यह आंबेडकर की सदी है, स्वागत कीजिए!

Written by Sanjay Sarman Jothe | Published on: December 6, 2017
भारतीय समाज के लिए जब भी और जहां भी समता और बंधुत्व को लक्ष्यित कोई भी बात निकलेगी, अंबेडकर उसके केंद्र में रहेंगे। एक निष्पक्ष तर्कयुक्त और वैज्ञानिक अर्थ में न सिर्फ दमित और दलित के लिए उनके चिंतन का केन्द्रीय मूल्य है, वरन मानव मात्र की मुक्ति की घोषणा उनका मुख्य स्वर रहा है।



उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक उद्विकास में जिस ढंग की इबारत निर्मित होती है वो बहुत गौर करने लायक है। अपनी तथाकथित महानता से सम्मोहित एक राष्ट्र और एक संस्कृति किस हद तक क्रूर, पलायनवादी और जड़ हो सकती है ये भी बाबा साहेब के संघर्ष में उभरकर आता है।

दमन और दलन कोई आकस्मिक बात नहीं है, यह एक एतिहासिक षड्यंत्र का नतीजा है। इसके चक्रव्यूह को तोड़कर और इसके प्रति जागरूकता निर्माण करके उन्होंने जो काम किया है वह अतुलनीय है।

उनके प्रति समर्पण और श्रृद्धा रखने वालों की संख्या करोडों में है। इसलिए ताज्जुब नहीं कि आज की राजनीतिक चिंतन की सभी धाराएँ उन्हें अपने में समाहित कर लेना चाहती हैं। राइट लेफ्ट या सेंटर और इनके सब तरह के काम्बिनेश्न्स के लिए उन्हें “डाइजेस्ट” करके उपयोग करने का भरसक प्रयत्न चल रहा है।

खुशी की बात ये है कि स्वयं आंबेडकर ने जिन विरोधाभासों को जिया और भोगा है उन्हें उतनी ही बेबाकी से अभिव्यक्ति भी दी है, इसीलिए वे किसी एक वाद या दर्शन में फिट नहीं होते। और इसीलिये अम्बेडकरवाद स्वयं में एक महत्वपूर्ण चिन्तन धारा की तरह स्थापित हो सका है।

आशा है बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस पर उनके बारे में अधिक सार्थक चर्चा हो सकेगी। हालाँकि आज ही के दिन बाबरी मस्जिद काण्ड करके इस दिवस की गरिमा को सोच समझकर घटाने का षड्यंत्र भी किया गया है। उम्मीद करें कि उस हिन्दुत्ववादी षड्यंत्र की परछाई आज की बहसों पर हावी नहीं होगी।

सादर नमन् बाबा साहेब। "आप थे इसलिए हम है"।
 

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