प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर कोलाहल!
Source:Tweeter.
देश के प्रधानमंत्री के जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस’ के रूप में मनाया जाना दुनिया भर के लिए ऐतिहासिक दृश्य है. “जुमला नहीं जवाब दो, युवाओं को रोजगार दो!!” के नारों के साथ 17 सितम्बर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस के अवसर पर भारत के बेरोजगार सड़कों पर उतर कर सरकारी नीतियों के खिलाफ हुंकार भर रहे हैं. बीजेपी ने घोषणा किया है कि इस पुरे सप्ताह को सेवा सप्ताह के रूप में मनाया जाएगा जिसके जवाब में पिछले एक सप्ताह से बेरोजगार सप्ताह के रूप में ट्वीटर पर ट्रेंड हो रहा है. लाखों युवा अभी तक 17 सितम्बर को राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस घोषित कर ट्वीट कर चुके हैं.
क्या है बेरोजगारी के आंकड़ों का खेल?
बेरोजगारी पर करवाए जाने वाले सरकारी सर्वे के आंकड़ों को जारी किया जाना पिछले 3 वर्षों से बंद है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार भारत में अगस्त 2020 में बेरोजगारी की दर बढ़कर 8.35% हो गई हालाँकि जुलाई में यह दर कुछ कम जरुर हुई थी. अप्रैल और मई में इस साल की सबसे अधिक बेरोजगारी दर 23.48% और 23.52% दर्ज की गई।
भारत में शहरी क्षेत्रों को देखें तो जुलाई से अगस्त तक में 9.15% से 9.83% की मामूली वृद्धि दर्ज हुई है, जो जुलाई में 12.02% से काफी कम है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में, बेरोजगारी की दर जुलाई में 6.66% से बढ़कर अगस्त में 7.65% हो गई है। 2020 में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार चल रहे बेरोजगारी के आकड़ों के उतार-चढ़ाव को इस ग्राफ़ से स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है.
Source: TheQuint
जिम्मेदारियों से भागती सरकार
हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा करके युवाओं को बेरोजगारी की सौगात देने वाली सरकार के वादाखिलाफ़ी के विरोध में और अपने रोजगार के अधिकार के लिए युवाओं की मुखरता जिन्दा लोकतंत्र की तरफ इशारा कर रहा है. सरकार की गलत नीतियों की वजह से देश के 14 कोरोड़ युवा बेरोजगार हो चुके हैं जिसका कारण सिर्फ कोरोना महामारी नहीं हो सकता है. नोटबंदी, GST, और महामारी के समय में लागु किया गया अनियोजित लॉकडाउन एक बड़ी वजह जरुर हो सकती है लेकिन लगातार रसातल में जाती अर्थव्यवस्था व् सरकार की जनविरोधी मानसिकता के कारण युवाओं के भविष्य के साथ निंर्मम खेल खेला गया है.
विडंबना यह है कि कोरोना महामारी के इस भयावह दौर में जहाँ देश की लाखों जनता प्रभावित हो चुकी है और सरकार की तरफ उम्मीद भरे नजरों से देख रही है,ऐसे समय में सरकार का यह कहना कि उनके पास महामारी की वजह से प्रभावित व् पलायन करने वाले लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है, यह सरकार के गैरजिम्मेदाराना रवैये को दिखाता है.देश के वर्तमान हालात को वित्त मंत्री द्वारा ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ का नाम देकर मुख्य मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाए जाने की कोशिश लगातार जारी है.
आलम यह है कि देश के तमाम सरकारी संस्थानों और उद्योगों को निजी हाथों में सोंपने के बाद अब सरकारी बैंक और बीमा कंपनियों को निजी हाथों में बेचने की तैयारी है. रेलवे, एयरपोर्ट, बस स्टेशन, अधिकांश पुलिस सेवाएँ, राजमार्ग, सरकारी शिक्षण संस्थान सहित देश की अधिकांश सार्वजानिक संपत्ति का निजीकरण कर दिया गया है.
