
अगर हथियार लहराते हुये दलित,किसी पुलिस के अधिकारी से ऐसा सुलूक करते तो उनको "आतंकी" से कम नही कहा जाता ,पर उनकी हिंसा हिंसा नहीं है ,वो मार भी दे तो उसे हत्या नहीं "वध" कहा जायेगा । किसी शायर ने इसी समय के लिए कहा होगा -" वो कत्ल भी कर दे तो चर्चा नही होता , हम आह भी भर लें ,तो हो जाते हैं बदनाम "
आखिरी बात - छुट्टी पर चले गये थानेदार जी के लिये...
इस तरह कोप भवन में मत बैठिए , छुट्टी से तुरन्त ड्यूटी पर लौटिए और उपद्रवियों के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज कीजिये संगीन, गैर जमानती धाराओं में और जिस तरह उन्होंने घसीटा ,ठीक उसी तरह पुलिस की गाड़ी में डाल कर ले आईए थाने में..हवालात की हवा खिलाइए और जेल भेज दीजिये ।
स्ट्रॉन्ग बनिये , टिका दीजिये ..डरिये मत...स्वाभिमान से जिइये ...ज़ालिमों की आंख से आंख मिलाने का माद्दा रखिये..क्यों बिना कसूर के माफी मांग कर लज्जित हो रहे हैं? अपने बीबी बच्चों और दोस्त रिश्तेदारों से आंख कैसे मिलायेंगे ?
- भंवर मेघवंशी
( स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता )
मीडिया रिपोर्ट्स पर भरोसा करें तो पता चलता है कि थानेदार के साथ परशुराम के उग्र वंशजों ने मार पीट भी की ,बस संहार नहीं किया ,ज़िंदा छोड़ दिया ,वरना भीड़ के हाथों मारे जाते , मोब लिंचिंग जैसा भयानक दृश्य था ।
बताया जाता है कि जातीय जुलूस में सरेआम धारदार फरसा ( कुल्हाड़ा) लहरा रहे लोगों को टोकना थानेदार को भारी पड़ गया ,विप्रजन कुपित हो गये ,चाणक्य पुत्रों ने ऐसा रौद्ररूप दिखाया कि धरती कांप उठी ,पुलिस महकमा थर थर कांपने लगा और माफी की गुहार लगाने लगा ।
संयोग देखिये कि थानेदार मरोडिया दलित ,उनका बॉस सागर दलित और पुलिस उपायुक्त कुंवर राष्ट्रदीप भी दलित । अब भला इस राज में इन दलितों की क्या औकात कि वे अपना फर्ज ईमानदारी से निभा लें ,इसलिए फ़र्ज़ निभाने का सार्वजनिक इनाम मिला ।
दलित वर्ग से आने वाले एक ईमानदार थानेदार को पहले तो अराजक तत्वों की हिंसा का शिकार होना पड़ा और बाद में बिना कसूर के हाथ जोड़कर माफी मांगनी पड़ी ,वरना परशुराम जी के फरसाधारी वंशज उनका दुनिया से नाम मिटा देते ।
आहत थानेदार जी छुट्टी पर चले गये है, लोग उनके समर्थन में पोस्ट पर पोस्ट लिख कर सोशल मीडिया को भर दिए है ,कुछ अति उत्साही लोग तो कुंवर राष्ट्रदीप को ठाकुर समझ कर उनके निलंबन की मांग तक कर रहे है ।
वसुंधरा सरकार में दलितों की क्या हालत हो गई है, कानून के रखवाले ही ठुक रहे है ,मार खा कर उपद्रवियों से माफी और मांगनी पड़ रही है ,कहाँ बचा मान , सम्मान और स्वाभिमान !
पेशवाई आतंक लौट आया है ! अब किसी की खैर नहीं !
सरेआम हथियार लहराने वालों और ईमानदारी से ड्यूटी निभा रहे अनुसूचित जाति वर्ग के सदस्य थानेदार इन्द्रराज पर हमला करने वाले समाजकंटकों के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं होगी । यह लिख कर रख लीजिए ,किसी भी उपद्रवी का बाल भी बांका नहीं होगा ।
उनके पास फरसा है ,इन दलित आदिवासी अधिकारीयों के पास क्या है ? ईमानदारी ,फ़र्ज़ ,कानून ,लोकतंत्र और संविधान ? ये तो कहने के लिए बड़े बड़े शब्द है ,देश तो मनु महाराज की स्मृति से चल रहा है ..!
अब क्या लिखूं मेरे समुदाय के जाबांज बहादुरों के लिए ,सारे पदों पर काबिज़ है , फिर भी अपना सम्मान नही बचा पाए ,जब खुद की रक्षा नहीं कर पाए , घसीटे गये , पीटे गये , बुरी तरह अपमानित हुये और उल्टे उपद्रवियों से हाथ जोड़ पर , पांव पकड़ कर माफी मांगने लगे ..लानत है तुम पर ..शर्म आ गई यह सब देखकर ..सर्विस रिवॉल्वर क्या घर छोड़ गये थे ? क्यों सहन की हिंसा ? क्यों मांगी माफी ?
ऐसा लगता है कि राजस्थान अब दलित ,आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लिये पूरी तरह से असुरक्षित प्रदेश बन गया है , यहां पर सवर्णों की अराजक होती जा रही भीड़ कभी भी उनके प्राण हर सकती है ।
अगर हथियार लहराते हुये दलित,किसी पुलिस के अधिकारी से ऐसा सुलूक करते तो उनको "आतंकी" से कम नही कहा जाता ,पर उनकी हिंसा हिंसा नहीं है ,वो मार भी दे तो उसे हत्या नहीं "वध" कहा जायेगा । किसी शायर ने इसी समय के लिए कहा होगा -" वो कत्ल भी कर दे तो चर्चा नही होता , हम आह भी भर लें ,तो हो जाते हैं बदनाम "
आखिरी बात - छुट्टी पर चले गये थानेदार जी के लिये...
इस तरह कोप भवन में मत बैठिए , छुट्टी से तुरन्त ड्यूटी पर लौटिए और उपद्रवियों के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज कीजिये संगीन, गैर जमानती धाराओं में और जिस तरह उन्होंने घसीटा ,ठीक उसी तरह पुलिस की गाड़ी में डाल कर ले आईए थाने में..हवालात की हवा खिलाइए और जेल भेज दीजिये ।
स्ट्रॉन्ग बनिये , टिका दीजिये ..डरिये मत...स्वाभिमान से जिइये ...ज़ालिमों की आंख से आंख मिलाने का माद्दा रखिये..क्यों बिना कसूर के माफी मांग कर लज्जित हो रहे हैं? अपने बीबी बच्चों और दोस्त रिश्तेदारों से आंख कैसे मिलायेंगे ?
- भंवर मेघवंशी
( स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता )