अमेरिका अपने साम्राज्यवादी मंसूबे को पूरा करने के लिए क्यूबा के साथ चले आ रहे संघर्ष के इतिहास को दोहरा रहा है. अमेरिका को अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा एक ऐसी सरकार का अनुसरण करने का पैटर्न रहा है जो किसी अन्य देश में अपनी नीतियों को कायम करने में विश्वास रखता है. उनका यह रवैया दुनिया भर में प्रचलित है. किसी भी देश में उनके द्वारा पहले आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाते हैं और फिर राजनीतिक उथल-पुथल के लिए वहां की सरकार को दोषी ठहराया जाता है. बाद में विपक्ष को सरकार विरोधी रुख अपनाने में मदद तक पहुंचाए जाने का इनका रुख रहा है जो किसी भी देश में उसके हितों के विरुद्ध है.
संयुक्त राज्य अमेरिका पहले वेनेजुएला, बोलीविया और निकारागुआ में इस तरह के प्रयासों में विफल रहा है. अफगानिस्तान में 20 वर्षों के बाद, हमने संयुक्त राज्य अमेरिका को तालिबान के हाथों से बाहर निकलते देखा है. यदि संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई रिपब्लिकन या डेमोक्रेट सत्ता में आता है, तो उनकी विदेश नीति में ज्यादा बदलाव नहीं होता है. डोनाल्ड ट्रंप गए और जो बाइडेन आए तो पूरी दुनिया में उनका स्वागत किया गया लेकिन इनके द्वारा उठाए गए कदम ने साबित किया है कि साम्राज्यवादी देशों की विदेश नीतियों में सरकार के बदलाव से कुछ विशेष फ़र्क नहीं पड़ता है, नीतियां एक समान ही होती हैं.
कुछ दिनों पहले क्यूबा के शहर सैन एंटोनियो में भोजन, दवा और बिजली की तथाकथित कमी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ था. क्यूबा सरकार ने अमेरिकी समर्थक समूहों पर सोशल मीडिया पर फर्जी खाते खोलने और पूंजीवादी मीडिया का इस्तेमाल करके नकली प्रचार फैलाने का आरोप लगाया है. अमेरिकी विदेश विभाग ने क्यूबा के लोगों को क्रांति के खिलाफ उकसाने की कोशिश में लाखों डॉलर खर्च किए हैं. क्यूबन ह्यूमन राइट्स ऑब्जर्वेटरी और क्यूबन इंस्टीट्यूट फॉर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन एंड प्रेस जैसे सरकार विरोधी संगठनों को नेशनल एंडोमेंट फॉर डेमोक्रेसी और यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) से लाखों डॉलर की मदद सीआईए की तरफ़ से मिले हैं.
क्यूबा 11.19 मिलियन की आबादी वाला एक छोटा देश है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने पिछले 60 वर्षों से इस पर प्रतिबंध लगाए हैं. यह देश पिछले 30 सालों के सबसे गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है. अमेरिकी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप, क्यूबा को 144 बिलियन (संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 130 बिलियन) का नुकसान हुआ है. इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया के किसी भी देश पर प्रतिबंध लगाता है जो आर्थिक प्रतिबंधों के तहत क्यूबा के साथ व्यवहार करने की पहल करता है. यही कारण है कि कोई भी देश क्यूबा के साथ आयात या निर्यात करने की हिम्मत नहीं करता है.
1959 में, क्यूबा में लोगों ने फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा के नेतृत्व में तानाशाह फुलगेन्सियो बतिस्ता के खिलाफ एक क्रांति का आगाज किया. क्यूबा तब से अमेरिका की नजरों में है. संयुक्त राज्य अमेरिका पर 600 से अधिक बार फिदेल कास्त्रो की हत्या की साजिश रचने या सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया है. इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी नीतियों को 30 से अधिक लैटिन अमेरिकी देशों पर लागू करना चाहता है. क्यूबा के नेतृत्व के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए यह संभव नहीं है. क्यूबा अन्य देशों के लिए एक रोल मॉडल है.
क्यूबा और अमेरिका का संघर्ष नया नहीं है. अक्टूबर 1962 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने सोवियत संघ को घेरने के लिए इटली और तुर्की में परमाणु मिसाइलों को तैनात कर दिया था इसके जवाब में, सोवियत संघ ने संयुक्त राज्य अमेरिका की दिशा में क्यूबा में परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल को लगाया. इसे क्यूबाई मिसाइल संकट के नाम से जानते हैं. 1945 के बाद पहली दुनिया को फिर से मिसाइल संकट के कगार पर आ चुकी थी जहाँ सोवियत संघ ने युद्ध विराम की घोषणा करते हुए इसे टाल दिया और युद्ध के भयावह परिणाम से दुनिया बच सकी. लेकिन आज क्यूबा और संयुक्त राज्य अमेरिका एक बार फिर आमने-सामने हैं. इससे पहले, अप्रैल 1961 में, सीआईए-प्रशिक्षित व् क्यूबा से निर्वासित 1200 उग्रवादियों द्वारा क्यूबा के दक्षिण में स्थित बे ऑफ पिग्स द्वीप पर फिदेल कास्त्रो की सरकार पर हमला किया था हालाँकि यह प्रयास विफल रहा.
