अब समय बदल गया है। यह मूर्खता के बहुमत का दौर है। वरना किस दौर में सुनने को मिला था कि लोग रेपिस्ट के समर्थन में सड़क पर उतर आये हैं ?
वह बोलता है, हम काम काजी लोग हैं। पॉलिटिक्स में नहीं पड़ना हमें।
कठुआ की बात करो तो एक वर्ग पूछता है तब तुम कहाँ थे जब फला जगह ये हुआ था। मैंने एक से पलटकर पूछ लिया- क्या तुम रेप का सपोर्ट करते हो?
वह बोला- करता तो नहीं हूँ, पर.....
मैंने कहा- फिर विरोध क्यों नहीं करते, आवाज क्यों नहीं उठाते ?
मैंने कहा- फिर विरोध क्यों नहीं करते, आवाज क्यों नहीं उठाते ?
वह बोलता है, हम काम काजी लोग हैं। पॉलिटिक्स में नहीं पड़ना हमें।
मैंने कहा- ठीक कहते हो। आठ साल की बच्ची पॉलिटिक्स से जुड़ी थी। जब पड़ोसी का घर जले तो तबतक बुझाने न जाओ जबतक की आग अपने घर को न पकड़ने लगे।
लोहिया ने कहा था- सड़कें खामोश हो जाएं तो संसद आवारा हो जाती है। पर यहां तो संसद आवारा हो चुकी है फिर भी सड़कें खामोश हैं। विपक्ष का पता नहीं। कुछ लोग हैं जो समय-समय पर दहाड़ते हैं। एक खेर साहब हुआ करते थे। कश्मीरी पंडितों को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे। केंद्र में भी उनकी सरकार है और राज्य में भी गठबंधन में हैं। अब वे खामोश हैं। कश्मीर में बच्ची बिलख रोयी होगी। पर अब वे आवाज नहीं उठा पा रहे। ये कैसी मानवता है जो हानि लाभ देखकर जागती है ?
एक आदमी अजां की आवाज से डिस्टर्ब हो जाता था पर बच्ची की चीखें अब उसे सुनाई नहीं दे रही हैं। अब वह चैन से सो ले रहा है। इससे बुरा वक्त क्या आएगा।
हाथ मे तिरंगा लेकर रेपिस्ट के समर्थन में भारत माता की जय के नारे लग रहे हैं। हैरानी की बात ये की इनपर कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है। रेपिस्ट विधायक को बचाने में पूरी सरकार जुटी है। मुझे आश्चर्य नहीं है। वह बयान याद आता है जब एक ढोंगी बाबा कब्र से निकालकर लाशों के साथ रेप की बात करता था और लोग उसका समर्थन करते थे। लोगों को लगता था कि ये अपना वाला है। अपने धर्म का रक्षक है। पर ये इतना नहीं समझ सकते कि बलात्कारी मानसिकता का व्यक्ति किसी धर्म से नहीं जुड़ा होता। यदि जुड़ी होती तो उन्नाव में जो हुआ उसका आरोपी जेल में होता।
बाकी मैं प्रधनमंत्री से कोई उम्मीद नहीं रखता हूँ। जो इंसान खुद के कार्यकाल में पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद भी संसद न चलने के कारण उपवास पर बैठा हो, उस व्यक्ति से उम्मीद करना बेमानी होगी। क्रिकेट की जीत पर ट्वीट कर बधाई देने वाले PM के मुंह पर इस समय दही जम गई है जो चुनाव नजदीक आते ही गल जाएगी।
इन सब के बीच सरकार से एक विनम्र निवेदन करना जरूरी हो जाता है। हमें नहीं चाहिए, नौकरी, सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ पर इन बच्चियों को बख्स दो। न्याय नहीं दिला सकते तो कम से कम आरोपियों को संरक्षण तो न दो।