सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक उत्तरप्रदेश के सभी पूर्व मुख्यमंत्री अपने बंगले खाली कर चुके हैं। ऐसे सारे मामले काफी चर्चा में भी रहे लेकिन अन्य राज्यों में भी पूर्व मुख्यमंत्री आजीवन बंगला हासिल किए बैठे हैं। सबसे अलग मामला राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है जो एक साथ दो-दो बंगले कब्जा किए हैं, लेकिन उनकी चर्चा कहीं नहीं हो रही है।
Image Courtesy: DNA
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन आवास दिए जाने वाले कानून को रद्द कर दिया है। यूपी में इसका पालन हो चुका है, लेकिन राजस्थान इससे अछूता है। जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में अन्य राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी जिंदगी भर के लिए बंगला नहीं मिल सकता।
राजस्थान की मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे वैसे तो मुख्यमंत्री होने के नाते एक बंगला लिए ही हैं, लेकिन साथ ही एक बंगला वो पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते भी लिए हैं। इस तरह से वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुला उल्लंघन कर रही हैं, बल्कि इनका मामला और ज्यादा गंभीर है।
2008 में जब राजस्थान में विधानसभा चुनावों में भाजपा हार गई थी तो वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था, लेकिन उसके पहले ही उन्होंने अपने लिए जयपुर में अपने लिए 13 सिविल लाइंस वाला शानदार बंगला चुन लिया था, जिसकी सजावट और रखरखाव पर उन्होंने सरकार के करोड़ो रुपए खर्च कराए थे। उन्होंने इस सरकारी आवास का नाम भी अनंत विजय रखा है, जबकि सरकारी आवास का नाम बदला नहीं जा सकता है।
2008 से 2013 तक राज्य में भाजपा विपक्ष में रही तो वसुंधरा राजे इसी 13 सिविल लाइंस वाले बंगले में रहीं। 2013 में उनकी पार्टी फिर से सत्ता में आई तो वसुंधरा राजे तमाम विरोधियों को पीछे छोड़कर फिर से मुख्यमंत्री बन गईं। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री का सरकारी निवास 8 सिविल लाइंस भी ले लिया जबकि पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते मिले बंगले 13 सिविल लाइंस पर भी वे लगातार काबिज़ रहीं।
कायदे से तो उन्हें पहले भी ये बंगला खाली कर देना चाहिए था, लेकिन उन्होंने नहीं किया, पर अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब तय हो गया है कि किसी को भी पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते कोई बंगला नहीं मिलेगा, तब भी वसुंधरा राजे ने पूर्व मुख्यमंत्री के बतौर कब्जाया बंगला खाली नहीं किया है।
ऐसा नहीं कि उनके दो-दो बंगलों पर काबिज रहने का विरोध न हो रहा हो। भारतीय जनता पार्टी के ही बागी हो चुके नेता घनश्याम तिवाड़ी इसे लगातार मुद्दा बना रहे हैं और कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी राज्यों पर लागू होता है। वो राज्यपाल से भी इस मामले को लेकर मिल चुके हैं, लेकिन राज्यपाल कल्याण सिंह भी तो भाजपाई ही हैं, इसलिए उनकी हिम्मत भी वसुंधरा राजे से दूसरा बंगला खाली कराने की नहीं हो रही है।
घनश्याम तिवाड़ी वसुंधरा राजे की कार्यशैली से ही नाराज होकर भाजपा छोड़ चुके हैं और अब अपना अलग संगठन दीनदयाल वाहिनी बना चुके हैं। वो इस बार भाजपा के खिलाफ अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने भी जा रहे हैं। तिवाड़ी और उनकी दीनदयाल वाहिनी इसको लेकर आंदोलन भी कर रही है।
घनश्याम तिवाड़ी का कहना है कि वसुंधरा राजे सरकार ने 26 अप्रैल 2017 को जो राजस्थान मंत्री वेतन विधेयक पेश किया था, उसका असली उद्देश्य मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का 13 नंबर के बंगले पर आजीवन कब्जा कायम रखना ही था। तिवाड़ी राज्यपाल से उस विधेयक पर हस्ताक्षर न करने का अनुरोध करते रहे हैं, लेकिन राज्यपाल ने उनकी नहीं सुनी।
तिवाड़ी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी राज्यों पर लागू होता है। इसके अलावा यूपी में जिस विधेयक को रद्द करके पूर्व मुख्यमंत्रियों से बंगले खाली करवाए गए हैं, वैसा ही विधेयक राजस्थान की वसुंधरा राजे ने पारित करवाया है।
जनसत्ता में प्रकाशित खबर के मुताबिक कांग्रेस नेता अशोक गहलोत भी राज्य सरकार को पत्र लिखकर इस मामले में स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध कर चुके हैं।
उधर वसुंधरा राजे को न सुप्रीम कोर्ट के आदेश की परवाह है और न ही घनश्याम तिवाड़ी के आंदोलन की। उन्होंने इस मामले में अभी तक कोई प्रतिक्रिया तक देना जरूरी नहीं समझा है। ऐसे में घनश्याम तिवाड़ी कोर्ट जाने की भी तैयारी कर रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते मिला आवास 13 सिविल लाइंस। चित्र- Telegraph India