आज संगठित और असंगठित क्षेत्र के करोड़ों लोग बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. जनता महामारी के साथ-साथ गरीबी और भुखमरी के कगार पर भी खड़ा है. सेंटर फ़ॉर इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आकड़ों के मुताबिक़, लॉकडाउन लगने के एक महीने के बाद से क़रीब 12 करोड़ लोग अपने काम से हाथ धो चुके हैं जिसमेअधिकांश लोग असंगठित और ग्रामीण क्षेत्र से हैं.
आत्मनिर्भर भारत का सपना युवाओं को दिखाने वाले सरकार की आत्महत्या की तरफ बढ़ते युवाओं की निर्भरता पर यह क्रूर चुप्पी भारत की धराशायी होती आर्थिक,राजनीतिक संरचना का परिचायक है. दिल्ली से सटे नोएडा में हाल के दिनों में करीब 200 लोगों ने आत्महत्या कर ली है.
युवाओं का बढ़ता विरोध
कोरोना महामारी के पहले से ही भारतीय अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही थी जो महामारी की वजह से भयावह रूप धारण कर चूका है. पिछले 45 सालों में सबसे अधिक बेरोजगारी दर्ज की गयी है जिसे देश के युवाओं की नाराजगी के रूप में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है. आर्थिक सुस्ती और बढती बेरोजगारी पर भारतीय छात्रों और युवाओं ने सरकार के खिलाफ मुहिम तेज कर दी है जिसे सड़क से लेकर सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है. लगातार नौकरियों से हटाया जाना, तय समय पर नियुक्ति न होना, संस्थानों में बढते जातिगत भेदभाव, बढती फीस वृद्धि, नियुक्ति में बढते ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ देश भर से विरोध जाहिर किया जा रहा है.
इससे पहले भी 9 सितम्बर को देश के अलग अलग हिस्सों में युवाओं ने रात नौ बज कर नौ मिनट पर दिए, मोमबती, मोबाइल स्क्रीन की लाईट जला कर सांकेतिक रूप से अपना विरोध जाहिर किया था, साथ ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम मन की बात को यूट्यूब पर भारी संख्या में मिलने वाला डिसलाईक सरकार के गलत नीतियों के प्रति बढ़ते युवाओं के आक्रोश का नतीजा है जो विरोध के रूप में आज सड़कों पर है.
Source:Tweeter.
देश के प्रधानमंत्री के जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस’ के रूप में मनाया जाना दुनिया भर के लिए ऐतिहासिक दृश्य है. “जुमला नहीं जवाब दो, युवाओं को रोजगार दो!!” के नारों के साथ 17 सितम्बर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस के अवसर पर भारत के बेरोजगार सड़कों पर उतर कर सरकारी नीतियों के खिलाफ हुंकार भर रहे हैं. बीजेपी ने घोषणा किया है कि इस पुरे सप्ताह को सेवा सप्ताह के रूप में मनाया जाएगा जिसके जवाब में पिछले एक सप्ताह से बेरोजगार सप्ताह के रूप में ट्वीटर पर ट्रेंड हो रहा है. लाखों युवा अभी तक 17 सितम्बर को राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस घोषित कर ट्वीट कर चुके हैं.
क्या है बेरोजगारी के आंकड़ों का खेल?
बेरोजगारी पर करवाए जाने वाले सरकारी सर्वे के आंकड़ों को जारी किया जाना पिछले 3 वर्षों से बंद है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार भारत में अगस्त 2020 में बेरोजगारी की दर बढ़कर 8.35% हो गई हालाँकि जुलाई में यह दर कुछ कम जरुर हुई थी. अप्रैल और मई में इस साल की सबसे अधिक बेरोजगारी दर 23.48% और 23.52% दर्ज की गई।
भारत में शहरी क्षेत्रों को देखें तो जुलाई से अगस्त तक में 9.15% से 9.83% की मामूली वृद्धि दर्ज हुई है, जो जुलाई में 12.02% से काफी कम है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में, बेरोजगारी की दर जुलाई में 6.66% से बढ़कर अगस्त में 7.65% हो गई है। 2020 में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार चल रहे बेरोजगारी के आकड़ों के उतार-चढ़ाव को इस ग्राफ़ से स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है.
