किसने की थी कृषि बिल लाने की मांग, नाराज किसानों ने एक एक कर खोल दी सरकार के दावों की पोल

Written by Navnish Kumar | Published on: November 30, 2020
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के सवाल कितने जायज हैं और सरकारी दावे कितने खोखले, किसान नेताओं ने रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक एक कर, सरकार के पूरे एजेंडा को बेपरदा कर दिया है। रही सही कसर विपक्ष और खुद सरकार ने अपनी मंशा जगजाहिर कर, पूरी कर दी है। मसलन, नाराज किसानों ने सवाल किया कि सरकार बताए कि नए कृषि कानूनों को क्यों लाना पड़ा? बताए कि किस किसान संगठन और किन किसानों ने सरकार से इन कृषि कानूनों (तथाकथित सुधारों) को लाने की मांग की थी। 



कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के बीच दिल्ली मार्च करने वाले किसान समूह के प्रतिनिधियों ने कहा है कि सरकार केवल कॉरपोरेट्स के कल्याण में रुचि रखती है, यही कारण है कि इस तरह के "काले कानून" लाए जा रहे हैं। अगर नहीं, तो सरकार किसानों के सवालों से क्यों भाग रही हैं?

गृह मंत्री अमित शाह के सशर्त वार्ता के प्रस्ताव को खारिज करने के बाद संवाददाता सम्मेलन में किसान नेताओं  ने कहा, "हम सरकार से पूछते हैं कि किस किसान संगठन और किन किसानों ने सरकार से अपना भला करने की मांग की थी। दूसरा, सरकार बताए कि कौन से बिचौलिए को निकालने की बात कह रही है. बिचौलिए को डिफाइन करे सरकार। कहा बिचौलिए सरकार के रक्षा सौदों में होते हैं, मंडी आढ़ती केवल सर्विस प्रोवाइडर हैं।

किसान प्रतिनिधियों ने कहा, "हमें बताया गया कि बिना किसी शर्त के सोमवार को बैठक होगी, लेकिन हमें शर्तों के साथ पत्र मिला हैं। किसान नेताओं ने कहा कि सरकार को बिना किसी शर्त के खुले दिल से बातचीत का आमंत्रण देना चाहिए। 

किसान नेताओं ने कहा, "देश भर के किसान आंदोलन कर रहे हैं। अमित शाह क्यों इसे पंजाब के किसानों द्वारा किया आंदोलन बताने व बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वे किसानों में फूट डालने की बजाय क्यों स्वीकार नहीं करना चाहते हैं कि आंदोलन अखिल भारतीय है। कहा एक रणनीति के तहत सरकार के सभी पत्र पंजाब के किसानों को संबोधित हैं। विरोध कर रहे अन्य किसान नेताओं को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए। 

किसान नेताओं ने कहा कि तीनों किसान विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक बिलों को निरस्त किया जाए और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दी जाए। 

किसान नेताओं का कहना है कि पूरे शहर में पुलिस बलों की तैनाती के साथ दहशत और भय का माहौल किसानों और दिल्ली की जनता के लिए कायम किया जा रहा है। किसानों को डर है कि बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड को जेल में तब्दील किया जा सकता है। यह आशंका दिल्ली पुलिस के उस अनुरोध के बाद पनपी, जिसमें स्टेडियम को जेल में बदलने की मांग रखी गई थी।

पंजाब किसान यूनियन के अध्यक्ष रुल्दू सिंह ने बैठक के पहले ही साफ कर दिया था कि विरोध प्रदर्शन का स्थान रामलीला मैदान तय है तो बुराड़ी क्यों जाएं. सिंह ने कहा था कि तीनों कृषि कानूनों के अलावा किसान बिजली संशोधन बिल 2020 को भी वापस लेने की मांग पर कायम हैं।  अगर केंद्र सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है तो उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गारंटी का कानून लाना होगा। 

भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी कहा कि विरोध प्रदर्शन के लिए निजी स्थल निरंकारी ग्राउंड पर नहीं जाएंगे। विरोध प्रदर्शन की जगह रामलीला मैदान ही तय है। किसान पिछले तीन माह से कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं लेकिन हमारी कोई बात केंद्र सरकार नहीं सुन रही है। 

दूसरा, जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रविवार को मन की बात कार्यक्रम में कृषि कानूनों का समर्थन किया, उससे उनकी मंशा को भखुबी समझा व जाना जा सकता है। पीएम मोदी ने कहा था कि इन कानूनों ने किसानों के लिए संभावनाओं और अवसरों के लिए नए द्वार खोल दिए हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसी मंशा पर सवाल उठाए है कि जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी मन की बात कर, नए कृषि बिलों के फायदे गिना रहे हैं, उससे अपनी मंशा और वार्ता का परिणाम दोनों, वह पहले ही तय कर दे रहे हैं। 

राहुल गांधी ने ट्वीट कर पीएम मोदी और केंद्र सरकार की इसी मंशा पर सवाल उठाए हैं कि जब आंदोलन के बीच पीएम काले कानूनों के फायदे गिना रहे है, उससे वह सरकार की मंशा को भी साफ साफ उजागर कर दे रहे हैं।



किसान संगठनों ने 7 सदस्यीय कमेटी में स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव ने कहा कि सरकार को यह सोचना बंद कर देना चाहिए कि वह वार्ता किसानों को नए कानूनों का लाभ बताने के लिए करने जा रही है। सरकार को अपना प्रस्ताव किसान नेताओं के सामने रखना चाहिए। 

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने किसानों के रास्ते मे अवरोध पैदा करने को लेकर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि किसान केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे है तो केंद्र सरकार किसानों को दिल्ली आने का न्यौता दे रही हैं। ऐसे में बीच रास्ते मे किसानों को रोकने वाले खट्टर कौन हैं। खट्टर ने शांतिपूर्ण दिल्ली जा रहे किसानों के रास्तो में बेवजह गड्ढे क्यों खुदवाए? लाठीचार्ज, वाटर कैनन व टियर गैस क्यों छोड़ी? खट्टर कौन होता हैं पंजाब के किसानों को रोकने वाला। खट्टर का क्या मतलब था?

अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने भी ट्वीट कर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि खट्टर ने किसानों और उनके आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की हैं। अकाली दल किसानों को खालिस्तानी बताने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री के बयान की कड़ी निंदा करता है। यह किसानों को बदनाम करने और आंदोलन को कुचलने की साजिश है।

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है। जैन ने कहा, 'इसमें कोई कंडीशन थोड़ी लगनी चाहिए कि कब बात करेगी सरकार। बात तुरंत करनी चाहिए। कंडीशन वाली बात थोड़ी है। हमारे देश के किसान हैं, हमारे अन्नदाता हैं, उनसे तुरंत बात करनी चाहिए और जहां वो चाहें उन्हें बैठने देना चाहिए।

आप नेता संजय सिंह ने कृषि कानूनों को राज्यसभा में पास कराने से लेकर अब तक के केंद्र सरकार के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार को किसानों की बजाय, कॉरपोरेट की चिंता ज्यादा है।

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भाजपा सरकारों पर किसानों के हितों की परवाह न करने के आरोप लगाए हैं तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने किसानों से आम सहमति के बिना लाए गए कृषि कानूनों पर पुनर्विचार की सलाह मोदी सरकार को दी है।

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