यहां तक कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें भी संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपने नागरिकों को मुफ्त में प्रदान नहीं की जा सकती हैं. क्यूबा सरकार अपने नागरिकों को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रदान कर रही है. कोरोना काल के दौरान अन्य पूंजीवादी देशों की तुलना में क्यूबा ने देश में कोरोना को फैलने नहीं दिया. उन्होंने अपने डॉक्टरों को न केवल हमारे देश बल्कि अन्य देशों में भी सहयोग के लिए भेजा. इसके अलावा, 5 स्व-निर्मित टीके तैयार किए गए हैं. कोरोना काल में दुनिया भर के तमाम देशों की सरकारों के खिलाफ जनता में आक्रोश है. आर्थिक प्रतिबंधों के बोझ तले दबी क्यूबा सरकार कोई अपवाद नहीं है.
क्रांति का नेतृत्व करने वाले फिदेल कास्त्रो की 2016 में मृत्यु हो गई, जिसके बाद राउल कास्त्रो के हाथों में सरकार का नेतृत्व दिया गया. राउल कास्त्रो ने 2019 तक सरकार भी संभाली और अर्थव्यवस्था में सुधार और संविधान में संशोधन करके मिगुएल डियाज़-कैनेल को राष्ट्रपति पद सौंप दिया. अब, कोरोना काल के हालात और फिदेल कास्त्रो की अनुपस्थिति के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका के पास तख्तापलट का अवसर है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1960 के दशक से क्यूबा पर आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं. लेकिन क्यूबा को सोवियत रूस की मदद से आर्थिक प्रतिबंधों का खामियाजा नहीं भुगतना पड़ा. 1990 में सोवियत संघ के पतन के बाद, क्यूबा को सहायता देना बंद कर दिया गया, जिससे संकट और बढ़ गया. क्यूबा की अर्थव्यवस्था विकसित पर्यटन पर निर्भर थी. कोरोना काल में पर्यटन के पूरी तरह बंद होने से लोगों का जीना दूभर हो गया है. पिछले डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने एक या दो नहीं बल्कि क्यूबा पर 200 आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे. इससे क्यूबा की आर्थिक नाकेबंदी हुई और लोगों की मुश्किलें और बढ़ गईं. वर्तमान कोरोना काल में पर्यटन पूरी तरह ठप हो गया है, लॉकडाउन के कारण पर्यटन, दैनिक आर्थिक लेन-देन ठप हो गया है. ऐसे में क्यूबा के लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले महीने, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा क्यूबा पर अमेरिकी प्रतिबंध हटाने के लिए मतदान कराया गया था. संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल को छोड़कर, भारत सहित 194 देशों ने क्यूबा के पक्ष में मतदान किया. अमेरिका को इससे सीख लेने की जरूरत है. क्यूबा में समतावादी व्यवस्था से नापसंद और मुक्त अर्थव्यवस्था से आकर्षित कुछ मुट्ठी भर क्यूबा वासी देश छोड़ना चाहते थे. उन्हें सरकार ने नहीं रोका. उनमें से कुछ संयुक्त राज्य अमेरिका में क्यूबा तट के पास मियामी, फ्लोरिडा चले गए. उन्हें अमेरिकी लोगों के नस्लवाद का सामना करना पड़ता है. हालांकि, उनमें से कुछ को अमेरिकी संगठनों द्वारा बंधक बनाया जा रहा है और मांग कर रहे हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका क्यूबा में हस्तक्षेप करे.
क्यूबा के लोगों ने अमेरिकी साजिश को पहचाना और क्यूबा में सड़कों पर उतरकर अमेरिका के खिलाफ और क्यूबा सरकार के समर्थन में विरोध किया. क्यूबा में काम उतना आसान नहीं है जितना कि अन्य देशों में जहां अमेरिका ने हस्तक्षेप किया है. क्यूबा के लोग संयुक्त राज्य अमेरिका के कृत्यों को साठ वर्षों से झेलते आ रहे हैं. कम से कम क्यूबा में अमेरिका की योजनाएँ अभी तक सफल नहीं हो पायी हैं. जबकि क्यूबा भविष्य में संयुक्त राज्य अमेरिका के मनसूबे को लेकर चिंतित है, उसे अमेरिका के अलावा अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर, सहायता स्वीकार करके, और अन्य तरीकों से देश की कमी को पूरा करके लोगों को आश्वस्त करने की आवश्यकता है. यदि संयुक्त राज्य अमेरिका क्यूबा के लोगों के बारे में इतना चिंतित है तो उसे क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध हटाकर अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए.
