निर्वासन का सामना कर रहे 25 एंटी CAA प्रदर्शनकारी!

Written by sabrang india | Published on: October 24, 2020
5 जनवरी 2020 को जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्रों पर हुए हिंसक हमले के बाद देशभर में प्रदर्सन हुए, इनमें से दो प्रमुख विरोध प्रदर्शन हुए एक हुतात्मा चौक पर और दूसरा गेटवे ऑफ इंडिया पर। हालांकि बाद में जो हुआ वह और भी परेशान करने वाला था। 



एक साथ तीन पुलिस स्टेशन एमआरए मार्ग, कोलाबा और तारदिओ ने धारा 107 (शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा) और 110 (आदतन अपराधियों से अच्छे व्यवहार के लिए सुरक्षा) के तहत नोटिस जारी किए हैं। बांड की शर्तों के अनुसार अगर ये लोग कानून और व्यवस्था को खतरे में डालने वाले किसी भी काम में शामिल होते हैं तो उनकी न केवल जमानत राशि जब्द की जाएगी बल्कि शहर से निर्वासन भी किया जा सकता है। 

यह भविष्य में उन्हें शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बनने से रोकता है, और इस प्रकार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और विरोध के अधिकार का उल्लंघन होता है।

कथित तौर पर इस तरह के नोटिसों को कॉलेज के छात्रों, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों सहित 25 लोगों को परोसा गया है। सबसे चौंकाने वाला मामला कॉलेज की छात्रा और सांस्कृतिक कार्यकर्ता सुवर्णा साल्वे का था, जो समता कला मंच का हिस्सा थीं, जिसे 50 लाख रुपये में एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था! साल्वे ने पिछले दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में हुए हमले में घायल हुए छात्रों के लिए न्याय की मांग करते हुए 'ऑक्युपाई गेटवे' के विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था। फरवरी में, साल्वे को 30 अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया था।

फिर उसे 24 अगस्त को नोटिस दिया गया। यह इस बात की व्याख्या करता है कि सीआरपीसी की धारा 110 (ई) के तहत उसके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए। इस नोटिस के मुताबिक दो व्यक्तियों में से कम से कम एक व्यक्ति को "जमानत" के रूप में पेश करने की आवश्यकता है, जो कि अगले दो वर्षों के लिए उसके अच्छे व्यवहार को सुनिश्चित करते हुए, 50 लाख रुपये की राशि देगा। यदि इसमें वह विफल रहती है, तो राशि या संपत्ति राज्य द्वारा जब्त कर ली जाएगी।



अन्य को 1 लाख रुपये से अधिक की जमानत देने के लिए कहा गया है।

इससे पहले सितंबर में जब उन्हें नोटिस दिया गया था तो सबरंग इंडिया से बात करते हुए फिरोज मिथिबोरवाला ने कहा था, मुझे एक बांड भरने और विरोध प्रदर्शनों से बाहर रहने के लिए गया गया है। इस मामले में अगर उल्लंघन होता है तब उसे तड़ीपार के रूप में शहर से बाहर भेजा जाएगा। 

उन्हें अब कोलाबा पुलिस ने गुरुवार को अपना नोटिस स्वीकार करने के लिए बुलाया है और मुंबई मिरर के अनुसार उनकी सुनवाई 29 अक्टूबर को एक सहायक पुलिस आयुक्त के समक्ष शुरू होगी।

एडवोकेट इशरत खान जो 25 लोगों में से 13 का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जिन्हें इस तरह के नोटिस दिए गए हैं, उन्होंने मुंबई मिरर को बताया, "चैप्टर प्रोसीडिंग्स कठोर अपराधियों के लिए होती है, न कि इन प्रदर्शनकारियों के लिए।" वे अदालत में नोटिस को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं।

5 जनवरी 2020 को नकाबपोश गुंडों के एक समूह ने छात्रों और शिक्षकों पर में भय फैलाने के लिए जेएनयू परिसर में प्रवेश किया था, लोहे की छड़ों से बेहरमी से परिसर में लोगों की पिटाई की थी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था। 

इसके बाद, अपने निवास मातोश्री में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में, ठाकरे ने कहा, 'जब मैंने टीवी पर जेएनयू हमले की खबर देखी, तो इसने मुझे 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों की याद दिला दी।' यह कहते हुए कि छात्रों को देश में 'असुरक्षा' महसूस होती है, उन्होंने कहा था, 'मैं जेएनयू जैसा कुछ भी महाराष्ट्र में नहीं होने दूंगा।'

अगर खुद मुख्यमंत्री ठाकरे जेएनयू में हुई हिंसा से इतने परेशान थे, तो ऐसा क्यों है कि जब छात्रों और कार्यकर्ताओं ने हुतात्मा चौक और गेटवे ऑफ इंडिया पर प्रदर्शन करके हिंसा का विरोध किया, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गईं? उन्हें बांड पर हस्ताक्षर करने और अत्यधिक ज़मानत देने के लिए क्यों कहा गया? ‘कानून और व्यवस्था’ एक राज्य विषय है, और इसलिए राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है। गेंद आपके पाले में है मिस्टर ठाकरे।

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