सरकारी आवास 8 सिविल लाइंस। चित्र- Telegraph India
चित्र- Hindi Siyasat
Image Courtesy: DNA
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन आवास दिए जाने वाले कानून को रद्द कर दिया है। यूपी में इसका पालन हो चुका है, लेकिन राजस्थान इससे अछूता है। जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में अन्य राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी जिंदगी भर के लिए बंगला नहीं मिल सकता।
राजस्थान की मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे वैसे तो मुख्यमंत्री होने के नाते एक बंगला लिए ही हैं, लेकिन साथ ही एक बंगला वो पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते भी लिए हैं। इस तरह से वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुला उल्लंघन कर रही हैं, बल्कि इनका मामला और ज्यादा गंभीर है।
2008 में जब राजस्थान में विधानसभा चुनावों में भाजपा हार गई थी तो वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था, लेकिन उसके पहले ही उन्होंने अपने लिए जयपुर में अपने लिए 13 सिविल लाइंस वाला शानदार बंगला चुन लिया था, जिसकी सजावट और रखरखाव पर उन्होंने सरकार के करोड़ो रुपए खर्च कराए थे। उन्होंने इस सरकारी आवास का नाम भी अनंत विजय रखा है, जबकि सरकारी आवास का नाम बदला नहीं जा सकता है।
2008 से 2013 तक राज्य में भाजपा विपक्ष में रही तो वसुंधरा राजे इसी 13 सिविल लाइंस वाले बंगले में रहीं। 2013 में उनकी पार्टी फिर से सत्ता में आई तो वसुंधरा राजे तमाम विरोधियों को पीछे छोड़कर फिर से मुख्यमंत्री बन गईं। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री का सरकारी निवास 8 सिविल लाइंस भी ले लिया जबकि पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते मिले बंगले 13 सिविल लाइंस पर भी वे लगातार काबिज़ रहीं।
कायदे से तो उन्हें पहले भी ये बंगला खाली कर देना चाहिए था, लेकिन उन्होंने नहीं किया, पर अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब तय हो गया है कि किसी को भी पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते कोई बंगला नहीं मिलेगा, तब भी वसुंधरा राजे ने पूर्व मुख्यमंत्री के बतौर कब्जाया बंगला खाली नहीं किया है।
ऐसा नहीं कि उनके दो-दो बंगलों पर काबिज रहने का विरोध न हो रहा हो। भारतीय जनता पार्टी के ही बागी हो चुके नेता घनश्याम तिवाड़ी इसे लगातार मुद्दा बना रहे हैं और कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी राज्यों पर लागू होता है। वो राज्यपाल से भी इस मामले को लेकर मिल चुके हैं, लेकिन राज्यपाल कल्याण सिंह भी तो भाजपाई ही हैं, इसलिए उनकी हिम्मत भी वसुंधरा राजे से दूसरा बंगला खाली कराने की नहीं हो रही है।
घनश्याम तिवाड़ी वसुंधरा राजे की कार्यशैली से ही नाराज होकर भाजपा छोड़ चुके हैं और अब अपना अलग संगठन दीनदयाल वाहिनी बना चुके हैं। वो इस बार भाजपा के खिलाफ अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने भी जा रहे हैं। तिवाड़ी और उनकी दीनदयाल वाहिनी इसको लेकर आंदोलन भी कर रही है।
घनश्याम तिवाड़ी का कहना है कि वसुंधरा राजे सरकार ने 26 अप्रैल 2017 को जो राजस्थान मंत्री वेतन विधेयक पेश किया था, उसका असली उद्देश्य मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का 13 नंबर के बंगले पर आजीवन कब्जा कायम रखना ही था। तिवाड़ी राज्यपाल से उस विधेयक पर हस्ताक्षर न करने का अनुरोध करते रहे हैं, लेकिन राज्यपाल ने उनकी नहीं सुनी।
तिवाड़ी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी राज्यों पर लागू होता है। इसके अलावा यूपी में जिस विधेयक को रद्द करके पूर्व मुख्यमंत्रियों से बंगले खाली करवाए गए हैं, वैसा ही विधेयक राजस्थान की वसुंधरा राजे ने पारित करवाया है।
जनसत्ता में प्रकाशित खबर के मुताबिक कांग्रेस नेता अशोक गहलोत भी राज्य सरकार को पत्र लिखकर इस मामले में स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध कर चुके हैं।
उधर वसुंधरा राजे को न सुप्रीम कोर्ट के आदेश की परवाह है और न ही घनश्याम तिवाड़ी के आंदोलन की। उन्होंने इस मामले में अभी तक कोई प्रतिक्रिया तक देना जरूरी नहीं समझा है। ऐसे में घनश्याम तिवाड़ी कोर्ट जाने की भी तैयारी कर रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते मिला आवास 13 सिविल लाइंस। चित्र- Telegraph India
सरकारी आवास 8 सिविल लाइंस। चित्र- Telegraph India
चित्र- Hindi Siyasat