युद्ध समस्या का समाधान नही है युद्ध खुद बहुत बड़ी समस्या है

Written by Girish Malviya | Published on: June 17, 2020
भारत चीन सीमा पर LAC पर तनाव बढ़ता ही जा रहा है हमारे 20 जवान वहां शहादत दे चुके हैं हालांकि हम यह बात शुरू से कह रहे थे कि पेंगोंग लेक इलाके पर तुरन्त विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है लेकिन मोदी सरकार 'सब ठीक है' 'स्थिति नियंत्रण में है' जैसे शब्दों को लगातार दोहराती रही।



1962 में हुए भारत-चीन युद्ध से लेकर 2013 तक भारत-चीन सीमा पर सिर्फ दो ही बड़ी घटनाएं घटीं थी। एक 1967 में नाथुला में और एक 1986 में समदोरांग में। उसके बाद लगभग सब शांत ही रहा है। सीमा पर शांति रहे इसमे सबसे बड़ी भूमिका कूटनीति की होती है जिसमे भारत की मोदी सरकार की असफलता साफ साफ नजर आ रही हैं।

आपको शायद याद नही होगा लेकिन 2013 में लद्दाख के चुमार में भारत चीन की फौज आमने सामने आ गयी थी लेकिन तब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे जो कूटनीतिक स्तर पर बातचीत करने में वर्तमान सरकार से लाख बेहतर थे। तब सिर्फ सही तरीके से बातचीत करने पर ही चीनी फौज लद्दाख में भारतीय जमीन से पीछे हट गई। बगैर कोई सख्ती दिखाए मनमोहन सिंह ने चीन को पीछे हटने पर राजी कर लिया था।

2017 में डोकलाम वाली घटना हुई। डोकलाम वाली घटना के दौरान ही पैंगॉन्ग लेक में दोनों सेनाओं के बीच हुई झड़प के दौरान स्थति पथराव तक की बनी थी लेकिन तब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थी और मामला भी भूटान सीमा का था इसलिए उस संकट का शांतिपूर्ण समाधान निकल गया।

पीएम मोदी के किसी बड़े देश से सबसे अच्छे रिश्ते रहे हैं तो वह देश चीन ही है। पीएम मोदी ने किसी भी अन्य भारतीय राजनेता की तुलना में सबसे ज्यादा चीन की यात्रा की है मोदी नौ बार चीन का दौरा कर चुके हैं (चार बार गुजरात के सीएम के रूप में, पांच बार पीएम के रूप में), और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पिछले छह वर्षों में कई बार मुलाकात कर चुके हैं।

गुजरात के सीएम के रूप में, मोदी को नवंबर 2011 में चीन की यात्रा के लिए सीपीसी के अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था, जब उन्हें ‘अभूतपूर्व महत्व और उच्चतम स्तर का प्रोटोकॉल’ दिया गया था, जिसे ‘स्थापित मानदंडों से परे’ के रूप में देखा गया था। उनके साथ एक उच्च-स्तरीय व्यापार और आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल था और इस यात्रा को ‘भव्य सफलता’ कहा गया था.......आज के विदेश मंत्री जयशंकर एस जयशंकर चीन में भारत के राजदूत थे और बीजिंग को अच्छी तरह से जानते हैं।

2014 में जब मोदी पीएम बने, तो बहुत उम्मीदें थीं कि वह भारत-चीन रिश्ते को एक नया मोड़ देंगे और यहां तक ​​कि एलएसी के मुद्दे को हमेशा के लिए शांत कर देंगे। जब 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव थे तब चीन के सरकारी अखबार ने चीन सरकार की मनोकामना प्रकाशित की थी कि वो चाहते हैं कि गुजरात में मोदी की जीत हो ताकि चीन की कंपनियों को फायदा मिले। यानी साफ है कि चीन मोदी के पूरी तरह से समर्थन में था विदेश मन्त्री जयशंकर प्रसाद भी चीन में लंबे समय तक राजदूत रहे हैं।

यानी यह एक परफेक्ट कॉम्बिनेशन है जो भारत चीन के बीच उपजी इस तनावपूर्ण स्थिति का शांतिपूर्ण समाधान निकाल सकता है लेकिन अभी तक यह फेल साबित हुआ है.....हमे आज भी इस समस्या के कूटनीतिक समाधान पर ही जोर देना चाहिए, क्योंकि युद्ध समस्या का समाधान नही है युद्ध खुद बहुत बड़ी समस्या है।

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