कोरोना संक्रमण काल में क्या कर रहे हैं हमारे चुने हुये प्रतिनिधि ?

Written by Bhanwar Meghwanshi | Published on: April 21, 2020
यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि इस महामारी के वक्त में वे लोग कहाँ हैं,जिन्होंने हमारे वोट लिए हैं,क्या कर रहे हैं वे सब नेतागण जिन्होंने चुनाव लड़ा,जनता से वोट लिए,बड़े बड़े वादे किये, साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले वे कर्मठ,सेवाभावी,लोकप्रिय लोग आज की तारीख में किधर हैं ?



वैसे भी किसी भी जनप्रतिनिधि की जरूरत जनता को तब सर्वाधिक महसूस होती है,जब वह मुसीबत,आपदा या महामारी से सामना कर रही हो। इस वक्त कोरोना के संक्रमण काल में जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के अपेक्षा नौकरशाही ही अधिक सक्रिय नजर आती है।

इन दिनों कईं बार लगता है कि ब्यूरोक्रेट्स ही सब तरफ हावी हैं,जबकि लोकतंत्र में चुने हुए लोगों की अपनी अहमियत और विश्वसनीयता होती है,क्योंकि वे केवल परीक्षा पास करके नहीं आते हैं,उन्हें हर पांच साल में चुनाव जैसी अग्नि परीक्षा से दो चार होना पड़ता है।इसलिए यह उम्मीद वाज़िब है कि जब जनता को उनकी जरूरत लगे तो जन नेता उनके मध्य दिखलाई पड़ने चाहिए।

इस समय मैं देख रहा हूँ कि आम लोग त्रस्त है,कईं लोग देश भर में अलग अलग जगहों पर फंसे हुए हैं,बाकी अपने अपने घरों में दुबके हुए हैं,लॉक डाउन तो है ही,हमारे शहर और जिले में कर्फ्यू और सुपर कर्फ्यू भी है,ऐसे समय में लोगों को इधर से उधर अतिआवश्यक आपातकालीन काम के लिए भी निकलना पड़े तो कर्फ्यू पास चाहिए होता है,जिसे जारी करने में आम तौर पर बहुत कठिनाई आती है,बाहर फंसे लोगों को मदद पहुंचाना,उनकी सुरक्षित घर वापसी के इंतजाम करना और यहां घरों में कैद प्रायः लोगों को रोजमर्रा की सामग्री पहुंची या नहीं,इस पर निगरानी करना भी जनप्रतिनिधियों का काम है।

सवाल यह है कि कितने निर्वाचित प्रतिनिधि यह कर पा रहे हैं, कितने हैं जो इस मुश्किल वक्त में लोगों के बीच जा रहे हैं ?

मुझे खुशी है कि मेरे निवास क्षेत्र माण्डल के विधायक रामलाल जी जाट अनवरत यह कर रहे हैं,उन्होंने 1 करोड़ 11 लाख रुपये अपने कोष से चिकित्सा सुविधाओं के लिए सबसे पहले दिए,डेयरी से अलग से फंड दिया,अपने वेतन से भी दिया,और भी आर्थिक मदद एकत्र की और प्रशासन को सौंपी।इस अनुकरणीय पहल से प्रेरित अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी उनका अनुसरण किया,जो काबिले तारीफ़ है।

इसके बाद उन्होंने देश के अलग अलग जिलों में फंसे भीलवाडा जिले के लोगों की व्यथा को सुना,वहां के जिला कलेक्टर से बात की,इन लोगों के रहने खाने की माकूल व्यवस्था सुनिश्चित की तथा जो रास्ते में थे,उनके लिए भी हरसंभव मदद की।एक पूरा ऑफिस और पांच सदस्यीय टीम इस काम के लिए लगाई हुई है,जो बहुत अच्छा काम कर रही है।

विधायक जी स्वयं हर रोज दोपहर तक अपने ऑफिस से काम निपटाते हैं और बचे हुए वक्त का उपयोग वे अपने क्षेत्र की जनता के बीच जा कर उनका दुख दर्द सुनते हैं,सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को साथ लेकर हर रोज पांच पंचायतों का दौरा करते है।

गांवों की सफाई व्यवस्था ,राशन सामग्री ,नकद सहायता ,फ़ूड सिक्योरिटी के तहत अनाज वितरण आदि की गांव वाइज समीक्षा करते हैं,देर रात घर पहुंचते हैं।

आज मेरे गांव भी पहुंचे,सबसे पहले दलित, आदिवासी व घुमन्तू समुदाय के घरों में गये,उनके खाने पीने की हालातों को प्रत्यक्ष रूप से स्वयं देखा, फिर विधवा,एकल महिलाओं,विकलांगों और बीपीएल तथा गरीब लोगों के बारे में पता किया,सबको इस संकट में राहत पहुंचे,कोई भूखा न सोये, मनरेगा के तहत हर जरूरतमंद को काम मिले ,इन सब बातों की चर्चा की ,सरपंच,सचिव,स्वास्थ्यकर्मियों व अन्य जिम्मेदार कर्मचारियों व जनप्रतिनिधियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए।

तकरीबन 2 घण्टे तक मैंने खुद मौजूद रहकर अपने जनप्रतिनिधि के काम को देखा, उनके जन सरोकार से वाकिफ हुआ और संतुष्ट भी कि जनता का नेता ऐसा ही होना चाहिए।

जनप्रियता तभी आती है जब जनता से जुड़ाव,लगाव और उसके प्रति जवाबदेही का भाव आये,कुछ लोग सिर्फ प्रेस नोट जारी कर रहे हैं ,कुछ इस मुश्किल वक्त में भी डर्टी पॉलिटिक्स व ब्लेम गेम में लगे हुए हैं।

संकट काल ही में परखना होगा कि हमारे जनप्रतिनिधि की भूमिका क्या है ?इसीसे उनकी जनता के प्रति सोच व सरोकार और क्रेडिबिलिटी का पता चलता हैं।

अच्छा लगा ,इसलिये सोचा कि अवगत करा दूँ, नहीं तो लोग कहेंगे कि आलोचना के अलावा आप करते क्या है ?

(भंवर मेघवंशी 'शून्यकाल' के संपादक हैं।)

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