आज, बुधवार 5 अप्रैल को दिल्ली के रामलीला मैदान में मज़दूरों और किसानों की ऐतिहासिक रैली हो रही है। इसके लिए किसान-मज़दूर एक दिन पहले कल से ही दिल्ली पहुंचने लगे थे।
कहा जाता है कि दिल्ली ऊंचा सुनती है, शायद यही वजह है कि किसानों-मज़दूरों को अपनी बात कहने के लिए बार-बार दिल्ली आना पड़ता है। लेकिन मज़दूर-किसान शायद इस बार अंतिम चेतावनी देने दिल्ली आ रहे हैं कि अगर उनकी सुनवाई नहीं हुई तो फिर सरकार को हटना होगा। आपको मालूम है कि 2024 आम चुनाव का साल है।
आपको याद होगा कि इसी तरह 2018 के अंत में किसान-मज़ूदर दिल्ली में जुटे थे और चुनाव का एजेंडा सेट कर दिया था कि जो मज़ूदर-किसान की बात करेगा वही देश पर राज करेगा, हालांकि पुलवामा और बालाकोट अटैक ने अचानक पूरा परिदृश्य बदल गया। लेकिन फिर 2020 से 2021 तक करीब एक साल से ज़्यादा किसानों ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले दिल्ली को घेरा था और केंद्र सरकार को अपने तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया था। एसकेएम 500 से अधिक किसान संगठनों का एक संयुक्त मंच है।
इसके अलावा 28-29 मार्च 2022 को एक विशाल, ऐतिहासिक दो दिवसीय आम हड़ताल ने सरकार को चेताया। यह माना जाता है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे बड़ी हड़तालों में से एक थी जिसमें व्यापक और विविध औद्योगिक क्षेत्रों के असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र के बड़े हिस्से ने शिरकत की थी। हड़ताल का आह्वान संयुक्त रूप से 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (आरएसएस/बीजेपी से संबद्ध बीएमएस को छोड़कर) और संयुक्त किसान मोर्चा ने संयुक्त रूप से किया था।
अब एक बार फिर मज़दूर-किसान एक साथ दिल्ली आए हैं।
देश के प्रमुख अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक के शब्दों में किसान-मज़दूरों का एक साथ आना एक ऐतिहासिक पल है।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) और ऑल इंडिया एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन (एआईजीडब्ल्यूयू) ने संयुक्त रूप से आज दिल्ली के रामलीला मैदान में संघर्ष रैली का आह्वान किया है।
इसमें देशभर से संगठित और असंगठित सभी मज़दूर शामिल हो रहे हैं। इसी के साथ आशा (ASHA), आंगनवाड़ी, मनरेगा वर्कर्स और परिवहन कर्मचारी संघ सहित योजना कार्यकर्ता भी इसमें शिरकत कर रहे हैं।
इस मज़दूर-किसान संघर्ष रैली के समर्थन की अपील पर बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित नागरिकों और बुद्धिजीवियों ने हस्ताक्षर किए हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं की सूची में प्रमुख नाम प्रभात पटनायक, इरफान हबीब, सुमित सरकार, मनोरंजन मोहंती, के.एम. श्रीमाली, उत्सा पटनायक, के. सचिदानंदन, पी. साईनाथ, जयति घोष, सी.पी. चंद्रशेखर, हर्ष मंदर, जॉन दयाल, एन. राम, एडमिरल एल. रामदास, नसीरुद्दीन शाह, रत्ना पाठक शाह, तीस्ता सीतलवाड़, नंदिता नारायण, आनन्द पटवर्धन, सईद मिर्जा, शाजी एन. करुण, सैयदा हमीद, तनिका सरकार, अचिन वनाईक, राजीव भार्गव, शशि कुमार आदि समेत अनेक गणमान्य शख्सियतें शामिल हैं।
यानी कुल मिलाकर आज दिल्ली में बड़ा जमावड़ा है। देश के कई हिस्सों में ओलावृष्टि और फसल की बर्बादी के बावजूद किसानों और खेतिहर मजदूरों का रेला दिल्ली पहुंच रहा है।
रैली के आयोजकों का कहना है कि यह संघर्ष रैली देश के हुक्मरानों से हिसाब मांगने की मुहिम है। यह रैली साफ़ तौर पर यह ऐलान करेगी कि सरकार की जनविरोधी नीतियों को, मज़दूर-किसानों के शोषण-उत्पीड़न को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह रैली श्रम क़ानूनों को बचाने की भी लड़ाई है तो लोकतंत्र और संविधान बचाने की भी मुहिम है। आयोजकों के अनुसार आज लोकतंत्र और संविधान पर हमले बहुत तेज़ हो गए हैं, जिन्हें रोकना ज़रूरी है।
