मैंने उनसे उधार ले रखा है, इसलिए उनके द्वारा कही गयी बातें मेरे लिए पत्थर की लकीर होती हैं। वे मेरी महबूबा नहीं हैं फिर भी यदि वे दिन को रात कहते हैं तो मुझे भी रात कहना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि मुझे इस बात का डर है कि मैं किसी अस्पताल में पड़ा बच्चा हूँ और वे मेरी ऑक्सीजन सप्लाई रोक देंगे, मैं मर जाऊँगा। दरअसल मेरी हालत तो उस सरकारी कर्मचारी की तरह है जो बस नोटबंदी और GST की सिर्फ और सिर्फ तारीफ कर सकता है। वह चाहकर भी यह नहीं कह सकता कि GDP दर गिरी है तो बस सरकार की गलत नीतियों की वजह से न कि किसी टेक्निकल कारण से।
Image: Christophe Archambault—AFP/Getty Images
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मैं चाहता हूं कि उनके पैसे चुका दूं पर वे कहते हैं मैं कौन सा तुमसे ब्याज मांग रहा हूँ !! मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि ब्याज सस्ता पड़ेगा पर तुम्हारी फ़िजूल की बातों पर सहमत होना मुझे गरीब बनाता जा रहा है। मैं विचारों से गरीब होता जा रहा हूँ। तुम जब कहते हो कि सरकार सेलेक्टिव हो गयी है, सिर्फ वोट के लिए मुसलमानों के बारे में सोचती है, कश्मीरी पंडितों के बारे में बिलकुल नहीं सोचती तो मैं बस मौन स्वीकृति दे देता हूँ। चाहता तो हूँ कि कह दूं कि केंद्र में आपकी सरकार है राज्य में भी आप महबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन में हैं क्यों नहीं करते पंडितों की बात, लेकिन आपका दिया हुआ ऋण मेरी जुबान को बांध देता है।
उस दिन मौसम गर्म था और मेरा दिमाग भी। मेरे दिमाग के गर्म होने का कारण मौसम नहीं बल्कि वृद्ध पत्रकार के मार दिए जाने पर कुछ लोगों द्वारा जश्न मनाना था। वे पहुंचे और मोगैम्बो की तरह खुश होते हुए कुछ कहने के लिए मुंह फाड़ लिया। इसके पहले की वो कुछ कहते, मेरी निगाह उनके गब्बर जैसे दिखने वाले दांतों पर टिक गई। मुझे पता है, वे जब भी मुंह खोलते हैं तो गंदगी ही करते हैं, लेकिन फिर भी मैं उन्हें अपनी बात रखने का अवसर देता हूँ। लोकतंत्र की वजह से नहीं, उनके द्वारा दिये गए उधारी की वजह से। पर हर चीज की एक सीमा होती है जो उस दिन टूट गयी। स्प्रिंग को दबाया जाएगा तो एक हद के बाद उसमें उछाल आना लाज़मी है। सरकार जमीनों के लिए आदिवासियों का शोषण करती रहेगी तो एक सीमा के बाद वे बगावत कर ही देंगे। पति पत्नी को बेवजह शराब के नशे में पीटता रहेगा तो वह दिन एक दिन जरूर आएगा जब बगावत होगी और पत्नी संस्कारों को ठेंगे पर रख परमेश्वर को कूट देगी।
उन्होंने पहुंचते ही कहा- देखा, सरकार का बहादुरी भरा फैसला !! म्यांमार से आने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को गृह मंत्रालय ने शरण देने पर रोक लगा दी है और उन्हें देश से बाहर भेजने की बात शुरू हो चुकी है।
मैं अवाक सा उनका खुशी के कारण खिला हुआ चेहरा देख रहा था जिसके पीछे मुझे एक असंवेदनशील इंसान की झलक दिखी।
वे फिर बोले- तुम्हें खुशी नहीं हुई !!
मेरे सब्र का बांध आज टूट गया। मेरा गुस्सा उनके दिए पैसे पर चढ़ बैठा और मैंने कहा- क्यों, रोहिंग्या के मुसलमान आपकी मेहनत से कमाई हुई प्रॉपर्टी पर आकर बस गए हैं जो उनके निकाले जाने से खुशी के कारण मरे जा रहे हो ?
उन्हें मुझसे इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी। उनका कली की तरह खिला चेहरा विदर्भ में पड़े सूखे की तरह सूख गया। वे तिलमिला उठे और अपने आप को संभालते मिमियाते हुए कहने लगे- मम... मे मेरा मतलब ये नहीं था।
"फिर क्या था आपका मतलब ?"
"मेरे कहने का मतलब था कि वो दूसरे देश के हैं, अपने देश में क्यों कब्जा जमाएँगे ?"
"आपको क्यों दिक्कत हो रही है ...! क्या वे आपके सिर पर बैठने आ रहे हैं , या फिर भारत सरकार ने उन्हें तुम्हारा टॉयलेट यूज करने की सलाह दे दी है ?"
"कहने का मतलब....."
"क्या है आपके कहने का मतलब ....!! वे सताए हुए लोग हैं। उन्हें किसी भी देश की नागरिकता नहीं प्राप्त है। बिचारे धक्के खा रहे हैं। सरकारों द्वारा शोषित हैं। ऐसे लोगों के निकाले जाने पर आपको खुशी है ....दिल है शरीर मे की वह बेचकर खा गए।"
वे बस मुंह चुराये इधर उधर ताकने लगे। मैंने फिर कहा- यदि आप या आपका कोई होता उनके बीच तब आपकी क्या प्रतिक्रिया होती ?
जवाब में उन्होंने कहा- अब मैं चलता हूँ। और चल दिये।
मैं उन्हें जाते हुए देखता रहा और अफसोस भी हुआ कि इस तरह जवाब नहीं देना चाहिए। मैं एक मित्र खो रहा हूँ। सहानुभूति के लिए मैंने पीछे से आवाज दी- शाम को घर आईयेगा। चाय साथ में पियेंगे।
उन्होंने मुड़कर न चाहते हुए भी मुस्कुरा दिया और फिर वही गब्बर सा दांत मेरी निगाओं के सामने पड़ गया।