जामिया के छात्रों से क्रूरता क्यों?

Written by Ishmeet Nagpal | Published on: December 18, 2019
रविवार 15 दिसंबर 2019 को जामिया युनिवर्सिटी के छात्रों द्वारा सिटिज़नशिप अमेंडमेंट (नागरिकता संशोधन) ऐक्ट के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन का शांतिपूर्ण होना दिल्ली पुलिस ने खुद स्वीकारा है। फिर वहां के छात्रों पर पुलिस ने लाठियाँ और टीयर गैस क्यों बरसाए? 



इंटरनेट पे कुछ लोगों का दावा है कि प्रदर्शन करने वाले छात्र हिंसक हो गए और उन्होंने सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान किया। इस दावे को झूठा साबित करती कई वीडियो भी सामने आई हैं। इस शोरगुल में मेरा मुद्दा ये है कि किसी प्रदर्शन से सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होने पर क्या पुलिस गोलियां, लाठियाँ और टीयर गैस बरसाती है? इसका उत्तर है- बिलकुल नहीं ! तो फिर इस बार ऐसा क्यों?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट में लिखा है, “नागरिकता संशोधन अधिनियम पर हो रहे हिंसक विरोध दुर्भाग्यपूर्ण और बेहद दुखद हैं।  बहस, चर्चा और असंतोष  के आवश्यक अंग हैं लेकिन, सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान व सामान्य जीवन की शान्ति भंग करना कभी हमारे लोकाचार का हिस्सा नहीं रहा है।“
("Violent protests on the Citizenship Amendment Act are unfortunate and deeply distressing. Debate, discussion and dissent are essential parts of a democracy but, never has damage to public property and disturbance of normal life been a part of our ethos.”)

यह वही देश है जहाँ बाबरी मस्जिद को कार सेवकों की भीड़ ने ध्वस्त किया था और जहाँ 2016 में हरयाणा के जाट आंदोलन के नाम पर दुकानें, गाड़ियां जलाई गयी थीं और औरतों के साथ यौन शोषण हुआ था। लोकाचार में ऐसी घटनाएं कोई नयी बात नहीं हैं, लेकिन इन घटनाओं के लिए सरकार व पुलिसकर्मियों की प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी।  

2016 में जब जाट आंदोलन की शुरुआत हुई तब मैं खुद रोहतक के पास एक कॉलेज में अपनी थीसिस पूरी कर रही थी। परीक्षा के दिन थे और मेरे साथ  21 महिला डॉक्टर और 5 पुरुष डॉक्टर परीक्षा देने के लिए कॉलेज से निकलने से डर रहे थे। हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं था। हमारी तीन साल की मेहनत हमें बर्बाद होती दिख रही थी। जब दंगा करती भीड़ दुकानें जला रही थी और हाईवे सड़क पर आते-जाते वाहनों की तोड़फोड़ कर रही थी, तब पुलिस हाथ बाँध कर बैठी थी। न टीयर गैस न लाठी, पुलिस ने कुछ नहीं किया। 
 
सोचने की बात है कि लाठी आखिर किस पर बरसती है? जहां राजनीतिक दबाव हो, वहां सौ खून माफ़ होते हैं। लेकिन जहाँ वे लोग आवाज़ उठाएं जिन्हें कमज़ोर समझा जाता है, तो पुलिस का कहर सामने आ जाता है।  

मीडिया की एक-तरफ़ा रिपोर्टिंग टीवी के सामने बैठी जनता को बहलाने और बहकाने में सफल हो रही है। सोशल मीडिया पर जितना सच है, उतना ही झूठ भी फैलाया जाता है। ऐसे समय में एक आम नागरिक का कर्तव्य है कि वह सच जानने की मांग करें। सरकार से, मीडिया से, पुलिस से - सब से सवाल कीजिये। पूछिए कि लाइब्रेरी में पढ़ते छात्र किस क़ानून का उलंघन कर रहे थे जो उन पर टीयर गैस बरसाई गयी ? पूछिए कि रात को पुरुष पुलिसकर्मी लड़कियों के हॉस्टल में क्यों घुसे? 

क्या हम यह मान लें कि जनतंत्र का अंत हो चुका है? क्या कल कोई हमारे बच्चों के स्कूल में टीयर गैस लेकर घुस आएगा? जब कश्मीर और असम में फ़ोन व् इंटरनेट बंद कर के उन्हें मौन कर दिया गया है, जब जामिया (दिल्ली), दिल्ली यूनिवर्सिटी, नडवा कॉलेज (लख़नऊ) और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बेधड़क छात्रों पर अत्त्याचार हो रहा है, तो क्या वो दिन दूर है जब आप भी अपनी स्वतंत्रता और अपनी आवाज़ खो देंगे? 

लखनऊ में आंदोलन के बीच खड़ी एक छात्र, सना उम्मीद ने हमें बताया, "छात्राओं और छात्रों पर जिस तरह से पुलिस बर्बरता दिखा रही है वो बेहद दुखद है। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ हर जगह शांतिपूर्वक तरीके से विरोध हो रहा है उसके बाद भी पुलिस छात्रों को मार रही है, टियर गैस और वाटर केनन जैसी चीजों का इस्तेमाल कर रही है। ये निंदनीय है। आंदोलन को रोकने के लिए उसे हिन्दू मुस्लिम की शक्ल दी जा रही है जबकि इस एक्ट से समाज के निचले तबके, आदिवासी, दलित, मुस्लिम, गरीब- सबका नुकसान होगा। हमारा आंदोलन जारी रहेगा और हम हक़ के लिए आवाज़ उठाते रहेंगे।"

सना की बात सुनिए, समझिये और फिर से सोचिये - यह सब क्यों हो रहा है? आज आप किसके साथ खड़े हैं, उसका असर आपकी आने वाली पीढ़ियों तक जायेगा। सच्चाई को चुनिए, स्वतंत्रता को चुनिए, देशभक्ति को चुनिए। जय हिन्द !

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