लोकसभा चुनाव 2019 संपन्न हो गए, सरकार बन गई और मंत्रियों ने पदभार भी संभाल लिया है। लेकिन विपक्ष द्वारा ईवीएम पर ज्यादा मजबूती से सवाल नहीं उठाए जाने के बाद भी चुनाव में हुई गड़बड़ियों की ख़बरें अभी भी आ रही हैं, जो बेहद चिंताजनक हैं। अंग्रेज़ी वेबसाइट ‘द क्विंट’ ने ख़बर दी है कि ईवीएम में जितने वोट पाए गए, वे कुल मतदाताओं की संख्या से मेल नहीं खाते। ईवीएम में जितने वोट पाए गए, उसी बूथ पर उससे कम मतदाता थे। ऐसा एक नहीं 373 सीटों पर हुआ। यहाँ मतदान पहले के चार चरणों में हुए थे। दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों ही आँकड़े चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डाले गए थे, हालाँकि बाद में आयोग ने ये आँकड़े हटा भी लिए।
‘द क्विंट’ की ख़बर के मुताबिक़, तमिलनाडु के कांचीपुरम संसदीय सीट पर 12,14,086 वोट डाले गए, लेकिन ईवीएम के अनुसार 12,32,417 वोटों की गिनती की गई। यानी, 18,331 अतिरिक्त वोट गिने गए। यह कैसे हुआ, इसका कोई जवाब चुनाव आयोग के पास नहीं है।
इसी राज्य की धर्मपुरी सीट पर 11,94,440 वोट डाले गए, लेकिन गिनने पर वहाँ 12,12,311 वोट पाए गए, यानी 17,871 वोट अधिक थे।
तमिलनाडु के ही श्री पेरेम्बुदुर सीट पर 13,88,666 वोट डाले गए थे, लेकिन ईवीएम से 14,03,178 वोटों की गिनती हुई।
उत्तर प्रदेश के मथुरा में 10,88,206 वोट डाले गए थे, जबकि 10,98,112 वोट डाले गए थे, यानी 9,906 अतिरिक्त वोट गिने गए।
इस वेबसाइट ने यह मुद्दा उठाया और ख़बर की तो उसके बाद चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट से इन आँकड़ों को हटा लिया। पाँचवें, छठे और सातवें चरण के बारे में आयोग का कहना है कि ये अनुमानित आँकड़े हैं, लिहाज़ा, इसने इस पर ख़बर नहीं की। इस वेबसाइट ने 373 सीटों पर पाई गई इन अनियमितताओं के बारे में चुनाव आयोग को ई-मेल भेजा, आयोग से किसी अफ़सर ने फ़ोन पर बात की और कहा कि जल्द ही इस मामले में पूरी जानकारी दे दी जाएगी। लेकिन उसी दिन शाम को आयोग की वेबसाइट पर चल रहा टिकर हटा लिया गया और जानकारी भी हटा दी गई। बाद में आयोग ने ई-मेल कर जवाब दिया और कहा कि ये आँकड़े तात्कालिक हैं और बाद में इनमें सुधार किया जाएगा।
क्या कहना है चुनाव आयोग का?
