गुस्सा सिर्फ टप्पल की घटना पर क्यों? दूसरे बलात्कारियों को फांसी और जलाने की मांग क्यों नहीं?

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: June 10, 2019
वैसे तो मुझे आज पश्चिम बंगाल में भाजपा की राजनीति और अखबारों में उसकी पर रिपोर्टिंग पर लिखना चाहिए लेकिन यह मामला अभी कुछ दिन चलेगा और उसपर लिखने का मौका फिर मिलेगा। पर अलीगढ़ के टप्पल कस्बे में जो हो रहा है वह शायद संभल जाए तो इसमें अखबारों की भूमिका बताना रह जाएगा। आज दैनिक जागरण में पहले पन्ने पर खबर है, बच्ची के कातिलों को फांसी की मांग के साथ टप्पल में तालाबंदी। इस खबर की तस्वीर आप देख सकते हैं। खबर क्या है यह छोटी सी तस्वीर है और शीर्षक, कैप्शन के साथ यह भी बताया गया है कि खबर अंदर के पन्ने पर है। कुल मिलाकर, आप समझ सकते हैं कि बलात्कारियों - कातिलों को फांसी की मांग पर बंद रहा और दैनिक जागरण में इसी करण यह खबर पहले पन्ने पर है। अंदर के पन्ने पर चार कॉलम में टॉप पर प्रकाशित खबर का फ्लैग शीर्षक है, "जबरदस्त गुस्सा - बच्ची की निर्मम हत्या के विरोध में टप्पल चलो आह्वान, दिन भर रहा तनाव, पुलिस से नोंकझोंक"। इस खबर का मुख्य शीर्षक है, "अलीगढ़ में फूटा आक्रोश, एक्सप्रेसवे जाम।" और इसके साथ प्रकाशित एक फोटो का कैप्शन है, यमुना एक्सप्रेसवे पर जाम लगाने की कोशिश कर रहे लोगों को खदेड़ते पुलिस कर्मी। मुझे नहीं पता जाम लगा कि नहीं और लगा तो कितनी देर।

यही खबर आज दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर लीड है। फ्लैग शीर्षक है, “अलीगढ़ में बच्ची की हत्या, इलाके में सुरक्षा बलों की 10 कंपनियां तैनात”। मुख्य शीर्षक है, “साध्वी प्राची को टप्पल जाने से रोका, धारा 144 तोड़ने पर पांच हिरासत में”। एक ही खबर की ये दो प्रस्तुतियां संपादकीय विवेक और आजादी का असर है। कहने की जरूरत नहीं है कि दुष्कर्म और हत्या से तनाव है तो उसकी रिपोर्टिंग यही होगी और बलात्कारी को सजा देने की मांग की जा रही है तो इसकी भी रिपोर्टिंग होगी ही। पर यह तो समझना होगा कि मांग करने से बलात्कार के अभियुक्त को फांसी नहीं दी जा सकती है और ऐसी मांग का कोई मतलब नहीं है। इसके अलावा, अगर हाल के मामले में बलात्कार के अभियुक्त को फांसी की मांग की जा रही है तो बलात्कार के मामले में पहले से जेल में बंद लोगों के मामले में स्थानीय जनता क्या चाहती है - इसकी जानकारी पाठकों को कौन देगा? आप जानते हैं कि भाजपा के एक विधायक बलात्कार के आरोप में महीनों से जेल में हैं। क्या फांसी देने का निर्णय उनपर लागू होना चाहिए? अखबार माहौल बनाने और डर पैदा करने का काम कर रहे हैं और मुख्य मुद्दों पर शांत हैं।

टप्पल मामले में जब हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया गया है और पुलिस कार्रवाई चल रही है तो साध्वी प्राची और दूसरे लोगों को वहां जाने की क्या जरूरत? क्या आपने मुख्यमंत्री या किसी दूसरे बड़े जिम्मेदार नेता का यह आश्वासन पढ़ा कि टप्पल मामले में पुलिस कार्रवाई कर रही है सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि दोषियों को सजा हो। पहले की मांग पर कानून में संशोधन कर बलात्कार की सजा फांसी कर दी गई है। ऐसे में बिना सुनवाई फांसी की सजा देने की मांग और उसकी रिपोर्टिंग - बिना तथ्य बताए आग में घी डालना ही है। दूसरी ओर, गुस्सा कम करने के लिए आवश्यक कोई बयान या आश्वासन अखबारों में नहीं है। मुझे लगता है कि इससे सरकारी कार्रवाई व्यवस्थित ढंग से हो पाएगी और पुलिस अनावश्यक रूप से भीड़ संभालने में नहीं लगी रहेगी। पर भाजपा के ही नेता टप्पल जाकर मामले को तूल दे रहे हैं।

जागरण ने लिखा है कि साध्वी प्राची ने कहा कि वह पीड़ित परिवार को सीएम से मिलवाएंगीं। इससे पहले के मामलों में पीड़ित परिवार मुख्यमंत्री से कैसे मिलते रहे हैं यह हम देख-सुन और पढ़ चुके हैं। इसके अलावा, क्या मुख्यमंत्री की प्रतिनिधि को इस तरह रोका जा सकता है? साथ ही मुख्यमंत्री जिला प्रशासन को यह काम न सौंपकर साध्वी प्राची को क्यों सौंपेंगे - यह भी सोचने वाली बात है। कोई आम आदमी ऐसा दावा करे तो माना जा सकता है कि वह गलत कह रहा होगा और उसके खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है। पर राजनीतिक मामले ऐसे ही चलते हैं। कायदे से अखबारों को यह सब स्पष्ट करना चाहिए पर वे भी गोल-मोल ही रखते हैं।

