हनुमान जी लंका पहली बार गए। सीता को ढूंढ निकाला। पेड़ के नीचे पड़ी सीता को देखकर हनुमान विह्वल हो उठे। जान पहचान हुई, बातें हुई। हनुमान ने कहा, "माते, वैसे तो मैं आपको यहाँ से छुड़ाकर ले जा सकता हूँ मगर ऐसा नहीं कर सकता। अगर ऐसा किया तो पूरी स्टोरी का क्लाइमेक्स ख़राब हो जायेगा।
"सीता इमोशनल होकर कहने लगी कि यहाँ मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता, मुझे यहाँ से ले चलो। मगर हनुमान नहीं माने, कहने लगे - माते, आपके इमोशन के साथ पूरे भारत का इमोशन जुड़ा है। आप जितना रोयेंगी, स्टोरी उतनी ही स्ट्रांग और क्रिस्पी होगी। सीता ने अपने आप को समझाया और बोली की जितनी जल्दी हो, श्री राम को भेजो और मुझे आज़ाद करवाओ। हनुमान जाने के लिए रेडी हुए, तबतक अचानक याद आया कि मुझे कुछ खाना चाहिए। सीता से बोले, " माते, भूख लगी है, मैं खाता पीता निकल जाऊँगा। " सीता ने बताया, वहीं बगल में अशोक वाटिका है। चले जाइये मीठे और ताज़े फल मिलेंगे।
वहां से चलकर हनुमान अशोक वाटिका में पहुँचे। स्वभाव से बन्दर ऊपर से ताकतवर। बल बुद्धि पर भारी पड़ा। फल तोड़े, कुछ खाया कुछ फेंका। और हुड़दंग करने को जी चाहा तो जय श्री राम के नारे लगाते हुए सारे वाटिका की वाट लगा दी। पेड़ उखाड़कर फेंक दिया। पंछियों के घोसले तबाह हो गए। नए अंडे बच्चे का रूप पकड़ने से पहले ही एक बंदर के उग्र स्वभाव का शिकार हो गए। गार्डन का गॉर्ड आया, मना करने लगा तो उसे हनुमान ने कूट दिया। एक गार्ड और था, वह जान बचाकर भागते हुए लंका के वन मंत्री के पास गया और बोला - मंत्री जी, एक बहुत ही विशाल बन्दर आया है, पूरे बगीचे की बैंड बजा दी। सारे पेड़ उखाड़कर फेंक दिया है, सुन्दर सुन्दर फूलों को नष्ट कर दिया है।
मंत्री थोड़ा चिंतित हुआ पर खुद न जाकर अपने चार सिपाहियों को भेज दिया। हनुमान ने उन्हें एक ही बार में मूली की तरह तोड़कर ऐसे फेंक दिया जैसे कोई बच्चा प्लास्टिक की गेंद को फेंकता है। मंत्री ने दुबारा सेना भेजी पर सेना की भी बैंड बज गयी। सैनिक मारे गए। लंका के कई वीर सेनानायक शहीद हुए।
बात रावण तक पहुँची। मंत्री ने रावण से बताया-महाराज, बहुत ही बलशाली बानर आया है, पूरी फ़ोर्स भी उस अकेले का मुकाबला नहीं कर सकती। बहुत सारे सैनिक मारे गए। रावण ने अकल लगायी और अपने बाहुबली बेटे मेघनाद को भेजकर हनुमान को अरेस्ट करवा लिया। हनुमान को रावण के सामने पेश किया गया।
रावण - बोल तू कौन है?
हनु- मैं बली हनुमान हूँ।
रावण- कहाँ से आया और क्यों उत्पात मचाया?
हनु- मैं श्री राम का दूत हूँ। तुमने सीता को अगवा किया है, भलाई इसी में है कि सीता को राम के हवाले कर उनसे सॉरी बोल दो, उनका दिल दरिया है तुम्हें माफ़ कर देंगे।
रावण- चल -चल, ज्ञान मत दे। जितना दूत का काम है तुझे उतना ही करना चाहिए था। तूने अशोक वाटिका उजाड़ी सैनिकों को मार डाला इसलिए सजा मिलेगी। बोल कौन सी सजा मंजूर करेगा?
