राम मंदिर पर संघ की राजनीति फिर गर्माई चुनाव के माहौल में भागवत ने दिया बयान

Written by सबरंगइंडिया स्टाफ | Published on: November 25, 2017

Image credit: PTI

गुजरात में चुनावी सरगर्मी चरम पर है। चुनाव आचारसंहिता लागू है। लेकिन संघ परिवार को इसकी कोई परवाह नहीं है। लिहाजा उसने एक बार फिर अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा उठाया है। शुक्रवार को आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा कि अयोध्या में मंदिर बनेगा। उन्होंने कहा कि यह लोकलुभावन घोषणा नहीं बल्कि आस्था का सवाल है।

कर्नाटक में उडुपी में विहिप की धर्म संसद के उद्घाटन भाषण में भागवत ने कहा कि मामला कोर्ट में है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर भागवत ने यह मुद्दा इस समय क्यों उठाया, जब गुजरात में पार्टियां चुनाव प्रचार कर रही हैं।

भागवत ने राम मंदिर निर्माण का इरादा जताते हुए जान बूझ कर मस्जिद का जिक्र किया और कहा कि राम जन्मभूमि पर बनने वाला मंदिर पहले मौजूद उस मंदिर जैसा ही भव्य होगा, जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोड़ा था।

साफ है कि बीजेपी का पितृ संगठन संघ जानबूझ कर मंदिर मुद्दा उछाल रहा है। चुनाव आयोग को इस पर नोटिस लेना चाहिए।

गौरतलब है कि अयोध्या में अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद पर 5 दिसंबर से सुनवाई होनी है। अदालत का फैसला चाहे जो हो लेकिन बीजेपी ने देश में माहौल बनाना शुरू कर दिया है। विहिप की ओर से आयोजित धर्म संसद में पेरियार मठ के प्रमुख विश्वेश तीर्थ स्वामीजी ने इस मौके पर कहा कि 2019 से पहले एक साल में मंदिर का निर्माण हो जाएगा। आखिर ऐसे बयानों के क्या मायने हैं। क्योंकि अदालती सुनवाई के पहले इस तरह के बयान आ रहे हैं।

बाबरी मस्जिद से जुड़े मुकदमे में पक्षकारों ने बिल्कुल सही सवाल उठाया कि आखिर इस मामले में बोलने वाले भागवत कौन होते हैं। क्यों वह इस मामले में पक्ष नहीं हैं। बाबरी मस्जिद से जुड़े पक्षकारों ने कहा कि भागवत को इसमें नहीं बोलना चाहिए था क्योंकि यह मामला अदालत में है। अदालत जो फैसला करेगी हमें मंजूर होगा।

भागवत के ये पैंतरे नए नहीं हैं। अक्सर विवादों के बीच बयान देना उनकी फितरत रही है। चुनावों के बीच विवादित बयान देने में वह माहिर हैं। लिहाजा चुनाव आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए और बीजेपी को चेतावनी जारी करना चाहिए। लेकिन इस पर संघ के लोग कहेंगे कि यह तो राजनीतिक नहीं सांस्कृतिक संगठन है। मंदिर मुद्दा सांस्कृतिक मुद्दा है और इसका राजनीति से कोई मतलब नहीं है। संघ के इस दोमुंहेपन पर लगाम लगाना जरूरी है।
 
 

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