जागरण ने अपनी खबर में लिखा है, स्पेशल कोर्ट में चलेगा मुकदमा। इसमें बताया गया है कि बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के मामलों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालय गठित किया है। अलीगढ़ में एडीजे- सात (विशेष न्यायालय पॉक्सो) में इन मामलों की सुनवाई होती है। हालांकि, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी इस प्रकरण को फास्ट टैक कोर्ट में ले जाने की बात कह रहे हैं। इसके साथ ही, अभियुक्त जेल में हैं और उनपर कड़ी नजर रखी जा रही है। ऐसे में मुझे प्रशासन का विरोध करने का कोई कारण नजर नहीं आता है और राजनेता प्रशासन का सहयोग करने की बजाय जबरन भीड़ लगाएं, नारा लगाएं, धारा 144 तोड़ें तथा अखबार उनसे सहानुभूति दिखाएं तो यह पत्रकारिता नहीं राजनीति ही है। और इसका कारण कोई नहीं समझता हो ऐसा भी नहीं है। पहले नाम-वाम लिखने में परहेज किया जाता था। अब ऐसा कुछ नहीं है। जागरण के मुताबिक हत्यारोपित जाहिद, इसकी पत्नी सबुस्ता, भाई मेहंदी और असलम को जेल में कड़ी निगरानी में रखा गया है। इन्हें 10 दिन यहां रखने के बाद अलग-अलग बैरक में भेजा जाएगा।

अमर उजाला में इस खबर का शीर्षक है, "छावनी बना टप्पल, नहीं हुई महापंचायत"। उपशीर्षक है, "अलीगढ़ में बच्ची से बर्बरता का मामला : प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने खदेड़ा"। अमर उजाला ने एक और खबर छापी है, पीड़ित पिता ने कहा किसी के पास नहीं जाउंगा। इसमें कहा गया है, संवेदना जताने पहुंचे लोगों ने तीन बार मुख्यमंत्री से बात कराई लेकिन उन्होंने कहा कि हमारी बच्ची की जान गई है, आरोपियों को फांसी मिलने पर ही कलेजे को ठंडक मिलेगी। हम किसी से मिलने कहीं नहीं जाएंगे। इसके बाद इस मामले में कुछ बचता नहीं है। सुनिश्चित यही किया जाना है कि मामले की सुनवाई अदातल में जल्दी पूरी हो और अभियुक्तों को सजा मिले। यह नेताओं के एक ट्वीट या एक बयान से सुनिश्च हो सकता है। बशर्ते वे ऐसा चाहें।

अमर उजाला में इस खबर का शीर्षक है, "छावनी बना टप्पल, नहीं हुई महापंचायत"। उपशीर्षक है, "अलीगढ़ में बच्ची से बर्बरता का मामला : प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने खदेड़ा"। अमर उजाला ने एक और खबर छापी है, पीड़ित पिता ने कहा किसी के पास नहीं जाउंगा। इसमें कहा गया है, संवेदना जताने पहुंचे लोगों ने तीन बार मुख्यमंत्री से बात कराई लेकिन उन्होंने कहा कि हमारी बच्ची की जान गई है, आरोपियों को फांसी मिलने पर ही कलेजे को ठंडक मिलेगी। हम किसी से मिलने कहीं नहीं जाएंगे। इसके बाद इस मामले में कुछ बचता नहीं है। सुनिश्चित यही किया जाना है कि मामले की सुनवाई अदातल में जल्दी पूरी हो और अभियुक्तों को सजा मिले। यह नेताओं के एक ट्वीट या एक बयान से सुनिश्चत हो सकता है। बशर्ते वे ऐसा चाहें। राजस्थान पत्रिका ने अलीगढ़ की घटना को पहले पन्ने पर नहीं छापा है लेकिन भोपाल की खबर पहले पन्ने पर है। अलीगढ़ की खबर अंदर होने की सूचना पहले पन्ने पर है।

हिन्दुस्तान और नवभारत टाइम्स में भी अलीगढ़ की यह खबर पहले पन्ने पर है। नवभारत टाइम्स में शीर्षक है, अलीगढ़ में दरिन्दगी के खिलाफ सड़क पर उतरे लोग, आगजनी। धारा 144 के बावजूद दिन भर होता रहा प्रदर्शन। नवभारत टाइम्स में एक और खबर है कि भोपाल में रेप के बाद 9 साल की बच्ची की हत्या कर दी गई। इसके मुताबिक, परिवार की शिकायत है कि पुलिस ने ऐक्शन लिया होता तो बच्ची की जान बच जाती। आप समझ सकते हैं कि विरोध भोपाल में होना चाहिए जहां पुलिस ने कार्रवाई नहीं की पर विरोध अलीगढ़ में हो रहा है जहां पुलिस ने कार्रवाई की है। और दिलचस्प यह है कि सोशल मीडिया पर भी लोगों को उकसाया जा रहा है कि टप्पल कांड पर फलाने ने नहीं लिखा ढिमकाने ने नहीं लिखा। जबकि लिखने की जरूरत भोपाल कांड पर है। नभाटा के अनुसार कुशीनगर में भी बलात्कार की एक घटना हुई है और साध्वी प्राची ने मांग की है कि टप्पल के आरोपियों को जिन्दा जलाया जाए। आप समझिए कि टप्पल के आरोपियों से इतना गुस्सा क्यों हैं। और इसे गुस्से को क्यों जताया जा रहा है और रोकने की कोशिश क्यों नहीं हो रही है। यही राजनीति है। वरना जागरण को भोपाल और कुशीनगर के मामलों में भी यही स्टैंड लेना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)

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