हनु-मेरा क्या, मैं तो बंदी हूँ, जो सजा दोगे मंजूर है।
एक दरबारी ने कहा, "महाराज, इसे जान से मार दो। "
दूसरे ने कहा, "नहीं महाराज, जान से मत मारो, अभी ये बता रहा था कि कुंवारा है। इसे जान से मार दोगे तो कोई फायदा नहीं, इसके आगे पीछे रोने वाला कोई नहीं, इसलिये मजा नहीं आयेगा।"
एक ने सलाह दी, बंदरों को पूँछ बहुत प्यारी होती है। इसकी पूँछ में आग लगा दो। सलाह जम गयी। पूँछ में आग लगा दी गयी। हनुमान ने पूंछ की लंबाई अनलिमिटेड बढ़ा दी। बुद्धि पर बल फिर हावी हुआ। हनुमान ने चारों तरफ कूदकर पूरी लंका में आग लगा दी। बूढ़े, बच्चे, स्त्रियां सब जलकर राख होने लगे। दूध पीता बच्चा माँ से चिपककर महज हड्डियों का ढांचा रह गया। गर्भवती स्त्रियां भाग न पायीं जहां थी वहीं जलकर मार गयीं। चारों तरफ त्राहि त्राहि मची गयी। सब अपनी जान लेकर भागे, कोई किसी को बचाने वाला नहीं। सोने की बसाई हुई नगरी धू धू कर जल रही थी। बच्चे बिलख रहे थे, ऊपर उड़ते हनुमान मंद मंद अपनी सफलता पर मुस्कुरा रहे थे। तब तक नीचे देखा तो एक घर में कोई बैठा राम राम का जाप कर रहा था। हनुमान नीचे आये।
उन्होंने पुछा- हे उत्तम पुरुष, इस राक्षसी नगरी में भगवान श्री राम का जाप करने वाले तुम कौन हो ?
"जी मैं रावण का अनुज भ्राता विभीषण हूँ "
"तो श्री राम का जाप क्यों कर रहे हो, देशद्रोही हो क्या?"
"नहीं, मैं रावण की नीतियों का समर्थन नहीं करता "
"रावण की नीति में क्या गड़बड़ी है ?"
""उसने पराई स्त्री का अपहरण किया है "
"अपहरण क्यों किया?"
"क्योंकि सुपर्णखा की नाक काटी गयी "
"सुपर्णखा तुम्हारी बहन नहीं थी ?"
"थी, लेकिन मैं राम में सत्य देखता हूँ, रावण राक्षस है। "
"सीता स्वयंवर में राक्षस रावण भी गया था, अगर उसने धनुष तोड़ दिया होता तो क्या सीता का विवाह एक राक्षस से कर दिया जाता ?"
"देखिये मुझे भक्ति करने दीजिये, बाधा न डालिये। "
"इस मामले में नीति कहाँ गयी ?"
"भक्ति में नीति कहाँ ? "
"मैं भी राम भक्त हूँ और यही अपना भी मानना है की भक्ति में नीति कहाँ ! पूरी लंका जल गयी मगर तुम्हारा घर नहीं जलाऊंगा क्योंकि तुम राम भक्त हो और अपने वाले हो। "
लंका को जलाकर तहस नहस करने वाले हनुमान की आज पूजा होती है। कोई यह सवाल करने वाला नहीं कि कितने मासूमों, निहत्थों को ज़िंदा जलाने हनुमान पूज्यनीय कैसे? क्या महज इसलिए कि वे राम के भक्त थे? मुझे शंभु रेगर याद आ गया जिसनें बंगाल के एक मजदूर को काटकर जला दिया। लोगों ने शंभु रेगर का समर्थन किया। उसे चंदे देना शुरू किया। उसके समर्थन में लोग इसलिए कूद गए कि वह हिन्दू है।
कितना निष्ठुर समाज है न ! जब गुनाह करने वाला अपने धर्म का होता है, अपनी जाति का होता है या अपने कुल का होता है तो हम उसके गुनाहों को परे कर उसका समर्थन करने लगते हैं। यही कोई दूसरे धर्म का करता है तो हमें लगता है कि यह दुनिया का सबसे घृणित कार्य है। ऐसा करने वाले को फाँसी पर लटका देना चाहिए।
जब तक हम ऐसे मामले में सेलेक्टिव होते रहेंगे समाज में शंभु रेगर पैदा होते रहेंगे। आज जरूरत है विरोध करने की। हर तरह की हिंसा का विरोध करने की। समाज को देश को आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर माहौल देने की ताकि जब आज के दौर में जन्मा बच्चा बड़ा हो तो हमसे यह न कह सके कि तब तुम कहाँ थे जब शंभु रेगर ने एक मजदूर को ज़िंदा जला दिया था ?
