नरसंहार की तरफ बढ़ते भारत से चिंतित दुनियाभर के देश

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: January 25, 2022
अंतरराष्ट्रीय संस्था की ओर से रवांडा की तरह भारत में नरसंहार की चेतावनी



भारत की लोकतान्त्रिक, विकासशील देश की छवि आज धूमिल होती जा रही है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स, ऑक्सफेम रिपोर्ट, पनामा पेपर्स सहित कई वैश्विक रिपोर्ट नें भारत की फजीहत की है. इन सभी से शर्मनाक रिपोर्ट अब सामने आई है जब अमेरिकी होलोकास्ट मेमोरियल म्यूजियम (USHMM) ने सामूहिक नरसंहार के जोखिम वाले देशों की सूची में भारत को दुसरे स्थान पर रखा है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में बढती मुस्लिम विरोधी भावनाओं को इसके पीछे की वजह बताया गया है. 
देश में यह पहली बार नहीं हुआ है जब नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा मुसलमान समुदाय को समाज से अलग-थलग करने की कोशिश की गयी हो. पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं ने मुसलमान समुदाय के बीच असुरक्षा और भय की भावना को और गहरा किया है. नफरती बयानबाजी, भीड़ हत्या, धार्मिक दंगे, नागरिकता संशोधन कानून, धर्म संसद में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का खुला आह्वाहन, गुरुग्राम में जुमे की नमाज पर विवाद, कर्नाटक में हिजाब पहन कर कॉलेज आने पर प्रतिबन्ध, और अब अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा भारत में नरसंहार की चेतावनी नें अल्पसंख्यक, मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को बढ़ा दिया है.
 
हरिद्वार में धर्म संसद के आयोजक और हेट स्पीच करने को लेकर नरसिंहानंद को गिरफ्तार तो कर लिया गया है लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म संसद कर धार्मिक दंगे की कोशिश करने वालों पर सरकार में बैठे सभी लोगों की चुप्पी गंभीर चिंता का विषय है. धर्म संसद और हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यक्रम का वीडियो ट्वीट करते हुए ब्रिटेन की सांसद ‘नाज शाह’ ने लिखा कि, “यह 1941 का नाजी जर्मनी नहीं है. यह 2021 का भारत है. मुसलमानों को मारने की अपील की जा रही है. यह अब हो रहा है जो इसे अतिवादी समूह कह रहे हैं, उन्हें यह पता होना चाहिए कि हिटलर ने भी शुरुआत ऐसे ही की थी.”

मोदी राज में मुसलमानों के साथ भेदभाव की एक रिपोर्ट फ़्रांस की न्यूज एजेंसी ‘एएफ़पी’ ने भी प्रकाशित की है. एएफ़पी की रिपोर्ट में कहा गया है कि, “यहाँ नमाज़ के लिए जगह नहीं है. गुरुग्राम में जगह के कारण मुसलमान खुले में नमाज नहीं पढ़ पा रहे हैं. 2014 में मोदी के आने से कट्टर हिंदुवादियों को प्रोत्साहन मिला है और इन्हें लगता है कि यह हिन्दू राष्ट्र है यहाँ मुसलामानों के लिए जगह नहीं है”. 

नरसंहार का अंदेशा और चेतावनी:
अमेरिका स्थित गैर लाभकारी संगठन ‘जेनोसाइड वॉच’ के संस्थापक प्रोफ़ेसर ग्रेगरी स्टैंटन ने भारत में नरसंहार की चेतावनी दी है. उन्होंने कहा है कि, “मुसलमान समुदाय इसके शिकार हो सकते हैं. प्रोफ़ेसर ग्रेगरी स्टैंटन यह भी बताते हैं कि उन्होंने 1994 में हुए रवांडा नरसंहार जिसमें 100 दिनों में 10 लाख लोग मारे गए थे, का भी पूर्वानुमान किया था”.

उन्होंने कहा है कि “2002 में जब गुजरात दंगे में 1000 से अधिक मुसलमान मारे गए थे तब से भारत में नरसंहार की चेतावनी पर जेनोसाइड वॉच मुखरता से काम कर रहा है. उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे. उनके अनुसार इस बात के कई सारे सबूत हैं कि उन्होंने उस नरसंहार को बढ़ावा दिया था”.

स्टैंटन ने यह भी कहा कि मोदी का राजनीतिक जीवन मुस्लमान विरोधी बयानबाजी पर ही आधारित है. बीबीसी में वर्णित एक खबर के अनुसार, 14 जनवरी को समाचार पत्र द टेलीग्राम ने कहा कि युएसएचएमएम की ‘प्रारंभिक चेतावनी प्रोजेक्ट’ भारत के सन्दर्भ में कहता है कि, “हमारे सांख्यिकी मॉडल का अनुमान है कि 2021-2022 में भारत में 14.4 प्रतिशत (लगभग 7 में से 1) नरसंहार होने की सम्भावना है.

धार्मिक हिंसा पर सरकारी मौन:
देश के बदलते हालात और हिंसक प्रवृति को बढ़ावा देते समूहों पर केंद्र व् राज्य सरकार की चुप्पी खतरनाक है. कई विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी प्रवृति को बढ़ावा देने वाले दक्षिण पंथी समूह के लोग इसे सरकार की मौन सह्मति के रूप में देखते हैं. विपक्ष ने भी सरकार के इस उदासीन रवैये की आलोचना की है. उर्दू दैनिक अखबार ‘इंकलाब’ के हवाले से कहा गया है कि “ देश के उकसावे के ख़िलाफ़ आवाज देश के बाहर और भीतर में उठाई जा रही है. इसके बावजूद सत्ताधारी दल के किसी भी नेता ने ऐसे हिंसक भाषणों की निंदा नहीं की है. उनका मौन ही एक मात्र प्रतिक्रिया है. 

साम्प्रदायिक बयानबाजी चुनावी एजेंडा :
साम्प्रदायिक गतिविधि बीजेपी का पुराना हथियार है जिसे चुनाव के समय स्थान और समय देख कर इस्तेमाल में लाया जाता है. बाकि बचे समय में देश के युवाओं को हिंसक बनाने और बयानबाजी करने में उपयोग में लाया जाता है. वर्तमान में 5 राज्यों में हो रहे चुनाव के आधारभूत मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए भी इस एजेंडे का प्रयोग किया जाता है.

बहरहाल, नरसंहार कोई घटना नहीं है बल्कि यह एक प्रक्रिया है जिसके लिए वर्षों से जमीन तैयार की जाती है. हाल में आई जेनोसाइड वॉच की रिपोर्ट के अनुसार भारत में यह जमीन 2002 के समय से या उससे पहले से ही तैयार की जा रही है. समाज में वर्षों से चली आ रही असमानता व् अत्याचार के समावेश के विरोध में उठ रही आवाज व् उस आवाज को लगातार सत्ता पक्ष द्वारा निर्ममता से कुचलने का परिणाम गृह युद्ध के रूप में सामने आता है. सन 1994 में अकेले रवांडा (जो अफ्रीका का एक देश है) में गृह युद्ध का अंजाम ये है कि 100 दिनो के भीतर दो जाति (हुतू व तुत्सी) के 8 लाख लोग मारे गए और 2.5 लाख महिलाओं का बलात्कार किया गया इससे गृह युद्ध के भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. किसी भी लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष देश में जिसका अपना संविधान हो, उसका गृह युद्ध की ओर बढ़ना उस देश की जनता के लिए विनाशक साबित होता है.

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