संयुक्त राज्य अमेरिका पहले वेनेजुएला, बोलीविया और निकारागुआ में इस तरह के प्रयासों में विफल रहा है. अफगानिस्तान में 20 वर्षों के बाद, हमने संयुक्त राज्य अमेरिका को तालिबान के हाथों से बाहर निकलते देखा है. यदि संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई रिपब्लिकन या डेमोक्रेट सत्ता में आता है, तो उनकी विदेश नीति में ज्यादा बदलाव नहीं होता है. डोनाल्ड ट्रंप गए और जो बाइडेन आए तो पूरी दुनिया में उनका स्वागत किया गया लेकिन इनके द्वारा उठाए गए कदम ने साबित किया है कि साम्राज्यवादी देशों की विदेश नीतियों में सरकार के बदलाव से कुछ विशेष फ़र्क नहीं पड़ता है, नीतियां एक समान ही होती हैं.
कुछ दिनों पहले क्यूबा के शहर सैन एंटोनियो में भोजन, दवा और बिजली की तथाकथित कमी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ था. क्यूबा सरकार ने अमेरिकी समर्थक समूहों पर सोशल मीडिया पर फर्जी खाते खोलने और पूंजीवादी मीडिया का इस्तेमाल करके नकली प्रचार फैलाने का आरोप लगाया है. अमेरिकी विदेश विभाग ने क्यूबा के लोगों को क्रांति के खिलाफ उकसाने की कोशिश में लाखों डॉलर खर्च किए हैं. क्यूबन ह्यूमन राइट्स ऑब्जर्वेटरी और क्यूबन इंस्टीट्यूट फॉर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन एंड प्रेस जैसे सरकार विरोधी संगठनों को नेशनल एंडोमेंट फॉर डेमोक्रेसी और यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) से लाखों डॉलर की मदद सीआईए की तरफ़ से मिले हैं.
क्यूबा 11.19 मिलियन की आबादी वाला एक छोटा देश है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने पिछले 60 वर्षों से इस पर प्रतिबंध लगाए हैं. यह देश पिछले 30 सालों के सबसे गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है. अमेरिकी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप, क्यूबा को 144 बिलियन (संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 130 बिलियन) का नुकसान हुआ है. इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया के किसी भी देश पर प्रतिबंध लगाता है जो आर्थिक प्रतिबंधों के तहत क्यूबा के साथ व्यवहार करने की पहल करता है. यही कारण है कि कोई भी देश क्यूबा के साथ आयात या निर्यात करने की हिम्मत नहीं करता है.
1959 में, क्यूबा में लोगों ने फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा के नेतृत्व में तानाशाह फुलगेन्सियो बतिस्ता के खिलाफ एक क्रांति का आगाज किया. क्यूबा तब से अमेरिका की नजरों में है. संयुक्त राज्य अमेरिका पर 600 से अधिक बार फिदेल कास्त्रो की हत्या की साजिश रचने या सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया है. इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी नीतियों को 30 से अधिक लैटिन अमेरिकी देशों पर लागू करना चाहता है. क्यूबा के नेतृत्व के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए यह संभव नहीं है. क्यूबा अन्य देशों के लिए एक रोल मॉडल है.
क्यूबा और अमेरिका का संघर्ष नया नहीं है. अक्टूबर 1962 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने सोवियत संघ को घेरने के लिए इटली और तुर्की में परमाणु मिसाइलों को तैनात कर दिया था इसके जवाब में, सोवियत संघ ने संयुक्त राज्य अमेरिका की दिशा में क्यूबा में परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल को लगाया. इसे क्यूबाई मिसाइल संकट के नाम से जानते हैं. 1945 के बाद पहली दुनिया को फिर से मिसाइल संकट के कगार पर आ चुकी थी जहाँ सोवियत संघ ने युद्ध विराम की घोषणा करते हुए इसे टाल दिया और युद्ध के भयावह परिणाम से दुनिया बच सकी. लेकिन आज क्यूबा और संयुक्त राज्य अमेरिका एक बार फिर आमने-सामने हैं. इससे पहले, अप्रैल 1961 में, सीआईए-प्रशिक्षित व् क्यूबा से निर्वासित 1200 उग्रवादियों द्वारा क्यूबा के दक्षिण में स्थित बे ऑफ पिग्स द्वीप पर फिदेल कास्त्रो की सरकार पर हमला किया था हालाँकि यह प्रयास विफल रहा.