"सीता इमोशनल होकर कहने लगी कि यहाँ मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता, मुझे यहाँ से ले चलो। मगर हनुमान नहीं माने, कहने लगे - माते, आपके इमोशन के साथ पूरे भारत का इमोशन जुड़ा है। आप जितना रोयेंगी, स्टोरी उतनी ही स्ट्रांग और क्रिस्पी होगी। सीता ने अपने आप को समझाया और बोली की जितनी जल्दी हो, श्री राम को भेजो और मुझे आज़ाद करवाओ। हनुमान जाने के लिए रेडी हुए, तबतक अचानक याद आया कि मुझे कुछ खाना चाहिए। सीता से बोले, " माते, भूख लगी है, मैं खाता पीता निकल जाऊँगा। " सीता ने बताया, वहीं बगल में अशोक वाटिका है। चले जाइये मीठे और ताज़े फल मिलेंगे।
वहां से चलकर हनुमान अशोक वाटिका में पहुँचे। स्वभाव से बन्दर ऊपर से ताकतवर। बल बुद्धि पर भारी पड़ा। फल तोड़े, कुछ खाया कुछ फेंका। और हुड़दंग करने को जी चाहा तो जय श्री राम के नारे लगाते हुए सारे वाटिका की वाट लगा दी। पेड़ उखाड़कर फेंक दिया। पंछियों के घोसले तबाह हो गए। नए अंडे बच्चे का रूप पकड़ने से पहले ही एक बंदर के उग्र स्वभाव का शिकार हो गए। गार्डन का गॉर्ड आया, मना करने लगा तो उसे हनुमान ने कूट दिया। एक गार्ड और था, वह जान बचाकर भागते हुए लंका के वन मंत्री के पास गया और बोला - मंत्री जी, एक बहुत ही विशाल बन्दर आया है, पूरे बगीचे की बैंड बजा दी। सारे पेड़ उखाड़कर फेंक दिया है, सुन्दर सुन्दर फूलों को नष्ट कर दिया है।
मंत्री थोड़ा चिंतित हुआ पर खुद न जाकर अपने चार सिपाहियों को भेज दिया। हनुमान ने उन्हें एक ही बार में मूली की तरह तोड़कर ऐसे फेंक दिया जैसे कोई बच्चा प्लास्टिक की गेंद को फेंकता है। मंत्री ने दुबारा सेना भेजी पर सेना की भी बैंड बज गयी। सैनिक मारे गए। लंका के कई वीर सेनानायक शहीद हुए।
बात रावण तक पहुँची। मंत्री ने रावण से बताया-महाराज, बहुत ही बलशाली बानर आया है, पूरी फ़ोर्स भी उस अकेले का मुकाबला नहीं कर सकती। बहुत सारे सैनिक मारे गए। रावण ने अकल लगायी और अपने बाहुबली बेटे मेघनाद को भेजकर हनुमान को अरेस्ट करवा लिया। हनुमान को रावण के सामने पेश किया गया।
रावण - बोल तू कौन है?
हनु- मैं बली हनुमान हूँ।
रावण- कहाँ से आया और क्यों उत्पात मचाया?
हनु- मैं श्री राम का दूत हूँ। तुमने सीता को अगवा किया है, भलाई इसी में है कि सीता को राम के हवाले कर उनसे सॉरी बोल दो, उनका दिल दरिया है तुम्हें माफ़ कर देंगे।
रावण- चल -चल, ज्ञान मत दे। जितना दूत का काम है तुझे उतना ही करना चाहिए था। तूने अशोक वाटिका उजाड़ी सैनिकों को मार डाला इसलिए सजा मिलेगी। बोल कौन सी सजा मंजूर करेगा?