Source: TheQuint
जिम्मेदारियों से भागती सरकार
हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा करके युवाओं को बेरोजगारी की सौगात देने वाली सरकार के वादाखिलाफ़ी के विरोध में और अपने रोजगार के अधिकार के लिए युवाओं की मुखरता जिन्दा लोकतंत्र की तरफ इशारा कर रहा है. सरकार की गलत नीतियों की वजह से देश के 14 कोरोड़ युवा बेरोजगार हो चुके हैं जिसका कारण सिर्फ कोरोना महामारी नहीं हो सकता है. नोटबंदी, GST, और महामारी के समय में लागु किया गया अनियोजित लॉकडाउन एक बड़ी वजह जरुर हो सकती है लेकिन लगातार रसातल में जाती अर्थव्यवस्था व् सरकार की जनविरोधी मानसिकता के कारण युवाओं के भविष्य के साथ निंर्मम खेल खेला गया है.
विडंबना यह है कि कोरोना महामारी के इस भयावह दौर में जहाँ देश की लाखों जनता प्रभावित हो चुकी है और सरकार की तरफ उम्मीद भरे नजरों से देख रही है,ऐसे समय में सरकार का यह कहना कि उनके पास महामारी की वजह से प्रभावित व् पलायन करने वाले लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है, यह सरकार के गैरजिम्मेदाराना रवैये को दिखाता है.देश के वर्तमान हालात को वित्त मंत्री द्वारा ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ का नाम देकर मुख्य मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाए जाने की कोशिश लगातार जारी है.
आलम यह है कि देश के तमाम सरकारी संस्थानों और उद्योगों को निजी हाथों में सोंपने के बाद अब सरकारी बैंक और बीमा कंपनियों को निजी हाथों में बेचने की तैयारी है. रेलवे, एयरपोर्ट, बस स्टेशन, अधिकांश पुलिस सेवाएँ, राजमार्ग, सरकारी शिक्षण संस्थान सहित देश की अधिकांश सार्वजानिक संपत्ति का निजीकरण कर दिया गया है.
आज संगठित और असंगठित क्षेत्र के करोड़ों लोग बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. जनता महामारी के साथ-साथ गरीबी और भुखमरी के कगार पर भी खड़ा है. सेंटर फ़ॉर इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आकड़ों के मुताबिक़, लॉकडाउन लगने के एक महीने के बाद से क़रीब 12 करोड़ लोग अपने काम से हाथ धो चुके हैं जिसमेअधिकांश लोग असंगठित और ग्रामीण क्षेत्र से हैं.
आत्मनिर्भर भारत का सपना युवाओं को दिखाने वाले सरकार की आत्महत्या की तरफ बढ़ते युवाओं की निर्भरता पर यह क्रूर चुप्पी भारत की धराशायी होती आर्थिक,राजनीतिक संरचना का परिचायक है. दिल्ली से सटे नोएडा में हाल के दिनों में करीब 200 लोगों ने आत्महत्या कर ली है.
युवाओं का बढ़ता विरोध
कोरोना महामारी के पहले से ही भारतीय अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही थी जो महामारी की वजह से भयावह रूप धारण कर चूका है. पिछले 45 सालों में सबसे अधिक बेरोजगारी दर्ज की गयी है जिसे देश के युवाओं की नाराजगी के रूप में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है. आर्थिक सुस्ती और बढती बेरोजगारी पर भारतीय छात्रों और युवाओं ने सरकार के खिलाफ मुहिम तेज कर दी है जिसे सड़क से लेकर सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है. लगातार नौकरियों से हटाया जाना, तय समय पर नियुक्ति न होना, संस्थानों में बढते जातिगत भेदभाव, बढती फीस वृद्धि, नियुक्ति में बढते ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ देश भर से विरोध जाहिर किया जा रहा है.
इससे पहले भी 9 सितम्बर को देश के अलग अलग हिस्सों में युवाओं ने रात नौ बज कर नौ मिनट पर दिए, मोमबती, मोबाइल स्क्रीन की लाईट जला कर सांकेतिक रूप से अपना विरोध जाहिर किया था, साथ ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम मन की बात को यूट्यूब पर भारी संख्या में मिलने वाला डिसलाईक सरकार के गलत नीतियों के प्रति बढ़ते युवाओं के आक्रोश का नतीजा है जो विरोध के रूप में आज सड़कों पर है.