उत्तर प्रदेश का ‘बाबा’ कहता है कि ‘पाकिस्तान नहीं जाने वालों ने भारत पर कोई उपकार नहीं किया’। बाबा का कहना बिल्कुल सही है। भारत पर उपकार तो बाबा ने किया है, बाबा ने सर छिलवाकर, कान छिदवाकर, मंदिर से नफरत की सियासत का ‘मठ’ संचालित करके भारत पर ऐसा उपकार किया है, जिसे यह देश कभी नहीं भूल सकता।
यह देश कैसे भूल सकता है कि बाबा के गृहनगर में बच्चे ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ते रहे, लेकिन बाबा लोगों को बताते रहे कि गाय ऐसा प्राणी है जो हर वक्त ऑक्सीजन छोड़ता है। बाबा ने अपने ऊपर दर्ज मुक़दमे वापस लेकर इस देश की अदालतों पर भी उपकार किया है। अपना मेहनताना मांगते शिक्षा मित्रों पर लाठी बरसाकर बाबा ने ऐसा उपकार किया है कि शिक्षक समाज इसका हमेशा ऋणी रहेगा।
इतना ही नहीं जब एक महिला के साथ बाबा की पार्टी के विधायक ने बलात्कार किया तो बाबा के गुर्गो ने उस महिला के पिता को जेल में डाल दिया, और वहां से सीधा स्वर्ग भेज दिया, उस महिला के परिवार के जो सदस्य जिंदा बचे उन्हें ट्रक से कुचल दिया, कुछ मर गए, कुछ लंगड़े लूले हो गए। कभी उस महिला से मिलिएगा बाबा के उपकार की पूरी दास्तां बता देगी।
अपनी मुराद पूरी करने के उद्देश्य से जब बाबा के सूबे के लोग कांवड़ पर गए तो उनके ऊपर बाबा ने हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा कराई। कांवड़िये खुश, उन्हें लगा कि एक बाबा ही ‘भोले भक्तों’ पर उपकार कर सकता है। कुछ दिन बाद ही ‘कांवड़ियों’ को पता चला कि ‘नौकरी’ बाबा के आदेश से मिलती है, बेचारे खुशी खुशी भारी संख्या में इकट्ठा होकर बाबा के द्वार पहुंच गए, कि जैसे पुष्प वर्षा हुई थी वैसे ही नौकरी वर्षा होगी। लेकिन बाबा राजस्व जमा करके रखने में माहिर हैं।
बाबा को मालूम है कि मठ ही चलाना है, सरकार नहीं, और अगर पार्ट टाईम सरकार भी चलानी पड़ जाए तब भी कुछ काम हिल्ला नहीं करना इसलिये नौकरी के लिये वैकेंसी क्यों निकाली जाए। बाबा ने नौकरी मांगने आए युवाओं पर लाठियां बरसवा दीं। बाबा ने ऐसे-ऐसे उपकार किये हैं, बस पूछिए मत, स्कूलों की हालत तो सभी को मालूम ही है, पहले स्कूलों में बच्चे पढ़ते थे लेकिन अब तो ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के तहत कई स्कूलों गाय भी पढ़ रहीं हैं, क्योंकि बाबा के राज में गाय किसी हाईटेंशन तार से कम नहीं है। गाय को पूरा अधिकार है कि वह जब चाहे जहां चाहे घूम सकती है। जब उसे भूख लगे तो किसी भी किसान की फसल खा सकती है।
ख़बरदार! अगर किसान ने उसे खेत से बाहर किया तो बेचारा जेल और जेल जाएगा, इसलिये कुछ इलाक़ों के किसानों ने उन गायों पढ़ने के लिये सरकारी स्कूल में भेज दिया। ताकि कुछ पढ़ लिख जाए, और समझ ले कि दूसरे की फसल खाना ‘चोरी’ है। सड़कों पर रात रात भर घूमना आवारापन की निशानी है। अब गाय स्कूल में पढ़ रहीं हैं, और बच्चे खेतों में खेल रहे हैं। वैसे भी पढ़कर क्या करना है, जब नौकरी मांगने जाऐंगे तो बाबा लाठी चलवाऐंगे, इसलिये बग़ैर पढ़े ही ठीक हैं।
कल दिल्ली के ‘हिन्दू मुख्यमंत्री’ ने हनुमान चालीसा पढ़कर सुना दिया, इस पर तो बाबा की बांछें खिल उठीं, अब कह रहे हैं कि ‘ओवैसी’ को भी हनुमान चालीसा पढ़वायेंगे। अरे बाबा इतना उपकार मत कीजिये, हनुमान चालीसा पढ़ने के लिये पढ़ना आना भी तो जरूरी होता है। आपके राज्य के स्कूलों में तो गाय पढ़ रही हैं तो हनुमान चालीसा इंसान कैसे सुनाएगा? गाय से ही सुन लीजिए।
यह सब बाबा के उपकार का ही कमाल है कि अमेरिकी अख़बार ‘न्यूयार्क टाईम्स’ में भारतीय ‘महंत’ की फोटो छपती है, और उसमें बताया जाता है कि बाबा का हिन्दू वाहिनी संगठन एक उग्रवादी संगठन है, और बाबा उसके सरगना हैं। सोचिए! इतनी कम उम्र में बाबा ने भारत पर कितने उपकार किए हैं, सात समन्दर दूर बसा अमेरिका भी बाबा के इन ‘उपकारों’ से अच्छी तरह से परिचित हो गया है। बस अब शान्ति का नोबेल, और भारत रत्न मिलना बाक़ी है, बाबा उसके लिये बिल्कुल फिट बैठते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं व समसामयिक मुद्दों पर मुखर रूप से लेखन में सक्रिय हैं।)
यह देश कैसे भूल सकता है कि बाबा के गृहनगर में बच्चे ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ते रहे, लेकिन बाबा लोगों को बताते रहे कि गाय ऐसा प्राणी है जो हर वक्त ऑक्सीजन छोड़ता है। बाबा ने अपने ऊपर दर्ज मुक़दमे वापस लेकर इस देश की अदालतों पर भी उपकार किया है। अपना मेहनताना मांगते शिक्षा मित्रों पर लाठी बरसाकर बाबा ने ऐसा उपकार किया है कि शिक्षक समाज इसका हमेशा ऋणी रहेगा।
इतना ही नहीं जब एक महिला के साथ बाबा की पार्टी के विधायक ने बलात्कार किया तो बाबा के गुर्गो ने उस महिला के पिता को जेल में डाल दिया, और वहां से सीधा स्वर्ग भेज दिया, उस महिला के परिवार के जो सदस्य जिंदा बचे उन्हें ट्रक से कुचल दिया, कुछ मर गए, कुछ लंगड़े लूले हो गए। कभी उस महिला से मिलिएगा बाबा के उपकार की पूरी दास्तां बता देगी।
अपनी मुराद पूरी करने के उद्देश्य से जब बाबा के सूबे के लोग कांवड़ पर गए तो उनके ऊपर बाबा ने हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा कराई। कांवड़िये खुश, उन्हें लगा कि एक बाबा ही ‘भोले भक्तों’ पर उपकार कर सकता है। कुछ दिन बाद ही ‘कांवड़ियों’ को पता चला कि ‘नौकरी’ बाबा के आदेश से मिलती है, बेचारे खुशी खुशी भारी संख्या में इकट्ठा होकर बाबा के द्वार पहुंच गए, कि जैसे पुष्प वर्षा हुई थी वैसे ही नौकरी वर्षा होगी। लेकिन बाबा राजस्व जमा करके रखने में माहिर हैं।
बाबा को मालूम है कि मठ ही चलाना है, सरकार नहीं, और अगर पार्ट टाईम सरकार भी चलानी पड़ जाए तब भी कुछ काम हिल्ला नहीं करना इसलिये नौकरी के लिये वैकेंसी क्यों निकाली जाए। बाबा ने नौकरी मांगने आए युवाओं पर लाठियां बरसवा दीं। बाबा ने ऐसे-ऐसे उपकार किये हैं, बस पूछिए मत, स्कूलों की हालत तो सभी को मालूम ही है, पहले स्कूलों में बच्चे पढ़ते थे लेकिन अब तो ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के तहत कई स्कूलों गाय भी पढ़ रहीं हैं, क्योंकि बाबा के राज में गाय किसी हाईटेंशन तार से कम नहीं है। गाय को पूरा अधिकार है कि वह जब चाहे जहां चाहे घूम सकती है। जब उसे भूख लगे तो किसी भी किसान की फसल खा सकती है।
ख़बरदार! अगर किसान ने उसे खेत से बाहर किया तो बेचारा जेल और जेल जाएगा, इसलिये कुछ इलाक़ों के किसानों ने उन गायों पढ़ने के लिये सरकारी स्कूल में भेज दिया। ताकि कुछ पढ़ लिख जाए, और समझ ले कि दूसरे की फसल खाना ‘चोरी’ है। सड़कों पर रात रात भर घूमना आवारापन की निशानी है। अब गाय स्कूल में पढ़ रहीं हैं, और बच्चे खेतों में खेल रहे हैं। वैसे भी पढ़कर क्या करना है, जब नौकरी मांगने जाऐंगे तो बाबा लाठी चलवाऐंगे, इसलिये बग़ैर पढ़े ही ठीक हैं।
कल दिल्ली के ‘हिन्दू मुख्यमंत्री’ ने हनुमान चालीसा पढ़कर सुना दिया, इस पर तो बाबा की बांछें खिल उठीं, अब कह रहे हैं कि ‘ओवैसी’ को भी हनुमान चालीसा पढ़वायेंगे। अरे बाबा इतना उपकार मत कीजिये, हनुमान चालीसा पढ़ने के लिये पढ़ना आना भी तो जरूरी होता है। आपके राज्य के स्कूलों में तो गाय पढ़ रही हैं तो हनुमान चालीसा इंसान कैसे सुनाएगा? गाय से ही सुन लीजिए।
यह सब बाबा के उपकार का ही कमाल है कि अमेरिकी अख़बार ‘न्यूयार्क टाईम्स’ में भारतीय ‘महंत’ की फोटो छपती है, और उसमें बताया जाता है कि बाबा का हिन्दू वाहिनी संगठन एक उग्रवादी संगठन है, और बाबा उसके सरगना हैं। सोचिए! इतनी कम उम्र में बाबा ने भारत पर कितने उपकार किए हैं, सात समन्दर दूर बसा अमेरिका भी बाबा के इन ‘उपकारों’ से अच्छी तरह से परिचित हो गया है। बस अब शान्ति का नोबेल, और भारत रत्न मिलना बाक़ी है, बाबा उसके लिये बिल्कुल फिट बैठते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं व समसामयिक मुद्दों पर मुखर रूप से लेखन में सक्रिय हैं।)