यहां तक कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें भी संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपने नागरिकों को मुफ्त में प्रदान नहीं की जा सकती हैं. क्यूबा सरकार अपने नागरिकों को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रदान कर रही है. कोरोना काल के दौरान अन्य पूंजीवादी देशों की तुलना में क्यूबा ने देश में कोरोना को फैलने नहीं दिया. उन्होंने अपने डॉक्टरों को न केवल हमारे देश बल्कि अन्य देशों में भी सहयोग के लिए भेजा. इसके अलावा, 5 स्व-निर्मित टीके तैयार किए गए हैं. कोरोना काल में दुनिया भर के तमाम देशों की सरकारों के खिलाफ जनता में आक्रोश है. आर्थिक प्रतिबंधों के बोझ तले दबी क्यूबा सरकार कोई अपवाद नहीं है.
क्रांति का नेतृत्व करने वाले फिदेल कास्त्रो की 2016 में मृत्यु हो गई, जिसके बाद राउल कास्त्रो के हाथों में सरकार का नेतृत्व दिया गया. राउल कास्त्रो ने 2019 तक सरकार भी संभाली और अर्थव्यवस्था में सुधार और संविधान में संशोधन करके मिगुएल डियाज़-कैनेल को राष्ट्रपति पद सौंप दिया. अब, कोरोना काल के हालात और फिदेल कास्त्रो की अनुपस्थिति के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका के पास तख्तापलट का अवसर है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1960 के दशक से क्यूबा पर आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं. लेकिन क्यूबा को सोवियत रूस की मदद से आर्थिक प्रतिबंधों का खामियाजा नहीं भुगतना पड़ा. 1990 में सोवियत संघ के पतन के बाद, क्यूबा को सहायता देना बंद कर दिया गया, जिससे संकट और बढ़ गया. क्यूबा की अर्थव्यवस्था विकसित पर्यटन पर निर्भर थी. कोरोना काल में पर्यटन के पूरी तरह बंद होने से लोगों का जीना दूभर हो गया है. पिछले डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने एक या दो नहीं बल्कि क्यूबा पर 200 आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे. इससे क्यूबा की आर्थिक नाकेबंदी हुई और लोगों की मुश्किलें और बढ़ गईं. वर्तमान कोरोना काल में पर्यटन पूरी तरह ठप हो गया है, लॉकडाउन के कारण पर्यटन, दैनिक आर्थिक लेन-देन ठप हो गया है. ऐसे में क्यूबा के लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले महीने, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा क्यूबा पर अमेरिकी प्रतिबंध हटाने के लिए मतदान कराया गया था. संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल को छोड़कर, भारत सहित 194 देशों ने क्यूबा के पक्ष में मतदान किया. अमेरिका को इससे सीख लेने की जरूरत है. क्यूबा में समतावादी व्यवस्था से नापसंद और मुक्त अर्थव्यवस्था से आकर्षित कुछ मुट्ठी भर क्यूबा वासी देश छोड़ना चाहते थे. उन्हें सरकार ने नहीं रोका. उनमें से कुछ संयुक्त राज्य अमेरिका में क्यूबा तट के पास मियामी, फ्लोरिडा चले गए. उन्हें अमेरिकी लोगों के नस्लवाद का सामना करना पड़ता है. हालांकि, उनमें से कुछ को अमेरिकी संगठनों द्वारा बंधक बनाया जा रहा है और मांग कर रहे हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका क्यूबा में हस्तक्षेप करे.
क्यूबा के लोगों ने अमेरिकी साजिश को पहचाना और क्यूबा में सड़कों पर उतरकर अमेरिका के खिलाफ और क्यूबा सरकार के समर्थन में विरोध किया. क्यूबा में काम उतना आसान नहीं है जितना कि अन्य देशों में जहां अमेरिका ने हस्तक्षेप किया है. क्यूबा के लोग संयुक्त राज्य अमेरिका के कृत्यों को साठ वर्षों से झेलते आ रहे हैं. कम से कम क्यूबा में अमेरिका की योजनाएँ अभी तक सफल नहीं हो पायी हैं. जबकि क्यूबा भविष्य में संयुक्त राज्य अमेरिका के मनसूबे को लेकर चिंतित है, उसे अमेरिका के अलावा अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर, सहायता स्वीकार करके, और अन्य तरीकों से देश की कमी को पूरा करके लोगों को आश्वस्त करने की आवश्यकता है. यदि संयुक्त राज्य अमेरिका क्यूबा के लोगों के बारे में इतना चिंतित है तो उसे क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध हटाकर अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए.