अपनी नागरिकता कैंसिल कराने की गुहार लगा रहे ऊना कांड के पीड़ित दलित

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 14, 2020
नई दिल्ली: एक ओर जहां नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश में बहस छिड़ी है, पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित पूरी भाजपा पड़ोसी देशों के प्रताड़ित गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने के दावे कर रहे हैं वहीं, उनके गृहराज्य गुजरात के पीड़ित दलित पलायन करने के कगार पर हैं। 



गुजरात के ऊना में कथित गौरक्षक सवर्णों के अत्याचार का शिकार हुए पीड़ितों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से अपील की है कि उन्हें देश से बाहर कर दिया जाए ताकि उन्हें भेदभाव न झेलना पड़े। ऊना के पीड़ितों ने राष्ट्रपति को खत लिखकर कहा है कि उनसे भारत के नागरिक के तौर पर पेश नहीं आया जाता है। ऐसे में उनकी नागरिकता रद्द कर बाहर भेज दिया जाए या उन्हें इच्छामृत्यु की अनुमति दी जाए। 

गौरतलब है कि जुलाई, 2016 में गुजरात के गिर-सोमनाथ जिले के ऊना में चार लोगों को कथित गोरक्षकों ने कपड़े उतरवाकर परेड कराया और पीटा था। दलित समुदाय के इन लोगों पर मरी हुई गाय से खाल निकालने का आरोप था। घटना का उस वक्त काफी विरोध हुआ था। उनमें से एक वाश्रम सरवइया ने राष्ट्रपति को खत लिखा है।

पत्र में कहा गया है कि उन्हें पीटने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने दावा किया है कि उनसे खेती के लिए जमीन, घर के लिए प्लॉट और रोजगार देने का वादा किया गया था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऊना अटैक के बाद देश भर के गैर भाजपाई नेता पीड़ितों से मिलने पहुंचे थे। वाश्रम का कहना है कि घटना के बाद से उन्हें नौकरी और अधिकारों, दोनों का नुकसान हुआ है।

…तो चुननी पड़ेगी इच्छामृत्यु
उनका कहना है, ‘अब अधिकारी ऐसे बर्ताव कर रहे हैं जैसे हम इस देश के नागरिक नहीं हैं। अगर हमें नागरिक नहीं समझा जा सकता तो हमारी नागरिकता रद्द कर दीजिए और हमें ऐसे देश भेज दीजिए जहां हमें पक्षपात नहीं झेलना पड़े।’ उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रपति ने उनके अधिकारों की रक्षा नहीं की तो उन्हें इच्छामृत्यु चुननी पड़ेगी। वाश्रम ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने हमसे जमीन, पटेल और नौकरी देने का वादा किया था लेकिन न उन्होंने, न किसी सरकारी प्रतिनिधि ने वे वादे पूरे किए।

उन्होंने कहा कि अगर उनकी याचिका पर सुनवाई नहीं हुआ तो वह खुद को दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के सामने आग लगा लेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार उनकी गुहार का जवाब नहीं दे रही है, ऐसे में उन्हें यह कदम उठाना ही पड़ेगा। 

बता दें कि भेदभाव का सामना कर रहे इस परिवार ने 2018 में हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लिया था। लेकिन इसके बाद भी उन्हें न तो अधिकार मिल पा रहे हैं औऱ न ही कथित सवर्ण समाज अपना पा रहा है। 

 

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