हनु-मेरा क्या, मैं तो बंदी हूँ, जो सजा दोगे मंजूर है।
एक दरबारी ने कहा, "महाराज, इसे जान से मार दो। "
दूसरे ने कहा, "नहीं महाराज, जान से मत मारो, अभी ये बता रहा था कि कुंवारा है। इसे जान से मार दोगे तो कोई फायदा नहीं, इसके आगे पीछे रोने वाला कोई नहीं, इसलिये मजा नहीं आयेगा।"
एक ने सलाह दी, बंदरों को पूँछ बहुत प्यारी होती है। इसकी पूँछ में आग लगा दो। सलाह जम गयी। पूँछ में आग लगा दी गयी। हनुमान ने पूंछ की लंबाई अनलिमिटेड बढ़ा दी। बुद्धि पर बल फिर हावी हुआ। हनुमान ने चारों तरफ कूदकर पूरी लंका में आग लगा दी। बूढ़े, बच्चे, स्त्रियां सब जलकर राख होने लगे। दूध पीता बच्चा माँ से चिपककर महज हड्डियों का ढांचा रह गया। गर्भवती स्त्रियां भाग न पायीं जहां थी वहीं जलकर मार गयीं। चारों तरफ त्राहि त्राहि मची गयी। सब अपनी जान लेकर भागे, कोई किसी को बचाने वाला नहीं। सोने की बसाई हुई नगरी धू धू कर जल रही थी। बच्चे बिलख रहे थे, ऊपर उड़ते हनुमान मंद मंद अपनी सफलता पर मुस्कुरा रहे थे। तब तक नीचे देखा तो एक घर में कोई बैठा राम राम का जाप कर रहा था। हनुमान नीचे आये।
उन्होंने पुछा- हे उत्तम पुरुष, इस राक्षसी नगरी में भगवान श्री राम का जाप करने वाले तुम कौन हो ?
"जी मैं रावण का अनुज भ्राता विभीषण हूँ "
"तो श्री राम का जाप क्यों कर रहे हो, देशद्रोही हो क्या?"
"नहीं, मैं रावण की नीतियों का समर्थन नहीं करता "
"रावण की नीति में क्या गड़बड़ी है ?"
""उसने पराई स्त्री का अपहरण किया है "
"अपहरण क्यों किया?"
"क्योंकि सुपर्णखा की नाक काटी गयी "
"सुपर्णखा तुम्हारी बहन नहीं थी ?"
"थी, लेकिन मैं राम में सत्य देखता हूँ, रावण राक्षस है। "
"सीता स्वयंवर में राक्षस रावण भी गया था, अगर उसने धनुष तोड़ दिया होता तो क्या सीता का विवाह एक राक्षस से कर दिया जाता ?"
"देखिये मुझे भक्ति करने दीजिये, बाधा न डालिये। "
"इस मामले में नीति कहाँ गयी ?"
"भक्ति में नीति कहाँ ? "
"मैं भी राम भक्त हूँ और यही अपना भी मानना है की भक्ति में नीति कहाँ ! पूरी लंका जल गयी मगर तुम्हारा घर नहीं जलाऊंगा क्योंकि तुम राम भक्त हो और अपने वाले हो। "
लंका को जलाकर तहस नहस करने वाले हनुमान की आज पूजा होती है। कोई यह सवाल करने वाला नहीं कि कितने मासूमों, निहत्थों को ज़िंदा जलाने हनुमान पूज्यनीय कैसे? क्या महज इसलिए कि वे राम के भक्त थे? मुझे शंभु रेगर याद आ गया जिसनें बंगाल के एक मजदूर को काटकर जला दिया। लोगों ने शंभु रेगर का समर्थन किया। उसे चंदे देना शुरू किया। उसके समर्थन में लोग इसलिए कूद गए कि वह हिन्दू है।
कितना निष्ठुर समाज है न ! जब गुनाह करने वाला अपने धर्म का होता है, अपनी जाति का होता है या अपने कुल का होता है तो हम उसके गुनाहों को परे कर उसका समर्थन करने लगते हैं। यही कोई दूसरे धर्म का करता है तो हमें लगता है कि यह दुनिया का सबसे घृणित कार्य है। ऐसा करने वाले को फाँसी पर लटका देना चाहिए।
जब तक हम ऐसे मामले में सेलेक्टिव होते रहेंगे समाज में शंभु रेगर पैदा होते रहेंगे। आज जरूरत है विरोध करने की। हर तरह की हिंसा का विरोध करने की। समाज को देश को आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर माहौल देने की ताकि जब आज के दौर में जन्मा बच्चा बड़ा हो तो हमसे यह न कह सके कि तब तुम कहाँ थे जब शंभु रेगर ने एक मजदूर को ज़िंदा जला दिया था ?