चुनाव आयोग का कहना है कि यह अभी भी आँकड़ों को इकट्ठा ही कर रहा है। आयोग के मुताबिक़, हर बूथ पर तैनात हर दो घंटों पर प्रीसाइडिंग अफ़सर को अपने वरिष्ठ को जानकारी देते रहना चाहिए कि कितने वोट पड़े। फिर, आयोग को आँकड़े एकत्रित करने में इतना समय क्यों लग रहा है, यह सवाल उठता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ. पी. रावत ने इसे गंभीर गड़बड़ी मानते हुए इस पर चिंता जताई है। ईवीएम से जुड़ी शिकायतें पहले भी होती रही हैं, शिकायतें भी हुई हैं, पर नतीजा सिफ़र रहा है।
‘तकनीकी ख़राबी से कमल वाली बत्ती जली’
नवंबर 2014 में निकाय चुनाव के लिए जिलों में चल रहे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की फ़र्स्ट लेबल चेकिंग में सामने आई ख़ामियों को कांग्रेस ने मुद्दा बनाया था। कांग्रेस प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने राज्य निर्वाचन से शिकायत की थी कि ईवीएम के वोटिंग पैड में कोई भी बटन दबाने पर वोट बीजेपी को जा रहा था। मिश्रा ने आरोप लगाया था कि क़रीब 40 में से 17 मशीनों में कमल निशान वाले बटन को दबाने पर ही वोटिंग हो रही थी। वहीं चुनाव आयुक्त आर परशुराम ने आरोप को खारिज कर दिया था।
‘द क्विंट’ की ख़बर के मुताबिक़, तमिलनाडु के कांचीपुरम संसदीय सीट पर 12,14,086 वोट डाले गए, लेकिन ईवीएम के अनुसार 12,32,417 वोटों की गिनती की गई। यानी, 18,331 अतिरिक्त वोट गिने गए। यह कैसे हुआ, इसका कोई जवाब चुनाव आयोग के पास नहीं है।
इसी राज्य की धर्मपुरी सीट पर 11,94,440 वोट डाले गए, लेकिन गिनने पर वहाँ 12,12,311 वोट पाए गए, यानी 17,871 वोट अधिक थे।
तमिलनाडु के ही श्री पेरेम्बुदुर सीट पर 13,88,666 वोट डाले गए थे, लेकिन ईवीएम से 14,03,178 वोटों की गिनती हुई।
उत्तर प्रदेश के मथुरा में 10,88,206 वोट डाले गए थे, जबकि 10,98,112 वोट डाले गए थे, यानी 9,906 अतिरिक्त वोट गिने गए।
इस वेबसाइट ने यह मुद्दा उठाया और ख़बर की तो उसके बाद चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट से इन आँकड़ों को हटा लिया। पाँचवें, छठे और सातवें चरण के बारे में आयोग का कहना है कि ये अनुमानित आँकड़े हैं, लिहाज़ा, इसने इस पर ख़बर नहीं की। इस वेबसाइट ने 373 सीटों पर पाई गई इन अनियमितताओं के बारे में चुनाव आयोग को ई-मेल भेजा, आयोग से किसी अफ़सर ने फ़ोन पर बात की और कहा कि जल्द ही इस मामले में पूरी जानकारी दे दी जाएगी। लेकिन उसी दिन शाम को आयोग की वेबसाइट पर चल रहा टिकर हटा लिया गया और जानकारी भी हटा दी गई। बाद में आयोग ने ई-मेल कर जवाब दिया और कहा कि ये आँकड़े तात्कालिक हैं और बाद में इनमें सुधार किया जाएगा।
क्या कहना है चुनाव आयोग का?
चुनाव आयोग का कहना है कि यह अभी भी आँकड़ों को इकट्ठा ही कर रहा है। आयोग के मुताबिक़, हर बूथ पर तैनात हर दो घंटों पर प्रीसाइडिंग अफ़सर को अपने वरिष्ठ को जानकारी देते रहना चाहिए कि कितने वोट पड़े। फिर, आयोग को आँकड़े एकत्रित करने में इतना समय क्यों लग रहा है, यह सवाल उठता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ. पी. रावत ने इसे गंभीर गड़बड़ी मानते हुए इस पर चिंता जताई है। ईवीएम से जुड़ी शिकायतें पहले भी होती रही हैं, शिकायतें भी हुई हैं, पर नतीजा सिफ़र रहा है।
‘तकनीकी ख़राबी से कमल वाली बत्ती जली’
नवंबर 2014 में निकाय चुनाव के लिए जिलों में चल रहे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की फ़र्स्ट लेबल चेकिंग में सामने आई ख़ामियों को कांग्रेस ने मुद्दा बनाया था। कांग्रेस प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने राज्य निर्वाचन से शिकायत की थी कि ईवीएम के वोटिंग पैड में कोई भी बटन दबाने पर वोट बीजेपी को जा रहा था। मिश्रा ने आरोप लगाया था कि क़रीब 40 में से 17 मशीनों में कमल निशान वाले बटन को दबाने पर ही वोटिंग हो रही थी। वहीं चुनाव आयुक्त आर परशुराम ने आरोप को खारिज कर दिया था।