अम्बेडकरवाद के सफल प्रयोगक मान्यवर कांशी राम को जन्म दिवस पर नमन

Written by ए. के. मौर्य | Published on: March 15, 2018
आज (15 मार्च) वो दिन है जिस दिन बहुजन समाज के एक और मसीहा ने 15 मार्च 1934 को इस भारत देश के पंजाब राज्य के रोपड़ जिले के खवासपुर गाँव में जन्म लिया। उनका नाम मान्यवर कांशी राम था जिन्हें उनके साथ काम करने वाले हम सब लोग आदर और प्यार से "साहब" के नाम से ज्यादा संबोधित करते थे।


बहुजन समाज को जो इज्जत और अधिकार मिले हैं और सफलता मिली है उसमें बहुजन समाज के सभी महापुरुषों (तथागत बुद्ध से लेकर बाबा साहब आंबेडकर और कांशी राम जी तक) सभी का बहुत बड़ा योगदान है जिसको कभी भी भुलाया नहीं जा सकता, उससे हम सभी परिचित हैं।

इन सबमें बाबा साहब के योगदान का एक विशेष स्थान है और उस स्थान को कोई भी नहीं ले सकता। साहब कांशी राम जी ने बाबा साहब के संघर्ष को और आगे बढ़ाया और कुछ हद तक मंजिल की और पहुँचाया।

लेकिन अगर हम इस पहलू से देखें कि बाबा साहब की लड़ाई सवर्णों से थी लेकिन उस समय न्याय करने वाले और अधिकार देने वाले अंग्रेज थे न कि सवर्ण। क्योंकि अंग्रेज कुछ हद तक न्यायप्रिय थे इसलिए अछूतों को अधिकार बाबा साहब के प्रयत्नों से उन्होंने दिए। इस मामले में साहब कांशी राम जी का संघर्ष तो उन्हीं सवर्णों से था जिन्होंने बहुजनों के सारे अधिकारों का हनन किया था और वो कतई देना नहीं चाहते थे और अंग्रेजों जैसा कोई Referee भी नहीं था जिससे न्याय की उम्मीद हो। इसलिए साहब कांशी राम जी ने समय के अनुसार अपनी Strategy को बदला। और बड़ी मेहनत से SC,ST के साथ OBC और Minorities समाज को भी जोड़ा जिनको बाबा साहब के समय में सवर्णों ने बरगलाकर बाबा साहब के साथ नहीं मिलने दिया था। और इसी कारण साहब कांशी राम जी बाबा साहब के कारवां को आगे बढ़ाने में सफल हो पाये।

मेरा पहली बार उनसे मिलना 1975 के आखिरी महीनों में आगरा में हुआ जब वे BAMCEF के प्रचार प्रसार के सिलसिले में आगरा आये थे। उस समय मुझे आगरा में आयकर विभाग में लिपिक के पद पर एक साल पहले ही नौकरी मिली थी। उसी समय से मैं BAMCEF से जुड़ गया।

उनके कुछ बड़े और प्रभावशाली कथन और कार्य इस प्रकार हैं जिनको उन्होंने अपने जीवन में ढाला और जिनके बलबूते पर लोग उनके साथ जुड़ते चले गए और सफलताएं मिलतीं गयीं।

"तमन्ना सच्ची हो तो रास्ते हज़ार निकल आते हैं और तमन्ना झूठी हो तो एक से एक खूबसूरत बहाने मिल जाते हैं।"

"बीमार होने के लिए मेरे पास समय कहाँ है।"

"जैसा समाज होता है वैसे नेता मिल जाते हैं और जैसे नेता होते हैं वैसा समाज बन जाता है"

"हमें न बिकने वाला समाज बनाना है"

"मुझे सलाहकार नहीं काम करने वाले चाहिए।"

"मैं सूखी सलाह नहीं देता हूँ खुद करके दिखाता हूँ तब सलाह देता हूँ"

इसके लिए उन्होंने खुद 49 वर्ष की उम्र में (15.03.1983 से) उन्होंने 4000 किलोमीटर साइकिल यात्रा और 200 किलोमीटर पैदल यात्रा की। और उसके बाद लोगों को सलाह दी कि,
"दो पैर और दो पहियों का इस्तेमाल करके हम बड़े साधन वालों का मुकाबला आसानी से कर सकते हैं"

"जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी।"

"जो जमीन सरकारी है वो जमींन हमारी है"

उनके वारे में जितना लिखा जाय उतना ही कम है। ऐसे थे हम सबके आदरणीय मान्यवर साहब कांशी राम जी। जन्म दिवस के अवसर पर बहुजनों के मसीहा मान्यवर साहब कांशी राम जी को शत शत नमन।

लेकिन आज उनका कारवां सही रास्ते पर आगे चलता हुआ नज़र नहीं आरहा है बल्कि बड़ी तेजी से पीछे जा रहा है।

अत: सच्ची श्रधांजलि ये होगी कि हम अपनी जिम्मेवारी को समझें और उनके कारवां को पुन: आगे ले जाने की कोशिश करें। उनकी याद के मेरे लिए दो नमूने attach हैं।
जय भीम। जय भारत। जय कांशी राम।

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