Courtesy: Newsclick
कहा जाता है कि दिल्ली ऊंचा सुनती है, शायद यही वजह है कि किसानों-मज़दूरों को अपनी बात कहने के लिए बार-बार दिल्ली आना पड़ता है। लेकिन मज़दूर-किसान शायद इस बार अंतिम चेतावनी देने दिल्ली आ रहे हैं कि अगर उनकी सुनवाई नहीं हुई तो फिर सरकार को हटना होगा। आपको मालूम है कि 2024 आम चुनाव का साल है।
आपको याद होगा कि इसी तरह 2018 के अंत में किसान-मज़ूदर दिल्ली में जुटे थे और चुनाव का एजेंडा सेट कर दिया था कि जो मज़ूदर-किसान की बात करेगा वही देश पर राज करेगा, हालांकि पुलवामा और बालाकोट अटैक ने अचानक पूरा परिदृश्य बदल गया। लेकिन फिर 2020 से 2021 तक करीब एक साल से ज़्यादा किसानों ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले दिल्ली को घेरा था और केंद्र सरकार को अपने तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया था। एसकेएम 500 से अधिक किसान संगठनों का एक संयुक्त मंच है।
इसके अलावा 28-29 मार्च 2022 को एक विशाल, ऐतिहासिक दो दिवसीय आम हड़ताल ने सरकार को चेताया। यह माना जाता है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे बड़ी हड़तालों में से एक थी जिसमें व्यापक और विविध औद्योगिक क्षेत्रों के असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र के बड़े हिस्से ने शिरकत की थी। हड़ताल का आह्वान संयुक्त रूप से 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (आरएसएस/बीजेपी से संबद्ध बीएमएस को छोड़कर) और संयुक्त किसान मोर्चा ने संयुक्त रूप से किया था।
अब एक बार फिर मज़दूर-किसान एक साथ दिल्ली आए हैं।
देश के प्रमुख अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक के शब्दों में किसान-मज़दूरों का एक साथ आना एक ऐतिहासिक पल है।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) और ऑल इंडिया एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन (एआईजीडब्ल्यूयू) ने संयुक्त रूप से आज दिल्ली के रामलीला मैदान में संघर्ष रैली का आह्वान किया है।
इसमें देशभर से संगठित और असंगठित सभी मज़दूर शामिल हो रहे हैं। इसी के साथ आशा (ASHA), आंगनवाड़ी, मनरेगा वर्कर्स और परिवहन कर्मचारी संघ सहित योजना कार्यकर्ता भी इसमें शिरकत कर रहे हैं।
इस मज़दूर-किसान संघर्ष रैली के समर्थन की अपील पर बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित नागरिकों और बुद्धिजीवियों ने हस्ताक्षर किए हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं की सूची में प्रमुख नाम प्रभात पटनायक, इरफान हबीब, सुमित सरकार, मनोरंजन मोहंती, के.एम. श्रीमाली, उत्सा पटनायक, के. सचिदानंदन, पी. साईनाथ, जयति घोष, सी.पी. चंद्रशेखर, हर्ष मंदर, जॉन दयाल, एन. राम, एडमिरल एल. रामदास, नसीरुद्दीन शाह, रत्ना पाठक शाह, तीस्ता सीतलवाड़, नंदिता नारायण, आनन्द पटवर्धन, सईद मिर्जा, शाजी एन. करुण, सैयदा हमीद, तनिका सरकार, अचिन वनाईक, राजीव भार्गव, शशि कुमार आदि समेत अनेक गणमान्य शख्सियतें शामिल हैं।
यानी कुल मिलाकर आज दिल्ली में बड़ा जमावड़ा है। देश के कई हिस्सों में ओलावृष्टि और फसल की बर्बादी के बावजूद किसानों और खेतिहर मजदूरों का रेला दिल्ली पहुंच रहा है।
रैली के आयोजकों का कहना है कि यह संघर्ष रैली देश के हुक्मरानों से हिसाब मांगने की मुहिम है। यह रैली साफ़ तौर पर यह ऐलान करेगी कि सरकार की जनविरोधी नीतियों को, मज़दूर-किसानों के शोषण-उत्पीड़न को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह रैली श्रम क़ानूनों को बचाने की भी लड़ाई है तो लोकतंत्र और संविधान बचाने की भी मुहिम है। आयोजकों के अनुसार आज लोकतंत्र और संविधान पर हमले बहुत तेज़ हो गए हैं, जिन्हें रोकना ज़रूरी है।
Courtesy: Newsclick