यहां हर मजबूत व्यक्ति की निगाह में कमजोर व्यक्ति अपराधी है

Written by Mithun Prajapati | Published on: January 1, 2018
स्कूल से आते ही वह आज  फिर पापा से लिपट गयी और रोज की तरह कहने लगी - पापा, आज तो ला देना मेरी चप्पलें, मेरी नयी वाली मैडम रोज डाटतीं हैं और आज तो क्लास में खड़ा करा के कहने लगीं ,"अगर कल बकाया फीस के लिए पापा को साथ न लाई तो वापस लौटा देंगे ।"

Poor in India
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पापा ने रोज की तरह उसे उठाकर चूम लिया और बनावटी मुस्कान के साथ कहने लगे - अले  मेली प्याली बिटिया , आज तेरे चप्पल भी आ जायेंगे और कल स्कूल की फीस भी जमा कर देंगे।
 
बिटिया बोली- यही तो आप रोज कहते हैं। मुझे क्लास में अपने दोस्तों के सामने खड़ा कर दिया जाता है तो अच्छा नहीं लगता। जब टीचर मेरी फीस और चप्पल के बारे में कहती हैं तो सारे  बच्चे मुझे देखकर हँसते हैं। पापा मुझे रोना आता है।
 
पापा ने अपने चेहरे पर बनावटी मुस्कान के साथ कहा- बेटा अब ऐसा नहीं होगा , तेरी मम्मी का इलाज पूरा हो चला है, अब उसकी दवा में पैसे नहीं लगेंगे। जो कमाई के पैसे आएंगे अब बिटिया पर खर्च होंगे। और देखो बिटिया,..देखो बिटिया, आज रविवार भी है ,करीब तीन सौ रूपये बचेंगे , जिसमे से 60-70 रुपये तुम्हारी चप्पल के , 200 रुपये तुम्हारे स्कूल की फीस और बाकी घर के खर्चे। 
 
यही सब बातें वह एक कुशल अर्थशास्त्री की तरह पांच साल की बेटी को समझाता रहा ,जबकि वह भली भांति समझता था कि उसके कमाई और बजट के ब्यौरे में बिटिया को कोई रूचि नहीं है। 
 
शहर के चौराहे पर वह जलेबी का ठेला लगाता था। धंधा बहुत अच्छा तो नहीं चलता था ,मगर उसकी जीविका के लिए कहीं और की मजदूरी से  बेहतर था। रविवार के दिन लोग घूमने ज्यादा निकलते हैं तो उसकी बिक्री में अन्य दिनों की तुलना में इजाफा होता है। यही सब गुणा गणित करने के बाद उसने बेटी को ढांढस बंधाया था।
 
आज व्यापार अन्य इतवार की तुलना में कम था। शाम के दस बजने वाले थे। सड़कें सूनी होती जा रही थीं। वह भी अपनी दुकान समेटने में लगा था। उसे आज जल्दी थी कि कहीं चप्पल की दूकान बंद न हो जाए। तभी उसकी ठेलिये के सामने पुलिस की जीप आकर रुकी। उसके अंदर तीन पुलिस वाले थे। जीप को देखते ही उसका जी धक् से हो गया। वह अपराधी नहीं था फिर भी उन पुलिस वालों की नज़र में अपराधी ही था। यहां हर कमजोर मजबूत की निगाह में अपराधी है। उसका कसूर यही था कि घर पालने के लिए चौराहे पर ठेला लगाता था। वह कभी मन में सोचता- ठेला लगाना अपराध तो नहीं ! पर उसके सोचने से क्या होता है। 
 
अंदर बैठे पुलिस वाले ने इशारे से उसे बुलाया। वह डरता-डरता उसके पास पहुँचा। वह जानता था कि आज तो पैसे देने ही पड़ेंगे। करीब पांच  बार से वह किसी न किसी बहाने उन्हें पैसे देने के लिए अगले दिन आने को कह देता, लेकिन आज उसके पास छुटकारा पाने के लिए न तो उचित तर्क था और न ही बहाने हिम्मत हो रही थी। फिर भी उसने हिम्मत दिखाई की शायद साहब को कुछ दया आ जाये। वह हाथ जोड़कर बोला -  साहब, कल बेटी की फीस जमा करनी है। बेटी को कई दिन  से गोल मटोल जवाब दे रहा हूँ। अगर कल उसे पैसे नहीं दिए तो स्कूल से निकाल देंगे साहब।आप कल आइये ,मैं पक्का जुगाड़ करके दे दूंगा साहेब।
इतना कहकर वह रुआंसा सा होकर सिर नीचे झुकाए साहेब की दया का इंतज़ार करने लगा। साहब ने हाथ बाहर निकाल उसका बाल पकड़ झकझोरते हुए चार गालियां दे दी और बोले - अगर कल से यहाँ ठेलिया दिखा तो खाई में पलटवा दूंगा और तुझे थाने में। तुझे पता है न तेरी वजह से यहाँ कितना ट्राफिक जाम होता है और ये भी जानता है न की इस मामले में मैं कैसी कार्यवाही करता हूँ ?
 
इतना सुनते ही वह डर गया। उसने कई दुकानदारों को हफ्ता न देने या देर से देने के कारण इस पुलिस की कार्यवाही देखी थी। वह इन  सब को नहीं झेल सकता था और आखिर जल में मगर से बैर कर नुकसान तो अपना ही होगा। यही सब सोचकर उसने जेब से दो सौ रुपये निकाले और साहब के हाथ में पकड़ा दिया जैसे कलेजा निकालकर दे रहा हो। 
पुलिस वाले ने पुछा- कुछ जलेबी बची है ?
 
उसने कहा -"जी साहब "और बेटी के लिए घर ले जाने वाली जलेबी उठाकर दे दिया। साहब चले गए।
 
वह दुकान समेटकर घर की ओर चला। रास्ते में चप्पल की दूकान दिखी वह सोच तो रहा था कि चप्पल ले लें मगर इतने पैसे नहीं थे की बेटी को एक छोटी सी ख़ुशी दे देता। और दूकान वाले से इतना मेल भी न था कि उधार के लिए गुजारिश करे। 
 
वह अब चप्पल की दूकान से  आगे आ चुका था। पैर घर की ओर बढ़ ही नहीं रहे थे। ऐसे प्रतीत होता मानो पैरों में पत्थर बंधे हो। दिमाग में बस यही चल रहा था कि बेटी को क्या जवाब दूंगा। उसने  सोचा की इधर उधर समय व्यतीत कर लेता हूँ ,जब बेटी के सोने का समय हो जायेगा तब घर जाऊंगा।
 
करीब 11बजे वह घर  पहुंचा। पत्नी थाली में खाना निकाल सोने चली गयी थी। हाथ पैर धो वह  खाने के लिए बैठ, मगर खाया न गया। दिमाग तो कहीं और खोया हुआ था।  ऐसा लगता मानो खाने में स्वाद ही न है। बिस्तर पर लेटने गया जहाँ बेटी पहले से ही लेटी हुई थी। वह बेटी को खिसका उसके बगल में लेट गया। नींद तो आने से रही। बस दिमाग में यही चल रहा था कि कल फीस का जुगाड़ कहाँ से हो। तभी बेटी ने करवट लिया और पिता से चिपक गयी। उसके नन्हे कोमल हाथ पापा के गाल को छू रहे थे। पापा ने उसे सीने से चिपका लिया मानो दुनिया की सारी दौलत यही है। पापा के आँख से गिरी आंसू की बूँद बेटी के गाल पर दिए की रोशनी से ऐसे चमक रही थी मानो कोई मोती रख गया हो।

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